Monday, 25 December 2017

                         2018 में भारत की स्वतन्त्रता के 70 वर्ष पूरे होनें जा रहे हैं | मनुष्य के जीवन के 70 वर्ष उसे बुढ़ापे की दहलीज में ढकेल देते हैं | किसी राष्ट्र के लिये भी 70 वर्षों में समृद्धि और परिपक्वता की कुछ मंजिलें अवश्य तय कर लेनी चाहिये | हमें देखना होगा कि क्या भारत वर्ष नें प्रगति की दिशा में कुछ उल्लेखनीय हासिल किया है ? अगर हम दक्षिण एशिया की बात करें तो इतना तो मानना ही होगा कि हमारे देश में जनतन्त्र की जड़ें काफी गहरायी तक जा चुकी हैं | दक्षिण एशिया के हमारे पड़ोसी देशों में जनता द्वारा चुनी गयी सरकारेँ या तो हैं ही नहीं या अधिक टिकाऊ साबित नहीं हो सकी हैं | पाकिस्तान ,बंगलादेश , लंका ,नेपाल ,वर्मा सभी में आन्तरिक अव्यवस्था चल रही है और अधिकतर फ़ौजी शासकों द्वारा उनका संचालन हो रहा है | भारत में छोटे -मोटे संघर्षों को छोड़कर यह कहा जा सकता है कि केन्द्रीय सत्ता जनता की इच्छा पर चुनकर आती -जाती रहती है | यह दूसरी बात है कि जनतान्त्रिक प्रणाली की अपनी कुछ कमियां हैं | और भारत जैसे विविधता  भरे देश में कई बार उचित फैसले भी विरोध के घेरे में फंस जाते हैं | पर इतना तो मानना ही पड़ेगा कि हिन्दुस्तान चुनाव की शुद्धता और निष्पक्षता के मामले में दुनिया की आँखों में प्रशंसा का पात्र बना है | यह हिन्दुस्तान की एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है | एशिया में, मध्य एशिया के देशों में भी अस्थिरता का बोलबाला है और ऐसा लगता है कि विश्व की बड़ी शक्तियां तेल प्राप्ति के होड़ में वहां अस्थिरता को बढ़ावा देती ही रहेंगीं | दक्षिण पूर्व एशिया में निश्चय ही काफी प्रगति हुयी है | जापान और चीन तो विश्व की आर्थिक व्यवस्था में शीर्ष स्थानों पर पहुँचनें की तैय्यारी कर ही रहे हैं | भारत का मुकाबला दक्षिण पूर्व एशिया के देशों से किया जाना चाहिये | अपनी आबादी और क्षेत्र विस्तार के कारण भारत चीन का प्रतिद्वन्दी बनकर उभर सकता है | यह प्रतिद्वन्दिता वैमनस्य पर आधारित नहीं होगी | बल्कि एक मित्रता पूर्ण मुकाबले के रूप में चलानी पड़ेगी | चीन और भारत आज सारे संसार में महान आर्थिक शक्तियों के रूप में उभर रहे हैं | भारत की आर्थिक सफलता इसलिये और भी अधिक प्रशंसनीय है क्योंकि यह जनतान्त्रिक व्यवस्था के माध्यम से पायी गयी है | चीन में अब भी परिशोधित साम्यवाद चल रहा है जिसमें भय और दबाव भी एक शक्तिशाली घटक के रूप में काम करते हैं | पिछले 20 -25 वर्षों में भारत नें सूचना प्रद्योगकीय में अभूतपूर्व प्रगति की है | सच कहा जाय तो यह मानना ही पड़ेगा कि अमेरिका की सिलीकॉन वैली की सफलता बहुत कुछ भारत से गये हुये विशेषज्ञों के कारण संम्भव हो पायी है |भारत के पास दूसरी सबसे बड़ी ताकत है अंग्रेजी भाषा पर उसका असाधारण अधिकार | इस मामले में वह चीन से काफी आगे है | चीन पूरी कोशिश में लगा है कि वहां की नयी पीढ़ी अंग्रेजी में पूरी पकड़ हासिल कर ले पर अभी काफी लम्बे समय तक भारत इस दौड़ में आगे रहेगा | संसार व्यापी मुक्त व्यापार के चलते बी ० पी ० ओ ० के क्षेत्र में भारत के प्रतिभाशील तरुण ,तरुणियों के लिये काफी सुनहरे अवसर उपलब्ध हैं | भारतीय मूल के लक्ष्मी मित्तल विश्व के सबसे बड़े उद्योगपतियों में हैं अम्बानी बन्धु कई बार बिल गेट्स को पछाड़ दे चुके हैं और रतन टाटा की लखटकिया कार नें भी विश्व को चमत्कृत कर दिया है | निश्चय ही यह भारत की महान उपलब्धियां हैं और इस द्रष्टि से आजादी के सत्तर वर्ष सार्थक मानें जानें चाहिये |
                         पर सबसे बड़ा प्रश्न यह है ' प्रगति  ' शब्द का सच्चा अर्थ क्या है ?
अगर प्रगति का अर्थ मानव जीवन को खुशी से भरना है तो हमें यह देखना होगा कि जीवन की खुशी कहीं कुछ चांदी और संगमरमर से महलों में बन्द तो नहीं होती जा रही है | एक अरब दस करोड़ के इस देश में एक या दो करोड़ उच्च वर्ग और तीस करोड़ मध्य वर्ग को छोड़कर सत्तर या पचहत्तर करोड़ के आस -पास जीवन की जो सुविधायें हैं ,उन्हें सन्तोषजनक नहीं कहा जा सकता | सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग तीस करोड़ लोग तो ऐसे हैं जिन्हें न तो सम्पुष्ट भोजन मिल पाता है न सर्दी से बचनें के लिये उचित पहरावन या बिछावन | इन बातों को देखते हुये यह माना जाना चाहिये कि पिछले सत्तर वर्षों के दौरान हमनें कुछ ऐसी गल्तियाँ की हैं जिनसे प्रगति का लाभ उन तबकों तक नहीं पहुँच सका है जहां इसको पहुँचना चाहिये था | गांधी जी का आजाद भारत का स्वप्न आज भी एक स्वप्न ही है और उसे हम वास्तविकता में नहीं बदल सके हैं | महान राजीव गांधी कहते थे कि केन्द्र सरकार द्वारा सामान्य जन के लिये देनें वाला एक रुपया केवल सत्रह पैसे बनकर ही सामान्य जनता तक पहुँच पाता है | अब तो तरुण सांसद राहुल गांधी यहां तक कहनें लग गये हैं कि उत्तर प्रदेश में एक रुपया केवल पांच पैसा बनकर ही सामान्य जन तक पहुँच रहा है | भ्रष्टाचार के इस विशाल दानव की भूख कितनी अपार है  कोई नहीं जानता ,सुरसा के मुख की तरह भ्रष्टाचार का क्षेत्र बढ़ता ही जा रहा है और देश का कोई नेतृत्व इसे सिकोड़ने में समर्थ होता नहीं दिखायी देता | इस द्रष्टि से यदि देखा जाय तो आजादी के सत्तर वर्ष असफलता की एक अटूट कड़ी के रूप में दिखायी पड़ेंगें |
                     बड़े गर्व के साथ यह बात कही जाती है कि भारत एक धर्म प्राण देश है | वेदों से लिये हुये कितनें ही संस्कृत वाक्य इस बात को बतानें के लिये दोहराये जाते हैं | हर छोटे बड़े शहरों में शनिदेव ,बालाजी ,दुर्गा देवी या भैरव नाथ का गुणगान करनें वाली मण्डलियां हैं | मन्दिरों और गुरुद्वारों में माथा टेकनें वालों का तांता लगा ही रहता है | मस्जिदों में भी अजानें गूंजती ही रहती हैं | पर इस सबके बावजूद आचरण के क्षेत्र में ढाक के वही तीन पात | सरकारी नौकरियाँ बिक रही हैं | कुछ विभागों की नौकरियाँ बहुत बड़ी कीमत देकर खरीदी जाती हैं क्योंकि इन विभागों में बेईमानी की कमाई धड़ल्ले से की जा सकती है | इन बातों को कहनें का सिर्फ यही अर्थ है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद पनपनें वाली नयी पीढ़ियां प्रगति को केवल इन्द्रिय विलास के साधनों को जुटानें का पर्याय मानती हैं | वे प्रगति को आन्तरिक शुद्धता ,आचरण की पवित्रता और जीवन मूल्यों की उच्चता से नहीं जोड़ पायी हैं | यह कितना आश्चर्य है कि दूसरों को जीवन देनें वाला डाक्टर व्यभिचारी बनकर स्वयं अपनी पत्नी को काट -काट कर सीवर के मार्ग से बहा दे | यह कितनें आश्चर्य की बात है कि विशप काटन पब्लिक स्कूल का पढ़ा हुआ धनिक शरीर भोगनें के बाद नर मांस खानें की राक्षसी आदत का शिकार बन जाय | यह कितनें आश्चर्य की बात है कि स्वतन्त्र भारत का विद्यार्थी गुरुहन्ता बनकर राजनीति की दीक्षा में पारंगत होनें का स्वप्न पाले | जाहिर है कि हमें इन सब पर बड़ी गहरायी से सोचना होगा और प्रगति को सड़क ,पानी और बिजली के साथ -साथ आत्मज्ञान ,चरित्र बल और पर सेवा से भी जोड़ना होगा | आज का संसार अब वह संसार नहीं रहा है जो आजादी की प्राप्ति के समय था | अब हम चाँद और मंगल के पार अन्य आकाश गंगाओं की ओर बढ़ रहे हैं |
                                              अब हम हिन्दू , मुसलमान , सिक्ख ,ईसाई , पारसी , यहूदी होकर भी सबसे पहले एक इन्सान हैं | एक ऐसा इन्सान जिसे प्रदेश , प्रान्त और राष्ट्र के ऊपर उठकर विश्व द्रष्टि से अपनें को देखना है | एक ऐसा इन्सान जिसे अन्तरिक्ष यान से इस धरती को मात्र एक घूमते हुये पिण्ड के आकार के रूप में देखना है जिसका अन्तरिक्ष की असीमता में सुई की नोक के बराबर भी अस्तित्व नहीं है | हमें धर्म की संकीर्ण परिभाषा से उठकर गांधी जी की उस परिभाषा को चरितार्थ करना है जहां हम हिन्दू होकर भी मुसलमान हैं ,पारसी हैं , सिक्ख हैं , यहूदी हैं अर्थात हम सच्चे इन्सान हैं | धर्मों  में जहां कहीं भी विरोधी तत्व हैं उन्हें हमें हटाकर समानता और विश्व मानवता के अनुकूल तत्वों को समाहित करना होगा | ये काम नयी शिक्षा प्रणाली और समर्पित शिक्षा गुरुओं द्वारा किया जा सकता है | कहना न चाह कर भी यह कहना पड़ता है  भारत की आजादी के बाद जैसे -जैसे पुराना नेतृत्व हमारे बीच से उठता गया वैसे -वैसे नया उठनें वाला नेतृत्व घटिया साबित होता गया | अब राष्ट्र व्यापी पवित्रता ,उज्ज्वलता ,उदारता और ज्ञान विशालता वाला नेतृत्व कहीं देखनें को नहीं मिल रहा है | यह एक कड़ुवा सत्य है जिसे कहनें , लिखनें में मुझे कोई संकोच नहीं हो रहा है पर ' माटी ' का संपादक मण्डल यह मानता है कि मानव का भविष्य अन्धकार पूर्ण नहीं है | अतीत में भारत नें अपनें समय के विश्वज्ञान के सन्दर्भ में संसार को मार्ग दिखाया था | कालान्तर में वह दौड़ में कुछ पिछड़ गया | ऐसा स्वाभाविक भी था क्योंकि बहुत दिनों तक बहुत तेज गति से धावित रहनें के बाद कुछ थकन आनी आवश्यक होती है | अब ऊर्जा की एक नयी लहर भारत की रग -रग में फिर से दौड़ने लगी है और हमें विश्वास हो उठा है कि भारतीय प्रतिभा आदर्श के नये प्रतिमान स्थापित करनें में सफल हो सकेगी | आवश्यकता है न केवल सामूहिक प्रयासों की बल्कि व्यक्ति केन्द्रित प्रयासों की भी | यह आशा करना कि हम आचरण की शुद्धता तभी ग्रहण करेंगें जब ऊपर का नेतृत्व साफ़ -सुथरा हो केवल छलना है | अपनें को धोखा देना आत्महत्या करना ही कहा जा सकता है | हमें अपनें स्तर पर ईमानदार ,सजग और सतर्क होना है | हमें पाप की कमाई पर थूक देनें की हिम्मत जगानी है | भ्रष्टाचार को मिटानें के लिये हमें राम प्रसाद बिस्मिल के उस शहीदी गीत की स्मृति फिर से जगानी है , "सिर बांधें कफनवा रे शहीदों की टोली निकली | "
                                     ' माटी  ' आपको आकाश  कुसुमों का स्वप्न नहीं दिखाती | वह आपको मटमैले खेतों ,खलिहानों के धूमिल राहों में ले चलनें की पुकार लेकर आयी है | हाँ , इतनी स्वतन्त्रता आपको अवश्य है कि आप अपनें व्यक्तित्व के करिश्मा से मन के उज्ज्वल ,पर वस्त्र मलिन गाँव और गलियों के परिवेश को बदलकर बाहर और भीतर दोनों से उज्ज्वल कर दें | ' माटी  ' को प्राकृतिक पोषक तत्वों और जल पूर्ति  से शशक्त बनाये रखनें से नयी सम्पुष्ट फसलों को उगानें में उल्लेखनीय सफलता मिल सकेगी | आइये हम सब इस जोखिम भरे पथ पर हमसफ़र बनें |

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