हार की जीत
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राधा चरण शुक्ल और श्यामाचरण तिवारी की मित्रता आदर्श की एक मिसाल बन गयी थी | दोनों ही फतेहपुर जनपद के पूरे पण्डित गाँव में जन्में ,खेले ,लड़े ,मिले और और बड़े हुये थे | दोनों के घर भी पास -पास ही थे | दोनों के पिता मिडिल स्कूल में अध्यापक थे और मातायें सदगृहणीं थीं | दोनों ही औसत के कुछ ऊपर तीब्र बुद्धि के विद्यार्थी थे | परिवार का अध्यापन संस्कार उन्हें भी अध्यापन की दुनिया में ले आया | दोनों ने एम ० ए ० किया और बी ० एड ० किया | राधाचरण अंग्रेजी के प्राध्यापक थे और श्यामाचरण हिन्दी के | संयोग था कि दोनों की पहली नियुक्ति रायबरेली के सरकारी हायर सेकेण्डरी स्कूल में हुयी | नौकरी मिलते ही दोनों के माता -पिता ने उन्हें ऊँचे और शिक्षित घरों से शिक्षित लडकियां लेकर गृहस्थ जीवन में प्रवेश करा दिया | रायबरेली में दोनों ने पास -पास के दो सरकारी क्वाटर्स पास -पास में अपने लिये एलाट करा लिये | थोड़ी बहुत दौड़ -धूप करनी पड़ी | पर पड़ोसी होनें के सुख ने दौड़ -धूप की तकलीफ को भुला दिया | दोनों अपनें -अपनें विषयों के गहरे विद्वान थे और स्कूल में उनकी अच्छी धाक थी | उन्हें शतरंज का भी शौक था | कभी श्यामाचरण के घर विसात विछती तो कभी राधाचरण के घर | कभी श्यामा जीतते तो कभी राधा | हार -जीत भी लक्ष्मी की तरह से चंचल होती है ,किसी एक स्थान पर रूककर नहीं रहती है | तीन वर्ष साथ -साथ रहने के बाद श्यामाचरण का तबादला उन्नाव जनपद में हो गया | राधाचरण रायबरेली में ही रहे | पत्र -व्यवहार और फोन से सम्पर्क की निरन्तरता बनी रही | प्रभु की कृपा के जिस महीनें श्यामा के घर पुत्र जन्मा उसी महीनें राधाचरण के यहां पुत्री का जन्म हुआ | जन्म में थोड़े बहुत दिन का ही अन्तर था | राधाचरण ने फोन पर बधाई देते हुए कहा कि श्यामा भाई तुम बाजी जीत गये | श्यामाचरण ने कहा कि अभी तो बाजी बराबर है | क़ानून ,संविधान नैतिकता और भारतीय संस्कृति लड़का और लड़की में भेद नहीँ करती | बाजी तो तुमनें जीती है क्योंकि तुम्हारे घर साक्षात लक्ष्मी अवतरित होकर आयी है | वर्ष पर वर्ष बीतते चले गये पर दोनों ही मित्र एक सन्तान से आगे नहीं बढ़े | श्यामाचरण ने पुत्र की शिक्षा और दीक्षा को पूरी जिम्मेदारी से संम्भाला | राधाचरण पुत्री को विदुषी बनाकर आदर्श के रूप में पल्लवित करनें की योजना में लग गये | शायामाचरण के पुत्र ने सूचना प्रोद्योगकीय में प्रथम श्रेणीं में एम ० टेक ० किया और उसे संयुक्त राष्ट्र अमरीका के सिलीकान वैली में 30 लाख वार्षिक पर एक कम्पनी नें हायर कर लिया | | राधाचरण की पुत्री ने संस्कृत में एम ० ए ० करके I. A.S. की प्रारम्भिक और मेन दोनों परीक्षायें पास कीं पर साक्षात्कार में वह मैरिट में नहीं आ पायी | राधाचरण ने फिर भाई श्यामा को फोन किया और कहा वह बाजी हार गये हैं | श्यामाचरण ने जवाब दिया कि अभी तो यह पहला राउण्ड ही है देखो अन्त में विजय श्री किसे वरण करती है | साथ ही उन्होनें कहा कि वे चाहेगें कि हम दोनों पुत्र और पुत्री को जीवन सहचर बनाकर अपनी मित्रता को प्रमाणित कर दें | राधाचरण ने उनका धन्यवाद किया पर कहा अभी एक दो वर्ष और प्रतीक्षा कर लेनी चाहिये | पुत्री को करियर के किसी निर्णायक मोड़ पर पहुँच जानें के बाद ही वे उसे गृहस्थ जीवन में डालना चाहेंगें | राधाचरण की पुत्री एक बुद्धिमान युवती थी उसने देखा कि अंग्रेजी पर अधिकार न होने के कारण वह साक्षात्कार में सफल नहीं हो पायी | I.A.S .की तैय्यारी करने के साथ -साथ उसनें अंग्रेजी भाषा पर गहन अध्ययन की छाप छोड़नी शुरू की ,संस्कृत और हिन्दी तो उसके अधिकार में थी ही | कठिन प्रयास और प्रभु की कृपा से वह विशुद्ध अंग्रेजी में धाराप्रवाह और सारगर्भित बातचीत करने में समर्थ हो गयी | अब I.A.S. में उसका अन्तिम प्रयास था |
कहते हैं प्रकृति की शक्तियां उसी का साथ देती हैं जो अपने लिये ठोस उन्नति की जमीन तैय्यार करता है | अन्तिम प्रयास में राधाचरण की पुत्री ने सफलता प्राप्त कर ली यद्यपि उसे I.A.S. से अलग हटकर I.P.S. में चयनित किया गया | राधाचरण की पुत्री ज्योत्स्ना ने सोचा कि I.P .S.ज्वाइन करनें के स्थान पर क्यों न डाक्ट्रेट करके यूनिवर्सिटी की सर्विस ज्वाइन की जाय पर पिता का आग्रह था कि वे उसे भारतीय पुलिस सेवा में ही देखना चाहते हैं | पिता के आग्रह और माता की अनुमति से ज्योत्स्ना नें I.P.S. का करियर स्वीकार कर लिया | राधाचरण ने अपने मित्र को सूचित करते हुये सिलीकान वैली में लगे उनके पुत्र के प्रगति सोपानों के विषय में पूंछ -तांछ की | श्यामा नें बताया कि अब वह कम्पनी का डिप्टी सी ० ओ ० बन गया है और उसे 50 लाख वार्षिक का पैकेज मिला है | पर अबकी बार उन्होंने राधाचरण की पुत्री को वधू बनानें के प्रस्ताव पर मौन साधे रखा | राधाचरण नें ज्योत्स्ना को बताया कि उसके मित्र श्यामाचरण का पुत्र जो सिलीकान वैली में एक ऊंची कम्पनी में डिप्टी सी० ओ ० है क्या अच्छा जीवन साथी साबित हो सकेगा | ज्योत्स्ना ने संकोच के साथ और पूरी निर्भीकता से उत्तर दिया कि वह तपांशु से मिलने के बाद ही कोई फैसला दे सकेगी | राधा ने अपने मित्र श्यामा को यह बात बतायी तो श्यामाचरण ने कहा कि वह तपांशु से बात करंगें उसे घर आये लगभग दो वर्ष बीत गये हैं और वे उसे भारत आने का आग्रह करंगें | जब उसका आना सुनिश्चित हो जायेगा तब ज्योत्स्ना से मिला देने की युक्ति भी की जायेगी पर श्यामाचरण की वाणी में अब पहले जैसा उत्साह नहीं था | ऐसा लगता था कि वह अपनें पुत्र तपांशु के व्यक्तिगत जीवन से पूरी तरह परिचित नहीं हैं और पिता -पुत्र में सम्बन्धों का कुछ तनाव पैदा हो गया है | राधाचरण ने इसीबीच ज्योत्स्ना का डाटा इन्टरनेट पर डाल दिया | उनके मन में आशंका जग उठी थी कि सम्भवतः श्यामाचरण की योजना सिरे न चढ़ पायेगी | बहुत आना -कानी के बाद आखिर माता -पिता के अत्यन्त आग्रह पर तपांशु नें भारत आने की योजना बनायी | ट्रेनिंग के बाद ज्योत्स्ना की नियुक्ति उन्नाव में D.S.P . के पद पर हो गयी | श्यामाचरण जी तो उन्नाव के स्थायी निवासी बन ही गये थे | तपांशु जब एरोप्लेन से उतरा और उससे मिलनें को उत्सुक लखनऊ के एयरपोर्ट पर उसके माता -पिता गाड़ी लेकर पहुंचे तो उन्होंने पाया कि तपांशु के साथ एक अमेरिकन युवती भी है | तपांशु ने लपककर माता और पिता के पैर छुये और युवती से कहा कि ये मेरे पैरेन्ट्स हैं | युवती ने हाँथ बढ़ाकर पिताजी से हैण्ड सेक करना चाहा और बोली , " I am Stella Jones,Tapansu is my friend ." श्यामाचरण ने स्टेला के बढ़े हुये हाँथ को गिर जानें दिया | तपांशु की मां ने भी उसको आओ बेटी कहकर गाड़ी में बैठनें के लिये बोला | श्यामाचरण अंग्रेजी के अध्यापक थे और उन्हें Friend शब्द की सारी व्याख्यायें मालूम थीं | पर कौन सी व्याख्या स्टेला पर लागू होगी इसे वे तपांशु के मुख से सुनना चाहते थे | श्यामाचरण के द्वारा तपांशु के आने की सूचना राधाचरण के पास पहुँच चुकी थी और वे रायबरेली से चलकर अपनी D.S.P. बेटी के पास उन्नाव आ गए थे | अगले दिन सुबह ब्रेकफास्ट पर मिलने की बात तय हुयी थी पर स्टेला को साथ देखकर श्यामाचरण ने पूर्व निश्चित मुलाक़ात के समय को बदलनें का मन बना लिया | आखिर स्टेला की असलियत जानें बिना ज्योत्स्ना को कैसे बुला लिया जाय |
तपांशु के पिता ने बताया कि स्टेला उसकी मित्र है पर अभी तक वे विवाह के बन्धन में नहीं बंधे हैं | एक दो साल वे मित्र बनकर रहेंगें और यदि सब ठीक -ठाक रहा तो शादी कर लेंगें | नहीं तो उनके रास्ते अलग -अलग होंगें पर वे मित्र बनें रहेंगें | उसने पिताजी से कहा वह ज्योत्स्ना को ब्रेक फास्ट पर बुला लें |उसकी और स्टेला की जान -पहचान हो जायेगी | शादी की बात पर अन्तिम निर्णय एकाध साल के बाद ही होगा | श्यामाचरण ने निः संकोच होकर अपने बेटे से पूछा क्या स्टेला के साथ उसका शारीरिक सम्बन्ध हो चुका है ? तो तपांशु ने संकोच भरे स्वर में कहा Yes Father !अमरीका में तो यह सामान्य बात है | शारीरिक सम्बन्ध और विवाह अलग -अलग बातें हैं | विवाह तो प्रापर्टी के उत्तराधिकारी को पाने के लिये किया जाता है | शारीरिक सम्बन्ध का अपना एक निराला Moral कोड है कोई बाध्यता नहीं पर यदि मन में लहर उठी तो वर्जना का कोई अर्थ नहीं | भारत की संस्कृति इसे स्वीकार नहीं करेगी | पर अब मैं अमरीका का नागरिक हूँ और मुझे उसी संस्कृति में जीना है | ज्योत्स्ना मेरी तरफ से स्वतन्त्र है | पर क्या पता भविष्य में मैं उसकी दोस्ती के लिये प्रतीक्षा रत हो जाऊँ | श्यामाचरण ने सब सुना | तपांशु की माताजी से बात की | सारी रात दोनों सोचते -विचारते रहे | आखिरकार तपांशु की मां ने एक कठोर फैसला ले ही लिया उसने अपने पति से कहा कि वह भारत की नारी है और यदि उसका बेटा अमरीका की संस्कृति में रचना -बसना चाहता है तो उसे वह किसी मजबूरी में नहीं बांधेगी | ज्योत्स्ना के लिये न जानें कितनें जीवन साथी स्वप्न संजोये हुये हैं | वह सुन्दरी है | आफीसर है ,और भारत की एक नारी रत्न है | मैं अपने बेटे से अधिक उसे अपने नजदीक मानती हूँ | अब श्यामाचरण जी ने कहा तो मैं राधे को क्या बोलूं वह D.S..P.के बंगले पर सुबह 6 बजे मेरे फोन का इन्तजार करेगा | तपांशु की मां ने कहा घबराते क्यों हो ? कुछ अधिक नहीं कहना है | ,सिर्फ यह कह दो मैं आखिरी बाजी हार गया हूँ | राधाचरण तुम्हारी जीत भारत की जीत है | मैं और मेरी पत्नी तुम्हारी बेटी की योग्यता ,शालीनता ,और सरलता के लिये सदैव तुम्हारे कृतज्ञ रहेंगें | श्यामाचरण ने फिर हंसकर फोन पर कहा अरे यार मैं कहता था न कि आखिरी बाजी तेरे हाँथ में जायेगी | मेरी पराजय में ही ज्योत्स्ना की विजय है | अच्छा प्रणाम |
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राधा चरण शुक्ल और श्यामाचरण तिवारी की मित्रता आदर्श की एक मिसाल बन गयी थी | दोनों ही फतेहपुर जनपद के पूरे पण्डित गाँव में जन्में ,खेले ,लड़े ,मिले और और बड़े हुये थे | दोनों के घर भी पास -पास ही थे | दोनों के पिता मिडिल स्कूल में अध्यापक थे और मातायें सदगृहणीं थीं | दोनों ही औसत के कुछ ऊपर तीब्र बुद्धि के विद्यार्थी थे | परिवार का अध्यापन संस्कार उन्हें भी अध्यापन की दुनिया में ले आया | दोनों ने एम ० ए ० किया और बी ० एड ० किया | राधाचरण अंग्रेजी के प्राध्यापक थे और श्यामाचरण हिन्दी के | संयोग था कि दोनों की पहली नियुक्ति रायबरेली के सरकारी हायर सेकेण्डरी स्कूल में हुयी | नौकरी मिलते ही दोनों के माता -पिता ने उन्हें ऊँचे और शिक्षित घरों से शिक्षित लडकियां लेकर गृहस्थ जीवन में प्रवेश करा दिया | रायबरेली में दोनों ने पास -पास के दो सरकारी क्वाटर्स पास -पास में अपने लिये एलाट करा लिये | थोड़ी बहुत दौड़ -धूप करनी पड़ी | पर पड़ोसी होनें के सुख ने दौड़ -धूप की तकलीफ को भुला दिया | दोनों अपनें -अपनें विषयों के गहरे विद्वान थे और स्कूल में उनकी अच्छी धाक थी | उन्हें शतरंज का भी शौक था | कभी श्यामाचरण के घर विसात विछती तो कभी राधाचरण के घर | कभी श्यामा जीतते तो कभी राधा | हार -जीत भी लक्ष्मी की तरह से चंचल होती है ,किसी एक स्थान पर रूककर नहीं रहती है | तीन वर्ष साथ -साथ रहने के बाद श्यामाचरण का तबादला उन्नाव जनपद में हो गया | राधाचरण रायबरेली में ही रहे | पत्र -व्यवहार और फोन से सम्पर्क की निरन्तरता बनी रही | प्रभु की कृपा के जिस महीनें श्यामा के घर पुत्र जन्मा उसी महीनें राधाचरण के यहां पुत्री का जन्म हुआ | जन्म में थोड़े बहुत दिन का ही अन्तर था | राधाचरण ने फोन पर बधाई देते हुए कहा कि श्यामा भाई तुम बाजी जीत गये | श्यामाचरण ने कहा कि अभी तो बाजी बराबर है | क़ानून ,संविधान नैतिकता और भारतीय संस्कृति लड़का और लड़की में भेद नहीँ करती | बाजी तो तुमनें जीती है क्योंकि तुम्हारे घर साक्षात लक्ष्मी अवतरित होकर आयी है | वर्ष पर वर्ष बीतते चले गये पर दोनों ही मित्र एक सन्तान से आगे नहीं बढ़े | श्यामाचरण ने पुत्र की शिक्षा और दीक्षा को पूरी जिम्मेदारी से संम्भाला | राधाचरण पुत्री को विदुषी बनाकर आदर्श के रूप में पल्लवित करनें की योजना में लग गये | शायामाचरण के पुत्र ने सूचना प्रोद्योगकीय में प्रथम श्रेणीं में एम ० टेक ० किया और उसे संयुक्त राष्ट्र अमरीका के सिलीकान वैली में 30 लाख वार्षिक पर एक कम्पनी नें हायर कर लिया | | राधाचरण की पुत्री ने संस्कृत में एम ० ए ० करके I. A.S. की प्रारम्भिक और मेन दोनों परीक्षायें पास कीं पर साक्षात्कार में वह मैरिट में नहीं आ पायी | राधाचरण ने फिर भाई श्यामा को फोन किया और कहा वह बाजी हार गये हैं | श्यामाचरण ने जवाब दिया कि अभी तो यह पहला राउण्ड ही है देखो अन्त में विजय श्री किसे वरण करती है | साथ ही उन्होनें कहा कि वे चाहेगें कि हम दोनों पुत्र और पुत्री को जीवन सहचर बनाकर अपनी मित्रता को प्रमाणित कर दें | राधाचरण ने उनका धन्यवाद किया पर कहा अभी एक दो वर्ष और प्रतीक्षा कर लेनी चाहिये | पुत्री को करियर के किसी निर्णायक मोड़ पर पहुँच जानें के बाद ही वे उसे गृहस्थ जीवन में डालना चाहेंगें | राधाचरण की पुत्री एक बुद्धिमान युवती थी उसने देखा कि अंग्रेजी पर अधिकार न होने के कारण वह साक्षात्कार में सफल नहीं हो पायी | I.A.S .की तैय्यारी करने के साथ -साथ उसनें अंग्रेजी भाषा पर गहन अध्ययन की छाप छोड़नी शुरू की ,संस्कृत और हिन्दी तो उसके अधिकार में थी ही | कठिन प्रयास और प्रभु की कृपा से वह विशुद्ध अंग्रेजी में धाराप्रवाह और सारगर्भित बातचीत करने में समर्थ हो गयी | अब I.A.S. में उसका अन्तिम प्रयास था |
कहते हैं प्रकृति की शक्तियां उसी का साथ देती हैं जो अपने लिये ठोस उन्नति की जमीन तैय्यार करता है | अन्तिम प्रयास में राधाचरण की पुत्री ने सफलता प्राप्त कर ली यद्यपि उसे I.A.S. से अलग हटकर I.P.S. में चयनित किया गया | राधाचरण की पुत्री ज्योत्स्ना ने सोचा कि I.P .S.ज्वाइन करनें के स्थान पर क्यों न डाक्ट्रेट करके यूनिवर्सिटी की सर्विस ज्वाइन की जाय पर पिता का आग्रह था कि वे उसे भारतीय पुलिस सेवा में ही देखना चाहते हैं | पिता के आग्रह और माता की अनुमति से ज्योत्स्ना नें I.P.S. का करियर स्वीकार कर लिया | राधाचरण ने अपने मित्र को सूचित करते हुये सिलीकान वैली में लगे उनके पुत्र के प्रगति सोपानों के विषय में पूंछ -तांछ की | श्यामा नें बताया कि अब वह कम्पनी का डिप्टी सी ० ओ ० बन गया है और उसे 50 लाख वार्षिक का पैकेज मिला है | पर अबकी बार उन्होंने राधाचरण की पुत्री को वधू बनानें के प्रस्ताव पर मौन साधे रखा | राधाचरण नें ज्योत्स्ना को बताया कि उसके मित्र श्यामाचरण का पुत्र जो सिलीकान वैली में एक ऊंची कम्पनी में डिप्टी सी० ओ ० है क्या अच्छा जीवन साथी साबित हो सकेगा | ज्योत्स्ना ने संकोच के साथ और पूरी निर्भीकता से उत्तर दिया कि वह तपांशु से मिलने के बाद ही कोई फैसला दे सकेगी | राधा ने अपने मित्र श्यामा को यह बात बतायी तो श्यामाचरण ने कहा कि वह तपांशु से बात करंगें उसे घर आये लगभग दो वर्ष बीत गये हैं और वे उसे भारत आने का आग्रह करंगें | जब उसका आना सुनिश्चित हो जायेगा तब ज्योत्स्ना से मिला देने की युक्ति भी की जायेगी पर श्यामाचरण की वाणी में अब पहले जैसा उत्साह नहीं था | ऐसा लगता था कि वह अपनें पुत्र तपांशु के व्यक्तिगत जीवन से पूरी तरह परिचित नहीं हैं और पिता -पुत्र में सम्बन्धों का कुछ तनाव पैदा हो गया है | राधाचरण ने इसीबीच ज्योत्स्ना का डाटा इन्टरनेट पर डाल दिया | उनके मन में आशंका जग उठी थी कि सम्भवतः श्यामाचरण की योजना सिरे न चढ़ पायेगी | बहुत आना -कानी के बाद आखिर माता -पिता के अत्यन्त आग्रह पर तपांशु नें भारत आने की योजना बनायी | ट्रेनिंग के बाद ज्योत्स्ना की नियुक्ति उन्नाव में D.S.P . के पद पर हो गयी | श्यामाचरण जी तो उन्नाव के स्थायी निवासी बन ही गये थे | तपांशु जब एरोप्लेन से उतरा और उससे मिलनें को उत्सुक लखनऊ के एयरपोर्ट पर उसके माता -पिता गाड़ी लेकर पहुंचे तो उन्होंने पाया कि तपांशु के साथ एक अमेरिकन युवती भी है | तपांशु ने लपककर माता और पिता के पैर छुये और युवती से कहा कि ये मेरे पैरेन्ट्स हैं | युवती ने हाँथ बढ़ाकर पिताजी से हैण्ड सेक करना चाहा और बोली , " I am Stella Jones,Tapansu is my friend ." श्यामाचरण ने स्टेला के बढ़े हुये हाँथ को गिर जानें दिया | तपांशु की मां ने भी उसको आओ बेटी कहकर गाड़ी में बैठनें के लिये बोला | श्यामाचरण अंग्रेजी के अध्यापक थे और उन्हें Friend शब्द की सारी व्याख्यायें मालूम थीं | पर कौन सी व्याख्या स्टेला पर लागू होगी इसे वे तपांशु के मुख से सुनना चाहते थे | श्यामाचरण के द्वारा तपांशु के आने की सूचना राधाचरण के पास पहुँच चुकी थी और वे रायबरेली से चलकर अपनी D.S.P. बेटी के पास उन्नाव आ गए थे | अगले दिन सुबह ब्रेकफास्ट पर मिलने की बात तय हुयी थी पर स्टेला को साथ देखकर श्यामाचरण ने पूर्व निश्चित मुलाक़ात के समय को बदलनें का मन बना लिया | आखिर स्टेला की असलियत जानें बिना ज्योत्स्ना को कैसे बुला लिया जाय |
तपांशु के पिता ने बताया कि स्टेला उसकी मित्र है पर अभी तक वे विवाह के बन्धन में नहीं बंधे हैं | एक दो साल वे मित्र बनकर रहेंगें और यदि सब ठीक -ठाक रहा तो शादी कर लेंगें | नहीं तो उनके रास्ते अलग -अलग होंगें पर वे मित्र बनें रहेंगें | उसने पिताजी से कहा वह ज्योत्स्ना को ब्रेक फास्ट पर बुला लें |उसकी और स्टेला की जान -पहचान हो जायेगी | शादी की बात पर अन्तिम निर्णय एकाध साल के बाद ही होगा | श्यामाचरण ने निः संकोच होकर अपने बेटे से पूछा क्या स्टेला के साथ उसका शारीरिक सम्बन्ध हो चुका है ? तो तपांशु ने संकोच भरे स्वर में कहा Yes Father !अमरीका में तो यह सामान्य बात है | शारीरिक सम्बन्ध और विवाह अलग -अलग बातें हैं | विवाह तो प्रापर्टी के उत्तराधिकारी को पाने के लिये किया जाता है | शारीरिक सम्बन्ध का अपना एक निराला Moral कोड है कोई बाध्यता नहीं पर यदि मन में लहर उठी तो वर्जना का कोई अर्थ नहीं | भारत की संस्कृति इसे स्वीकार नहीं करेगी | पर अब मैं अमरीका का नागरिक हूँ और मुझे उसी संस्कृति में जीना है | ज्योत्स्ना मेरी तरफ से स्वतन्त्र है | पर क्या पता भविष्य में मैं उसकी दोस्ती के लिये प्रतीक्षा रत हो जाऊँ | श्यामाचरण ने सब सुना | तपांशु की माताजी से बात की | सारी रात दोनों सोचते -विचारते रहे | आखिरकार तपांशु की मां ने एक कठोर फैसला ले ही लिया उसने अपने पति से कहा कि वह भारत की नारी है और यदि उसका बेटा अमरीका की संस्कृति में रचना -बसना चाहता है तो उसे वह किसी मजबूरी में नहीं बांधेगी | ज्योत्स्ना के लिये न जानें कितनें जीवन साथी स्वप्न संजोये हुये हैं | वह सुन्दरी है | आफीसर है ,और भारत की एक नारी रत्न है | मैं अपने बेटे से अधिक उसे अपने नजदीक मानती हूँ | अब श्यामाचरण जी ने कहा तो मैं राधे को क्या बोलूं वह D.S..P.के बंगले पर सुबह 6 बजे मेरे फोन का इन्तजार करेगा | तपांशु की मां ने कहा घबराते क्यों हो ? कुछ अधिक नहीं कहना है | ,सिर्फ यह कह दो मैं आखिरी बाजी हार गया हूँ | राधाचरण तुम्हारी जीत भारत की जीत है | मैं और मेरी पत्नी तुम्हारी बेटी की योग्यता ,शालीनता ,और सरलता के लिये सदैव तुम्हारे कृतज्ञ रहेंगें | श्यामाचरण ने फिर हंसकर फोन पर कहा अरे यार मैं कहता था न कि आखिरी बाजी तेरे हाँथ में जायेगी | मेरी पराजय में ही ज्योत्स्ना की विजय है | अच्छा प्रणाम |
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