Wednesday, 6 December 2017

                                   Possession in fact and Posession in law

                       कब्जा क़ानून के अध्येता यह जानते ही  हैं कि वास्तिविक कब्जा और कानूनी  कब्जा में काफी कुछ अन्तर होता है | वास्तविक कब्जा का अर्थ है किसी वस्तु और व्यक्ति के बीच कैसा सम्बन्ध है | जो वस्तुयें आप के हाँथ में हैं उनपर आप का कब्जा है ,जो कपड़े आप पहनें हैं उन पर आपका कब्जा है और जो चींजें आपके अधिकार में हैं उनपर भी आप का कब्जा है | कब्जा का अर्थ है आपके शारीरिक अधिकार में होना | मान लीजिये कि आपनें एक सुग्गा पकड़ा और उसे पिंजड़े में डाल दिया जब तक वह पिंजड़े में है और उस पिंजड़े पर आपका अधिकार है तब तक वह सुग्गा आपके कब्जे में है | पर यदि वह सुग्गा पिंजड़े से निकलकर उड़ जाता है | तो उसपर आपका कब्जा नहीं रहता यहां यह बात ध्यान देनें योग्य है कि कोई भी वस्तु जो आपके अधिकार में है यह मांग नहीं करती कि आप प्रत्येक क्षण उसपर अपना कब्जा बनायें रखें | अपनें कोट पर आपका अधिकार है पर यदि आप कोट उतारकर पास में रख लें और आपको झपकी आ जाय तो भी उस कोट पर आपका कब्जा बना रहता है हाँ इतना अवश्य होना चाहिये कि हम जब चाहें अपनें कब्जे की वस्तु पर अपना अधिकार जमा सकें | प्रत्येक समय कब्ज़ा की हुयी वस्तु पर अधिकार नहीं रखा जा सकता | छोटी मोटी चींजें जिन्हें हाँथ में लिया जा सकता है सदैव हमारे कब्जे में रह सकती हैं पर बड़ी चीजें जैसे पशु और पक्षी पिजड़ों में बन्द करके ही कब्जे में रखे जा सकते हैं | बड़ी और गतिहीन वस्तुयें जैसे घर ,बाग़ भी हमारे कब्जे में मानी जायेंगी भले ही हम उनसे कई किलोमीटर की दूरी में हों | यदि हमारा अधिकार उन पर स्वीकार किया जाता है और दूसरे लोग हमारे उस अधिकार को चुनौती नहीं देते हैं | कानूनी कब्जे का अर्थ है क़ानून की निगाह में हकदार होना | हो सकता है कानूनी हकदार के पास वस्तु का वास्तविक कब्जा न हो पर क़ानून से यदि उसे यह हक़ मिलता है तो क़ानून उस वस्तु  पर वास्तविक कब्जा भी दिलवा देता है | कानून से हक़ साबित हो जानें पर उस व्यक्ति पर नुक्सान की भरपायी का दावा भी किया जा सकता है जिसनें बिना कानून अधिकार की वस्तु को कब्जे में कर रखा है | 1967  में सुप्रीम कोर्ट नें मंगल सिंह V/S श्रीमती रत्ना के केस में जो निर्णय दिया वह कानूनी कब्जे की अच्छी व्याख्या प्रस्तुत करता है | इस केस में एक हिन्दू विधवा अपनें पति की जायदाद पर काबिज  थी | 1954 में उससे कब्जा छीनकर दूसरों को दे दिया गया | हिन्दू विधवा नें जायदाद पर कब्जे की मांग के लिये काबिजों पर मुकदमा चलाया | मुकदमें के दौरान 17 जून 1956 को Hindu succession Act बन गया और लागू हो गया | हिन्दू विधवा 1958 में दिवंगत हो गयी और उसकी प्रतिनिधि श्रीमती रत्ना नें उसका स्थान लिया | काबिज लोगों के वकील ने यह दवा किया कि हिन्दू विधवा न तो एक्ट की शुरुआत पर और न ही अपनी मृत्यु के समय जायदाद की असली काबिज थी इसलिये एक्ट का सेक्शन 14 उसपर लागू नहीं होता | सुप्रीम कोर्ट के जजों ने काबिजों के इस तर्क को स्वीकार नहीं किया और यह माना कि 1958 में जब विधवा की मृत्यु हुयी तब वह कानूनी रूप से जायदाद पर काबिज थी और इसलिये उसकी मृत्यु के बाद उसके कानूनी वारिस को कब्जा मिलना चाहिये | सुप्रीम कोर्ट नें अपनें फैसले में कहा |
                 'The property is said to be possessed by a person ,if he is its owner even though he may, for the time being ,be out of actual possession of even conctructive possession.
                 It appears to us that the expression used in section 14(1)of the act was intended to cover cases of possession in Law also , where lands may have descended to a female Hindu and she had not actually intered into them . "

                            आइये पजेशन इन फैक्ट और पजेशन इन ला को और अधिक स्पष्ट करनें के लिये  एकाध कल्पित प्रश्नों का उत्तर तलाशें | मान लीजिये कि ए नें बी को एक अलमारी बेच दी | भूल से अलमारी की एक गुप्त Recess में सोनें की चैन रह गयी | बी नें यह अलमिरा सी को बेच दी और सी ने इसे डी  के हांथों विक्री कर दिया | स्पष्ट है कि अलमिरा का Possession in Fact ए के हांथों से बी के हांथों में चला गया और बी से सी तक होता हुआ Possession in fact डी के हांथों तक पहुँच चुका है | अब ए को जरूरत पड़नें पर अलमारी की गुप्त रेसस में रखी हुयी सोनें की चैन की याद आती है | वह चेन का Posession in Law के आधार पर हकदार है जब कि अलमारी Possession in fact के आधार पर दूसरे के कब्जे में है | सवाल उठता है क्या ए को सोनें की चेन पर कानूनी दावे के द्वारा कब्जा पानें का अधिकार है या नहीं | इसका कानूनी उत्तर यही है कि ए को अपनी सोनें की चेन पानें का अधिकार है चूंकि अब अलमारी डी के Possession in fact में है इसलिये वह डी पर केस डाल सकता है | Possession को सम्पूर्णतः देनें के लिये Animins (Intent ) Corpus ( Physical Poessession ) दोनों का होना अनिवार्य है | ए नें जब अलमारी बेची थी तब उसनें सोनें के चेन की कीमत नहीं ली थी | तब उसे उसका ज्ञान ही नहीं था इसलिये सोनें की चेन में Physical Possession न होकर भी Possession in Law बना रहेगा और क़ानून उसे चेन का Physical Possession भी दिलायेगा |
                       1841 में Merry v/s Green के केस में ऐसा ही फैसला इंग्लैण्ड के जज Baron Park ने दिया था | फैसले में कहा गया था कि अलमारी का Physical Possession अलमारी में रखे हुये और किसी वस्तु  का Possession नहीं हो सकता क्योंकि अलमारी ही बेची गयी थी न कि उसके अन्दर कोई रखी हुयी वस्तु |
                     आइये एक और उदाहरण से इस बात को स्पष्ट करें | मान लीजिये कि  ए नें बहुत दिनों से बन्द खाली पड़े अपनें शो रूम को साफ करनें के लिये बी को काम पर रखा | सफाई के दौरान बी को सोनें की एक अंगूठी कोनें में पड़ी मिली | क़ानून के सभी पण्डित इस बात से सहमत होंगें यद्यपि बी  के पास सोनें की अंगूठी का Physical Possession है पर उसका Legal Possession स्टोर के मालिक का ही होगा | अगर बी उसे Legal Owner को नहीं देता तो ए को क़ानून के द्वारा अंगूठी पर Physical Possession प्राप्त करवाया जा सकता है | South Strajordshine Water Co. v/s Sherman के केस में ए ऐसी ही घटना पर कोर्ट नें इम्प्लायर (मालिक ) को Possessionका हकदार ठहराया था | 

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