गतांक से आगे -
इम्तहान की पूरी थकावट और फिर पकौड़े , दही , भल्ले और गोल -गप्पे | एक दो दिन उसनें कोई दवा नहीं ली और बहाना करती रही कि वह बिल्कुल ठीक है | तीसरे दिन मैनें उसके कमरे में उसे उदास पड़े हुये देखा तो मैनें पूछा कि क्या बात है | उसनें कहा, " कुछ नहीं ठीक हूँ | थोड़ा आराम कर रही हूँ | थकावट सी है |" मैनें उसके सिर पर हाँथ रखा तो पाया कि माथा जल रहा है | कलाई पकड़ कर नब्ज देखी तो जान गया कि बहुत तेज बुखार है | मैनें कहा कि मैं दूसरे कमरे में बैठा हूँ | कपड़े बदल ले | चल मेरे साथ अभी राकेश का क्लीनिक खुला होगा | लगता है कुछ इन्फेक्शन है | ठुनकी भी आ रही है शायद इन्जेक्शन लेना होगा | मेरी बात मानकर अपर्णां मेरे साथ क्लीनिक पहुँची | रमेश दो तीन मरीजों को अपनी जगह बैठा छोड़कर मुझे और अपर्णां को अन्दर के कमरे में ले गया | हाल चाल पूछा ,आला लगाकर धड़कन देखी , टैम्परेचर लिया और कहा कोई बात नहीं है | मैं इन्जेक्शन दे देता हूँ और तीन दिन की दवा भी चौथे दिन अपर्णां आकर मुझे बता जायेगी और शायद तब तक ठीक ही हो जाये | मैं निश्चिन्त होकर अपर्णां के साथ लौट आया | एक बार तो बुखार कुछ उतरा हुआ सा लगा पर रात्रि के दस ग्यारह बजे फिर बढ़ गया | अपर्णा दवा खाती रही कभी बुखार कम हो जाता कभी बढ़ जाता | तीन दिन बीत गये | मैं चिन्ता में पड़ गया | किसी जरूरी काम से मुझे कालेज जाना था इसलिये मैनें अपर्णां की मां से कहा कि राकेश के साथ इसे रमेश के क्लीनिक पर भेज देना | दस बजे के आस -पास क्लीनिक खुलता है | भूल मत जाना शायद एकाध इन्जेक्शन और लेना होगा | कालेज से बारह बजे मैनें घर पर फोन किया और अपर्णां की माँ से पूछा कि अपर्णां क्लीनिक गयी या नहीं तो अपर्णां की माँ ने बताया कि राकेश के दोस्त आ गये थे और उनके साथ वह कहीं चला गया है कहता था अपर्णां अकेली चली जायेगी पर वह अकेली जानें को राजी नहीं होती | मैनें कहा अपर्णां को फोन पर बुलाओ | अपर्णां फोन पर आयी और उसनें टूटी सी आवाज में कहा हाँ पिताजी मैं अपर्णां हूँ | मैनें उससे कहा , " बेटे क्या बात है तुम क्लीनिक क्यों नहीं गयीं | " राकेश तुम्हारे साथ न भी हो तो क्या रमेश भी घर का लड़का है तुम्हारे भाई जैसा है | तुम एम.ए. अंग्रेजी में पढ़ती हो और वह एक डाक्टर है | जाओ तुरन्त क्लीनिक में जाओ क्योंकि क्लीनिक बन्द होनें का समय होनें वाला है | मैनें फोन रख दिया जानता था कि अपर्णां अब जायेगी ही | उस दिन कालेज में किसी होने वाले समारोह के संम्बन्ध में मीटिंग बुलायी गयी थी | मैं काफी लेट घर पहुंचा | लगभग चार बजे होंगें अपर्णां की माँ नें घर में घुसते ही मुझसे कहा कि अपर्णां अपनें कमरे में पडी है और रो रही है | मैनें कहा क्या बात है ? क्या तबियत ज्यादा खराब हो गयी और मैं उन्हीं कपड़ों में अपर्णां के कमरे में पहुँच गया | वह उठकर बैठ गयी और रोने लगी | मेरे पीछे -पीछे उसकी माँ भी आयी और उसके पास पड़ी चारपायी पर बैठ गयी मैं सामनें पड़ी कुर्सी पर बैठ गया | मैनें फिर कहा अपर्णां बोलो रोती क्यों हो ? मैं बताती हूँ अपर्णां क्यों रो रही है | तुम्हें दुनिया की कोई समझ नहीं है ,तुम सबको अपनी ही तरह साफ़ -सुथरा समझते हो | सिनेमा नें आजकल के इन नये लौंडों को बिगाड़ दिया है | जब अपर्णां गयी तो क्लीनिक बन्द होनें को था रमेश का सहयोगी भी चला गया था | रमेश नें कहा बुखार नहीं उतरा और उसनें अपर्णां का हाँथ पकड़ कर देखा और कहा तेज बुखार है अन्दर चलो इन्जेक्शन लगाना होगा | अपर्णां नें कहा लो मैं बांह की आस्तीन उठाती हूँ यहीं इन्जेक्शन लगा दो उसनें कहा नहीं पूरे असर के लिये बड़ा इन्जेक्शन लगाना पड़ेगा ,अन्दर चलो | अपर्णां अन्दर के कमरे में गयी तो तो उसनें बाहर के कमरे का दरवाजा भीतर से बन्द कर लिया | फिर वह भीतर के कमरे में आया और बोला , " अपर्णां मैं तुमसे प्यार करता हूँ | मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ | तुम हाँ कर दो तो मैं तुम्हारे पापा से बात करूँ | अपर्णां गुस्से से फूट पड़ी उसनें कहा बेशर्म नीच भाई होकर इस प्रकार की गन्दी बात करता है | रमेश नें कहा अच्छा बुरा मत मानों | मैं पूरे असर के लिये जांघ में इन्जेक्शन लगाऊंगा ,सलवार हटानी पड़ेगी | अपर्णां नीचे उतर आयी और कमरे में रखा हुआ एक गुलदान उसके मुंह पर उठाकर मार दिया फिर झपट कर बाहर वाले कमरे में आयी | बन्द सिटकनी खोली और सड़क पर से भागकर घर आ गयी | "
अपर्णां की माँ नें आगे कहा , " इस हरामजादे को कुत्तों से नुचवाऊंगी | राकेश को घर आ जानें दो | " मैं स्थिति की गंभ्भीरता को भांप गया | मैं जान गया कि डा ० रमेश नें एक दांव खेला था अगर अपर्णां उसकी चाल में फंस जाती तो जीवन भर के लिये आत्मग्लानि उसका पीछा नहीं छोड़ती | ' शाबाश अपर्णां ' मैनें मन ही मन कहा और फिर अपर्णां की माँ से बोला , " इस बात का जिकर तीनों भाइयों से मत करना | " उसनें कहा क्यों भाई किसलिये होते हैं ? हरामजादे की बोटी -बोटी कटवा दूंगीं | मैनें कहा , " देवी खून -खराबे से काम नहीं बनेगा | इस मामले को मुझपर छोड़ो देखो मैं इसको कैसे रफा -दफा करता हूँ | "
मैं जानता था कि रमेश हो सकता है कुछ दिन के लिये शहर छोड़कर बाहर चला जाये | वह डर रहा होगा कि अगर अपर्णां के भाइयों को कहीं पता चला तो वह कहीं का नहीं रहेगा | मैनें तुरन्त ही एक फैसला करने का कारगर प्लान तैय्यार किया | मैनें फोन उठाकर कालेज को रिंग अप किया तो कुछ घण्टियों के बाद चपरासी राम कृष्ण की आवाज आयी | उसनें कहा सब दफ्तर से जा चुके हैं | मैं अब दफ्तर बन्द कर घर की ओर चलनें वाला था | | मैनें कहा देखो रामकृष्ण मुझे एक बहुत जरूरी काम है तुम घर न जाकर सीधे मेरे घर पर आ जाओ | मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है |
जैसा कि मैं पहले कह चुका हूँ चपरासी रामकृष्ण एक बहुत समझदार और विश्वसनीय व्यक्ति था | प्रौढ़ अवस्था में भी वह किसी भी तरुण से अधिक तेजी से काम करनें की क्षमता रखता था | उसके आते ही मैनें उसको डा. प्रशान्त शुक्ला की क्लीनिक का पता दिया और कहा कि प्रशान्त क्लीनिक के ही ऊपर वाली मंजिल में रहता है | उससे तुरन्त कहो कि मैनें उसे बुलाया है और वह साथ में रमेश अलवाधी को भी पकड़ कर लाये | बात बहुत गंभ्भीर है वरना पुलिस दरवाजे पर पहुँच जायेगी | बिजली की तेजी से रामकृष्ण अपनी साइकिल पर चढ़कर प्रशान्त शुक्ला के पास जा पहुंचा | हुआ यों कि रमेश अलवाधी भी प्रशान्त के पास ही बैठा था और शायद उसे अपनी की हुयी गलती के बारे में बता चुका था | रामकृष्ण का सन्देश पाते ही प्रशान्त और रमेश साथ -साथ रिक्शे पर बैठकर दरवाजे पर आ गये | अन्दर आते ही अलवाधी मेरे पैरों पर गिर पड़ा मैनें प्रशान्त को उसे उठानें के लिये कहा | फिर मैनें प्रशान्त से पूछा इसनें तुम्हें सब कुछ बता दिया है | प्रशान्त नें कहा हाँ सर और इसनें यह भी कहा है कि जूते मार -मार कर उसके सिर के बाल उड़ा दिये जांये तो भी इसकी गल्ती का प्रायश्चित नहीं होगा | मैनें कहा प्रशान्त तुम्हारे ऊपर विश्वास करके ही रमेश को मैनें घर के सदस्य के रूप में मान लिया था | अब तुम्हीं इस बात का फैसला करो कि क्या किया जाये | अभी तक अपर्णां के भाइयों को इस घटना का पता नहीं है | मैं चाहूंगा कि उन्हें पता न चले और यह घटना यहीं समाप्त हो जाये | प्रशान्त नें कहा सर आप जैसा उचित समझें वैसा दण्ड दे दें इसे स्वीकार है | मैनें कहा इसका मेडिकल रजिस्ट्रेशन पुलिस में एक रिपोर्ट दर्ज कराते ही समाप्त हो जायेगा | जीवन भर प्रेक्टिस नहीं कर पायेगा | सडकों पर डिग्री के बावजूद मारा -मारा फिरेगा और घर में भी व्यभिचारी होनें के कारण घुस नहीं सकेगा पर मैं ऐसा नहीं चाहता यह एक अच्छा डाक्टर है इसके परिवार में भी अपराध की कोई कथा नहीं है न जानें कैसे यह अपना संयम खो बैठा | मेरे इतना कहते ही रमेश अलवाधी फूट -फूट कर रो पड़ा फिर मेरे पैरों पर गिर पड़ा और बोला सर मेरे सिर पर जूते मारिये मैं तो कुत्ते से भी गया बीता हूँ | कुत्ता भी अपनें पराये को जानता है | हे भगवान् यह मैनें क्या किया ?
मैनें कहा प्रशान्त मैं न तो यह खबर बच्चों तक पहुंचने दूंगा न पुलिस में इसकी खबर और किसी को भी नहीं हो पायेगी मैं एक कागज और कलम देता हूँ और जो बोलता जाता हूँ लिखता जाये मेज पर पड़े रजिस्टर में | मैनें बोलना और रमेश नें लिखना शुरू किया | अंग्रेजी की दो एक गल्तियां तो रमेश से हो गयीं पर बाकी जो कुछ मैनें कहा सभी उसनें उसी प्रकार लिख दिया | उसके हाँथ से लिखा हुआ उसके अपराध का वह स्वीकृति पत्र Confession अब तक मेरे पास सुरक्षित है | मैनें उससे कहा था कि जिस दिन उसके आचरण के विषय में छोटी -मोटी शिकायत भी सुननें को मिली तो उसी दिन उसका यह Confession सिविल सर्जन के द्वारा Board of Aurvedic Medicine में भेज दिया जायेगा और उसका Registration कैन्सिल हो जायेगा | फिर मैनें प्रशान्त से कहा कि अब तुम रमेश को ले जा सकते हो पर उसनें कहा नहीं जब तक मैं अपनी बहिन के पैरों पर गिरकर माफी नहीं मांग लेता और वह मुझे माफ़ नहीं कर देती तब तक मैं अपनें को इन्सान कहलानें का हकदार नहीं हूँगा | सर आप मेरी माता जी और बहिन जी को यहां ड्राइंग रूम में बुला लीजिये | मैनें आवाज दी तो अपर्णां की माँ आ गयी और सोफे पर बैठ गयी | अलवाधी उनके पैरों पर लोट गया और रोनें लगा बोला माताजी अपनें इस पापी बेटे को क्षमा कर दो |
भारतीय स्त्रियां अपराध पर क्रोध करना भी जानती हैं और प्रायश्चित करने वाले को क्षमा कर देना भी उनके स्वभाव में सहज रूप से निहित है | अपर्णां की माँ नें उसके सिर पर हाँथ रखकर कहा उठ बेटे हमनें अपनी और अपर्णां की ओर से माफ़ किया | आगे अपनें मां बाप के नाम को फिर कभी बदनाम न करना |
रमेश अब भी बैठा था आखिर अपर्णां की माँ नें अपर्णां को बुलाया | वह आयी और माँ के पास बैठ गयी | अपर्णां के पैरों पर सिर रखकर रमेश ने कहा आप मेरी छोटी बहन हैं | मैं कसम खाकर कहता हूँ कि आख़िरी सांस तक आपके सम्मान की रक्षा करूँगां | आप सचमुच ही एक ऊँचें खानदान की बेटी हैं | मुझे क्षमा करो अपर्णां ,अपर्णां कुछ नहीं बोली हाँ उसकी माँ नें कहा रमेश उठो | गिरकर ही आदमी उंचाई की ओर उठना सीखता है | हम तुम्हें अब भी अपर्णां का भाई ही मान कर चलते रहेंगें |
रमेश नें कहा माता जी मैं कल सुबह अहमदाबाद जा रहा हूँ | वहां मेरे मामा जी एक क्लीनिक चलाते हैं | मैं उन्हीं के साथ बैठूंगा |इस क्लीनिक का सब हिसाब -किताब मैनें कर दिया है | आज शाम तक दोनों कमरे खाली हो जायेंगें | यदि कभी कुछ बन सका और अपर्णा मुझे अपना भाई माननें में कोई हेठी न समझे तो मैं मातृ चरणों में आकर सिर नवाऊँगा | यह कहकर वह उठ खड़ा हुआ | मुझे लगा कि शायद हमारे इस निर्णय से एक भटका हुआ अच्छा डाक्टर फिर से समाज सेवा के मार्ग में लग जायेगा | पर अभी तो घटनाओं का क्रम शुरू ही हुआ था | लग रहा था एक के बाद एक कोई न कोई रोमान्टिक प्रसंग अपनी उलझनें लेकर हमारे सामनें आता ही रहेगा | शाम को सात बजे के करीब कैप्टन जबर सिंह की गाड़ी दरवाजे के आगे रुकी और दो नायिकाओं के साथ नायक राकेश नें गृह द्वार से प्रवेश किया | छत पर बाहरी गलियारे से मैनें एक लुकी -छिपी झांकी ली और कमरे में आकर दीवान पर लेट गया | क्या कोई नया शगूफा खिलनें वाला है | पहला वार तो अपर्णां की माँ को झेलनें दो फिर आगे की तय्यारी के लिये यदि मेरी पुकार होगी तो सोचा जायेगा |
( क्रमशः )
इम्तहान की पूरी थकावट और फिर पकौड़े , दही , भल्ले और गोल -गप्पे | एक दो दिन उसनें कोई दवा नहीं ली और बहाना करती रही कि वह बिल्कुल ठीक है | तीसरे दिन मैनें उसके कमरे में उसे उदास पड़े हुये देखा तो मैनें पूछा कि क्या बात है | उसनें कहा, " कुछ नहीं ठीक हूँ | थोड़ा आराम कर रही हूँ | थकावट सी है |" मैनें उसके सिर पर हाँथ रखा तो पाया कि माथा जल रहा है | कलाई पकड़ कर नब्ज देखी तो जान गया कि बहुत तेज बुखार है | मैनें कहा कि मैं दूसरे कमरे में बैठा हूँ | कपड़े बदल ले | चल मेरे साथ अभी राकेश का क्लीनिक खुला होगा | लगता है कुछ इन्फेक्शन है | ठुनकी भी आ रही है शायद इन्जेक्शन लेना होगा | मेरी बात मानकर अपर्णां मेरे साथ क्लीनिक पहुँची | रमेश दो तीन मरीजों को अपनी जगह बैठा छोड़कर मुझे और अपर्णां को अन्दर के कमरे में ले गया | हाल चाल पूछा ,आला लगाकर धड़कन देखी , टैम्परेचर लिया और कहा कोई बात नहीं है | मैं इन्जेक्शन दे देता हूँ और तीन दिन की दवा भी चौथे दिन अपर्णां आकर मुझे बता जायेगी और शायद तब तक ठीक ही हो जाये | मैं निश्चिन्त होकर अपर्णां के साथ लौट आया | एक बार तो बुखार कुछ उतरा हुआ सा लगा पर रात्रि के दस ग्यारह बजे फिर बढ़ गया | अपर्णा दवा खाती रही कभी बुखार कम हो जाता कभी बढ़ जाता | तीन दिन बीत गये | मैं चिन्ता में पड़ गया | किसी जरूरी काम से मुझे कालेज जाना था इसलिये मैनें अपर्णां की मां से कहा कि राकेश के साथ इसे रमेश के क्लीनिक पर भेज देना | दस बजे के आस -पास क्लीनिक खुलता है | भूल मत जाना शायद एकाध इन्जेक्शन और लेना होगा | कालेज से बारह बजे मैनें घर पर फोन किया और अपर्णां की माँ से पूछा कि अपर्णां क्लीनिक गयी या नहीं तो अपर्णां की माँ ने बताया कि राकेश के दोस्त आ गये थे और उनके साथ वह कहीं चला गया है कहता था अपर्णां अकेली चली जायेगी पर वह अकेली जानें को राजी नहीं होती | मैनें कहा अपर्णां को फोन पर बुलाओ | अपर्णां फोन पर आयी और उसनें टूटी सी आवाज में कहा हाँ पिताजी मैं अपर्णां हूँ | मैनें उससे कहा , " बेटे क्या बात है तुम क्लीनिक क्यों नहीं गयीं | " राकेश तुम्हारे साथ न भी हो तो क्या रमेश भी घर का लड़का है तुम्हारे भाई जैसा है | तुम एम.ए. अंग्रेजी में पढ़ती हो और वह एक डाक्टर है | जाओ तुरन्त क्लीनिक में जाओ क्योंकि क्लीनिक बन्द होनें का समय होनें वाला है | मैनें फोन रख दिया जानता था कि अपर्णां अब जायेगी ही | उस दिन कालेज में किसी होने वाले समारोह के संम्बन्ध में मीटिंग बुलायी गयी थी | मैं काफी लेट घर पहुंचा | लगभग चार बजे होंगें अपर्णां की माँ नें घर में घुसते ही मुझसे कहा कि अपर्णां अपनें कमरे में पडी है और रो रही है | मैनें कहा क्या बात है ? क्या तबियत ज्यादा खराब हो गयी और मैं उन्हीं कपड़ों में अपर्णां के कमरे में पहुँच गया | वह उठकर बैठ गयी और रोने लगी | मेरे पीछे -पीछे उसकी माँ भी आयी और उसके पास पड़ी चारपायी पर बैठ गयी मैं सामनें पड़ी कुर्सी पर बैठ गया | मैनें फिर कहा अपर्णां बोलो रोती क्यों हो ? मैं बताती हूँ अपर्णां क्यों रो रही है | तुम्हें दुनिया की कोई समझ नहीं है ,तुम सबको अपनी ही तरह साफ़ -सुथरा समझते हो | सिनेमा नें आजकल के इन नये लौंडों को बिगाड़ दिया है | जब अपर्णां गयी तो क्लीनिक बन्द होनें को था रमेश का सहयोगी भी चला गया था | रमेश नें कहा बुखार नहीं उतरा और उसनें अपर्णां का हाँथ पकड़ कर देखा और कहा तेज बुखार है अन्दर चलो इन्जेक्शन लगाना होगा | अपर्णां नें कहा लो मैं बांह की आस्तीन उठाती हूँ यहीं इन्जेक्शन लगा दो उसनें कहा नहीं पूरे असर के लिये बड़ा इन्जेक्शन लगाना पड़ेगा ,अन्दर चलो | अपर्णां अन्दर के कमरे में गयी तो तो उसनें बाहर के कमरे का दरवाजा भीतर से बन्द कर लिया | फिर वह भीतर के कमरे में आया और बोला , " अपर्णां मैं तुमसे प्यार करता हूँ | मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ | तुम हाँ कर दो तो मैं तुम्हारे पापा से बात करूँ | अपर्णां गुस्से से फूट पड़ी उसनें कहा बेशर्म नीच भाई होकर इस प्रकार की गन्दी बात करता है | रमेश नें कहा अच्छा बुरा मत मानों | मैं पूरे असर के लिये जांघ में इन्जेक्शन लगाऊंगा ,सलवार हटानी पड़ेगी | अपर्णां नीचे उतर आयी और कमरे में रखा हुआ एक गुलदान उसके मुंह पर उठाकर मार दिया फिर झपट कर बाहर वाले कमरे में आयी | बन्द सिटकनी खोली और सड़क पर से भागकर घर आ गयी | "
अपर्णां की माँ नें आगे कहा , " इस हरामजादे को कुत्तों से नुचवाऊंगी | राकेश को घर आ जानें दो | " मैं स्थिति की गंभ्भीरता को भांप गया | मैं जान गया कि डा ० रमेश नें एक दांव खेला था अगर अपर्णां उसकी चाल में फंस जाती तो जीवन भर के लिये आत्मग्लानि उसका पीछा नहीं छोड़ती | ' शाबाश अपर्णां ' मैनें मन ही मन कहा और फिर अपर्णां की माँ से बोला , " इस बात का जिकर तीनों भाइयों से मत करना | " उसनें कहा क्यों भाई किसलिये होते हैं ? हरामजादे की बोटी -बोटी कटवा दूंगीं | मैनें कहा , " देवी खून -खराबे से काम नहीं बनेगा | इस मामले को मुझपर छोड़ो देखो मैं इसको कैसे रफा -दफा करता हूँ | "
मैं जानता था कि रमेश हो सकता है कुछ दिन के लिये शहर छोड़कर बाहर चला जाये | वह डर रहा होगा कि अगर अपर्णां के भाइयों को कहीं पता चला तो वह कहीं का नहीं रहेगा | मैनें तुरन्त ही एक फैसला करने का कारगर प्लान तैय्यार किया | मैनें फोन उठाकर कालेज को रिंग अप किया तो कुछ घण्टियों के बाद चपरासी राम कृष्ण की आवाज आयी | उसनें कहा सब दफ्तर से जा चुके हैं | मैं अब दफ्तर बन्द कर घर की ओर चलनें वाला था | | मैनें कहा देखो रामकृष्ण मुझे एक बहुत जरूरी काम है तुम घर न जाकर सीधे मेरे घर पर आ जाओ | मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है |
जैसा कि मैं पहले कह चुका हूँ चपरासी रामकृष्ण एक बहुत समझदार और विश्वसनीय व्यक्ति था | प्रौढ़ अवस्था में भी वह किसी भी तरुण से अधिक तेजी से काम करनें की क्षमता रखता था | उसके आते ही मैनें उसको डा. प्रशान्त शुक्ला की क्लीनिक का पता दिया और कहा कि प्रशान्त क्लीनिक के ही ऊपर वाली मंजिल में रहता है | उससे तुरन्त कहो कि मैनें उसे बुलाया है और वह साथ में रमेश अलवाधी को भी पकड़ कर लाये | बात बहुत गंभ्भीर है वरना पुलिस दरवाजे पर पहुँच जायेगी | बिजली की तेजी से रामकृष्ण अपनी साइकिल पर चढ़कर प्रशान्त शुक्ला के पास जा पहुंचा | हुआ यों कि रमेश अलवाधी भी प्रशान्त के पास ही बैठा था और शायद उसे अपनी की हुयी गलती के बारे में बता चुका था | रामकृष्ण का सन्देश पाते ही प्रशान्त और रमेश साथ -साथ रिक्शे पर बैठकर दरवाजे पर आ गये | अन्दर आते ही अलवाधी मेरे पैरों पर गिर पड़ा मैनें प्रशान्त को उसे उठानें के लिये कहा | फिर मैनें प्रशान्त से पूछा इसनें तुम्हें सब कुछ बता दिया है | प्रशान्त नें कहा हाँ सर और इसनें यह भी कहा है कि जूते मार -मार कर उसके सिर के बाल उड़ा दिये जांये तो भी इसकी गल्ती का प्रायश्चित नहीं होगा | मैनें कहा प्रशान्त तुम्हारे ऊपर विश्वास करके ही रमेश को मैनें घर के सदस्य के रूप में मान लिया था | अब तुम्हीं इस बात का फैसला करो कि क्या किया जाये | अभी तक अपर्णां के भाइयों को इस घटना का पता नहीं है | मैं चाहूंगा कि उन्हें पता न चले और यह घटना यहीं समाप्त हो जाये | प्रशान्त नें कहा सर आप जैसा उचित समझें वैसा दण्ड दे दें इसे स्वीकार है | मैनें कहा इसका मेडिकल रजिस्ट्रेशन पुलिस में एक रिपोर्ट दर्ज कराते ही समाप्त हो जायेगा | जीवन भर प्रेक्टिस नहीं कर पायेगा | सडकों पर डिग्री के बावजूद मारा -मारा फिरेगा और घर में भी व्यभिचारी होनें के कारण घुस नहीं सकेगा पर मैं ऐसा नहीं चाहता यह एक अच्छा डाक्टर है इसके परिवार में भी अपराध की कोई कथा नहीं है न जानें कैसे यह अपना संयम खो बैठा | मेरे इतना कहते ही रमेश अलवाधी फूट -फूट कर रो पड़ा फिर मेरे पैरों पर गिर पड़ा और बोला सर मेरे सिर पर जूते मारिये मैं तो कुत्ते से भी गया बीता हूँ | कुत्ता भी अपनें पराये को जानता है | हे भगवान् यह मैनें क्या किया ?
मैनें कहा प्रशान्त मैं न तो यह खबर बच्चों तक पहुंचने दूंगा न पुलिस में इसकी खबर और किसी को भी नहीं हो पायेगी मैं एक कागज और कलम देता हूँ और जो बोलता जाता हूँ लिखता जाये मेज पर पड़े रजिस्टर में | मैनें बोलना और रमेश नें लिखना शुरू किया | अंग्रेजी की दो एक गल्तियां तो रमेश से हो गयीं पर बाकी जो कुछ मैनें कहा सभी उसनें उसी प्रकार लिख दिया | उसके हाँथ से लिखा हुआ उसके अपराध का वह स्वीकृति पत्र Confession अब तक मेरे पास सुरक्षित है | मैनें उससे कहा था कि जिस दिन उसके आचरण के विषय में छोटी -मोटी शिकायत भी सुननें को मिली तो उसी दिन उसका यह Confession सिविल सर्जन के द्वारा Board of Aurvedic Medicine में भेज दिया जायेगा और उसका Registration कैन्सिल हो जायेगा | फिर मैनें प्रशान्त से कहा कि अब तुम रमेश को ले जा सकते हो पर उसनें कहा नहीं जब तक मैं अपनी बहिन के पैरों पर गिरकर माफी नहीं मांग लेता और वह मुझे माफ़ नहीं कर देती तब तक मैं अपनें को इन्सान कहलानें का हकदार नहीं हूँगा | सर आप मेरी माता जी और बहिन जी को यहां ड्राइंग रूम में बुला लीजिये | मैनें आवाज दी तो अपर्णां की माँ आ गयी और सोफे पर बैठ गयी | अलवाधी उनके पैरों पर लोट गया और रोनें लगा बोला माताजी अपनें इस पापी बेटे को क्षमा कर दो |
भारतीय स्त्रियां अपराध पर क्रोध करना भी जानती हैं और प्रायश्चित करने वाले को क्षमा कर देना भी उनके स्वभाव में सहज रूप से निहित है | अपर्णां की माँ नें उसके सिर पर हाँथ रखकर कहा उठ बेटे हमनें अपनी और अपर्णां की ओर से माफ़ किया | आगे अपनें मां बाप के नाम को फिर कभी बदनाम न करना |
रमेश अब भी बैठा था आखिर अपर्णां की माँ नें अपर्णां को बुलाया | वह आयी और माँ के पास बैठ गयी | अपर्णां के पैरों पर सिर रखकर रमेश ने कहा आप मेरी छोटी बहन हैं | मैं कसम खाकर कहता हूँ कि आख़िरी सांस तक आपके सम्मान की रक्षा करूँगां | आप सचमुच ही एक ऊँचें खानदान की बेटी हैं | मुझे क्षमा करो अपर्णां ,अपर्णां कुछ नहीं बोली हाँ उसकी माँ नें कहा रमेश उठो | गिरकर ही आदमी उंचाई की ओर उठना सीखता है | हम तुम्हें अब भी अपर्णां का भाई ही मान कर चलते रहेंगें |
रमेश नें कहा माता जी मैं कल सुबह अहमदाबाद जा रहा हूँ | वहां मेरे मामा जी एक क्लीनिक चलाते हैं | मैं उन्हीं के साथ बैठूंगा |इस क्लीनिक का सब हिसाब -किताब मैनें कर दिया है | आज शाम तक दोनों कमरे खाली हो जायेंगें | यदि कभी कुछ बन सका और अपर्णा मुझे अपना भाई माननें में कोई हेठी न समझे तो मैं मातृ चरणों में आकर सिर नवाऊँगा | यह कहकर वह उठ खड़ा हुआ | मुझे लगा कि शायद हमारे इस निर्णय से एक भटका हुआ अच्छा डाक्टर फिर से समाज सेवा के मार्ग में लग जायेगा | पर अभी तो घटनाओं का क्रम शुरू ही हुआ था | लग रहा था एक के बाद एक कोई न कोई रोमान्टिक प्रसंग अपनी उलझनें लेकर हमारे सामनें आता ही रहेगा | शाम को सात बजे के करीब कैप्टन जबर सिंह की गाड़ी दरवाजे के आगे रुकी और दो नायिकाओं के साथ नायक राकेश नें गृह द्वार से प्रवेश किया | छत पर बाहरी गलियारे से मैनें एक लुकी -छिपी झांकी ली और कमरे में आकर दीवान पर लेट गया | क्या कोई नया शगूफा खिलनें वाला है | पहला वार तो अपर्णां की माँ को झेलनें दो फिर आगे की तय्यारी के लिये यदि मेरी पुकार होगी तो सोचा जायेगा |
( क्रमशः )
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