Sunday, 29 October 2017

                                        आलोक वृत्त 
वृत्त यह आलोक का तुमको समर्पित
तुम दियो ,मैं दीप्ति का दर्शक
तुम्हारे अनुगतों की पंक्ति का सीमान्त बन कर ही सहज हूँ |
कोण की निरपेक्षता से मैं सहज ही देख लूंगा
रूप अन्तस का तुम्हारे
जो प्रभा के पुंज से मण्डित सभी को
कौंधता है -किन्तु जो व्यक्तित्व से
निः सृत न होकर आवरण है
और तुमको -हाँ तुम्हीं को
बोझ बनकर रौंदता है |
शीघ्र ही -विश्वास मुझको -चेतना
तुमको झटक कर त्रास देगी |
और आरोपित प्रभा का पुंज विषधर सा
उठा फन यदि गरल का डंक मारे
तो उठाकर द्रष्टि अपनें अनुगतों की
पंक्ति के अन्तिम सिरे पर देख लेना
मैं अहं की भष्म का शीतल प्रलोपन
दे तुम्हें विष -मुक्ति दूंगा
और फिर से पंक्ति के अन्तिम सिरे पर जा
प्रतीक्षा -रत रहूँगा -कब स्वयं दो डग
उठा तुम पास मेरे आ सकोगी |



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