Friday 6 October 2017

                       विज्ञान और टेक्नालॉजी अपनें में विकास की अपार संम्भावनायें छिपाये है | पिछले डेढ़ -दो दशक में संसार नें जितना परिवर्तन देखा है उतना पिछली कई शताब्दियों में भी संम्भव नहीं हो पाया था | जब औद्योगिक क्रान्ति अपनें चरम पर पहुँच चुकी थी तब ऐसा लग रहा था कि मध्य युगीन व्यवस्था बहुत कुछ आदिम सभ्यता का ही प्रतिरूप है | पर आज सूचना प्रद्योगकीय ,कम्प्यूटरीकरण और अन्तरिक्ष प्रसार पद्धतियों में औद्योगिक क्रान्ति को आदिम सभ्यता के विकास के एक छोटी मन्जिल के रूप में ही प्रस्तुत करना प्रारम्भ कर दिया है | बहुविध्य पाठकों को यह बतानें की आवश्यकता ' माटी ' नहीं समझती कि आनें वाले वर्षों में कागज़ का प्रयोग नाम -मात्र का  ही रह जायेगा | इलेक्ट्रानिक मीडिया ही विश्व सम्पर्क का सबसे सशक्त प्रचार साधन बनकर उभर चुका है | पर कागज़ पर लिखे शब्द हों या स्वचालित पर्दे पर उभरे ट्वीट -ब्लॉग ,ट्वीटर या प्रशासनिक प्रचार तथा सांख्यकीय गणनायें , सबमें शब्द और अंक के महत्व को पूरी महत्ता के साथ स्वीकार ही करना पड़ेगा | चिन्तन का मूर्त रूप शब्द या सांकेतिक शब्द चिन्हों के द्वारा ही संभ्भव है | और इस लिये सम्प्रेषण का प्रकार बदल जानें पर भी सम्प्रेषण की अनिवार्यता या महत्ता कभी कम नहीं हो सकती | गहन चिन्तन और गहन भावानुभूति के सम्राटों को तकनीकी नवीनतायें कुछ देर के लिये भ्रमित भले ही कर दें पर उनके पास जो अक्षय कोष है उसकी भागीदारी के बिना मानवता के उज्वल भविष्य की कल्पना ही नहीं की जा सकती | विज्ञान ने भी इधर हाल  ही में अत्यन्त गहरे दार्शनिक प्रश्नों के कुछ विज्ञान सम्मत उत्तर प्रस्तुत किये हैं | दर्शन का सबसे पहला मूल प्रश्न है जीवन के आविर्भाव की गुत्थी को सुलझाना | अंग्रेजी में बहुधा फिलासफी के विद्यार्थियों से प्रश्न पूछा जाता है कि पहले अण्डा या मुर्गी | | अब यदि मुर्गी नहीं थी तो अण्डा कहाँ से आया ? और यदि अण्डा नहीं था तो मुर्गी कहाँ से आयी ? और यदि कुछ नहीं था तो न कुछ में से कुछ कैसे पैदा हो गया ? महर्षि भारद्वाज से लेकर यूनान के अफलातून तक और ब्रिटेन के बर्टेन्ड रसल से लेकर भारत के राधाकृष्णन तक सभी ने इन प्रश्नों के अपनें -अपनें उत्तर प्रस्तुत किये हैं | ब्रिटेन में कुछ समय पहले अत्यन्त उच्चस्तरीय प्रयोगशाला परीक्षणों में यह पाया गया  है  कि मुर्गी के अण्डे के ऊपर जो कड़ा छिलका होता है वह जिस प्रोटीन से बनता है वह प्रोटीन केवल एक मुर्गी के भीतर ही बन सकता है | इस प्रोटीन का वैज्ञानिक नाम Ovocleidin-17 है और यह प्रोटीन ही मुर्गी के अण्डे के ऊपर एक कड़ा खोल बना सकती है | अब अगर यह प्रोटीन मुर्गी के भीतर ही बनता है तो स्पष्ट है कि मुर्गी को पहले होना चाहिये और अण्डे को बाद में , बात अगर यहीं तक रहती तो शायद समस्या का हल हो गया होता ,पर फिर प्रश्न उठता है कि यदि अण्डा नहीं था तो मुर्गी कहाँ से आयी ? समस्या हल भी हो गयी और हल में से समस्या फिर उठ खड़ी हुयी | विकासवादी वैज्ञानिक यह कहते हैं कि शायद प्रोटीन Ovocleidin-17 अपनें गैर ठोस या तरल रूप में धरती के वातावरण में कहीं फ़ैली हुयी थी और उसी ने सबसे पहले कुछ अज्ञात कारणों से अण्डे का रूप लिया होगा | अब समस्या खड़ी होती है उन अज्ञात कारणों के निरूपण की | ढाक के वही तीन पात ,फिर जहां के तहाँ अब विज्ञान के शोधार्थी और आगे बढ़ते हैं वे कहते हैं कि हर अण्डा एक प्रकार का नहीं होता | अण्डों का बनना मुर्गी के अण्डों के बननें से बहुत पहले शुरू हो चुका था | अलग -अलग पक्षी अलग -अलग किस्म की प्रोटीन से अपनें अण्डे बनाते हैं | दरअसल समस्या पक्षी जगत से बहुत पीछे हमें उस काल में ले जाती है जब डायनासोर धरती के अधिकाँश भागों में फैले थे | यह सरीसृपों का ज़माना था और वे भी अण्डों के द्वारा ही मृत्यु की अमिट विभीषका को मिटाकर नयी श्रष्टि को जन्म देते थे | पक्षी जगत तो इन्हीं सरीसृपों से विकसित होकर लाखों वर्ष बाद अस्तित्व में आया | अण्डे बनानें वाली प्रोटीन की कई किस्में पहले से ही श्रष्टि की अदभुत प्रयोगशाला में उपस्थित थी और बाद में इन्हीं प्रोटीनों में से Ovocleidin-17 एक नया रूप लेकर अस्तित्व में आयी | यह विकासवादी वैज्ञानिक कहते हैं कि मुर्गी और अण्डे वाला प्रश्न वैज्ञानिक सन्दर्भों में अधिक सार्थक नहीं लगता | न तो अण्डा पहले था न मुर्गी | इनसे बहुत पहले थे सरीसृपों के नाना रूप और आकार | दैत्याकार ,मध्यम  , लघु ,तथा द्रश्य और अद्रश्य | अनगिनत जीवकणों की अप्रतिहत अविरल अनन्त कोटि धारा प्रवाह के अस्तित्व को ही वैज्ञानिक उत्तर के रूप में ही स्वीकारना चाहिये | वैज्ञानिक शोधकर्ताओं के लिये और विकासवादी पण्डितों के लिये यह विस्मयकारी वैज्ञानिक उत्तर प्रणाली भले ही शोध सन्तोष प्रदान कर दे पर हम सामान्य जनों के लिये तो यह प्रश्न अबूझा ही खड़ा है | कौन पहले था अण्डा या मुर्गी ? गहरायी से इस प्रश्न पर झाँक कर देखें तो इसमें वेदान्त का सबसे गूढ़ प्रश्न छिपा हुआ है | जीवात्मा और जीवात्मा को परिवेष्ठित करनें वाला कलेवर इन दोनों में से प्राथमिक कौन है | सबसे पहले दैव है या पदार्थ और क्या दैव और  पदार्थ अनन्य रूप से जुड़े तो नहीं हैं | ' माटी  ' का संपादक तो माटी में ही मानव जीवन की अनन्य संम्भावनायें तलाशनें में लगा है और ' माटी  ' को ही ब्रम्ह का प्रतीक मान कर उसकी पूजा अर्चना की आराधना करता है | ज्ञान -विज्ञान , धर्म -धारणा , स्पन्दन और स्तंम्भन ,शुक और शायिका सभी में उसे मृत्तिका में घुले -मिले परमतत्व के दर्शन होते हैं | ऊर्ध्वगामी अंकुरों को मेरा नमस्कार समर्पित है | 

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