Tuesday 19 December 2017

                              अंकगणतीय कुहासों से भरी काल की किस सीमान्त रेखा पर कोटि -कोटि वर्ष पूर्व पदार्थ में निहित चेतना स्वतन्त्र रूप से गतिमान हो सकी यह अबूझ प्रश्न अभी तक अनुत्तरित ही रहा है | नृतत्व विशारद ,जीवाश्म अध्येयता और विकासवादी चिन्तक सभी नें अपनी -अपनी कल्पना के सुवाहनें लगनें वाले माया महल गढ़ डाले हैं | पर जब कभी भी पदार्थ में निहित चेतना स्वतन्त्र रूप स्फुरित होकर पदार्थ को गतिमान कर सकी उसी समय से ब्रम्हाण्ड की रहस्यमयता को बहुत दूर युगान्तरों के बाद अपनें अस्तित्व को बनाये रखनें का ख़तरा खड़ा हो गया | स्वतन्त्र चेतना ब्रम्हाण्डीय प्रस्तार में काल के पाल खोलकर सन्तरण करनें लगी | उसकी निरन्तर गतिमयता लक्ष्य -लक्ष्य संवत्सरों के बाद उसे एक ऐसे बिन्दु पर ले आयी जहां उसके आविर्भाव की जिज्ञासा नें उसे श्रष्टि के मूल कारक की खोज में प्रावृत्त कर दिया और यहीं से दर्शन का मूल प्रश्न उठ खड़ा हुआ | अचेतन से चेतन की श्रष्टि कैसे हुयी ? यदि चेतन और अचेतन अभिन्न हैं तो फिर चेतना का समग्र स्वरूप कैसा है ? प्रकाश किरण की कणमयता और प्रस्तर खण्ड की अचलता दोनों में क्या संजीवनी की कोई अलक्षित धारा प्रवहमान है ? अपनें -अपनें युग के मनीषियों नें इन प्रश्नों के उत्तर वैदिक दर्शन ,औपनिशिदिक़ विश्लेषण ,जैन और बुद्ध प्रपत्तियों और आधुनिक विज्ञान वेत्ताओं के माध्यम से प्रस्तुत किये हैं | दर्शन की गहरी उलझनों में छिपे अमृत रस को पान करनें के लिये जिस सयंम और मानसिक पारदर्शिता की आवश्यकता होती है उस स्तर को पा लेना सामान्य जन के लिये संम्भव नहीं है पर एक बात जो स्पष्ट उभर कर सामान्य स्तर के प्रबुद्ध जनों के सामनें आती दिखायी पड़ती है वह है स्वतन्त्र चेतना का सृष्टि के रहस्यों को खोल देनें की चुनौती भरी ललकार | ऐसा लगता है कि चेतना से इंटलीजेंस और उससे सुपर इंटेलीजेन्स का विकास प्रकृति के स्कीम में नहीं था यह कुछ ऐसा ही हुआ जैसे खेतों में लकड़ी और फूस के हाँथ पैर बनाकर और सिर की जगह घड़ा रखकर बनाये गये काग भगोड़ा में अचानक प्राणों का संचार हो जाये और बनानें वाले के लिये अपनें स्वयं के अस्तित्व का ख़तरा पैदा हो जाय | सृष्टि कर्ता के रहस्य का हर पर्दा आज सुपर इन्टलीजेंस की खोजबीन से उघड़ता हुआ दिखायी पड़ रहा है | यहां से विचारधाराओं की दो धारायें अलग -अलग स्वतन्त्र रूप में फूट निकलती हैं | अस्तित्ववादी विचारकों की एक धारा यह मान कर चलती है कि सृष्टिकार नें स्वयं ही इन्टेलीजेन्स से सुपर इन्टेलीजेन्स को विकसित होनें दिया क्योंकि उसे अपनी रहस्यमयता का बोझ अगणनीय काल की तहों के नीचे अरुचिकर लगनें लगा होगा | और उस रहस्य के बोझ को हल्का करनें के लिये उसनें स्वयं ही चाहा कि कुछ परतों की रहस्यमयता को उजागर कर दिया जाय और इस उजागर करनें की तूल के रूप में उसनें सुपर इन्टेलीजेन्स को विकसित होनें दिया | विपरीत विचारधारा के अस्तित्व वादी विचारक यह मानते हैं कि ब्रम्हाण्डीय विकास की अत्यन्त जटिल प्रक्रियाओं में कोई सर्वकालीन स्वयं सिद्ध तार्किक पद्धति नहीं है | उसमें बहुत कुछ कार्य कारण से संम्बन्धित है पर बहुत कुछ ऐसा भी है जो अकारण है और जिसे बुद्धि की किसी तार्किक संगति में नहीं बिठाया जा सकता | इन्टेलीजेन्स का आविर्भाव और उससे सुपर इन्टेलीजेन्स का विकास एक ऐसी ही आकस्मिक क्रिया है और यदि ब्रम्हाण्ड की प्रक्रियाओं के पीछे यदि कोई चेतन शक्ति है तो वह उसके हाँथ से निकल जानें वाला एक गलत दांव है | अब चाह कर भी इस दांव को वापस नहीं लिया जा सकता | एक न एक दिन ब्रम्हाण्ड की सारी चुनौतियां सुपर इन्टेलीजेन्स की विश्लेषण पट्टिका पर उघार कर रख दी जायेंगीं | सुपर इन्टेलीजेन्स नें अब आज तक के विश्व के सबसे महानतम मानें जानें वाले वैज्ञानिक चिन्तक ,आइन्सटीन के सिद्धान्त को भी चुनौती दे दी है | आइन्सटीन नें ब्रम्हाण्ड की शत प्रतिशत सही नाप- जोख का फार्मूला विश्व के मनीषियों के समक्ष स्वीकार करवा  लिया था | उनका यह सिद्धान्त कि ब्रम्हाण्ड की कोई भी गतिमान प्रक्रिया या प्रवहमान कणिकाधार लाइट की गति से तेज नहीं चल सकती | अभी तक सारे वैज्ञानिकों के लिये शिरोधार्य रहा है पर अब (God Particle )ईश्वरीय कण की खोज करनें वाले वैज्ञानिकों नें यह दावा किया है कि कुछ अलक्षित रहस्यमयी कणिकायें विद्युतिगति से भी अधिक तीव्रता से प्रवहमान हैं | देखते जाइये कौन -कौन खगोलीय रहस्य परत दर परत उघरते चले जांय और फिर न जानें किस अलक्ष्य ,विस्मय आवृत्त ,रहस्य वेष्टित माया शक्ति से मानव जाति रूबरू हो जाय | ब्रम्हाण्ड के विस्तार की कुछ झलक नभांतगामी कल्पना के पंखों पर ही मिल सकती है | ----------

No comments:

Post a Comment