चक्रधर
जी हाँ खलासी हूँ
मेरे ही हांथों के इंगित से
राष्ट्र की शिराओं में जीवन- रक्त बहता है
चाकों के वर्तुल राष्ट्र व्यापी चक्र
मेरी तर्जनी के हिलानें
से हिलते हैं - चक्रधर मैं ही हूँ
यह बात अन्य है कि इस महाभारत में
शस्त्रों के न छूने की शपथ मैनें ले ली है
पर कौन जानें कल विचलित धनंजय को
देनें संरक्षण - अपने किसी वाहन का चाक
मैं निकाल लूँ - और यदि ऐसा हो दोष
क्या मेरा है - मुझे उस सीमा तक
तोड़ना क्या अच्छा है - जहां सभी निश्चय
अनिश्चय हो जाते हैं |
चक्रधर आज युग -युद्ध में प्रतिश्रुत है
शस्त्र हींन रहनें को - किन्तु
उनके संयम की सीमा है और
उसे तोड़ देना युग
की नासमझी है |
जी हाँ खलासी हूँ
मेरे ही हांथों के इंगित से
राष्ट्र की शिराओं में जीवन- रक्त बहता है
चाकों के वर्तुल राष्ट्र व्यापी चक्र
मेरी तर्जनी के हिलानें
से हिलते हैं - चक्रधर मैं ही हूँ
यह बात अन्य है कि इस महाभारत में
शस्त्रों के न छूने की शपथ मैनें ले ली है
पर कौन जानें कल विचलित धनंजय को
देनें संरक्षण - अपने किसी वाहन का चाक
मैं निकाल लूँ - और यदि ऐसा हो दोष
क्या मेरा है - मुझे उस सीमा तक
तोड़ना क्या अच्छा है - जहां सभी निश्चय
अनिश्चय हो जाते हैं |
चक्रधर आज युग -युद्ध में प्रतिश्रुत है
शस्त्र हींन रहनें को - किन्तु
उनके संयम की सीमा है और
उसे तोड़ देना युग
की नासमझी है |
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