Thursday, 25 January 2018

गतांक से आगे -

                                                    हम सब यह दंभ्भ पालते रहते हैं कि हम घटनाओं के नियामक हैं पर चल और अचल प्रकृति में जो भी घटित हो रहा है वह श्रष्टि रचना में निहित मूल कारणों से ही संचालित है | श्रष्टि के नियामक आदि श्रष्टा जिन्हें हम राम के नाम से अभिहित करते हैं वही घटनाओं के सूत्रधार हैं ,वही घटनाओं के नियामक हैं और वही घटनाओं को लक्षित अन्त की ओर ले जाते हैं | जैसे कठपुतलियों का खेल दिखाने वाला काष्ठ  बाजीगर कठपुतलियों को जिस प्रकार से चाहे उस प्रकार  की भंगिमा देकर नाच नचाता रहता है |वैसे ही ब्रम्हाण्ड की सारी व्यवस्था और संयोजना आदि श्रष्टा और  परम नियन्ता प्रभु राम के हांथों से संचालित होती है यानि उनकी इच्छा के आधीन है | फिर मैनें अंग्रेजी में कहा, " All of us harbour the arrogance that we are the doers and controllers of social events and happenings.  This is the absolutly baseless and misleading. The fact is that nothing moves in this world without the will of the supreme power'Rama'. The director of wooden doors keeps the springs in his hands and makes the doors dance as he desires.The whole universe is nothing but a play thing of the supreme creator. Human beings should snun their ego and surrounder to the will of supreme God Rama. Chairman Dal chandra Sharma चुपचाप सुनते रहे और फिर बोले , " क्या  आपकी यह व्याख्या कर्म की महत्ता को नहीं नकारती ? क्या व्यक्ति का प्रयास निरर्थक ही जाता है | यदि सभी कुछ पूर्व निर्धारित है तो फिर साधना या प्रयत्न का महत्त्व ही क्या रह जाता है ? " मैनें कहा सर आपनें चौपाई का अर्थ और अनुवाद पूछा था उससे ध्वनित होने वाली दार्शनिक उत्पत्तियों की जानकारी नहीं चाही थी | दार्शनिक स्तर पर इस चौपाई की व्याख्या एक दूसरे स्तर पर की जायेगी | कर्म का अपना महत्व है पर कर्म करने की चेतना सामाजिक मूल्य बोधों से प्राप्त होती है और यह सामाजिक मूल्यबोध समय के साथ बदलते रहते हैं | जो कल के समाज में सत्य था जैसे वर्ण व्यवस्था वह आज त्याज्य है | गृह परित्याग विगत में जीवन की सर्वोत्तम उपलब्धि थी आज उसे संघर्ष से पलायन के रूप में लिया जाता है | नारी को नर से हीन मानना अभी आधी शताब्दी पहले तक एक सामान्य सामाजिक स्वीकृति थी पर आज हम उसे एक हीन स्तर की चेतना मानते हैं | ये सब कैसे होता है | व्यक्तियों का आन्तरिक विकास होता रहता है | चेतना ऊँचे सोपानों पर चढ़ती जा रही है | प्रकृति भी मानवीय और ब्रम्हाण्डीय कारणों से अपना रूप रंग बदल रही है | यह सब इसीलिये घटित हो रहा है क्योंकि ब्रम्हाण्ड का आदि श्रष्टा कहीं न कहीं नियमन और संयोजन करता जान पड़ता है | आप आदि सृष्टा को  राम कहकर न पुकारें तो उसे स्वचालित ब्रम्हाण्डीय शक्तियों के रूप में निरूपित कर सकते हैं | इस द्रष्टि से अपार और अबाध प्रकृति तत्वों का मानवीयकरण किया जा सकता है | श्री राम तो ब्रम्हाण्ड के कण -कण में रम रहे हैं  और इसीलिये हम हिन्दू धर्मावलम्बी उन्हें आदि शक्ति और परम नियामक के रूप में पूजते हैं | महाकवि तुलसी की इस पंक्ति में कर्म के प्रति कोई नकारात्मक भाव बोध नहीं है सिर्फ दंम्भ छोड़कर कर्म को फलाफल के लिये नियामक की इच्छा पर छोड़ देने की बात कही गयी है |
                           डा. मोहन्ती नें इतना सब सुननें के बाद यह जानना चाहा कि क्या अंग्रेजी साहित्य में भी इस प्रकार की अभिव्यक्ति के गयी है | मैनें विनम्रता पूर्वक उनसे निवेदन किया कि विश्व की किसी भी भाषा के   साहित्य में मनुष्य के प्रयत्न को सर्वोपरि नहीं बताया गया है | यूनानी और रोमन साहित्य से अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं | और अंग्रेजी में तो ऐसे कथनों की भरमार ही है | महाकवि और महान नाटककार शैक्सपियर की इन प्रसिद्ध पंक्तियों को कौन नहीं जनता | , " As files of Wanton boys we are to the whims of God . " यहां हम सबको कठपुतलियों जैसे नचा देने की बात कही गयी है और जीवन की निरर्थकता का भाव तो अंग्रेजी साहित्य के श्रेष्ठतम रचनाकारों की  प्रत्येक कृति में झलकता दिखायी पड़ता है | कथाकार हार्डी तो दुख की सदा छायी रहने वाली बदली में सुख को एक क्षणिक कौंध के रूप में ही देखते हैं और नोबेल पुरुष्कार पाए हुये महाकवि टी. एस. ईलियट तो अपनी जिन्दगी के खोखलेपन से ऊबे हुये से लगते हैं | तभी तो उन्होंने लिखा है - "Alas! I had measurred my life in calfee spoons . " और भी बहुत सी बातें होती रहीं पर अब यह इंटरव्यूह न रहकर एक प्रकार से पारस्परिक आदर भरा समन्वयवादी विचार धाराओं का समन्वय सा बन गया  था | शायद एक कारण यह भी रहा हो कि और कोई कन्डीडेट इन्टरव्यूह के लिये नहीं था और मेरे उत्तरों ने उन्हें कहीं अन्तर में झांककर जीवन के गहरे प्रश्नों  के समाधान की ओर उन्मुख कर दिया था | | अंत में डालचन्द्र जी नें मुझसे पूछा कि मैनें अपनें Resume में अपनें  N . C .C . मेँ कैप्टन होनें की बात लिखी है | और चाहा है कि यदि मैं नियुक्त होता हूँ तो मुझे यहां भी N . C . C .Officer की जिम्मेदारी सौंपी जाय | मैनेँ कहा कि एन  . सी  . सी  . तो अब 1962 के युद्ध के बाद बी. ए. के हर छात्र के लिये अनिवार्य बना दी गयी है | यदि आपके यहाँ इतनी संख्या हो कि जो मौजूदा N .C . C . आफीसर हों उन्हें बिना हानि पहुंचाये मैं सैन्य संचालन के इस महत कार्य से जुड़ सकूं तो मुझे इसमें प्रसन्नता ही होगी | अभी तक मुझसे कालेज के प्राचार्य डा. मोहन्ती और मैनेजिंग कमेटी के प्रधान डाल चन्द्र शर्मा नें ही प्रश्न किये थे और उत्तर मांगे थे | अब एक चौथे सज्जन जो उन सब माननीय सदस्यों के बीच बैठे थे उन्होंने मुझसे कुछ अजीब सा प्रश्न किया बाद में मुझे पता चला कि वे मैनेजिंग कमेटी के वाइस प्रेसीडेन्ट हैं और शहर में उनकी मिठाई की कई दुकानें हैं | एक दुकान दिल्ली में भी है और वे लाल छिद्दम्मी मल के नाम से जाने जाते हैं | वे अधिक पढ़े -लिखे नहीं थे | संम्भवतः वे हाई स्कूल रहे होंगें | पर व्यापार के द्वारा और अपनी मिलनसारिता के कारण उन्होंने काफी धन कमा लिया था और वे मेंनिजिंग कमेटी के वाइस प्रेसीडेन्ट चुन लिये गये थे | वे डालचन्द्र जी के परम मित्र थे और उन्हीं की इच्छा से इन्टरव्यूह कमेटी में बुलाये गये थे | उनका लड़का शायद कालेज में पढ़ रहा था हुए एन  . सी. सी. का कैडिट था | उन्होंने मुझसे पूछा कि एन.सी.सी. को National Cadet Corps क्यों कहते हैं | उन्होनें आगे कहा कि Corps का मतलब तो डेडवाडी होता है | मैं मन ही मन हंसा और जान गया कि वे सज्जन अंग्रेजी भाषा से ज्यादा परिचित नहीं हैं | मैनें उन्हें बताया यद्यपि लिखनें में Corps लिखा जाता है पर उच्चारण में इसे कोर बोलते हैं | अपनी बात को आगे बढ़ाते हुये मैनें सबकी जानी मानी इस बात को कई उदाहरण देकर समझाया कि अंग्रेजी में बहुत  से शब्द ऐसे हैं जिसके उच्चारण और स्पेलिंग में फर्क है | शुद्ध उच्चारण के लिये काफी मेहनत करनी पड़ती है | हिन्दी की प्रकृति दूसरे किस्म की है उसमें जैसा लिखा जाता है वैसा ही बोला जाता है | अन्त में मैनेँ कहा शायद आप अन्जान बनकर मेरी परीक्षा ले रहे थे | जिस Corps शब्द का मतलब Dead Body से होता है उसकी स्पेलिंग में एस के बाद ई लगा होता है | Corpse वे हंसकर चुप रह गये और मुझे लगा कि मैं इम्तहान  में पास हो गया | अब बोर्ड के चेयरमैन डालचन्द्र जी नें मेरे परिवार के संम्बन्ध में कुछ बातें जाननी चाहीं कितनें बच्चे हैं , कहाँ पढ़ते हैं ,पत्नी कितनी पढ़ी -लिखी है , जन्म स्थान किस राज्य में है ,किस जिले में है , आदि आदि | मैनें उन्हें परिवार संम्बन्धी सभी बातों से अवगत करा दिया | अब उन्होंने अन्तिम बात कही | ज्वाइन करनें में कितना समय  लोगे ? अभी तक पूछे गये सारे प्रश्नों के उत्तर मुझे सहज लगे थे पर चेयरमैन सर के इस प्रश्न नें मुझे उलझा दिया | मुझे याद आ गया कि चलते समय अपर्णां की माँ नें मुझसे कहा था कि Appointment Letter तो ले आना पर ज्वाइन करनें से पहले हम फिर से गहरायी के साथ सोच -विचार करेंगें | चेयरमैन साहब से मेरा यह कहना कि ज्वाइन करनें के विषय में अभी पूरा मन नहीं बना सका हूँ मुझे उचित नहीं लगा और मैनें उन्हें यह कहकर आश्वस्त किया मैं शीघ्र से शीघ्र आने का प्रयत्न करूंगा | उन्होंने कहा कि देखो प्रो०  अवस्थी हम तुम्हें अपनें परिवार का अंग बनानें जा रहे हैं | 15 -20  दिन में तुम्हें ज्वाइन करना ही होगा | एक महीनें से अधिक इन्तजार नहीं किया जा सकता क्योंकि कक्षायें प्रारंम्भ हो चुकी  हैं और डिपार्टमेन्ट को एक अनुभवी विद्वान प्रो०  की जरूरत है | डिपार्टमेन्ट के तीनों प्रवक्ता अभी दो तीन साल का अनुभव ही कर पाये हैं | हमारे पास प्रो ० भारद्वाज थे लेकिन वे पिछली मार्च को सेवा निवृत्त हो गये  हैं यदि आप वेतन के संम्बन्ध में कोई बात कहना चाहते हों तो हम उसपर भी विचार करेंगें पर आपको एक मास के अन्दर ज्वाइन तो करना ही होगा | मैनें कहा , " शर्मा जी आप इस संस्था के चेयरमैन तो हैं ही मैं आपको अपनें अग्रज के तुल्य मानता हूँ | आपके कहनें के अनुसार मैं एक मास के भीतर ही ज्वाइन करना चाहूंगा पर एक बार मुझे अपनें कालेज के सहयोगियों और संचालकों से मिलनें का मौक़ा दें | चेयर मैन साहब मैं जिस कालेज में था उसकी विशालता और उपलब्धियों से पूरी तरह परिचित थे | यह जानते थे कि उस कालेज की तुलना में उनके कालेज की शुरुआत बहुत छोटे स्तर की है पर उनका आत्मविश्वास , उनकी सामाजिक शाख ,और उनकी राजनीतिक पहुँच इस छोटी शुरुआत को एक बहुत बड़ी शिक्षा संस्था के रूप में परिवर्तित करने की क्षमता रखती थी | हम सब उठकर प्राचार्य महोदय के कक्ष में चाय पानी के लिये मिल बैठे अब मुझे कालेज के एक वरिष्ठ और सम्मानित सदस्य के रूप में मान्यता मिल गयी थी | शर्मा जी नें कहा कि अभी तक उनके कालेज का पत्र व्यवहार हिन्दी में ही होता है इसलिये हिन्दी में ही सुन्दर हस्त लिखित नियुक्ति पत्र मुझे दिया जा सकेगा | मैनें हंसकर कहा , " यह तो मेरे लिये गौरव की बात है अंग्रेजी का अध्यापक भले ही हूँ पर मातृ भाषा का गौरव तो निराला ही होता है | बातों ही बातों में प्रधान जी ने बताया कि इस इन्टरव्यूह में यदि मैं न आया होता तो डा ० सुबोधनी चटर्जी का लिया जाना सुनिश्चित था | उनके पति नें मन्त्री स्तर तक अपनी पहुँच बना रखी है | पर मेरे ऊपर सर्वसम्मति बन जानें के बाद अब उनके लिये जानें का प्रश्न ही नहीं उठता | डा ०  सुबोधनी चटर्जी के लिये इस इन्टरव्यूह में मेरा आना शुभ साबित नहीं हो सका | इसके लिये मेरे मन में हल्का सा संकोच उठ खड़ा हुआ मैनें सोचा क्या पता किन्हीं कारणों से मैं ज्वाइन न कर सकूं तो सुबोधनी चटर्जी को कालेज में आनें का सुअवसर मिल जायेगा और शायद यह कालेज के हित में हो | उस रात कालेज के गेस्ट रूम में मैं अतिथि के रूप में रहा अंग्रेजी विभाग के तीनों प्राध्यापक सुषुमा शुक्ला , रवीन्द्र वर्मा और सुखदेव बंसल देर शाम तक मेरे साथ बैठकर बात चीत करते रहे | बधाई देने के साथ -साथ उनका यह भी आग्रह रहा कि शीघ्र ही आकर कालेज ज्वाइन कर लूँ |
                                    अगली सुबह पहली गाड़ी से घर वापस आ गया | हिन्दी में सुन्दर अक्षरों में लिखा हुआ नियुक्ति पत्र मेरे पास था ही  | अपर्णा की मां नें उसे पढ़ा ,मुस्करायी और मुझे बधाई दी और बोली अब क्या इरादा है ? मैनें कहा जैसा बताओ वैसा करूँ | अभी तक कालेज के मैनेजमेन्ट से यह बात छिपी है | वैसे क़ानून मुझे उनकी स्वीकृति लेकर ही अप्लीकेशन डालनी चाहिए थी पर अब तो नियुक्ति पत्र हाँथ में है और देखता हूँ कि मुझे छुट्टी देनें के लिये मैनेजमेन्ट प्रस्तुत होता है या रिजिगनेशन देकर आनें को कहता है | अपर्णा की माँ ने कहा इतनी सारी गृहस्थी और चार चार जवान हो रहे बच्चों को लेकर अब हम कहाँ घूमते फिरेंगे | इसी शहर में मौक़ा देखकर जमीन खरीदो , मकान बनवाओ और बच्चों की शादी व्याह करो | वहां भी पढ़ाना है और यहां भी पढ़ाना है | मौक़ा मिला तो यहां भी अध्यक्ष बन जाओगे और क्या पता उससे भी आगे पहुँच जाओ | सभी तुम्हारी तारीफ़ करते हैं | मेरा मन भी लग गया है | मैनें कहा अच्छा सोचेंगें | कालेज पहुंचकर मैनें सबसे पहले अपनें प्राचार्य डा. पाठक को विश्वास में लिया | वे मुझे सम्मान भाव से देखते थे  और उनके व्यवहार में किसी भी आरोपित बड़प्पन का भाव नहीं होता था | उन्होंने कहा , " देखो अवस्थी जहां तक मैं समझता हूँ , मैनेजमेन्ट तुम्हें जानें नहीं देगा | रह गयी बात ग्रेड की तो उस पर विचार क्या जा सकता है | तुम्हें अगला इन्क्रीमेन्ट देकर जो पे स्केल तुम्हें अध्यक्ष के नाते मिलेगा वही पे स्केल यहां भी दिया जा सकता है | " मैनें कहा ऐसा करने से मेरे ऊपर के एक दो सीनियर भाई अपनें को छोटा महसूस करेंगें क्योंकि उनका वेतन मेरे से कम हो जायेगा | उन्होंने कहा  देखो हम कोशिश करते हैं कि तुम्हारे कुछ सीनियर्स को भी अगले इन्क्रीमेन्ट लगनें के समय से ऊँचे ग्रेड में  प्रवेश कर लिया जाय | तुम्हारे तीन वरिष्ठ साथी तीन या चार साल में सेवा निवृत्त हो जायेंगें और बाकी दो 6 -7  साल में , तुम्हारी सेवानिवृत्ति में अभी 10 -12  वर्ष हैं | तुम अध्यक्ष तो बनोगे ही कालेज के वरिष्ठतम प्राध्यापक भी होंगे और क्या पता इन्टरव्यूह के माध्यम से तुमसे अप्लीकेशन डलवाकर तुम्हें सेवाकाल के अन्तिम वर्षों में प्राचार्य भी बना दिया जाय | मैं मैनेजमेन्ट के विश्वास में हूँ और तुम्हारे संम्बन्ध में उनकी  धारणां एक अत्यन्त श्रेष्ठ अध्यापक और चरित्रवान नागरिक की है | मैनें प्रिन्सिपल साहब से कहा कि अराजकीय कालेज के मैनेजमेन्ट की चुनाव प्रक्रिया कई बार आपसी तनाव पैदा कर देती है | प्रिय अप्रिय हो जाते हैं और नालायक योग्य मान लिये जाते हैं | मुझे एक सुअवसर मिल रहा है | आगे की आगे देखी जायेगी | इस समय तो आपके आशीर्वाद की मांग है | मैं अपना स्तीफा आप के माध्यम से प्रधान जी के पास भेजता हूँ कृपया मुझे इसी महीनें के भीतर रिलीव करवा दें | माह के अन्त तक मुझे वहां ज्वाइन करना है | रिजिगनेशन मैनें जेब में लिखकर रख छोड़ा था | प्रिन्सिपल साहब को देने के बाद मैनें उनसे आग्रह किया कि वे प्रधान जी से उसी शाम को मिलकर मेरे संम्बन्ध में लिये गये निर्णय से मुझे अवगत करा दें अति कृपा होगी | नमस्कार करके मैं स्टाफ रूम में आ गया | मैनें अपनें किसी कुलीग से अभी तक अपनें स्तीफे की चर्चा नहीं की थी | मैं चाहता था कि मैनेजमेन्ट के निर्णय से अवगत हो जानें के बाद ही मैं बात को आगे बढ़ाऊं |
                              रात्रि के आठ बजे कालेज का पुराना और मेरा  बहुत नजदीकी चपरासी रामकृष्ण दरवाजे पर आ हाजिर हुआ | उसनें कहा मैनेजमेन्ट कमेटी के दफ्तर में प्रधान जी साथ चार पांच बड़े -बड़े सदस्य बैठे हुये हैं | प्रिन्सिपल साहब भी वहीं हैं | आपको तुरन्त बुलाया है | मैं रिक्शा लेकर आया हूँ | नीचे खड़ा है | कपड़े डाल लीजिये और चलिये | प्रबन्ध कारिणीं कक्ष में मेरी प्रतीक्षा हो रही थी | प्रधान जी नें कहा , " अवस्थी जी हमारे कालेज में क्या कमी है | जो इसे छोड़कर जा रहे हो | तुम्हें वहां पर सीनियर ग्रेड मिल रहा है ठीक है हम तुम्हारे अगले इन्क्रीमेन्ट के साथ जो इसी महीनें ड्यू है सीनियर ग्रेड दे देंगें | मैनें कहा प्रधान जी आप सब मेरा इतना सम्मान कर रहे हैं इसलिये मैं नतमस्तक हूँ पर कहीं ऐसा न हो कि मुझे ग्रेड दे देनें से हमारे साथी अध्यापकों में हाट वर्निंग  हो जाय | आप तो जानते ही हैं कि कोई भी अपने को दूसरे से छोटा नहीं नहीं मानता और जो मेरे सीनियर हैं उन्हें तो बुरा लगना ही चाहिये | अब मैनेजर साहब बोले , " बुरा लगना चाहिये तो लगे उन्हें ग्रेड लेना हो तो वे भी Appointment लेकर स्तीफा देकर दिखावें | मैं चुप रहा तब  प्रधान जी नें समझौते की बात कही , " अवस्थी जी हम कोई न कोई रास्ता निकाल लेंगें | हमारा कालेज जबतक साठ वर्ष के नहीं हो जाओगे जानें नहीं देगा | वहां तुम्हें जो कुछ मिलेगा हम तुम्हें उससे पचास रुपये अधिक देंगें | " मैनें कहा , " आप सब इस नगर के अत्यन्त प्रतिष्ठित नागरिक हैं | अधिक पैसा आप दें या न दें ,अपनें जो सम्मान दिया है वह अमूल्य है | " प्रधान जी स्तीफा मेरी ओर बढ़ाते हुये कहा इसे ले जाओ और उस कालेज को लिख दो कि उन्होंने जिस किसी को नम्बर दो पर रखा हो उसे बुलाकर ज्वाइन करवा लें |" मैं उठा उन सबको आदर पूर्वक प्रणाम किया और बाहर आ गया | मेरे पीछे प्रिन्सिपल  साहब भी आ गये और बोले , " अरे अवस्थी चलो कोठी पर चलते हैं ,चाय का एक -एक कप लेंगें |"प्रिन्सिपल  साहब की कोठी कालेज परिसर में ही थी और उनके साथ ड्राइंग रूम में जा बैठा | क्या बातें हुयीं इनका विवरण यहां अनावश्यक होगा पर इतना सुनिश्चित हो गया कि मुझे और कहीं नहीं जाना है | हाँ कौन जनता है आने वाले कल में कहीं और कोई ऊंचा स्थान मिल जाय तो जानें की बात सोची जायेगी | घर लौटते वाक् करते समय सोचनें लगा कि अपर्णां ग्रेजुएट हो गयी है प्रथम श्रेणीं के आस -पास ही स्कोर कर पायी है | उसे विश्वविद्यालय में अंग्रेजी में दाखिला दिलाना होगा | देखो कल डा ० तुलसीराम से मिलते हैं | नम्बरों के आधार पर एडमिशन मिल जायेगा या फिर और कोई रास्ता खोजना होगा | अपर्णां का सर्कल भी  बढ़ता जा रहा है मुझे लग रहा है कि वह कोई मेधावी युवाओं को अपनी और आकर्षित कर रही है कंकड़ों के बीच किसी अनगढ़ हीरे की तलाश करनी होगी | पर कहीं ऐसा तो नहीं कि अपर्णां नें पहले से ही कोई अनगढ़ हीरा चुन लिया हो | जो होगा , जो आयेगा उसका स्वागत है | और मार्ग ही क्या है |
(क्रमशः )

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