गतांक से आगे -
ब्रेक फास्ट लेनें के पहले ही डा. राकेश का फोन आ गया | बोले आपकी बहन सौदामिनी जी आपसे बात करना चाहती हैं लीजिये , और उन्होंने फोन सौदामिनी जी को दे दिया | सौदामिनी जी नें कहा , " भाई साहब ,अगर असुविधा न हो भाभी जी से इजाजत मांगकर इधर आ जाइये चार पांच मिनट का ही तो रास्ता है | यहीं ब्रेकफास्ट लीजियेगा फिर आप दोनों को ड्राइवर कालेज छोड़ आयेगा | मैनें आज छुट्टी ले ली है | राकेश की माँ पास ही खड़ी थी | मैनें उससे पूछा चला जाऊँ | थोड़ा सा नाराज होकर बोली , " दुनिया के काम -काज करते घूम रहे हो | इन मुंह बोली बहनों नें खाना पीना तक छुड़वा दिया है | अब क्या कहूँ जाना है तो चले जाओ पता नहीं क्या बात हो ? कुछ झमेला हो तो मुझे खबर कर देना | " दस -पन्द्रह मिनट बाद मैं डा. राकेश के घर पहुँच गया उनका बड़ा लड़का कुरुक्षेत्र के रीजनल इंजीनियरिंग कालेज में थर्ड ईयर का छात्र था और वहीं होस्टल में रहता था | प्रिया अपनें कमरे में बैठी थी जो डाइनिंग रूम से कुछ दूरी पर था | सौदामिनी नें मेरा स्वागत करते हुये डाइनिंग टेबिल के पास ले जाकर मुझे राकेश जी के पास बैठा दिया | खुद राकेश जी के पास पडी कुर्सी पर बैठ गयी | बोली पहले ब्रेकफास्ट कर लीजिये फिर बात करेंगें | मैनें देखा मेज पर ड्राई फ्रूट्स और एक बड़ी प्लेट में नमकीन पोहा रखा हुआ था | पास ही केतली में चाय थी और प्यालों और चमच्चों का एक सेट | मैनें पूछा प्रिया कहाँ है ? उसे भी बुला लो | सौदामिनी बोली उसकी तबियत कुछ अनमन है| आप लोग ब्रेकफास्ट करिये | मैनें बात को आगे न बढ़ाते हुये राकेश और सौदामिनी से कहा , " आइये शुरू करें | "
ब्रेकफास्ट लेनें के बाद हम तीनों ड्राइंग रूम में जाकर बैठ गये | डा. राकेश बोले , "अवस्थी क्या बताऊँ कल शाम साढ़े आठ बजे मेरे एक परिचित नें ऐसा एक व्यवहार किया जैसा एक नीच से नीच आदमी भी नहीं करता | " मैनें कहा , " अरे यार पूरी बात बता आपके परिचितों में कौन ऐसा नालायक निकला जिसकी बात आप कर रहे हैं |" सौदामिनी बोली , " मैं प्रिया को बुलाती हूँ बड़े भाई आप सब उसी के मुंह से सुन लें | " उसनें प्रिया को आवाज लगायी पर पन्द्रह वर्ष की वह लजीली बिटिया अपनें कमरे में बैठी सुबकती रही | आखिर उसकी माँ को उठ कर उसके कमरे में जाना पड़ा और बहुत समझा -बुझा कर उसके अंकल के सामनें सारी बात कहनें के लिये लाया गया | सुबकते हुये प्रिया बोली , " अंकल कल शाम को मैं घर पर अकेली थी | मम्मी और पापा बाजार गये हुये थे | | मम्मी को शुचिता की शादी के लिये कुछ गिफ्ट्स खरीदनें थे | ( मैं जानता था कि शुचिता सौदामिनी के बड़े भाई की इन्जीनियर पुत्री है ) लगभग आठ बजे का टाइम था | मैं टेलीविजन देख रही थी यहीं ड्राइंग रूम में | सीढ़ियों पर किसी के पैरों की आहट हुयी | मैं समझी कि शायद पापा आ रहे होंगें मम्मी गैराज में गाड़ी खड़ी करवा रही होंगीं | पर दरवाजे पर ड्राइंग रूम के सामनें आनें पर मैनें देखा कि आनें वाले अंकल राधे श्याम गुप्ता थे | ( मैं राधेश्याम गुप्ता को जानता था ,वह राजकीय महाविद्यालय नारनौल में प्राध्यापक थे और वे भी अंग्रेजी के | मैं उनको इसलिये जानता था कि जब राकेश साहब का इंटरव्यूह हुआ था तब वे भी एक कन्डीडेट थे | पर उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया था बाद में वे राजकीय सेवा में कैसे आ गये इस पर पूरा प्रकाश उनके वृद्ध पिता नें डाला जिसकी चर्चा आगे की जायेगी | )अंकल राधेश्याम गुप्ता पिताजी से मिलनें अक्सर घर पर आते रहते हैं | मम्मी भी उनकों कई बार चाय पिला चुकी हैं | एकाध बार उनकी बड़ी बिटिया सलोनी भी जो मेरी ही उमर की है यहां आ चुकी है | अंकल नें पूछा मम्मी और पापा घर पर नहीं हैं क्या ? मैनें कहा नहीं वे बाजार गये हैं | आते ही होंगें | इन्तजार करना चाहें तो यहां बैठ लें हम अपनें कमरे में चले जाते हैं | अंकल नें कहा प्रिया अरे तू तो बड़ी हो गयी है कितनी सुन्दर लग रही है | मेरे एक मित्र बम्बई में हैं सिनेमा के क्षेत्र में उनकी बड़ी जान और पहचान है | तेरे को हीरोइन बना देंगें | मैनें शर्माकर आँखें नीची कर लीं, क्या कोई बाप अपनी बेटी से ऐसी बातें करता है ? मैनें उनसे कहा अंकल आज आप यह सब क्या कह रहे हैं ? उन्होंने कहा कि अरे अंकल बंकल की बातें सब पुरानी हो गयी हैं | अब तू जवान हो गयी है खुल कर खेल ले | माँ की तरह दकियानूसी मत बन | मुझे गुस्सा आ गया मैनें कहा , " Shut upपापा से कहकर घर का आना बन्द करवा दूंगीं | उन्होंने लाल लाल आँखें करके कहा तेरे पापा क्या लाट साहब हैं ? तेरे पापा जैसे न जानें कितनें आगे पीछे घूमते रहते हैं | मेरा गुस्सा और भड़क उठा मैनें कहा , " गेट आउट , Behave like a teacher I am just like your daughter . "अंकल होश में आओ क्या शराब पीकर आये हो ? मुझे ऐसा लगा कि उनके मुंह से सड़े सिरके की सी महक आ रही है | उनको न जानें क्या हुआ | शायद उनके अन्दर का इन्सान मर गया और यह कहकर प्रिया फूट -फूट कर रोने लगी मैं थोड़ी देर चुप बैठकर उसका रोना देखता रहा फिर उसे बुलाकर मेरे पास बैठे राकेश जी के पास उसे बैठनें को कहा | कुछ देर बाद मैनें कहा , " बेटे एक दुर्घटना से मानव जाति पर से अपना विश्वास मत खो देना | आदमियों के बीच कुत्ते भी हैं | पर ये मत भूलना कि आदमी में देवत्व की भी झलक होती है | पूरी घटना बता आगे गुप्ता नाम के उस कुत्ते ने क्या किया | कुछ रूककर आंसू पोछकर प्रिया बोली अंकल ने आकर---फिर वह फूट कर रो पडी | मैनें कहा आगे बोल दसवीं में इसीलिये 87 प्रतिशत नम्बर लिये थे प्रिया ने कहा फिर अंकल नें मेरी दोनों छातियाँ पकड़ लीं और मुझे जबरदस्ती अपनी ओर खींचा | मैनें ताकत लगाकर अपने को छुड़ाया और मेज पर पड़े पेपर वेट को उठाकर उसके मत्थे की ओर फेंका | शायद पेपरवेट नें उसे भी चोंट पहुंचायी हो क्योंकि वह भागते हुये मत्था सहला रहा था | भागा इसलिये कि नीचे से किसी गाड़ी की आवाज आयी और उसे लगा कि पापा और मम्मी आ रहे हैं | हालांकि गाड़ी पड़ोस के रामू बाबा की थी जो अपनें सर्राफे की दुकान बन्द कर लौटे थे | उसके बाद मैनें घर के फोन से मम्मी का मोबाइल न. मिलाया और मैनें उन्हें तुरन्त घर आनें को कहा | दस मिनट के अन्दर मम्मी -पापा आ गये | प्रिया फिर रोने ही वाली थी कि मैनें उसे डांटकर कहा रोना बन्द कर जा तू अपनें कमरे में अब हम उस कुत्ते के गले में जंजीर डाल कर तेरे पैरों पर लिटा देंगें | जा अपनें स्कूल की तैय्यारी कर | एन. सी. सी. का कप्तान तो मैं था ही शहर के बहु प्रशंसित एस. पी. विजय प्रताप रूद्र से गणतन्त्र की परेड में मुलाक़ात हो चुकी थी | एक बार उन्हें कालेज के स्पोर्ट्स प्राइज डिस्ट्रीब्यूशन में भी मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया था | मैनें उनसे फोन पर मिलनें का समय माँगा | उनके पुलिस अर्दली नें उनसे पूंछकर बताया कि लंच के बाद उनके दफ्तर में दो बजे के बाद मुलाक़ात हो सकेगी | लगभग एक डेढ़ बजे हम कालेज काम से फुरसत पा गये | यद्यपि राकेश साहब का एक पीरियड बाकी था | पर उस दिन उसके लिये प्राचार्य महोदय से कहकर छुट्टी ले ली गयी थी | एस. पी. रूद्र नें हमारी बात को न केवल सुना बल्कि यहाँ तक कहा कि सरकारी नौकरी से उसे बर्खास्त न करवा दिया तो मेरा नाम रूद्र नहीं | पर मैनें उनसे कहा कि इस समय हम इस बात को अपनें स्तर पर सुलझा लेना चाहते हैं | इसका व्यवहार तो कुत्ते जैसा ही है पर उसके बाल बच्चे हैं और हम देखना चाहेंगें कि उसके माँ -बाप का नजरिया इस घटना के बाद कैसा दिखायी पड़ता है | फिलहाल तो आप इतना ही करें कि मोटर साइकिल पर दो कानेस्टिबिल उसके घर पर इस एड्रेस पर भिजवा दें जो उसके घर पर यह कह आवे कि लेक्चरार साहब को सदर थानें में बुलाया गया है | रूद्र साहब नें तुरन्त सदर थानें के इन्चार्ज को फोन किया और कहा कि तुरन्त दो कानेस्टिबिल भेजकर राधे श्याम गुप्ता को थानें पर तलब किया जाये | रूद्र साहब नें हमें एक एक कप चाय का प्याला भी पिलाया और कहा कि आगे जैसी भी कार्यवाही हम करना चाहें उसमें उनका पूरा सहयोग रहेगा | राकेश साहब के घर पर वापस आकर मैनें पहला काम यह किया कि कालेज के चपरासी रामकृष्ण को फोन पर यह सन्देशा भिजवाया कि वह मेरे घर जाकर मेरी पत्नी को यह बता दे कि मैं घर शाम को पांच छै बजे तक पहुँच पाऊँगा मैं जानता था कि खबर न भिजवाने पर घर जानें पर मुझे एक घरेलू लड़ाई लड़नी पड़ेगी | राकेश की माँ न जानें कितनी बार कह चुकी थी , " तुमनें क्या दुनिया का ठेका ले रखा है ? | जिस पर बीते वह भुगते | " उसकी इस बात की सच्चायी को आज जीवन के सन्ध्याकाल में मैं समझनें लायक हो पाया हूँ | तो शाम को चार बजे हम राधेश्याम गुप्ता के घर पर पहुंचें | उसकी पत्नी और तीनों लडकियां घर पर ही थीं | वृद्धा माता और पिता भी वहीं थे | राधेश्याम का बड़ा भाई दिल्ली में अध्यापक था और उसका परिवार भी वहां रहता था | मैनें जानना चाहा कि राधेश्याम कहाँ है ? तो उसकी माँ नें बताया कि वो तो बहुत तड़के सुबह अपनें बड़े भाई के पास दिल्ली चला गया है | कहता था कि तीन चार दिन वहीं रहूंगां | कुछ काम है | कालेज से छुट्टी ले ली है | मैनें कहा आप जानती हैं कि कल उसनें क्या किया ? माँ बोली बेटा , " वह कभी हमें बतावे कि वह क्या करता है ? " राधे श्याम के पिता भी पास बैठे सब सुन रहे थे | मैनें राकेश से कहा कि वे सारी बात उन्हें बतायें | वैश्य विरादरी से होनें के कारण राकेश जी राधेश्याम के कई सगे सम्बन्धियों से परिचित थे | उन्होंने सारी बातें उसके माता -पिता को बतायीं | सारी बात सुनकर उसकी माँ नें कहा कि मेरी कोख तो बेकार गयी | जिसनें ऐसे गन्दे कीड़े को पैदा किया | न जानें कितनें बार इसके कुकृत्यों की कहानीं मैं सुन चुकी हूँ | घर में कितनी सुन्दर बहू बैठी है | नाशपीटा मर भी क्यों नहीं जाता ? अन्दर कमरे से राधेश्याम की पत्नी की घूंघट के भीतर से हिचकी भरी रोनें की आवाज आयी | बाप बोला , " मारा मारा फिरता था एम. ए. करवाया , पैसे देकर नक़ल करवायी , पैसे देकर नम्बर बढ़वाये , फिर भी कोई काम नहीं मिला | वैश्य कालेज में इन्टरव्यूह दिया वहां भी पचास हजार देनें को राजी हो गया था पर गधे नें ऐसे जवाब दिये कि सौदा पलट गया | ये तो कहो सुखी राम जी राज्य पब्लिक सर्विस कमीशन के चेयरमैन हो गये उन्होंने कहा कि औरंगजेब के जमानें में पांच हजारी या दस हजारी सवारी मिला करती थी पर अब पचास हजार की सवारी से नीचे कोई मोल -तोल नहीं होता | शादी हो गयी थी | आगे लडकियां थीं क्या करता कर्ज लेकर सवारी भर दी | सरकारी नौकरी में आ गया | अब मेरे सर पर जूते ही लगनें बाकी रह गये हैं | मैनें कहा पिताजी रिपोर्ट हो गयी तो नौकरी चली जायेगी | वे बोले सदर थानें से दो कानिष्टिबिल बुलानें आये थे तभी मैं जान गया था कि इस गधे के बच्चे नें कोई मुसीबत गले में डाल ली है | मैं तो मरनें के नजदीक पहुँच गया हूँ | अब उसकी तीन तीन लड़कियों के मुंह से रोटी छीनना चाहो तो केस को आगे बढ़ा दो | मैं उसकी माँ के साथ कल ही दिल्ली जाता हूँ और उस गधे की औलाद को पकड़कर राकेश जी आपकी बेटी और मेरी पोती के पैरों पर डाल देता हूँ फिर आप जैसा समझना करना | मेरे सिर पर अभी जूते मारना चाहें तो तो मार लें | फिर उन्होंने अपनी पत्नी से कहा कि बहू रूपमती और उनकी तीनों लड़कियों को बुलाकर कहे कि अपनें इन दोनों जेठों के आकर पैर छुये | मैं संकोच में पड़ गया | राकेश जी चाहें तो पैर छुआ लें माफ़ करना चाहें तो कर दें | मेरी जो भूमिका थी वह मैनें निभा दी | मैं जानता था कि राधे श्याम गुप्ता का नशा उतर गया होगा | कुत्ते के गले में जंजीर डालकर पैरों पर डाल देनें वाली मेरी बात सार्थक हो जायेगी | छोटी बहन सौदामिनी के लिये इतना कुछ कर पाना भी मेरे जीवन की एक स्मरणींय घटना है | पर इससे तो कहीं बड़ी चुनौतियों का अम्बार मेरे सामनें खड़ा है | घर आया तो पत्नी को नाराजगी की मुद्रा में पाया | मैनें हंसकर कहा अरे भाग्यवान देरी के लिये माफ़ कर दे | हंसकर बोली अपना राकेश एक खुशखबरी लाया है | मैनें कहा कौन सी खुशखबरी है | उसनें कहा रेडियो स्टेशन पर अनाउन्सर के पद के पद पर उसका सेलेक्शन हो गया है | पार्ट टाइम जाब है अपना खर्चा निकाल लेगा | प्रियम्बदा भी सिलेक्ट हो गयी है | मैनें मन ही मन कहा , " हे प्रभु इस नयी दुष्यन्त -शकुन्तला कहानी का क्या अन्त होगा इसका विधान तो आपके माया रहस्य में छिपा है | मुझे तटस्थ दर्शक ही बने रहनें देना | "
( क्रमशः )
ब्रेक फास्ट लेनें के पहले ही डा. राकेश का फोन आ गया | बोले आपकी बहन सौदामिनी जी आपसे बात करना चाहती हैं लीजिये , और उन्होंने फोन सौदामिनी जी को दे दिया | सौदामिनी जी नें कहा , " भाई साहब ,अगर असुविधा न हो भाभी जी से इजाजत मांगकर इधर आ जाइये चार पांच मिनट का ही तो रास्ता है | यहीं ब्रेकफास्ट लीजियेगा फिर आप दोनों को ड्राइवर कालेज छोड़ आयेगा | मैनें आज छुट्टी ले ली है | राकेश की माँ पास ही खड़ी थी | मैनें उससे पूछा चला जाऊँ | थोड़ा सा नाराज होकर बोली , " दुनिया के काम -काज करते घूम रहे हो | इन मुंह बोली बहनों नें खाना पीना तक छुड़वा दिया है | अब क्या कहूँ जाना है तो चले जाओ पता नहीं क्या बात हो ? कुछ झमेला हो तो मुझे खबर कर देना | " दस -पन्द्रह मिनट बाद मैं डा. राकेश के घर पहुँच गया उनका बड़ा लड़का कुरुक्षेत्र के रीजनल इंजीनियरिंग कालेज में थर्ड ईयर का छात्र था और वहीं होस्टल में रहता था | प्रिया अपनें कमरे में बैठी थी जो डाइनिंग रूम से कुछ दूरी पर था | सौदामिनी नें मेरा स्वागत करते हुये डाइनिंग टेबिल के पास ले जाकर मुझे राकेश जी के पास बैठा दिया | खुद राकेश जी के पास पडी कुर्सी पर बैठ गयी | बोली पहले ब्रेकफास्ट कर लीजिये फिर बात करेंगें | मैनें देखा मेज पर ड्राई फ्रूट्स और एक बड़ी प्लेट में नमकीन पोहा रखा हुआ था | पास ही केतली में चाय थी और प्यालों और चमच्चों का एक सेट | मैनें पूछा प्रिया कहाँ है ? उसे भी बुला लो | सौदामिनी बोली उसकी तबियत कुछ अनमन है| आप लोग ब्रेकफास्ट करिये | मैनें बात को आगे न बढ़ाते हुये राकेश और सौदामिनी से कहा , " आइये शुरू करें | "
ब्रेकफास्ट लेनें के बाद हम तीनों ड्राइंग रूम में जाकर बैठ गये | डा. राकेश बोले , "अवस्थी क्या बताऊँ कल शाम साढ़े आठ बजे मेरे एक परिचित नें ऐसा एक व्यवहार किया जैसा एक नीच से नीच आदमी भी नहीं करता | " मैनें कहा , " अरे यार पूरी बात बता आपके परिचितों में कौन ऐसा नालायक निकला जिसकी बात आप कर रहे हैं |" सौदामिनी बोली , " मैं प्रिया को बुलाती हूँ बड़े भाई आप सब उसी के मुंह से सुन लें | " उसनें प्रिया को आवाज लगायी पर पन्द्रह वर्ष की वह लजीली बिटिया अपनें कमरे में बैठी सुबकती रही | आखिर उसकी माँ को उठ कर उसके कमरे में जाना पड़ा और बहुत समझा -बुझा कर उसके अंकल के सामनें सारी बात कहनें के लिये लाया गया | सुबकते हुये प्रिया बोली , " अंकल कल शाम को मैं घर पर अकेली थी | मम्मी और पापा बाजार गये हुये थे | | मम्मी को शुचिता की शादी के लिये कुछ गिफ्ट्स खरीदनें थे | ( मैं जानता था कि शुचिता सौदामिनी के बड़े भाई की इन्जीनियर पुत्री है ) लगभग आठ बजे का टाइम था | मैं टेलीविजन देख रही थी यहीं ड्राइंग रूम में | सीढ़ियों पर किसी के पैरों की आहट हुयी | मैं समझी कि शायद पापा आ रहे होंगें मम्मी गैराज में गाड़ी खड़ी करवा रही होंगीं | पर दरवाजे पर ड्राइंग रूम के सामनें आनें पर मैनें देखा कि आनें वाले अंकल राधे श्याम गुप्ता थे | ( मैं राधेश्याम गुप्ता को जानता था ,वह राजकीय महाविद्यालय नारनौल में प्राध्यापक थे और वे भी अंग्रेजी के | मैं उनको इसलिये जानता था कि जब राकेश साहब का इंटरव्यूह हुआ था तब वे भी एक कन्डीडेट थे | पर उन्हें रिजेक्ट कर दिया गया था बाद में वे राजकीय सेवा में कैसे आ गये इस पर पूरा प्रकाश उनके वृद्ध पिता नें डाला जिसकी चर्चा आगे की जायेगी | )अंकल राधेश्याम गुप्ता पिताजी से मिलनें अक्सर घर पर आते रहते हैं | मम्मी भी उनकों कई बार चाय पिला चुकी हैं | एकाध बार उनकी बड़ी बिटिया सलोनी भी जो मेरी ही उमर की है यहां आ चुकी है | अंकल नें पूछा मम्मी और पापा घर पर नहीं हैं क्या ? मैनें कहा नहीं वे बाजार गये हैं | आते ही होंगें | इन्तजार करना चाहें तो यहां बैठ लें हम अपनें कमरे में चले जाते हैं | अंकल नें कहा प्रिया अरे तू तो बड़ी हो गयी है कितनी सुन्दर लग रही है | मेरे एक मित्र बम्बई में हैं सिनेमा के क्षेत्र में उनकी बड़ी जान और पहचान है | तेरे को हीरोइन बना देंगें | मैनें शर्माकर आँखें नीची कर लीं, क्या कोई बाप अपनी बेटी से ऐसी बातें करता है ? मैनें उनसे कहा अंकल आज आप यह सब क्या कह रहे हैं ? उन्होंने कहा कि अरे अंकल बंकल की बातें सब पुरानी हो गयी हैं | अब तू जवान हो गयी है खुल कर खेल ले | माँ की तरह दकियानूसी मत बन | मुझे गुस्सा आ गया मैनें कहा , " Shut upपापा से कहकर घर का आना बन्द करवा दूंगीं | उन्होंने लाल लाल आँखें करके कहा तेरे पापा क्या लाट साहब हैं ? तेरे पापा जैसे न जानें कितनें आगे पीछे घूमते रहते हैं | मेरा गुस्सा और भड़क उठा मैनें कहा , " गेट आउट , Behave like a teacher I am just like your daughter . "अंकल होश में आओ क्या शराब पीकर आये हो ? मुझे ऐसा लगा कि उनके मुंह से सड़े सिरके की सी महक आ रही है | उनको न जानें क्या हुआ | शायद उनके अन्दर का इन्सान मर गया और यह कहकर प्रिया फूट -फूट कर रोने लगी मैं थोड़ी देर चुप बैठकर उसका रोना देखता रहा फिर उसे बुलाकर मेरे पास बैठे राकेश जी के पास उसे बैठनें को कहा | कुछ देर बाद मैनें कहा , " बेटे एक दुर्घटना से मानव जाति पर से अपना विश्वास मत खो देना | आदमियों के बीच कुत्ते भी हैं | पर ये मत भूलना कि आदमी में देवत्व की भी झलक होती है | पूरी घटना बता आगे गुप्ता नाम के उस कुत्ते ने क्या किया | कुछ रूककर आंसू पोछकर प्रिया बोली अंकल ने आकर---फिर वह फूट कर रो पडी | मैनें कहा आगे बोल दसवीं में इसीलिये 87 प्रतिशत नम्बर लिये थे प्रिया ने कहा फिर अंकल नें मेरी दोनों छातियाँ पकड़ लीं और मुझे जबरदस्ती अपनी ओर खींचा | मैनें ताकत लगाकर अपने को छुड़ाया और मेज पर पड़े पेपर वेट को उठाकर उसके मत्थे की ओर फेंका | शायद पेपरवेट नें उसे भी चोंट पहुंचायी हो क्योंकि वह भागते हुये मत्था सहला रहा था | भागा इसलिये कि नीचे से किसी गाड़ी की आवाज आयी और उसे लगा कि पापा और मम्मी आ रहे हैं | हालांकि गाड़ी पड़ोस के रामू बाबा की थी जो अपनें सर्राफे की दुकान बन्द कर लौटे थे | उसके बाद मैनें घर के फोन से मम्मी का मोबाइल न. मिलाया और मैनें उन्हें तुरन्त घर आनें को कहा | दस मिनट के अन्दर मम्मी -पापा आ गये | प्रिया फिर रोने ही वाली थी कि मैनें उसे डांटकर कहा रोना बन्द कर जा तू अपनें कमरे में अब हम उस कुत्ते के गले में जंजीर डाल कर तेरे पैरों पर लिटा देंगें | जा अपनें स्कूल की तैय्यारी कर | एन. सी. सी. का कप्तान तो मैं था ही शहर के बहु प्रशंसित एस. पी. विजय प्रताप रूद्र से गणतन्त्र की परेड में मुलाक़ात हो चुकी थी | एक बार उन्हें कालेज के स्पोर्ट्स प्राइज डिस्ट्रीब्यूशन में भी मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया था | मैनें उनसे फोन पर मिलनें का समय माँगा | उनके पुलिस अर्दली नें उनसे पूंछकर बताया कि लंच के बाद उनके दफ्तर में दो बजे के बाद मुलाक़ात हो सकेगी | लगभग एक डेढ़ बजे हम कालेज काम से फुरसत पा गये | यद्यपि राकेश साहब का एक पीरियड बाकी था | पर उस दिन उसके लिये प्राचार्य महोदय से कहकर छुट्टी ले ली गयी थी | एस. पी. रूद्र नें हमारी बात को न केवल सुना बल्कि यहाँ तक कहा कि सरकारी नौकरी से उसे बर्खास्त न करवा दिया तो मेरा नाम रूद्र नहीं | पर मैनें उनसे कहा कि इस समय हम इस बात को अपनें स्तर पर सुलझा लेना चाहते हैं | इसका व्यवहार तो कुत्ते जैसा ही है पर उसके बाल बच्चे हैं और हम देखना चाहेंगें कि उसके माँ -बाप का नजरिया इस घटना के बाद कैसा दिखायी पड़ता है | फिलहाल तो आप इतना ही करें कि मोटर साइकिल पर दो कानेस्टिबिल उसके घर पर इस एड्रेस पर भिजवा दें जो उसके घर पर यह कह आवे कि लेक्चरार साहब को सदर थानें में बुलाया गया है | रूद्र साहब नें तुरन्त सदर थानें के इन्चार्ज को फोन किया और कहा कि तुरन्त दो कानेस्टिबिल भेजकर राधे श्याम गुप्ता को थानें पर तलब किया जाये | रूद्र साहब नें हमें एक एक कप चाय का प्याला भी पिलाया और कहा कि आगे जैसी भी कार्यवाही हम करना चाहें उसमें उनका पूरा सहयोग रहेगा | राकेश साहब के घर पर वापस आकर मैनें पहला काम यह किया कि कालेज के चपरासी रामकृष्ण को फोन पर यह सन्देशा भिजवाया कि वह मेरे घर जाकर मेरी पत्नी को यह बता दे कि मैं घर शाम को पांच छै बजे तक पहुँच पाऊँगा मैं जानता था कि खबर न भिजवाने पर घर जानें पर मुझे एक घरेलू लड़ाई लड़नी पड़ेगी | राकेश की माँ न जानें कितनी बार कह चुकी थी , " तुमनें क्या दुनिया का ठेका ले रखा है ? | जिस पर बीते वह भुगते | " उसकी इस बात की सच्चायी को आज जीवन के सन्ध्याकाल में मैं समझनें लायक हो पाया हूँ | तो शाम को चार बजे हम राधेश्याम गुप्ता के घर पर पहुंचें | उसकी पत्नी और तीनों लडकियां घर पर ही थीं | वृद्धा माता और पिता भी वहीं थे | राधेश्याम का बड़ा भाई दिल्ली में अध्यापक था और उसका परिवार भी वहां रहता था | मैनें जानना चाहा कि राधेश्याम कहाँ है ? तो उसकी माँ नें बताया कि वो तो बहुत तड़के सुबह अपनें बड़े भाई के पास दिल्ली चला गया है | कहता था कि तीन चार दिन वहीं रहूंगां | कुछ काम है | कालेज से छुट्टी ले ली है | मैनें कहा आप जानती हैं कि कल उसनें क्या किया ? माँ बोली बेटा , " वह कभी हमें बतावे कि वह क्या करता है ? " राधे श्याम के पिता भी पास बैठे सब सुन रहे थे | मैनें राकेश से कहा कि वे सारी बात उन्हें बतायें | वैश्य विरादरी से होनें के कारण राकेश जी राधेश्याम के कई सगे सम्बन्धियों से परिचित थे | उन्होंने सारी बातें उसके माता -पिता को बतायीं | सारी बात सुनकर उसकी माँ नें कहा कि मेरी कोख तो बेकार गयी | जिसनें ऐसे गन्दे कीड़े को पैदा किया | न जानें कितनें बार इसके कुकृत्यों की कहानीं मैं सुन चुकी हूँ | घर में कितनी सुन्दर बहू बैठी है | नाशपीटा मर भी क्यों नहीं जाता ? अन्दर कमरे से राधेश्याम की पत्नी की घूंघट के भीतर से हिचकी भरी रोनें की आवाज आयी | बाप बोला , " मारा मारा फिरता था एम. ए. करवाया , पैसे देकर नक़ल करवायी , पैसे देकर नम्बर बढ़वाये , फिर भी कोई काम नहीं मिला | वैश्य कालेज में इन्टरव्यूह दिया वहां भी पचास हजार देनें को राजी हो गया था पर गधे नें ऐसे जवाब दिये कि सौदा पलट गया | ये तो कहो सुखी राम जी राज्य पब्लिक सर्विस कमीशन के चेयरमैन हो गये उन्होंने कहा कि औरंगजेब के जमानें में पांच हजारी या दस हजारी सवारी मिला करती थी पर अब पचास हजार की सवारी से नीचे कोई मोल -तोल नहीं होता | शादी हो गयी थी | आगे लडकियां थीं क्या करता कर्ज लेकर सवारी भर दी | सरकारी नौकरी में आ गया | अब मेरे सर पर जूते ही लगनें बाकी रह गये हैं | मैनें कहा पिताजी रिपोर्ट हो गयी तो नौकरी चली जायेगी | वे बोले सदर थानें से दो कानिष्टिबिल बुलानें आये थे तभी मैं जान गया था कि इस गधे के बच्चे नें कोई मुसीबत गले में डाल ली है | मैं तो मरनें के नजदीक पहुँच गया हूँ | अब उसकी तीन तीन लड़कियों के मुंह से रोटी छीनना चाहो तो केस को आगे बढ़ा दो | मैं उसकी माँ के साथ कल ही दिल्ली जाता हूँ और उस गधे की औलाद को पकड़कर राकेश जी आपकी बेटी और मेरी पोती के पैरों पर डाल देता हूँ फिर आप जैसा समझना करना | मेरे सिर पर अभी जूते मारना चाहें तो तो मार लें | फिर उन्होंने अपनी पत्नी से कहा कि बहू रूपमती और उनकी तीनों लड़कियों को बुलाकर कहे कि अपनें इन दोनों जेठों के आकर पैर छुये | मैं संकोच में पड़ गया | राकेश जी चाहें तो पैर छुआ लें माफ़ करना चाहें तो कर दें | मेरी जो भूमिका थी वह मैनें निभा दी | मैं जानता था कि राधे श्याम गुप्ता का नशा उतर गया होगा | कुत्ते के गले में जंजीर डालकर पैरों पर डाल देनें वाली मेरी बात सार्थक हो जायेगी | छोटी बहन सौदामिनी के लिये इतना कुछ कर पाना भी मेरे जीवन की एक स्मरणींय घटना है | पर इससे तो कहीं बड़ी चुनौतियों का अम्बार मेरे सामनें खड़ा है | घर आया तो पत्नी को नाराजगी की मुद्रा में पाया | मैनें हंसकर कहा अरे भाग्यवान देरी के लिये माफ़ कर दे | हंसकर बोली अपना राकेश एक खुशखबरी लाया है | मैनें कहा कौन सी खुशखबरी है | उसनें कहा रेडियो स्टेशन पर अनाउन्सर के पद के पद पर उसका सेलेक्शन हो गया है | पार्ट टाइम जाब है अपना खर्चा निकाल लेगा | प्रियम्बदा भी सिलेक्ट हो गयी है | मैनें मन ही मन कहा , " हे प्रभु इस नयी दुष्यन्त -शकुन्तला कहानी का क्या अन्त होगा इसका विधान तो आपके माया रहस्य में छिपा है | मुझे तटस्थ दर्शक ही बने रहनें देना | "
( क्रमशः )
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