कलुआ की भौंक
इसे मैं अपना सौभाग्य ही कहूंगा बी.ए. करने के बाद मुझे जन सम्पर्क विभाग में सरकारी नौकरी मिल गयी | बात करीब पन्द्रह वर्ष पहले की है और उस समय नौकरियों की बोली तो लगती थी पर इतने खुले आम नहीं जैसा कि आजकल होता है | नौकरी लगने का एक कारण यह भी था कि मैं कालेज के स्टेज पर कुछ गानें -बजानें लगा था और कभी -कभी नाटक वैगरह में भी छोटा -मोटा रोल कर लेता था | बीसवीं शताब्दी के नवें दशक के बीच एक चुनाव में हम कुछ शिक्षित युवा कलाकारों को जीविका के लिये एक राजनीतिक पार्टी के प्रचार से जुड़ना पड़ा | छोटी -मोटी पहचान बन गयी और बी. ए. करने के बाद जन सम्पर्क विभाग ने एक इंटरव्यूह के बाद सरकारी योजनाओं के प्रचार के लिये एक घुमन्तू कलाकार के रूप में एक जीविका का साधन हाँथ लग गया | शहर के पास एक देहाती इलाके में एक छोटा सा प्लाट लेकर डाल दिया था | जिसे पन्द्रह वर्ष के बाद तीन कमरों के एक मकान के रूप में बदल देने का जुगाड़ कर पाया | सोचा गृह प्रवेश के लिये अपने कालेज के अजीज अध्यापकों को भी आमन्त्रित कर लिया जाय | और सबसे पहला नाम जो मेरी स्मृति में उभरकर आया वह था राम बलि मिश्रा का | वे मुझे अंग्रेजी पढ़ाते थे और कालेज में मंच पर भी मुझे बुलाकर उत्साहित किया करते थे | यद्यपि उनको सेवा निवृत्त हुये काफी वर्ष हो गये थे पर फिर भी वे मुझे यदा -कदा मिल जाते थे और मैं जानता था कि वे स्वस्थ्य हैं और मुझे स्नेह करते हैं | मई की एक शाम को जब मैं उनसे मिलने उनके कमरे में पहुंचा तो वे घूमने की तैय्यारी कर रहे थे | मैनें गृह प्रवेश की बातचीत की और फिर उनके साथ घूमने की इच्छा भी व्यक्त की | घूमते समय मैनें देखा कि उनके बायें हाँथ की तर्जनी पर नाखून के ऊपर वोट डालने की स्याही अभी तक लगी हुयी थी | वोट डाले काफी दिन बीत चुके थे और सारे परिणाम भी 16 मई की शाम तक आ चुके थे | पर स्याही इतनी गहरी थी कि अभी पूरी तरह जानें में दस पन्द्रह दिन का समय और लेती दिखायी पड़ रही थी | मैनें उनसे कहा ,"सर आप भी आपकी बार वोट डालने गये थे | आप तो हमसे कालेज में अक्सर कहा करते थे, भारत की राजनीति में अधिकतर ज्यादा पढ़े -लिखे लोग वोट डालने के सम्बन्ध में उदासीन रहते हैं | अब शायद आप भी मानने लगे हैं कि उच्च शिक्षित वर्ग अगर वोट डालने के लिये आगे नहीं आता तो अच्छे आदमी चुनकर सत्ता की ऊंचाइयों पर नहीं पहुंच सकेंगें | उन्होंने कहा ,"हाँ ,कुछ अंशों में तुम्हारी बात में वजन है पर इस बार भी मेरा इरादा दूर से बैठकर सारे तमाशे को देखना ही था | पर क्या करूँ मनीष वत्स वोट डालने के एक दिन पहले घर पर आ गया और उसके साथ सत्ता में बैठे नेताओं के दो रिश्तेदार थे | मैनें पूछा कौन मनीष वत्स ? उन्होंने कहा कि तुम मनीष को भूल गये | वही जो कालेज में चुनाव लड़ा था और कुछ वोटों से जीतकर विद्यार्थी यूनियन का प्रधान चुना गया था | तुम क्या नहीं जानते कि मनीष इस समय खादी बोर्ड का चेयरमैन है | उसे सरकारी गाड़ी मिली हुयी है और राजधानी में एक फ़्लैट | मैनें कहा मनीष तो किसी अच्छी नौकरी में था क्या उसने नौकरी छोड़ दी | वे बोले नहीं , वह डेपुटेशन पर है और नौकरी पर अपनी जगह कायम है | मैनें कहा वत्स तो आपके खिलाफ काफी कुछ बका करता था क्योंकि आप अनुशासन लागू करना चाहते थे और वत्स था कि किसी भी अनुशासन से बाहर रहना चाहता था | मिश्र जी बोले ,भाई आजकल लीडरशिप उन्हीं लोगों को मिलती है जो अनुशासन नहीं मानते | तुम्हें तो याद है मैनें एक बार मनीष से कहा था कि पढ़ा -लिखा कर ,नहीं तो नक़ल -अकल करके बी.ए. पास भी हो गया तो सड़कों पर मारा -मारा फिरेगा | तुम तो जानते ही हो कि हम अध्यापक लोग सैकड़ों विद्यार्थियों के सम्पर्क में आते हैं उनमें से कुछ ही हमारी स्मृति में रहते हैं और बहुत सारे हमारी स्मृति से उतर जाते हैं | मनीष को भी मैं भूल चुका था | पर विधान सभा के चुनाव के एक हप्ते बाद मेरे दरवाजे पर एक सरकारी गाड़ी रुकी | मनीष उतरकर नीचे आया और नीचे सीढ़ियां चढ़कर मेरे पास कमरे में पहुंचा | पैर छूकर बोला ," गुरू जी मैं खादी बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया हूँ | आप कहते थे मैं सड़कों पर घूमूँगा | आपके आशीर्वाद से मैं अब बॉडी गाड और ड्राइवर के साथ सड़कों पर ही घूमता हूँ | मिश्रा जी आगे बोले कि उन्होंने मनीष वत्स को आशीर्वाद दिया और बोले बेटे अब आगे आसमान में उड़ोगे | मनीष ने कहा गुरूजी मैं आपके पास इसलिये आया हूँ कि परसों शाम को पांच बजे ब्राम्हण धर्मशाला में मेरे स्वागत समारोह का आयोजन है आप को उसमें आना तो है ही साथ ही अंग्रेजी में मेरी प्रशंसा में कुछ बोलना भी है | इससे मेरी बिरादरी में धाक जम जायेगी | आपको लेने गाड़ी आ जायेगी | इन्कार न करियेगा | इतना कहकर वह पैर छूकर और यह कहकर कि उसे जल्दी है चला गया | उस दिन के बाद 4 वर्ष बाद वह इलेक्शन के 2 दिन पहले मेरे पास आया था | गाड़ी में उसके साथ दो सज्जन और थे जिसे उसने मुख्य मन्त्री का रिश्तेदार बताया | कहने लगा हमारी बिरादरी हमारे पीछे है या नहीं इस बात का फैसला वोटों से ही होगा | ब्राम्हण वोट पड़ने ही चाहिये | मिश्रा जी ने कहा कि उन्होंने जोर देकर यह कहना चाहा कि वे जन्म से पायी गयी जाति में विश्वास नहीं रखते पर मनीष था कि उसने हाँ करवाकर ही छोड़ी |
प्रो० रामबलि जी ने फिर आगे बताया कि कैसे उन्होंने काफी परेशानी के बाद उस बूथ का पता लगाया जहां उनका वोट पड़ना था | काफी खोज बीन के बाद आइडेन्टिटी कार्ड दिखाने के बाद उनका और उनकी पत्नी के फोटो मिल पाये और फिर पुरानी वोटर लिस्ट के नम्बरों पर झगड़ा खड़ा हो गया | आखिरकार नयी वोटर लिस्ट आयी और नये नम्बर मिले | वे लाइन में जा खड़े हुये सुबह पौने दस से ग्यारह तक कड़ी धूप के बीच खड़े रहने के बाद उनका नम्बर आया | मेज पर बैठे पहले व्यक्ति ने पूछा कि पर्ची कहाँ है ? उन्होंने अपना वोटिंग नम्बर बताया | उसने पूछा कि पर्ची क्यों नहीं बनवायी | उन्होंने कहा आप अपनी लिस्ट में देखिये ,आखिर लिस्ट में उनका और उनके पिता का नाम मिला | अब दूसरे ने कहा दस्तखत करोगे या अंगूठा लगायेंगें ? उन्होंने कहा अंगूठा भी है और पेन देना चाहें तो उंगलियां और अंगूठा से पकड़कर दस्तखत भी कर देंगें | स्याही लगाने वाले ने नाखून रंगकर उंगली के पहले पोर तक काली लकड़ी घुमा दी फिर वे अन्दर एक कोनें में भेजे गये जहां उन्होंने काफी देर बाद वह निशान पाया जिसके सामने की नीली बटन उन्हें दबानी थी | बटन दबाने के बाद हुयी हल्की घण्टी की आवाज ने उन्होंने आश्वस्त कर दिया कि उनका वोट पड़ गया है | बाहर आकर उन्होंने देखा कि क्या कोई कैमरा वाला उनकी रंगी उंगली की तस्वीर लेने के लिये खड़ा है या नहीं | कुछ देर के लिये वे भूल गये कि वे एक सामान्य सेवा निवृत्त कर्मचारी है और उन्हें अखबारी बड़प्पन का नशा नहीं करना चाहिये |
घूमते -घूमते हम पंजाबी हायर सेकेण्डरी स्कूल के ग्राउन्ड में पहुँच गये | मैनें देखा कि कलुआ चौकीदार बाहर खड़ा है | वह मुझे जानता था बोला कि पण्डित जी कुर्सी निकाल देता हूँ थोड़ी देर बैठ लीजिये ,बड़ी उमस है | फिर प्रोफ़ेसर मिश्रा की ओर देखकर बोला ओहो ,आप तो उस दिन वोट डालने के लिये लाइन में बिल्कुल मेरे पीछे खड़े थे | मैं जान गया था कि आप कोई पढ़े -लिखे आदमी हैं | क्योंकि आप गुमसुम खड़े थे और किसी से बोलचाल नहीं कर रहे थे | मैनें पूछा ,कलुआ तेरा वोट तो विरादरी के नाम पर पड़ा होगा | उसने कहा पण्डित जी हम लोगों की क्या विरादरी | कलुआ को तो कलिया और बोतल चाहिये ,जो कोई दे देता है उसी की विरादरी में शामिल हो जाता हूँ |आप लोग ऊँचे आदमी हैं | आप पैसे पर नहीं बिकते ,बिरादरी के नाम पर बिकते हैं | बिकते हम सब हैं | हाँ ,बिकने के रास्ते अलग -अलग हैं मैं सोचने लगा कि कलुआ इतनी गूढ़ बातें कैसे करने लगा | जनतान्त्रिक प्रक्रिया आर्थिक आधार तलाशने के लिये नये -नये रास्ते प्रदान कर रही है | यह ठीक है कि न बिकने वाला बोट भी उभरकर सामने आ रहा है पर यह भी झूठ नहीं है कि विशिष्ट पहचान की लालसा भी बिकने का ही एक अलंकृत बहाना है | मैनें रामबलि मिश्रा जी के पैर छूकर कहा मिश्रा जी हम अब यहां से घर जायेंगें | कल के गृह प्रवेश की तैय्यारी करनी है | आइयेगा अवश्य | हमें पण्डित समाज को संगठन के ठोस दायरे में बाँधना होगा | घर वापस जाते हुये मैनें अपने से ही प्रश्न किया या यों कहें कि मेरी आधुनिक चेतना ने मेरी खण्डित चेतना से प्रश्न किया | तुम अपने को समदर्शी कहते हो | यह सर नेम लगाकर तुम संसार को यह दिखाने की कोशिश करते हो कि तुम जाति ,वर्ग ,क्षेत्र और पूजा पद्धत्तियों की विभिन्नताओं से ऊपर उठ चुके हो पर क्या सचमुच में ऐसा है | क्या तुम कलुआ का ही सफेदपोश रूपान्तरण नहीं हो | तुम्हारी वैश्विक चेतना जातिवाद का मुकुट ओढ़ने के लिये तुम्हें क्यों प्रेरित करती है ? बहुत देर टटोलने के बाद मुझे मेरे भीतर से एक आश्वस्त करने वाला उत्तर मिला | भारत की राजनीति विगत दो दशकों से जाति -उपजाति ,क्षेत्र -उपक्षेत्र ,मन्दिर -मस्जिद ,तमिल -सिंहल ,मराठी मानुष -बिहारी भैय्या ,ह्त्या -फिरौती ,मूर्ति स्थापना ,और जन्मदिन समारोहों के घेरे में फंसी थी | तुम इतने बड़े नहीं हो कि इन सबसे ऊपर उठ पाते | अब फिर सच्चे अर्थों में एक राष्ट्रीय युवा नेतृत्व उभर रहा है | हो सकता है कि मतदान की कसौटी अब आन्तरिक ईमानदारी की नयी पहचानें कायम कर सकें | हो सकता है तुम्हारा समदर्शी सर नेम आने वाले कल में सचमुच सार्थक हो जाये | नये घर के द्वार पर कलुआ (कुत्ते का नाम ) मेरी अगवानी में खड़ा था | उसने हल्की भौंक के साथ मेरा स्वागत किया |
इसे मैं अपना सौभाग्य ही कहूंगा बी.ए. करने के बाद मुझे जन सम्पर्क विभाग में सरकारी नौकरी मिल गयी | बात करीब पन्द्रह वर्ष पहले की है और उस समय नौकरियों की बोली तो लगती थी पर इतने खुले आम नहीं जैसा कि आजकल होता है | नौकरी लगने का एक कारण यह भी था कि मैं कालेज के स्टेज पर कुछ गानें -बजानें लगा था और कभी -कभी नाटक वैगरह में भी छोटा -मोटा रोल कर लेता था | बीसवीं शताब्दी के नवें दशक के बीच एक चुनाव में हम कुछ शिक्षित युवा कलाकारों को जीविका के लिये एक राजनीतिक पार्टी के प्रचार से जुड़ना पड़ा | छोटी -मोटी पहचान बन गयी और बी. ए. करने के बाद जन सम्पर्क विभाग ने एक इंटरव्यूह के बाद सरकारी योजनाओं के प्रचार के लिये एक घुमन्तू कलाकार के रूप में एक जीविका का साधन हाँथ लग गया | शहर के पास एक देहाती इलाके में एक छोटा सा प्लाट लेकर डाल दिया था | जिसे पन्द्रह वर्ष के बाद तीन कमरों के एक मकान के रूप में बदल देने का जुगाड़ कर पाया | सोचा गृह प्रवेश के लिये अपने कालेज के अजीज अध्यापकों को भी आमन्त्रित कर लिया जाय | और सबसे पहला नाम जो मेरी स्मृति में उभरकर आया वह था राम बलि मिश्रा का | वे मुझे अंग्रेजी पढ़ाते थे और कालेज में मंच पर भी मुझे बुलाकर उत्साहित किया करते थे | यद्यपि उनको सेवा निवृत्त हुये काफी वर्ष हो गये थे पर फिर भी वे मुझे यदा -कदा मिल जाते थे और मैं जानता था कि वे स्वस्थ्य हैं और मुझे स्नेह करते हैं | मई की एक शाम को जब मैं उनसे मिलने उनके कमरे में पहुंचा तो वे घूमने की तैय्यारी कर रहे थे | मैनें गृह प्रवेश की बातचीत की और फिर उनके साथ घूमने की इच्छा भी व्यक्त की | घूमते समय मैनें देखा कि उनके बायें हाँथ की तर्जनी पर नाखून के ऊपर वोट डालने की स्याही अभी तक लगी हुयी थी | वोट डाले काफी दिन बीत चुके थे और सारे परिणाम भी 16 मई की शाम तक आ चुके थे | पर स्याही इतनी गहरी थी कि अभी पूरी तरह जानें में दस पन्द्रह दिन का समय और लेती दिखायी पड़ रही थी | मैनें उनसे कहा ,"सर आप भी आपकी बार वोट डालने गये थे | आप तो हमसे कालेज में अक्सर कहा करते थे, भारत की राजनीति में अधिकतर ज्यादा पढ़े -लिखे लोग वोट डालने के सम्बन्ध में उदासीन रहते हैं | अब शायद आप भी मानने लगे हैं कि उच्च शिक्षित वर्ग अगर वोट डालने के लिये आगे नहीं आता तो अच्छे आदमी चुनकर सत्ता की ऊंचाइयों पर नहीं पहुंच सकेंगें | उन्होंने कहा ,"हाँ ,कुछ अंशों में तुम्हारी बात में वजन है पर इस बार भी मेरा इरादा दूर से बैठकर सारे तमाशे को देखना ही था | पर क्या करूँ मनीष वत्स वोट डालने के एक दिन पहले घर पर आ गया और उसके साथ सत्ता में बैठे नेताओं के दो रिश्तेदार थे | मैनें पूछा कौन मनीष वत्स ? उन्होंने कहा कि तुम मनीष को भूल गये | वही जो कालेज में चुनाव लड़ा था और कुछ वोटों से जीतकर विद्यार्थी यूनियन का प्रधान चुना गया था | तुम क्या नहीं जानते कि मनीष इस समय खादी बोर्ड का चेयरमैन है | उसे सरकारी गाड़ी मिली हुयी है और राजधानी में एक फ़्लैट | मैनें कहा मनीष तो किसी अच्छी नौकरी में था क्या उसने नौकरी छोड़ दी | वे बोले नहीं , वह डेपुटेशन पर है और नौकरी पर अपनी जगह कायम है | मैनें कहा वत्स तो आपके खिलाफ काफी कुछ बका करता था क्योंकि आप अनुशासन लागू करना चाहते थे और वत्स था कि किसी भी अनुशासन से बाहर रहना चाहता था | मिश्र जी बोले ,भाई आजकल लीडरशिप उन्हीं लोगों को मिलती है जो अनुशासन नहीं मानते | तुम्हें तो याद है मैनें एक बार मनीष से कहा था कि पढ़ा -लिखा कर ,नहीं तो नक़ल -अकल करके बी.ए. पास भी हो गया तो सड़कों पर मारा -मारा फिरेगा | तुम तो जानते ही हो कि हम अध्यापक लोग सैकड़ों विद्यार्थियों के सम्पर्क में आते हैं उनमें से कुछ ही हमारी स्मृति में रहते हैं और बहुत सारे हमारी स्मृति से उतर जाते हैं | मनीष को भी मैं भूल चुका था | पर विधान सभा के चुनाव के एक हप्ते बाद मेरे दरवाजे पर एक सरकारी गाड़ी रुकी | मनीष उतरकर नीचे आया और नीचे सीढ़ियां चढ़कर मेरे पास कमरे में पहुंचा | पैर छूकर बोला ," गुरू जी मैं खादी बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया हूँ | आप कहते थे मैं सड़कों पर घूमूँगा | आपके आशीर्वाद से मैं अब बॉडी गाड और ड्राइवर के साथ सड़कों पर ही घूमता हूँ | मिश्रा जी आगे बोले कि उन्होंने मनीष वत्स को आशीर्वाद दिया और बोले बेटे अब आगे आसमान में उड़ोगे | मनीष ने कहा गुरूजी मैं आपके पास इसलिये आया हूँ कि परसों शाम को पांच बजे ब्राम्हण धर्मशाला में मेरे स्वागत समारोह का आयोजन है आप को उसमें आना तो है ही साथ ही अंग्रेजी में मेरी प्रशंसा में कुछ बोलना भी है | इससे मेरी बिरादरी में धाक जम जायेगी | आपको लेने गाड़ी आ जायेगी | इन्कार न करियेगा | इतना कहकर वह पैर छूकर और यह कहकर कि उसे जल्दी है चला गया | उस दिन के बाद 4 वर्ष बाद वह इलेक्शन के 2 दिन पहले मेरे पास आया था | गाड़ी में उसके साथ दो सज्जन और थे जिसे उसने मुख्य मन्त्री का रिश्तेदार बताया | कहने लगा हमारी बिरादरी हमारे पीछे है या नहीं इस बात का फैसला वोटों से ही होगा | ब्राम्हण वोट पड़ने ही चाहिये | मिश्रा जी ने कहा कि उन्होंने जोर देकर यह कहना चाहा कि वे जन्म से पायी गयी जाति में विश्वास नहीं रखते पर मनीष था कि उसने हाँ करवाकर ही छोड़ी |
प्रो० रामबलि जी ने फिर आगे बताया कि कैसे उन्होंने काफी परेशानी के बाद उस बूथ का पता लगाया जहां उनका वोट पड़ना था | काफी खोज बीन के बाद आइडेन्टिटी कार्ड दिखाने के बाद उनका और उनकी पत्नी के फोटो मिल पाये और फिर पुरानी वोटर लिस्ट के नम्बरों पर झगड़ा खड़ा हो गया | आखिरकार नयी वोटर लिस्ट आयी और नये नम्बर मिले | वे लाइन में जा खड़े हुये सुबह पौने दस से ग्यारह तक कड़ी धूप के बीच खड़े रहने के बाद उनका नम्बर आया | मेज पर बैठे पहले व्यक्ति ने पूछा कि पर्ची कहाँ है ? उन्होंने अपना वोटिंग नम्बर बताया | उसने पूछा कि पर्ची क्यों नहीं बनवायी | उन्होंने कहा आप अपनी लिस्ट में देखिये ,आखिर लिस्ट में उनका और उनके पिता का नाम मिला | अब दूसरे ने कहा दस्तखत करोगे या अंगूठा लगायेंगें ? उन्होंने कहा अंगूठा भी है और पेन देना चाहें तो उंगलियां और अंगूठा से पकड़कर दस्तखत भी कर देंगें | स्याही लगाने वाले ने नाखून रंगकर उंगली के पहले पोर तक काली लकड़ी घुमा दी फिर वे अन्दर एक कोनें में भेजे गये जहां उन्होंने काफी देर बाद वह निशान पाया जिसके सामने की नीली बटन उन्हें दबानी थी | बटन दबाने के बाद हुयी हल्की घण्टी की आवाज ने उन्होंने आश्वस्त कर दिया कि उनका वोट पड़ गया है | बाहर आकर उन्होंने देखा कि क्या कोई कैमरा वाला उनकी रंगी उंगली की तस्वीर लेने के लिये खड़ा है या नहीं | कुछ देर के लिये वे भूल गये कि वे एक सामान्य सेवा निवृत्त कर्मचारी है और उन्हें अखबारी बड़प्पन का नशा नहीं करना चाहिये |
घूमते -घूमते हम पंजाबी हायर सेकेण्डरी स्कूल के ग्राउन्ड में पहुँच गये | मैनें देखा कि कलुआ चौकीदार बाहर खड़ा है | वह मुझे जानता था बोला कि पण्डित जी कुर्सी निकाल देता हूँ थोड़ी देर बैठ लीजिये ,बड़ी उमस है | फिर प्रोफ़ेसर मिश्रा की ओर देखकर बोला ओहो ,आप तो उस दिन वोट डालने के लिये लाइन में बिल्कुल मेरे पीछे खड़े थे | मैं जान गया था कि आप कोई पढ़े -लिखे आदमी हैं | क्योंकि आप गुमसुम खड़े थे और किसी से बोलचाल नहीं कर रहे थे | मैनें पूछा ,कलुआ तेरा वोट तो विरादरी के नाम पर पड़ा होगा | उसने कहा पण्डित जी हम लोगों की क्या विरादरी | कलुआ को तो कलिया और बोतल चाहिये ,जो कोई दे देता है उसी की विरादरी में शामिल हो जाता हूँ |आप लोग ऊँचे आदमी हैं | आप पैसे पर नहीं बिकते ,बिरादरी के नाम पर बिकते हैं | बिकते हम सब हैं | हाँ ,बिकने के रास्ते अलग -अलग हैं मैं सोचने लगा कि कलुआ इतनी गूढ़ बातें कैसे करने लगा | जनतान्त्रिक प्रक्रिया आर्थिक आधार तलाशने के लिये नये -नये रास्ते प्रदान कर रही है | यह ठीक है कि न बिकने वाला बोट भी उभरकर सामने आ रहा है पर यह भी झूठ नहीं है कि विशिष्ट पहचान की लालसा भी बिकने का ही एक अलंकृत बहाना है | मैनें रामबलि मिश्रा जी के पैर छूकर कहा मिश्रा जी हम अब यहां से घर जायेंगें | कल के गृह प्रवेश की तैय्यारी करनी है | आइयेगा अवश्य | हमें पण्डित समाज को संगठन के ठोस दायरे में बाँधना होगा | घर वापस जाते हुये मैनें अपने से ही प्रश्न किया या यों कहें कि मेरी आधुनिक चेतना ने मेरी खण्डित चेतना से प्रश्न किया | तुम अपने को समदर्शी कहते हो | यह सर नेम लगाकर तुम संसार को यह दिखाने की कोशिश करते हो कि तुम जाति ,वर्ग ,क्षेत्र और पूजा पद्धत्तियों की विभिन्नताओं से ऊपर उठ चुके हो पर क्या सचमुच में ऐसा है | क्या तुम कलुआ का ही सफेदपोश रूपान्तरण नहीं हो | तुम्हारी वैश्विक चेतना जातिवाद का मुकुट ओढ़ने के लिये तुम्हें क्यों प्रेरित करती है ? बहुत देर टटोलने के बाद मुझे मेरे भीतर से एक आश्वस्त करने वाला उत्तर मिला | भारत की राजनीति विगत दो दशकों से जाति -उपजाति ,क्षेत्र -उपक्षेत्र ,मन्दिर -मस्जिद ,तमिल -सिंहल ,मराठी मानुष -बिहारी भैय्या ,ह्त्या -फिरौती ,मूर्ति स्थापना ,और जन्मदिन समारोहों के घेरे में फंसी थी | तुम इतने बड़े नहीं हो कि इन सबसे ऊपर उठ पाते | अब फिर सच्चे अर्थों में एक राष्ट्रीय युवा नेतृत्व उभर रहा है | हो सकता है कि मतदान की कसौटी अब आन्तरिक ईमानदारी की नयी पहचानें कायम कर सकें | हो सकता है तुम्हारा समदर्शी सर नेम आने वाले कल में सचमुच सार्थक हो जाये | नये घर के द्वार पर कलुआ (कुत्ते का नाम ) मेरी अगवानी में खड़ा था | उसने हल्की भौंक के साथ मेरा स्वागत किया |
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