Steven Benner नें फ्लोरेन्स में आयोजित जीव वैज्ञानिकों की महासभा को सम्बोधित करते हुये जीवन की उत्पत्ति के सम्बन्ध में अपनी नयी खोजों से विद्वानों को हैरत में डाल दिया था | अभी तक यह माना जाता था कि धरती ग्रह पर जीवन की उत्पत्ति आर्गेनिक मैटर की किसी अदभुत समन्वय के द्वारा सम्भव हुयी थी | फिर कुछ वैज्ञानिकों नें जीवन की उत्पत्ति के एक नये द्रष्टिकोण को प्रस्तुत किया | उनका कहना था कि महाविस्फोट के बाद धरती ग्रह पर भीषण उष्मा के कारण वे तत्व उपस्थित ही नहीं थे जो मिलकर जीवन का सृजन कर सकें | फिर कुछ ऐसा हुआ कि मंगल ग्रह के एक छोटे से विस्फोट में उसका एक ठोस भूखण्ड धरती पर आ गिरा, इस प्रस्तरीय अकाराकृति में ही वे सूक्ष्मतम जीवाणुं छिपे थे जिन्होनें कालान्तर में अदभुत समन्वय के द्वारा सचलता की श्रष्टि की और प्रवहमान जीवन का संचयन हो गया | पर अब नभ वैज्ञानिक Steven Benner नें अपनी नयी शोध के द्वारा यह सिद्ध करनें की कोशिश की थी कि धरती ग्रह पर वे रासायनिक तत्व थे ही नहीं जिनके सम्मेलन से जीवन की शुरुआत होती है | यह तत्व मंगल ग्रह से ही आये थे | और मंगल ग्रह से एकत्रित की गयी प्रस्तर शिलाओं में इसके पुख्ता प्रमाण अब भी सुरक्षित हैं | हम जीवन की उत्पत्ति के विषय में तर्कों के चक्रव्यूह से घिरे बिना इतना ही कहना चाहते हैं कि सूक्ष्म जीवाणु या अनिवार्य रासायनिक तत्व चाहे धरती ग्रह पर हों या मंगल ग्रह से आये हों पर उनका समन्वय कैसे हुआ और इस प्रक्रिया को जीवन की पूर्णता तक किसनें पहुंचाया | इस रहस्य पर पड़े परदे को अभी तक कोई भी वैज्ञानिक उठा नहीं सका है | केवल यह कहकर तर्क को विश्राम नहीं दिया जा सकता कि प्रकृति नें स्वयं ही ब्रम्हाण्ड के किसी अनोखे काल क्षण में समन्वयन की प्रक्रिया पूरी कर ली | इस दिशा में हमें भारत के दार्शनिकों की खोज और तर्क शैली अधिक गहरे रूप से प्रभावित करती है | उनका नेति -नेति कहना अधिक सटीक और अधिक प्रमाणित है | विज्ञान की विस्मयकारी उपलब्धियों के बावजूद अभी बहुत कुछ है जिसे हम नहीं जानते | और इसी बहुत कुछ में जीवन की उत्पत्ति का प्रश्न भी छिपा हुआ है |
जीवित श्रष्टि होते ही वह अपनें उच्चतर विकास की ओर गतिशील हो उठी | करोड़ों -करोड़ वर्षों की अनवरत और अथक यात्रा के बाद द्विपदीय प्राणियों में उसका विकसित रुप देखनें को मिला पर विकास का क्रम अभी रुका नहीं है | मानव प्रकृति की सर्वोत्तम कृति भले ही मान ली गयी हो पर मानवीय रूप में अभी भी हममें से अधिकाँश वनचरों से भिन्न नहीं हो सके हैं और इस श्रेणी में बहुत से संत और कथा वाचक भी बिठाये जा सकते हैं और मनुष्य का एक रूप बुद्ध ,गांधी और मार्टिन लूथर में भी देखनें को मिलता है साथ ही उसका एक रूप अरविन्द ,रवीन्द्र और विवेकानन्द में भी देखा जा सकता है | | इन मानव रूपों में देवत्व तक पहुंचने की सम्भावना झलकती दिखायी पड़ती है | विकास का यही क्रम मानव विकास के स्वर्गारोहण की ओर ले जा सकेगा | धर्मराज युधिष्ठिर के लिये महाभारत काल में ही स्वर्ग तक ले जानें वाला रथ पहुँच गया था ,पर सामान्य जन के लिये अभी युगों तक प्रतीक्षा करना बाकी है | हाँ इतना अवश्य है कि मार्ग अधिक स्पष्ट हो गया है और उस मार्ग पर काफी दूर चलकर प्रभा मण्डल से घिरे श्रेष्ठ जन दिखायी पड़ने लगे हैं | इक्के -दुक्के प्रयास से महान कार्य संभ्भव नहीं हो पाते पर हर एक को अपना छोटा -मोटा योगदान तो देना ही होगा | राम जी की सेवा में गिलहरी का लगना भी कोई छोटी बात नहीं है | श्रेष्ठता के मार्ग पर हम बहुत लम्बा सफर न भी कर सकें तो भी इसमें चिन्ता की कोई बात नहीं है | न ही इसमें किसी को अपनी हेठी समझनी चाहिये | उचित मार्ग का चयन करना ही एक बड़ी उपलब्धि है और उस पर कुछ डग हम भर सके हैं तो इससे बड़ा सन्तोष और क्या हो सकता है | काल के अनन्त प्रवाह में कोटि -कोटि जन अपनी अमिट छाप छोडनें के लिये प्रयत्नशील रहते हैं पर अमिट छाप की चाह पालना भी एक प्रकार का विकार है तभी तो हमारे यहां निष्काम कर्म की दार्शनिक व्याख्या प्रस्तुत की गयी है | इस धरती पर जैसा कुछ जीवन हमें मिला है हमनें सार्थक बना कर अगली पीढ़ी के लिये अन्धकार मुक्त राह का द्वार खोल दिया यही तो प्रबुद्धजनों का सन्तोष है | हम सन्त कहलानें लायक न हों पर हम आकाशीय नक्षत्र की प्रभा में आनन्दित होना सीखें इससे बड़ी और कोई उपलब्धि साधारण मानव के जीवन में नहीं हो सकती | 'माटी ' का संपादक भी तो एक साधारण मानव ही है उसके मन में अभी तक न कुछ कर पानें का असन्तोष है | प्रभु के द्वार पर दस्तक देता हुआ वह अपनी विफलताओं को उन्हीं को समर्पित कर रहा है | आप सब सफल हों यही उसकी कामना है |
जीवित श्रष्टि होते ही वह अपनें उच्चतर विकास की ओर गतिशील हो उठी | करोड़ों -करोड़ वर्षों की अनवरत और अथक यात्रा के बाद द्विपदीय प्राणियों में उसका विकसित रुप देखनें को मिला पर विकास का क्रम अभी रुका नहीं है | मानव प्रकृति की सर्वोत्तम कृति भले ही मान ली गयी हो पर मानवीय रूप में अभी भी हममें से अधिकाँश वनचरों से भिन्न नहीं हो सके हैं और इस श्रेणी में बहुत से संत और कथा वाचक भी बिठाये जा सकते हैं और मनुष्य का एक रूप बुद्ध ,गांधी और मार्टिन लूथर में भी देखनें को मिलता है साथ ही उसका एक रूप अरविन्द ,रवीन्द्र और विवेकानन्द में भी देखा जा सकता है | | इन मानव रूपों में देवत्व तक पहुंचने की सम्भावना झलकती दिखायी पड़ती है | विकास का यही क्रम मानव विकास के स्वर्गारोहण की ओर ले जा सकेगा | धर्मराज युधिष्ठिर के लिये महाभारत काल में ही स्वर्ग तक ले जानें वाला रथ पहुँच गया था ,पर सामान्य जन के लिये अभी युगों तक प्रतीक्षा करना बाकी है | हाँ इतना अवश्य है कि मार्ग अधिक स्पष्ट हो गया है और उस मार्ग पर काफी दूर चलकर प्रभा मण्डल से घिरे श्रेष्ठ जन दिखायी पड़ने लगे हैं | इक्के -दुक्के प्रयास से महान कार्य संभ्भव नहीं हो पाते पर हर एक को अपना छोटा -मोटा योगदान तो देना ही होगा | राम जी की सेवा में गिलहरी का लगना भी कोई छोटी बात नहीं है | श्रेष्ठता के मार्ग पर हम बहुत लम्बा सफर न भी कर सकें तो भी इसमें चिन्ता की कोई बात नहीं है | न ही इसमें किसी को अपनी हेठी समझनी चाहिये | उचित मार्ग का चयन करना ही एक बड़ी उपलब्धि है और उस पर कुछ डग हम भर सके हैं तो इससे बड़ा सन्तोष और क्या हो सकता है | काल के अनन्त प्रवाह में कोटि -कोटि जन अपनी अमिट छाप छोडनें के लिये प्रयत्नशील रहते हैं पर अमिट छाप की चाह पालना भी एक प्रकार का विकार है तभी तो हमारे यहां निष्काम कर्म की दार्शनिक व्याख्या प्रस्तुत की गयी है | इस धरती पर जैसा कुछ जीवन हमें मिला है हमनें सार्थक बना कर अगली पीढ़ी के लिये अन्धकार मुक्त राह का द्वार खोल दिया यही तो प्रबुद्धजनों का सन्तोष है | हम सन्त कहलानें लायक न हों पर हम आकाशीय नक्षत्र की प्रभा में आनन्दित होना सीखें इससे बड़ी और कोई उपलब्धि साधारण मानव के जीवन में नहीं हो सकती | 'माटी ' का संपादक भी तो एक साधारण मानव ही है उसके मन में अभी तक न कुछ कर पानें का असन्तोष है | प्रभु के द्वार पर दस्तक देता हुआ वह अपनी विफलताओं को उन्हीं को समर्पित कर रहा है | आप सब सफल हों यही उसकी कामना है |
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