Friday 15 September 2017

                                                         संस्कृत से दूध जलेबी तक
                 पण्डित दीना नाथ ने संस्कृत साहित्य में डाक्टरेट की | सौभाग्य से उसी समय उ ० प्र ० के रायबरेली के फिरोजगांधी महाविद्यालय में संस्कृत प्रवक्ता की एक पोस्ट खाली हुयी | अपने गुरु और रिसर्च गाइड अंबरीष शास्त्री की सिफारिश के बल पर वे इण्टरव्यूह में सेलेक्ट कर लिये गये | डा ० दीनानाथ का व्याह तो हो चुका था पर अभी तक कोई सन्तान न थी | महाविद्यालय परिसर में क्वार्टर न मिलने के कारण उन्होंने किराये पर एक मकान ले लिया | मध्यम वर्गीय जीवन चल निकला | संस्कृत प्रवक्ताओं को ट्यूशन और कोचिंग से अधिक आमदनी नहीं हो पाती | इसलिये वह विज्ञान और अंग्रेजी के प्राध्यापकों से मन ही मन थोड़ा -बहुत खिन्न रहते हैं | डा ० दीनानाथ भी वेद और शास्त्रों की महिमा और संस्कृत साहित्य के अमर गौरव की बातें करते न थकते थे ,इसमें कोई शक नहीं कि संस्कृत पर इनका अच्छा अधिकार था | पर बोलचाल की भाषा न होने के कारण संस्कृत के विद्वान को   गौरव  गोष्ठियों में ही मिल पाता है | समय पाकर प ० दीनानाथ के दो पुत्र हुये श्री धर बड़ा था और हलधर उससे तीन वर्ष छोटा | बच्चों की मां सद्ग्रहणी थी ,घर के काम -काज और पूजा -पाठ में लगी रहती थी | घर की सफाई के लिये एक अंशकालिक महरी लगा ली गयी थी | श्रीधर जब पांच वर्ष का हुआ तो उसकी शिक्षा -दीक्षा प्रारम्भ हुयी | वह पढनें -लिखने में बहुत तेज था , हर वर्ष अपनी कक्षा में प्रथम आता | इनाम पर इनाम इकठ्ठे होते चले गये | पण्डित दीनानाथ को गर्व था कि उनका लड़का उनकी ख्याति को चतुर्दिक फैला देगा | पर छोटा लड़का हलधर श्रीधर से बिल्कुल उल्टा था बड़ी मेहनत के बाद बस इम्तहान भर पास कर पाता था | समय तो निरन्तर गतिशील है देखते -देखते 10 वर्ष निकल गये | श्रीधर अब कालेज का टॉपमोस्ट विद्यार्थी था और हलधर हाईस्कूल में फेल होकर दुबारा इम्तिहान की तैय्यारी कर रहा था | भगवान् का भी कैसा विचित्र  विधान है दोनों सन्तानें मां बाप के संयोग से जन्मी थीं पर दोनों की प्रतिभा अलग -अलग थी | श्रीधर ऊंची साहित्यिक बातें करता था और हलधर अलग -अलग किस्म की मिठाई खानें में लगा रहता था | कई बार वह अपने एक दोस्त जिसके पिता मिठाई की एक दुकान करते थे के पास चला जाता था और वहां मिठाइयों के सम्बन्ध में जानकारी इकठ्ठा करता और मित्र की मित्रता के बल पर उनका स्वाद भी चखा करता था | अर्ध दशक की कड़ी मेहनत के बाद श्रीधर सबार्डिनेट सर्विसेस का इम्तहान पास कर गया और नायब तहसीलदार के नाते उसकी नियुक्ति हो गयी | डा ० दीनानाथ ने चारो ओर कहना शुरू किया कि थोड़े ही दिनों में श्रीधर तहसीलदार हो जायेगा फिर डिप्टी कलक्टर और उसे कलक्टर बन कर रिटायर होना है | घर में खुशियां फ़ैल गयीं और बड़े -बड़े घरों से सम्बन्ध आने प्रारम्भ हो गये | हलधर दूसरी बार भी हाईस्कूल में गणित में रह गया | पण्डित दीनानाथ बहुत नाराज हुये बोले तू क्या करेगा ,ठेला लगायेगा ,अपने भाई को देख तूने घर की इज्जत चौपट कर दी ,लोग कहते हैं कि प ० दीनानाथ का दूसरा लड़का गुन्डू है | विचारा हलधर बिना बोले सब कुछ सहता रहता | आखिर उसके पिता की बातों में सच्चाई  तो थी ही | क्या करे उसको  गणित भी नहीं आती | दुकान भी कोई खुलवायी जाय तो हिसाब -किताब में गड़बड़ी करेगा | निराशा भरे क्षणों में वह अपने दोस्त श्रीदत्त के पास चला जाता और जब श्री दत्त के पिता घर होते और श्री दत्त मिठाई की दुकान पर होता तो वह मिठाई की दुकान पर भी बैठ जाता | उसके दोस्त ने उसे बताया कि पहले उसकी दुकान का पेड़ा बहुत चलता था पर अब लोग जलेबी ज्यादा खानें लगे हैं पर रायबरेली में अच्छी जलेबी बनाने वाले हैं ही नहीं | लखनऊ के मोटेमल हलवाई की जलेबी जो एक बार खा लेता है जिन्दगी भर नहीं भूलता | उस दिन हलधर जब अपने घर आया  तो वह किसी गहरी सोच में पड़ गया उसने अपने पिता से कहा कि वह लखनऊ जायेगा ,उसके पिता ने उसे डांट लगाई क्या करेगा लखनऊ जाकर ,झाड़ू लगायेगा | मेहनत करके हाई स्कूल पास करे कहीं चपरासी -अपरासी लगा देंगें | हलधर ने अपनी मां के पास रोकर कहा कि उसे 500 रुपये दे वह दो तीन दिन में लखनऊ में नौकरी तलाश करके कोई छोटा -मोटा काम कर लेगा ,यदि न मिला तो वापस आ जायेगा | माँ की ममता तो अपार होती है | वैसे हलधर छोटा होने से मां को अधिक प्यारा था | श्रीधर बड़े भाई में कुछ बड़प्पन का भाव आ गया था | यद्यपि उसके भारतीय संस्कार उसे विनम्र बनाये रखते थे | मां से 500 रुपये लेकर हलधर लखनऊ में मोटामल की दुकान पर  पहुंचा | मोटामल के पास दो -तीन नौकर थे ,पर एक नौकर बड़ा कामचोर था ,कई दिन से काम पर नहीं आ रहा था | कड़ाही पूरी तरह साफ़ नहीं होती थी क्योंकि दूसरे नौकर कड़ाही की सफाई के काम को इतना अच्छा नहीं जानते थे जितना कि वह कामचोर नौकर | मोटामल ने हलधर से कुछ घर की बातें पूछीं जान लिया कि लड़का अच्छे घर का है ,चोरी- चकारी नहीं करेगा | फिर बोला कढ़ाई साफ़ कर लोगे | हलधर सब कुछ करने को तैय्यार था , वह जानता था कि पढ़ाई में अब वह आगे नहीं बढ़ सकता पर जिन्दगी में कुछ करके अवश्य दिखलायेगा | उसने हमीं भरी मोटेमल ने कहा अच्छा ठीक है अन्दर और नौकरों के साथ बैठो शाम को कढ़ाई साफ़ करके दिखाना | उस शाम हलधर कढ़ाई की सफाई में डेढ़ -दो घण्टे लगा रहा | ,वह काफी बड़ी कड़ाही थी वैसे तो और भी कढाइयाँ  थीं पर कई कढ़ाइयों से होकर इस बड़ी कढ़ाई के जलाव में जलेबी को विशेष स्वाद देने के लिये डाला जाता था | मोटामल काम देखकर बहुत खुश हुआ ,शाबासी दी बोला बताओ रहोगे कहाँ | हलधर ने कहा दुकान पर ही सो लेगा और पास के सड़क के ढाबे में खा आया करेगा | मोटामल ने उसे रोज के 100 रुपये और 200 ग्राम जलेबी देने पर नौकर रख लिया |
                                     इधर श्रीधर की शादी तय हो गयी | लड़की अभी एम ० ए ० के फाइनल में थी इसलिये शादी की तिथि फ़ाइनल इम्तहान  होने के बाद की तय की गयी | हलधर को अपने दोस्त के द्वारा सारी सूचना मिल जाती थी | उसके दोस्त नें उससे कहा कि पड़ोस में एक मिठाई की दुकान खाली होनें वाली है उसके पिता उसे खरीदना चाहते हैं | अगर हलधर तबतक काम सीख जाता है वही हमारे पास आकर यहीं रायबरेली में ही अपनी दुकान चला ले | हलधर भले ही हाई स्कूल न कर पाया हो पर अब उसने बड़े गौर से जलेबी बनाने की प्रतिक्रिया को देखनें -समझनें की कोशिश की | किस तरीके से और कितनी देर तक मैदा फेटी जायेगी उसमें और क्या -क्या मिलाया जायेगा | किस ब्राण्ड के शुद्ध घी का इस्तेमाल होगा | कितनी देर तक जलेबी घी कढ़ाई में रहेगी | जलेबी के वर्तुल आकार को किस तरीके से खूबसूरत बनाया जाय | उसके रंग को निखारनें के लिये क्या कुछ और अतिरिक्त समिश्रण की आवश्यकता है | बड़ी कडाही  में जलाव किस मात्रा में और कितनी मिठास का बनेगा और उसमें गर्म शुद्ध घी की महक लिये हुये चक्राकार जलेबी कितनी देर तक भिगो कर रखी जायेगी फिर यदि सारा माल हाथ के हाथ नहीं बिक जाता तो उसका संरक्षण कैसे किया जायेगा ताकि उसके स्वाद में कोई कमी न आये | चार महीनें के कठिन परिश्रम , घोर ईमानदारी और सीखने की तीव्र अन्तर इच्छा ने हलधर को पक्का जलेबी एक्सपर्ट बना दिया | मोटेमल का माल हांथो हाँथ बिक जाता था | जलेबी निकलने से पहले ही ग्राहकों की भीड़ लगी रहती थी | कइयों को लम्बा इन्तजार करना होता था | मोटेमल ने दुकान के पास एक अलग भट्टी पर अपने लड़के सोने लाल को भी गर्म दूध की कडाही के साथ बिठा रखा था | मलाई पड़ा हुआ दूध और मोटेमल की चक्राकार जलेबियाँ सुबह के लिये एक बहुत अच्छा नाश्ता मानी जाती थीं | डा  ० दीनानाथ को हलधर के विषय में जानकारी करने के लिये श्री दत्त के पिता से मिलना पड़ा | यह जानकर कि वह जलेबी की दुकान पर कढ़ाई मांज रहा है डा ० दीनानाथ झल्ला गये | घर आकर हलधर की मां से लड़ाई की बोले तुमनें पैसे देकर लड़के को बर्बाद कर दिया | अब दुनिया कहेगी डा ० दीनानाथ का लड़का हलवाई की दुकान पर कढ़ाई मांजता है | मैं तो मुंह दिखाने लायक नहीं रहा | हलधर की मां ने धीरे से कहा कमा कर खाता है चोरी तो नहीं करता | देख लेना एक दिन हलधर हमारे लिये सहारा बनेगा | कभी -कभी मोटामल जब अस्वस्थ होते तो दुकान में आकर गद्दी पर बैठ जाते और जलेबी बनाने का पूरा काम हलधर करता था और उसकी बनी हुयी जलेबी मोटामल की जलेबी से कम नहीं मानी जाती थी |जैसे -जैसे हलधर का हाँथ साफ़ होता गया वह और बढ़िया कारीगर बनता गया | अब ग्राहक मोटामल की जलेबी पसन्द न करके हलधर के हाँथ की जलेबी मांगनें लगें | मोटेमल ने सोचा कि यह लड़का तो उसे बाजार में नाकामयाब कर देगा | इसलिये उसने हलधर से कहा कि वह अपना और कहीं इन्तजाम कर ले |
                                                हलधर यों तो हाई स्कूल पास नहीं कर पाया था पर उसने अंग्रेजी का एक वाक्य या कहावत सुन रखी थी | " God helps those who helps themselves ." हलधर ने अपने दोस्त श्रीदत्त से मुलाक़ात की जैसा कि पहले कहा जा चुका है पास वाली दुकान को श्रीदत्त के पिता ने खरीद लिया था | श्रीदत्त के पिता जलेबियाँ नहीं बनाते थे बाकी और सब मिठाइयां बनाते थे ,उनका पेड़ा तो सारे शहर में मशहूर था | हलधर ने श्रीदत्त की मदद से पास की दुकान में जलेबी का काम शुरू किया साथ में ताजा दूध मलाई चढ़ाकर जलेबी के साथ लेने के लिये लोगों में नाश्ते की नयी आदत डालने की कोशिश की |  अच्छी और शुद्ध चीज सभी को भा जाती है | हलधर का काम चल निकला ,उसने श्रीदत्त के पिता को जो किराया जो माँगा देना शुरू कर दिया | खर्च निकालकर उसे  शुरू में दो तीन सौ रुपये प्रतिदिन की बचत होने लगी | लखनऊ से कुछ नयी बातें भी सीख आया था | उसने अपनी जलेबी और दूध के प्रचार के लिये पर्चे छपवाये और अखबार के हॉकरों को कुछ पैसे देकर उन पर्चों को घर -घर पहुंचाया | जो भी हलधर के  दुकान की जलेबी खाकर उसका दूध पी गया वह वह फिर हमेशा के लिये हलधर का ही हो जाता था | दुकान पर इतनी भीड़ होने लगी कि उसने सफाई और दूसरे कामों के लिये दो लड़के लगा लिये | अब सारे शहर में हलधर की जलेबी और दूध ,श्रीदत्त का पेड़ा मशहूर हो गया | बड़े भाई श्रीधर की कुल तनख्वाह कुल मिलाकर 2000 रुपये पड़ती थी हलधर ने पाया कि वह नौकरों का खर्च निकालकर 1000 रुपये की आमदनी प्रतिदिन करने लगा | काम बढ़ाने के लिये वह शहर के मुख्य मार्ग पर दुकान की तलाश करने लगा | हर रोज की आमदनी बैंक में जमा करने लगा | डा ० दीनानाथ अभी तक हलधर की दुकान पर नहीं गये थे पर धीरे -धीरे उन्होंने अपने कालेज के साथी प्राध्यापकों से हलधर की जलेबी और दूध की तारीफ़ सुनी पर उनका आभिजात्य का अहंकार अपने बेटे को हलवाई बना देखकर चोटिल हो रहा था | इधर श्रीधर की शादी की तारीख निकट आ रही थी ,चढ़ावे के लिये पूरी उत्तर प्रदेशीय परम्परा में सोने के बनें कुछ गहनें बनवानें आवश्यक होते हैं | सोना 30 -31  हजार 10 ग्राम की ऊंचाई पर चल रहा था , जेवरों की कीमत लाखों में पहुँच रही थी | श्रीधर के पास अभी इतना पैसा नहीं था | डा ० दीनानाथ ने अपने प्रावीडेन्ट फण्ड से लोन लेने के लिए अप्लाई कर दिया | शिवदत्त के द्वारा यह सूचना हलधर को मिली | हलधर उस शाम घर पहुंचा , मां के पास बैठकर डरता -डरता पिता का इन्तजार करने लगा | जब पिता जी आये तो उसने पैर छुये पर डा ०   दीनानाथ ने उससे बातचीत नहीं की | हलधर ने मां को बताया कि पिताजी को लोन लेने की जरूरत नहीं है , जेवरों के लिए जो पैसा लगेगा मैं दूंगा | फिर वह अपनी दुकान पर चला गया | उसकी दुकान पर अब 5 -6 नौकर काम करते थे और सुबह 6 बजे से दिन को 10. 30 बजे तक सड़क पर  भीड़ खड़ी रहती थी | हलधर की मां ने रात को यह बात अपने पति दीनानाथ को बतायी | डा ० दीनानाथ चकित रह गये , हे भगवान् हाई स्कूल पास न करने वाला भोंदू 50000 /-रुपये का आदमी बन गया | मां ने कहा हलधर कहता था कि उसने एक नयी दुकान देखी है वहां पर अपनी नयी ब्रांच खोलेगा | अब नयी प्रकार की मशीन आ गयी है | जिनसे बहुत गोल खूबसूरत जलेबियाँ निकाली जा सकती हैं | जलाव में भी कुछ पौष्टिक रसायन मिलाये जाते हैं | अब पेड़े बर्फी का संसार सूना होने लगा है और जलेबी का संसार बसने लगा है | फिर डा ० दीनानाथ की पत्नी ने कहा देखा मेरा भोंदू हलधर तुम्हारी पंडिताई को मात कर गया | भगवान ने चाहा तो एक दिन आपको हलधर ही गौरव के शिखर पर बिठा  देगा | श्रीधर की अफसरी ससुराल के बंधनों से घिर जायेगी पर हलधर आखरी सांस तक हमारी सेवा करेगा | मैं उसके लिये कोई एम ० ए ० फेमें बहू नहीं लाऊंगी ,बढ़िया भोजन बनाने वाली ,गृहस्थी चलाने वाली सामान्य घर की ब्राम्हण कन्या हमारे घर का श्रृंगार बनेगी | फिर हंसकर बोली पण्डितजी एक काम करो हलधर की दुकान पर जाकर उसे आशीर्वाद दे आओ और कह देना की उसकी मां ने जलेबी और दूध मंगाया है | सारी जिन्दगी बाजी जीतने वाले डा ० दीनानाथ अपने भोंदू लड़के से बाजी हार गये |

No comments:

Post a Comment