Sunday, 3 December 2017

                            हम औरों से श्रेष्ठ हैं और हमें औरों से श्रेष्ठ बनकर ही रहना है यह भाव मानव मन की अन्तर पर्तों में अभिन्न भाव से टिका हुआ है | मनोविज्ञान विशारद और मानव चेतना के सजग विश्लेषक यह मान कर चलते हैं कि इस अहं भाव ने ही प्रतिस्पर्धा के द्वारा मानव सभ्यता में अभूतपूर्व योगदान दिया है | कद और काठी की श्रेष्ठता के पीछे बहुत कुछ आनुवंशिक आधार होता है | पर सभ्यता के सहस्त्रों वर्षों में इस आनुवंशिक विरासत को भी पर्यावरणीय प्रभाव और लालन -पालन के द्वारा काफी कुछ वशीभूत कर दिया गया है | बुद्धि की श्रेष्ठता के पीछे थोड़ा बहुत आनुवांशिक प्रभाव तो दिखायी अवश्य पड़ता है पर विकास के लम्बे दौर नें चिन्तन और सूझ -बूझ की क्षमता आनुवंशकीय से अलग होकर एक नया भौगोलीय और पार्थिव विस्तार पा गयी है | अब अगर भारत में विज्ञान के क्षेत्र में मुसलमानी शासन के एक हजार वर्ष में कोई ठोस उपलब्धि नहीं हो सकी तो इसके पीछे बहुत कुछ शासकीय और सामाजिक व्यवस्था का दम घोंटू आल -जाल ही था | ब्रिटिश शासन के अन्तिम अर्धशताब्दी में मुक्त वायु के संचार से भारतीय वैज्ञानिक चेतना का अभ्युदय हुआ और अब हम अपनी कई वैज्ञानिक उपलब्धियों पर गर्व करनें का सुअवसर पा सके हैं | संचार प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में हमनें अभूतपूर्व उन्नति की है | सैम पितरोधा ,नन्दन नीलकेणीं ,नारायण मूर्ति और माधवन नैय्यर जैसे बहुत से जानें मानें नाम अन्तरराष्ट्रीय ख्याति पा सके हैं | वैज्ञानिक ऊंचाइयों का यह सिलसिला भारत में अभी अपनी प्रारम्भिक अवस्था में है | पर यदि सही दिशा- निर्देश मिलता रहा तो भारतीय प्रतिभा विश्व के वैज्ञानिक आभामण्डल का गलहार बन जायेगी | 1990 के बाद समाजवादी और मिश्रित अर्थव्यवस्था के स्थान पर मुक्त अर्थव्यवस्था का तो ताना -बाना नरसिम्हा राव से शुरू होकर मनमोहन सिंह तक चला उसनें भारत के कारपोरेट क्षितिज पर नये -नये सितारे उगा दिये थे | अर्थशास्त्री आंकड़ों के बल पर यह सिद्ध कर चुके हैं और  Forbas जैसी मैगजीन भी इसे साबित कर चुकी है  कि भारत के  आज 55 -60 के करीब खरबपती हैं और इनमें से कई तो विश्व के दस सर्वश्रेष्ठ खरबपतियों में स्थापित स्थान पा चुके हैं | औरों से आगे बढ़कर श्रेष्ठता और ज्येष्ठता का अधिकार पाना ही वह मूल प्रवृत्ति है जिसके दबाव में इतनी विस्मयकारी उपलब्धियां हासिल की जा सकती हैं सच्ची प्रतिस्पर्धा के द्वारा ही भविष्य की प्रगति सुनिश्चित की जा सकती है | ओलम्पिक गोल्ड मैडल प्राप्त करने वाले अभिनव बिन्द्रा का यह कथन कितना सटीक है कि पहले का गौरव इतिहास की वस्तु होती है | उस गौरव को स्थायी बनानें के लिये निरन्तर गतिमान रहना होता है और यह गतिमयता पुरानी पीढ़ी से नयी पीढ़ी तक और अधिक  सबल होकर पहुंचानी चाहिये | कई क्षेत्रों में भारत नें उल्लेखनीय सफलता हासिल की है पर कल के विश्व के न ० एक टेनिस खिलाड़ी राबर्ट फेडरल उस समय न ० 2 पर हो गये जब स्पेन के रैफल नाडल नें उनसे एक की वरीयता छीन ली और अब स्वयं रैफल नाडल न ० 2 पर खिसक गये हैं क्योंकि नवोक जोकोविक ने उन्हें पीछे ढकेल कर वरीयता हासिल कर ली थी | गुप्त काल का भारत अपनें स्वर्ण युग के गौरव पर आज के विश्व का सिर मौर नहीं बन सकता , हमें सिर्फ यह पढ़कर खुश नहीं होना चाहिये कि 2020 तक भारत विश्व की सबसे बड़ी तीसरी आर्थिक शक्ति बन जायेगा  | हमें भूलना नहीं है कि पिछले  महीनों में हमारी आर्थिक प्रगति लुढ़क कर 6 फीसदी पर आ गयी थी | नौ और दस फीसदी का लक्ष्य कहीं एक सुनहरा स्वप्न बनकर न रह जाये |
                                भारत की तरुणायी के आगे फिसलन का एक और सुनहरा मार्ग दिखाई पड़ने लगा है | महा नगरों और बड़े नगरों के आस -पास के कृषि कारों की जमीनें महंगायी की आसमानी ऊंचाइयों पर पहुँच चुकी हैं | इन कृषक घरों के तरुण अचानक पाये पैसों की भरमार से पथभ्रष्ट होते दिखायी पड़ रहे हैं | BMW और आडी जैसी बड़ी गाड़ियों में घूमकर इन्हें नाइट क्लब और Pub में मौज मस्ती का जनून सवार हो गया है | उच्च शिक्षा के अभाव में अपनीं रंगरैली के लिये यह आधुनिक लगनें वाली नारी शक्ति को अमर्यादित भी करनें लगे हैं | 'माटी ' का सम्पादक इन अवांक्षित तत्वों को पथ भ्रष्ट होनें से बचाकर वांछित तरुण समुदाय का एक सशक्त भाग बनाना चाहता है | बड़ी गाड़ियों में बैठकर ,डिजाइनर ड्रेस पहनकर ,कीमती नाइट पार्टियां अरेन्ज कर या पब में हल्ला -गुल्ला मचाकर अपनी श्रेष्ठता जाहिर करना भारतीय जीवन का प्रशंसनीय भाग नहीं बन सकता | सयंम की गरिमा और छिछले प्रदर्शन पर आत्मनुशासन की लगाम तथा परहित तत्पर जीवन ही भारतीय अस्मिता को शिरोधार्य रहा है | विश्वास है कि 'माटी ' से सम्बन्धित तरुणायी अपनें गौरव पथ से कभी विचलित नहीं होगी |

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