Wednesday 25 October 2017

               शिव धनुष 

कहते हैं तन बूढ़ा होता ,मन भला कहीं बूढ़ा होता
पर मेरा मन बुझ चुका देह में अब भी लपट लपकती है
मत कहीं समझ लेना मैं युग से कटा हुआ
स्खलित -वृंत पीताभ पत्र एकाकी हूं
या पिछले दो दशकों में पनपी पीढ़ी में
मैं ही मरियल मन वाला केवल बाकी हूँ
सच तो यह है हर शहर ,गाँव ,घर कूचे में
मेरे जैसे लाखों घुट -घुट कर जीते हैं
गतिहीन राष्ट्र के दम घोंटूं गलियारे में
बेकार कहा कर घूंट जहर का पीते हैं
कुछ बड़ी -बड़ी बातें कुछ लक्ष्य महान बता
भारत की प्रगति कहानी गायी जाती है
गणतन्त्र दिवस पर स्वर्ण छत्र का साज सजा
लाखों भूखों की भीड़ बुलायी जाती है
कुछ पदासीन टोपी वाले जब पान चबा कर हँसते हैं
जानें क्यों मेरी आँखों से लहू की बूँद टपकती है
कहते हैं तन--------------------------------
हम युवा- वृद्ध शिक्षित बेकारों की टोली
उपदेशों का पानी पी -पी कर पलती है
मंचों से जब -जब छींटें डाली जाती हैं
विद्रोह अग्नि तब और भभक कर जलती है
दस पांच मांह में अपनी बेकारी तजकर
उड़कर भाषण देनें नेता जी आते हैं
दो चार लाख की कीमत पर अधिकारी गण
कर भाग -दौड़ लाखों की भीड़ जुटाते हैं
मंचों पर बैठे क्रीत दास सिर हिला -हिला
तालियां बजाकर हर वाक्य सराहा करते हैं
नक्सली कहे जानें के डर से हम चुप हो
सह कर दंशों पर नमक कराहा करते हैं
अब विधि आयोग आत्म ह्त्या को पाप नहीं ठहराता है
इसलिये जहर खाकर मरनेँ पर किसकी आँख झपकती है
कहते हैं तन  बूढ़ा होता ----------------------------
भूखे मरनेँ वालों की संख्या को लेकर
संसद के नेता काफी शोर मचाते हैं
कितनें कंकाल कहाँ पर पाये गये बता
यम -वाहन सी गर्दन हो दुखी लचाते हैं
पर बनकर अतिथि प्रतिष्ठा देते शादी को
जो सत्रह बैण्डों की धुनियों पर सजती है
भूखे भारत के कानों से टकरा -टकरा
जो महाराष्ट्र से उठ हिमगिर तक बजती है
हाः आज समूचे भारत में कोई न वीर
इस महादेश पर का पुरुषों का शासन है
बेकारी का शिव -धनुष अनछुआ पड़ा हुआ
हाः रिक्त अभी तक लखन लाल सिंहासन है
यश श्री क्वांरी ही रहीं न कोई व्याह सका
विगत्यित यौवन नेताओं के भी मुंह से लार टपकती है
कहते हैं तन बूढ़ा होता ---------------------- |

 

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