Wednesday 26 July 2017

घसीटे ने डायलागों पर बहुत मेहनत की थी पर माँ भगवती का उच्चारण उसके मुंह से साफ़ नहीं निकल रहा था | दरअसल उसकी जहरीली पत्नी का नाम भगवन्ती था | वो भी एक लम्बी -चौड़ी औरत थी जो दूसरों के खेतों में मजदूरी करके अपना ,अपने पति और अपने तीन बच्चों का पेट पालती थी | जब खेतों ,खलिहानों से मजदूरी करके वह लौटती तो उसका शरीर इतना थका होता कि गाँव की राम लीला उसे अपनी ओर नहीं खींच पायी थी  पर दूसरे दिन की राम लीला में घसीटे ने जिसे रोल अदा करने के लिए कुछ पिलाने का लालच दिया गया था ,अपनी पत्नी के सामने शेखी मारी थी कि उसका आज का ताड़का का रोल गाँव के लोगों के लिए यादगार बन जाएगा उस दिन भगवन्ती ने रमाकान्त के पिता के खेतों में ज्वार के भुट्टे काटे थे | काटे गए भुट्टों में से १/१० हिस्सा उसको भी मिला था  घसीटे को तो पार्ट तैय्यार करने के लिए रमाकान्त ने काफी कुछ खिला दिया था पर घर पर बच्चे माँ को तंग कर रहे थे कि उसे कुछ पैसे दें ताकि मेले में लगी दुकानों से वे मोमफलियाँ खरीद सकें | भगवन्ती ने घर आकर मूसल से भुट्टे कूटे | निकली हुयी जुडरी को लेकर वह लाला मुसद्दी मल के यहाँ बेच आयी | मुसद्दी की छोटी सी दुकान गाँव में थी और सारे गरीब पासियों के घर उसी के सहारे उधार पर चलते थे | मुसद्दी ने उससे कहा था ,"अरे भगवंतिया ,आज तो तेरा शौहर अपना जौहर दिखायेगा जा के देख आना |" भगवन्ती पैसे पाकर खुश थी अब बच्चों के लिए मूँगफलियाँ खरीदनें का बल उसमें आ गया था और इसलिए वह अपने तीनों बच्चों को लेकर बिछी दरियों पर सबसे पीछे जाकर बैठ गयी | विश्वामित्र जी का और राम लक्ष्मण जी का जंगल से गुजरना ,जंगल के प्रमुख स्थानों का परिचय ,राक्षसों की अमानवीय रत  लीलाओं से परिचित कराना आदि होने के बाद विश्वामित्र उस आश्रम की ओर बढ़ते हैं | जहां ताड़का का आतंक हर पत्ते के हिलने से झंकृत होता था | उस वन खण्ड का प्रत्येक वृक्ष वायु के झोंकों से जब हिलता तो लगता जैसे ताड़का ताड़का की आवाज आ रही है | अब समय आ गया था जब परदे के पीछे से दौड़ती हुयी ताड़का दर्शकों के सामने आकर तखत पर खड़ी हो जाय | राम ,लक्ष्मण तखत के पार्श्व में खड़े थे ,बीच में गुरु विश्वामित्र के साथ इतने तख्तों का इंतजाम नहीं हो सका था कि विश्वामित्र के साथ खड़े हुए राम ,लक्ष्मण ऊपर ही रहते और ताड़का दौड़कर अपनी डींग हाँकती रहती इसलिए वे पार्श्व में खड़े थे | मैनेजमेंट ऐसा किया  गया था कि नीचे रहकर ही दर्शकों की ओर मुंह करके लक्ष्मण जी अपना संवाद बोले | हुआ यों कि जब काला चोंगा और काली लुंगी बांधे घसीटा बाहर निकलने के लिए फुर्ती से उठा तो उसका चोंगे में छिपा हुआ मूसल फिसल कर नीचे गिर पड़ा और उसे पता तक नहीं लगा | परदे से बाहर आते ही घसीटे को लगा कि उसका मूसल तो है ही नहीं ,अब वह धनुष -बाण से लड़ाई कैसे लड़ेगा | उसे तो अपने डायलागों के साथ मूसल दो चार हाँथ करने थे | डायलॉग के उस हिस्से पर जब वह पहुंचा जहां उसे कहना था कौन माँ भगवती ?कहाँ है माँ भगवती ? माँ भगवती को हर रोज मैं मूसल से कूटती हूँ | "तब जोश में होने के कारण वह डायलॉग के कुछ शब्द भूल गया | उन शब्दों की जगह जो शब्द उसकी जबान पर सहज रूप से आ गए वही मुंह से निकलने लगे | रमाकांत जी  जानते थे कि आगे क्या होना है | इसलिए वे पीछे गिरे हुए मूसल को उठाकर घसीटे को देने आ गए | छह फुटा घसीटा लम्बे काले कुर्ते ,काली तहमद ,काली ओढ़नी और सन से रँगे काले बालों में बहुत भयानक लग रहा था | वैसे भी वह मर्द था उसके मन में आया औरत कितनी भी बहादुर हो औरत ही तो है मैं ताड़का न होकर ताड़कासुर बनूँगां | तख़्त पर से वह चिल्लाया कहाँ है भगवन्ती ? कौन है भगवन्ती ? मैं हर रोज भगवन्ती को मूसल से कूटता हूँ | रमाकांत ने पीछे से इशारा कर उससे मूसल लेने को कहा ताकि वह जमीन पर चार छह बार मूसल मार कर इस डायलॉग को फिर दोहरावे | कुंजरपुर के सभी उपस्थित दर्शक जिनमें स्त्रियां ही अधिक थीं घसीटे का भयानक रूप देखकर भयभीत हो उठीं पर इसी बीच एक घटना घट गयी | भगवंतिया नीचे से उठकर बड़ी तेजी के साथ औरतों के बीच से भगती हुयी स्टेज पर चढ़ गयी ,उसके पीछे तीनों बच्चे मूंगफलियों के दानें मुंह में डालते और छिलके फैलाते स्टेज के पास आ गए | मूसल हाँथ में लेकर घसीटे ने फिर दोहराया ,"कौन है भगवंतिया? भगवंतियाँ ने झपट कर उसका मूसल छीन लिया बोली दहिजार  मैं हूँ भगवंतिया ,तेरे बच्चों की माँ | तू मुझे ही मूसल से मारेगा जरूरत पडी तो मैं दो एक मूसल तेरी पीठ पर मारकर तेरी अकड़ निकाल दूंगीं | कामचोर बच्चों को खिला नहीं सकता ,ताड़ी पीकर पड़ा रहता है | ताड़का बनने चला है | फिर उसने मुनि विश्वामित्र और श्री राम और लक्ष्मण को प्रणाम किया और कहा महाराज आप और बड़े राक्षसों का वध करिये कुंजरपुर की इस ताड़का के लिए भगवंतिया ही काफी है | अपनी पियक्कड़ी में माँ भगवती को भगवंतिया कहकर पुकारता है | मैं अपना अपमान बर्दाश्त कर लूंगीं पर माँ भगवती का अपमान कतई बर्दाश्त नहीं करूँगीं | फिर उसने घसीटे को हाँथ से पकड़कर परदे के पीछे ले जाने के लिए खींचा और कहा चल दफा हो ताड़का मर गयी | अब मर्द बनना सीख इतना कहकर सूत जी बोले अरे बेटा कुछ झपकी सी आ रही है रामगुलमवा से बोल कि एक ठो प्याली गहरी चाय की बना लावै ,कल शाम को कथा का सूत्र आगे बढ़ाऊंगा | और एक -एक प्याला चाय पीकर मेरे घर की वो गप्प गोष्ठी समाप्त हुयी | | तभी बाहर से गाड़ी रुकने की आवाज आयी और मैं जान गया कि गृहणियां लीला देखकर अपने घर आ पहुँची हैं | श्री राम जी से मन ही मन प्रार्थना की कि वे मुझे रात्रि शयन में ताड़का दर्शन से बचावें| 

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