Sunday, 29 April 2018

शिवत्व 

जो पृष्ठांकित रह जाये
न ओठ जिसे चूमें
जो धड़कन बन न सके
मेरी , तेरी , सबकी
वह शब्द शिल्प
हो गीत , अगीत
मुक्त ,  बन्धित
बस चमत्कार |
कीमती कसीदा
कुछ आँखों की सुख -शोभा
कुछ रंगे रंगाये ओठों की
मृत वाह  वाह |
जो शेख मुजीबर के शब्दों सा
लहर जाये
हर ओर छोर
झकझोरे
जन  का पोर पोर
अन - अंकित भी
वह अमर शिल्प है वाणीं का |
हर गढ़न , रूप
सांचों का हर सतही उभार
गति , छंद , ताल
जंगल के बिखरे शिला- खण्ड
निर्जीव , व्यर्थ
पर यह सारे
आवेग - धार में लुढ़क पुढ़क
बस अनायास ही
शिव , सुन्दरता के प्रतीक बन जाते हैं |

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