Friday 6 October 2017

                                                                 ताऊ की पराजय

             ताऊ मुरलीधर और ताई रुक्मणी देवी की भी अपनी तरह की जिन्दगी जीनें की एक निराली कहानी है | अस्सी वर्ष के मुरलीधर जी 20 वर्ष पहले बिजली महकमें से एस ० डी  ० ओ ० के पद से सेवानिवृत्त हुये थे | ताई रुक्मणी भी इनसे 2 -3  वर्ष छोटी रही होंगीं  और अब कमर झुक जानें पर भी घर  के काम -काज में कुछ न कुछ करने के बिना चैन से नहीं बैठ पातीं | दरअसल उनके चारो बच्चे अब शादी के बाद अपने भरे -पुरे परिवारों को लेकर देश के अलग -अलग शहरों में अच्छे कामों में लगे हुये हैं | ताऊ और ताई अपने पुराने मकान में उल्टा -सीधा जीवन -यापन कर रहे हैं | घर के काम -काज में थोड़ी -बहुत मदद काम करने वालियों के द्वारा मिल जाती है | ताऊ को अच्छी -खासी पेन्शन मिलती है और कोई आर्थिक परेशानी नहीं है | पर हाँ गाँठ के जोड़ों का दर्द उन्हें बहुत तंग करता है खासकर भद्दर सर्दी के दिनों में आस -पास के पड़ोसी रोज सलाह देते हैं कि वे दोनों अपनें किसी बच्चे के पास चले जांय
 अब बहुत बूढ़े हो गये हैं | ताऊ और ताई सुनी -अनसुनी कर देते हैं | हो सकता है वे अपनी आजाद जिन्दगी के इतनें आदी हो गये हों कि बुढ़ापे की मजबूरी के बावजूद उन्हें अपनी आजादी खोना अच्छा नहीं लगता यह भी हो सकता है कि उन्होंने मन में यह ठान लिया हो कि अब वहीं जायेंगें जहां से फिर कभी लौटकर आना न पड़े | जो हो ताऊ और ताई की जोड़ी अपनें घोर बुढ़ापे में भी कभी लड़ती -झगड़ती दिखायी नहीं पड़ती | ताई घर के काम -काज के बाद सारा दिन दरवाजे पर मचिया डाले बैठी रहती है | दरवाजों की बात इसलिये कही गयी है कि उनके घर में अगले और  पिछले दो दरवाजे हैं | ताई कभी अगले दरवाजे पर बैठी दिखायीपड़ेगी तो कभी पिछले दरवाजे पर | दोनों तरफ सड़कें हैं | सड़क से  गुजरनें वाली हर स्त्री से ताई की राम -राम होती रहती है और सुख -दुःख ,सब्जी का भाव , और मंहगाई का रोना -धोना चलता रहता है | ताऊ ऊपर की छत पर या गैलरी में चक्कर लगाते रहते हैं | थक गये तो अखबार के पन्ने पलट लिये | बड़ी हिम्मत की तो बिजली या टेलीफोन का बिल देने दफ्तरों तक चले जाते हैं | पर अब पिछले कुछ दिनों से ताऊ और ताई में कुछ खटपट सुनायी पड़ने लगी है | बात मामूली सी है पर बात के मामूलीपन में भी पुरुष और नारी के व्यक्तित्व की टकराहट सुनायी पड़ने लगी है |
                                आप सब जानते हैं कि इन दिनों हिन्दुस्तान में जिन तीन चीजों पर सबसे अधिक चर्चा होती है वे हैं क्रिकेट ,फिल्म और चुनावी राजनीति | अब ताऊ मुरलीधर और ताई रुक्मणी को तो फिल्म देखे ज़माना बीत गया  सो इस विषय में कोई झगड़े का सवाल ही नहीं ,चुनावी राजनीति से ताऊ जी को कोई प्रयोजन नहीं क्योंकि उनकी पेन्शन तो चलनी ही है | वे सिर्फ चाहते हैं कि कोई ऐसी सरकार आ जाये जो उनसे हर साल जिन्दा रहनें का सार्टिफिकेट न मांगें | जब मर जायेंगें तब ताई को सार्टिफिकेट  देनी ही होगी | अब रह गयी क्रिकेट की बात तो इस पर भी ताऊ को कोई विशेषज्ञ होनें का दंम्भ नहीं है | हाँ उन्हें कभी -कभी ऐसा जरूर लगता है कि उनका सौभाग्य है कि उनके देश में महात्मा गांधी जैसा महापुरुष पैदा हुआ था और अब अखबार वाले किसी महाशतक मारने वाले सचिन तेन्दुलकर को हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा सपूत मानते हैं | पर ताऊ और ताई की सोच से तो दुनिया नहीं चलती | इम्तिहान के बाद अप्रैल के महीनें में स्कूल बंद और निट्ठल्ले बच्चों को क्रिकेट खेलनें के लिये खुली जगह की जरूरत | अब गली -कूंचों के सभी बच्चे क्रिकेट स्टेडियम में तो जाकर खेल नहीं सकते | उन्हें तो घर के आस -पास की सड़कों पर ईंटें लगाकर बैट  और बल्ला खेलनें का नशा चढ़ता है | क्रिकेट मैचों का तो यह हाल है कि टी ० वी ० पर कोई न कोई मैच चलता ही रहता है और कमेन्ट्री करने वाले चौके और छक्के पर इतनी जोर चिल्लाते हैं कि अर्ध -बहरों का भी दिमाग बौखला जाये | अब स्कूली बच्चे ऐसी कमेन्ट्री सुनकर जोश से भर जाते हैं और सड़कों पर चौका और छक्का लगानें लगते हैं | ताई रुक्मणी देवी के अगले दरवाजे पर भी तीस फुटा सड़क है और पिछले दरवाजे पर भी इसी प्रकार की सीधी सड़क , जब आगे की सड़क पर बच्चों की धमा -चौकड़ी चलती है तो वे दरवाजा बन्द कर पिछले दरवाजे पर जाकर बैठती हैं | पर हिन्दुस्तान में खासकर निम्न -मध्यवर्ग में और सभी चीजों का अभाव है पर बच्चों का अभाव नहीं है | जब स्कूल बन्द हों तो फिर कोई सड़क क्रिकेट खेलनें का सुअवसर क्यों न पायें | अब ताई की दोनों ओर की सड़कों पर चौके और छक्के लगने लगे हैं और शोरगुल्ल और भागदौड़ में कामकाज के लिये निकलती घर की स्त्रियों के लिये भी बाधा पहुंचने लगी है | ताई का मूड खराब हो जाता है | पर क्या करें बच्चे मानते ही नहीं और कुछ शरारती बच्चे तो यह तक कहते सुनें जाते हैं कि बुढ़िया की बक -बक से हम सहवाग और विराट कोहली बनने से कैसे रह जांयें ? हमें तो चौका और छक्का मारना ही है | ज्यादा शोरगुल होनें पर ताई दोनों ओर के दरवाजे बन्द कर अन्दर कमरे में लेट जाती हैं | अप्रैल की तेज धूप अन्दर कमरे में कुछ असहनीय बन जाती है | दोनों तरफ की सड़कों से आने वाला हल्ला -गुल्ला उन्हें कुछ गुस्सा जरूर देता है | आस -पास पड़ोस के बच्चे सड़कों पर अपना हक़ तो रखते ही हैं | जब तक सड़क पर गेंद की दौड़ लगती रही तब तक बच्चे ताई की परवाह नहीं करते रहे पर जब उदीयमान महान बल्लेबाजों ने चौके और छक्के दागने शुरू किये तब बच्चों को ताई की ताकत का अन्दाजा होनें लगा | अब कट लगाकर बगल में उछाला गया गेन्द चहारदीवारी के अन्दर आ गया | पहले एक दो दिन  ऊपर छज्जे में बैठे ताऊ ने बच्चों को दरवाजा खोलकर गेन्द उठा ले जानें दिया पर जब आगे और पीछे से भी गेंदों के चहरदीवारी प्रवेश के आक्रमण शुरू हुये तो वे तंग आकर अपने कमरे में लेट गये | अब जब बच्चों ने बिना आज्ञां पाये दरवाजा खोलकर चहरदीवारी के अन्दर आकर गेंद उठाने की कोशिश की तो उन्हें ताई की ताकत का अन्दाज लगा | ताई रुक्मणी बन्द दरवाजे के पीछे कुर्सी डालकर अपना बेंत लेकर बैठ गयीं | पीछे के दरवाजे पर उन्होंने ताला लगा दिया | कुछ लड़के दरवाजे से ऊपर झांककर ताई से गेंद देनें की बात करने लगे तो उन्होंने चिल्लाकर कहा कि अपनें दादा -दादी को बुला लावें | वे किसी की नौकर नहीं हैं अपने घरों में खेल खेलें या स्कूल के मैंदानों में जांये | हिन्दुस्तान की सरकार इतना पैसा स्कूलों पर खर्च कर रही है और सभी स्कूलों में खेल के मैदान बनाये गये हैं फिर सड़कों पर धमा -चौकड़ी मचाने का क्या मतलब | बहुत कहनें -सुननें पर एक -दो बार ताई ने बच्चों को अन्दर बुलाकर गेंद उठवा देनें दिया | ऐसा इसलिये हुआ कि ताऊ मुरलीधर ने ऊपर से बच्चों की सिफारिश की और ताई को अपना हठ छोड़ना पड़ा | पर ताई रुक्मणी देवी भी हिन्दी का अखबार पढ़ लेती थीं और उन्हें पता था कि आज के आजाद भारत में पति और पत्नी को बराबर का अधिकार है और पति की हर बात को मान लेनें की मजबूरी नहीं है | उन्होनें मन ही मन तय  किया कि इन उपद्रवी बच्चों को ठीक करनें का कोई उपाय निकालना ही होगा | दो बच्चे जिनमें एक का नाम पोंटा और दूसरे का नाम टप्पू था ताई को कतई भाते ही नहीं थे | ऐसा इसलिये था कि उन दोनों को उन्होंने यह कहते सुना था कि घड़ी की टक -टक और बुढ़िया की बक -बक तो चलती ही रहती है | पर सवाल था कि ताऊ मुरलीधर भी बच्चों का पक्ष ले रहे थे तो कोई कारगर उपाय सोचा जाय | और फिर इतवार की उस सुबह करीब नौ बजे दिन में वह  मौक़ा हाँथ में लग गया | नाश्ता करने के बाद वह पीछे मचिया पर अखबार हाँथ में लिये ममता बनर्जी का फोटो देख रही थीं | मन ही मन खुश हो रही थीं कि ममता जी ने दिनेश त्रिवेदी को सीधा कर दिया | इसी समय चहरदीवारी को फांदता हुआ एक गेंद उनके पैरों के पास आ गिरा | खुदा का शुक्र था कि वह गेंद उनके पैरों के पास गिरा ,सिर पर नहीं पर शरीर तो एक ही है | पैरों के पास गिरा गेंद सिर पर भी तो गिर सकता था | बच्चे दरवाजे पर खट -खट  करने लगे | ऊपर से ताऊ ने देखकर पूछा क्या है ? बच्चों ने अन्दर गेंद आने की बात कही | सबसे आगे पोंटा और टप्पू खड़े थे | ताऊ ने ताई से कहा कि वे दरवाजा खोलकर बच्चों को गेंद उठा लेनें दें , ताई बिगड़ गयीं बोलीं मेरे सिर में गेंद लगा है | गुलमां पड़ गया है | कितना दर्द हो रहा है | आज गेंद कतई नहीं दूंगीं | हमें अपनें घर में भी अपनी मर्जी से जीने का हक़ नहीं है | ताऊ ने बच्चों के प्रति कुछ सहानुभूति दिखाने की बात कही | तो ताई बिगड़ गयीं कि एक तुम्हीं हो जो दुनिया भर में सहानुभूति दिखाया करते हो मैं क्या बच्चों की मां नहीं हूँ | बच्चे जब बच्चों जैसा व्यवहार करते हैं तभी उन्हें प्यार किया जाता है | पोंटा ,टप्पू की मण्डली तो शैतान मण्डली है इनसे तो भगवान ही बचायें | अब ताऊ क्या करते , हार मानकर ऊपर अपने कमरे में जा बैठे | बच्चों का आख़िरी दांव भी खाली चला गया | ताऊ की सिफारिश नहीं चली | बच्चों ने अब एक नयी तरकीब सोची | एक गेंद गया तो गया ,एक दूसरा नया गेंद लाया जाय | पोंटा कहीं से एक नया गेंद उड़ा लाया था | वह उसे ले आया और फिर चौके -छक्के शुरू हो गये | पर नये गेंद की जवानी घिसे -पिटे गेंद के बुढ़ापे से ज्यादा मनचली थी और लगभग 10 मिनट बाद बाल के एक कट ने उसे ऐसी उछाल दी कि चहरदीवारी फांद कर ताई के पैर छूने लगा | अब यह ब्रम्हास्त्र भी खाली चला गया | | पूरी क्रिकेट मण्डली पर उदासी की चादर दौड़ गयी, ऊपर से ताऊ ने झांककर देखा पर हिम्मत नहीं हुयी कि ताई से कुछ कहें | 8 -10  बच्चे दरवाजे के पास सिर झुकाये खड़े थे | ठीक इसी समय सड़क पर से ताई की हम उम्र सहेली रामप्यारी अपने छह -सात साल के पोते को अपने साथ लिये हुये ताई से मिलने के लिये दरवाजे पर आ गयी | दरअसल रामप्यारी इसी मुहल्ले में पांच -सात घरों के बाद रहती थीं | वे  अक्सर अपनी बहुओं का दुखड़ा रोनें के लिये ताई के पास आ जाया करती थीं | ताई की अपनी बहुयें उनसे दूर रह रहीं थीं पर वे जानती थीं कि सभी जगह बहुओं के दुखड़ों की कहानी मिलती -जुलती रहती है |
                                 दरवाजे पर सिर झुकाये चुप -चाप बच्चों को देखकर रामप्यारी ने कारण जानना चाहा | बच्चों ने फुस-फुसकर  करके सारी बात बतायी | पोंटा और टप्पू रामप्यारी को ताई कहते थे और उनके पैर छूते थे | रामप्यारी जान गयी कि पोंटा और टप्पू की शरारत ने रुक्मणी बहन को नाराज कर दिया है वरना उनका दिल तो चन्दन की तरह साफ़ और पवित्र है | वह तो सभी बच्चों को प्यार करती हैं | पर क्या किया जाये | कई बार मातायें और दादियां अपनें निजी बच्चों की शरारत से भी तंग आ जाती हैं | रामप्यारी ने चुपके पोंटा और टप्पू को कुछ समझाया और कहा जब वह दरवाजा खट -ख़ट  करके खुलवायेंगीं तो वे दोनों वैसा ही करें जैसा कि उसने कहा है | और हुआ भी ऐसा ही | रामप्यारी ने जब ख़ट -ख़ट  की तो रुक्मणी ताई ने जानना चाहा कि कौन है ? दीदी मैं हूँ रामप्यारी | रुक्मणी ताई ने उठकर दरवाजा खोला | रामप्यारी अन्दर आयीं और उनके पीछे -पीछे पोंटा और टप्पू ,वे दोनों रुक्मणी ताई के पैरों पर लेट गये ,बोले ताई हमें माफ़ कर दो | हमसे गल्ती हो गयी | हमारी अम्मा और बड़ी अम्मा ने आपकी इतनी तारीफ़ की कि हमें अपनी गल्ती का अन्दाजा हो गया है | हम सब आपके पोते हैं ,अब हम कभी यहां क्रिकेट नहीं खेलेंगें | सामनें जहां यह कूड़ा पड़ता है ,वहां खेल का जुगाड़ करेंगें |
                            न जानें क्या जादू हो गया ताई रुक्मणी ने उन दोनों के सिर पर प्यार का हाँथ फेरा ,बोली लो -लो अपनी दोनों गेंदें ले जाओ | क्यों नहीं खेलोगे यहां ? अपने बच्चे अपनी सड़क पर नहीं खेलेंगें तो कहाँ खेलेंगें ? रामप्यारी ने ताई रुक्मणी को जिन्हें वे अपनी बड़ी बहन  मानती थीं ,पैरों में हाँथ लगाकर आदर दिया | बोलीं दिल हो तो ऐसा हो | तभी तो सारे मुहल्ले में रुक्मणी ताई की वाहवाही होती रहती है | ऊपर के छज्जे से ताऊ मुरलीधर नें झाँक कर देखा | ताई रुक्मणी ने उनकी तरफ विजय भरी द्रष्टि डाली | ताऊ को पहली बार अपनी पराजय में भी विजय का आभाष मिला | 

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