गांधी आचरण दो
कि यह जो मैं हूँ
दो अदद हाँथ ,पैर, आँख ,कान
युगल -क्षिद्र नासा ,जिह्वा द्वार शंकायें
लघु- महा , केंचुल खाल मढ़ी
उदर पड़ा पंजर ,छानी -फूस
कि यह जो मैं हूँ
नाई की कुर्सी पर
जुडी हथेलियों से
दर्जी के पटरे पर खड़ा
नपवाता हुआ ग्रीवा -हार ,अधोभाग
अगवाड़ा ,पिछवाड़ा
या कि फिर
सड़क की भीड़ में गुमनाम
जेवरा किनारी के एक छोर
रंग -संवेदना की शून्यता से आत्म ग्रसित
कि यह जो मैं हूँ
चाय की प्याली से उठते धुयें के आर -पार
पीकिंग में ,जावा में ,विन्हय की लावा में
उठता ,उभरता ,पशुता से जुड़कर न जुड़ता
बानस में मानस को देखता हूँ
हिर्र कर गुर्र कर चीं चूं कर खुर्र कर
बोलता बतियाता हूँ
या कि फिर
आधी रात अनझिप आँखों से
कंक्रीट छत की पसलियां चीर
श्याम -कर्ण कल्पना के अश्व पर
विवस्ता पार यूनानी शिविरों तक जाता हूँ
लौटते हुये
खुराग्रों की मार से उमड़ी ,
धूल आँधियों के बीच
मिहिर कुली ,चंगेजी ,मोगलई
शमशीरों के कत्लेआम में
कट -कट कर ,मर -मर कर
जीता हूँ -हाँ चाय की प्याली पीता हूँ
सब मैं ही तो हूँ
पुरुखों की थाती का
विधि -सम्मत वारिस |
उभय जीवी , सरीसृप ,स्तनपायी
रक्त -जीवी ,भोग- जीवी
पशुता विरासत का गर्वीला
शर्मीला वंशधर |
तुच्छता के ,ग्लानि के
इस अहसास में कौन स्वर आया है |
उद्द्बोधन देने को ,ज्योतिर्मय पंक्ति में लेने को
किसने यह गाया है |
' तमसो मा '
हे प्रकाश पुंज मुझे शरण में लो |
क्या मैं अकेला हूँ ?
शुभ्र -श्मश्रु से घिरे थे
प्रभा मंडल, अफलातून ,वैशाली ,लुम्बनी ,
जेरूसलम ,तालस्ताय और कहीं पास ,
बहुत पास ही है साबरमती |
पशुता -विरासत से लड़ने को ,
यान्त्रिक निष्क्रियता में स्फुलिंग जड़ने को
तारों तक पहुंचने को प्रतिबद्धित चरण -नत
आदि -कवि ,आदि -ऋषि ,अभय दो ,
शरण दो | गर्वीला मरण दो |
गांधी -आचरण दो |
कि यह जो मैं हूँ
दो अदद हाँथ ,पैर, आँख ,कान
युगल -क्षिद्र नासा ,जिह्वा द्वार शंकायें
लघु- महा , केंचुल खाल मढ़ी
उदर पड़ा पंजर ,छानी -फूस
कि यह जो मैं हूँ
नाई की कुर्सी पर
जुडी हथेलियों से
दर्जी के पटरे पर खड़ा
नपवाता हुआ ग्रीवा -हार ,अधोभाग
अगवाड़ा ,पिछवाड़ा
या कि फिर
सड़क की भीड़ में गुमनाम
जेवरा किनारी के एक छोर
रंग -संवेदना की शून्यता से आत्म ग्रसित
कि यह जो मैं हूँ
चाय की प्याली से उठते धुयें के आर -पार
पीकिंग में ,जावा में ,विन्हय की लावा में
उठता ,उभरता ,पशुता से जुड़कर न जुड़ता
बानस में मानस को देखता हूँ
हिर्र कर गुर्र कर चीं चूं कर खुर्र कर
बोलता बतियाता हूँ
या कि फिर
आधी रात अनझिप आँखों से
कंक्रीट छत की पसलियां चीर
श्याम -कर्ण कल्पना के अश्व पर
विवस्ता पार यूनानी शिविरों तक जाता हूँ
लौटते हुये
खुराग्रों की मार से उमड़ी ,
धूल आँधियों के बीच
मिहिर कुली ,चंगेजी ,मोगलई
शमशीरों के कत्लेआम में
कट -कट कर ,मर -मर कर
जीता हूँ -हाँ चाय की प्याली पीता हूँ
सब मैं ही तो हूँ
पुरुखों की थाती का
विधि -सम्मत वारिस |
उभय जीवी , सरीसृप ,स्तनपायी
रक्त -जीवी ,भोग- जीवी
पशुता विरासत का गर्वीला
शर्मीला वंशधर |
तुच्छता के ,ग्लानि के
इस अहसास में कौन स्वर आया है |
उद्द्बोधन देने को ,ज्योतिर्मय पंक्ति में लेने को
किसने यह गाया है |
' तमसो मा '
हे प्रकाश पुंज मुझे शरण में लो |
क्या मैं अकेला हूँ ?
शुभ्र -श्मश्रु से घिरे थे
प्रभा मंडल, अफलातून ,वैशाली ,लुम्बनी ,
जेरूसलम ,तालस्ताय और कहीं पास ,
बहुत पास ही है साबरमती |
पशुता -विरासत से लड़ने को ,
यान्त्रिक निष्क्रियता में स्फुलिंग जड़ने को
तारों तक पहुंचने को प्रतिबद्धित चरण -नत
आदि -कवि ,आदि -ऋषि ,अभय दो ,
शरण दो | गर्वीला मरण दो |
गांधी -आचरण दो |
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