Monday 24 July 2017

कुन्जरपुर की रामलीला

                                                                   कुन्जरपुर की रामलीला

                         सूत जी आगे बोले , " मन्दिर पुनुरुद्धार के काम में मैं एक छोटे से गाँव कुन्जरपुर में जा पहुंचा | गाँव के एक कोनें में एक छोटा पानी का भराव था | बरसात में यह भराव लम्बा -चौड़ा हो जाता था पर गर्मी में एक तलैय्या जैसा दिखाई देता था | कुंजरपुर के लोग इसे गुरू तालाब के नाम से जानते थे | इस तालाब के एक कोने पर टूटा -फूटा श्री राम और सीता का मन्दिर था | मैं वहीं टिक गया | धीरे -धीरे मन्दिर का सुधार होने लगा | पास के बड़े गाँव में चला जाता | कभी -कभी शहरों में भी घूम आता | कुछ दानी और धर्म प्रेमी चन्दा देने लगे | दो वर्ष के भीतर -भीतर मन्दिर का पुनुरुद्धार हो गया | छोटा होने पर भी मन्दिर देखने में सुन्दर लगता था | गाँव के लोगों से कह सुन कर मैनें तालाब के किनारों को और बढ़ाना और गहरा करवाना शुरू करवाया | पिछले साल खूब बरसात हुयी थी | तालाब लबालब भर गया था अब उसके चारो ओर सीढिया बनाने की बात सोची | गंगाधाम के महन्त सांवल दास के पास पहुंचा उनसे प्रार्थना की उन्होंने अपने एक भक्त करोड़ीमल से कह दिया और इसप्रकार तालाब के चारो ओर सीढ़ियां बन गयीं | कुंजरपुर के लोग एक -एक करके अपने घर से एक दिन का भोजन ले आते थे | शाम को मैं केवल दूध ही लेता था | गाँव के लोग सीधे -सच्चे और निःश्च्छल हृदय के होते हैं | शाम के समय मन्दिर में आ बैठते | जीवन मरण की चर्चा होती रहती | अब गाँव के हर जन्म और मृत्यु में मेरा होना अनिवार्य बन गया | उत्सव और शादी व्याह में भी मुझे सम्मान मिलने लगा | मुझे जो भी मिलता सब मन्दिर की साज -सजावट में लग जाता | नये आले बनवाये और नयी मूर्तियां मगवायीं पर पुरानी श्री राम और माँ सीता की मूर्ति ही गर्भ गृह में स्थापित की गयी | मन्दिर की मान्यता बढ़ने लगी | कुंजरपुर ग्राम के कुछ लोग नये बीज और रासायनिक खाद का इस्तेमाल कर अच्छी फसल लेने लगे | कुछ लड़के पढ़ लिख कर प्राईमरी मास्टर बन गये | एक पोस्टमैन भी बन गया | और कुछ नवयुवकों ने शहर में जाकर कालेज में पढ़ना शुरू किया | कालेज में उन दिनों दशहरे से लेकर दीवाली तक लम्बी छुट्टियां होती थीं | अबकी बार रमाकांत और सज्जन सिंह जब छुट्टी में घर आये तो मन्दिर में मेरे पास आकर बैठ गये बोले ," महात्मा जी इस तालाब के आस -पास काफी मैदान पड़ा है हम लोग क्यों न यहां दशहरे में राम लीला का आयोजन करें | श्री राम और माँ सीता का मन्दिर तो यहां है ही | आपको आस -पास के गाँवों के लोग जानते हैं मेला चल निकलेगा | दुकानें आने लगेंगी | उनसे थोड़ा बहुत किराया ले लिया जाया करेगा | खर्चा निकलने लगेगा | शुरू में हम लोग खाते -पीते घरों से चन्दा इकठ्ठा कर लेंगें |
                                  मुझे उनकी बात अच्छी लगी | उनकी बात में दम था | धर्म भावना के साथ साथ व्यापारिक सूझ बूझ भी थी | वे दोनों ही बी ० काम ० के छात्र थे पर मैनें सोचा कि राम लीला के लिए अभिनय करने वाले छोटे बड़े कलाकार कहाँ से इकठ्ठे किये जायेंगें | रमा और सज्जन ने कहा कि शुरुआत तो  छोटे पैमाने पर ही होगी | गाँव के 10 -12 -13 वर्ष के बच्चों को राम ,सीता ,लक्ष्मण आदि बना दिया जाएगा | हनुमान का पार्ट हम दोनों में से कोई एक कर लेगा | रावण के पार्ट के लिए ऊदल पहलवान को ले लिया जायेगा आदि आदि | उन्होंने कहा पहले एक दो तख़्त डाल कर और एक दो दरियाँ बिछाकर काम किया जायेगा | उन्होंने कहा कि एक दो कनाते और एक तम्बू अपने क्लास रूम के साथी लाला छोटू मल के बेटे के घर से ले आयेंगें |
                                       मैं जानता था कि हर बड़े काम की शुरुवात छोटी होती है | माँ के पेट से आने वाला शिशु कितना नन्हा और असहाय होता है पर वही आगे चलकर भीम ,अर्जुन और आल्हा -ऊदल बनते हैं | पीपल ,बरगद और नीम के पेड़ों को ही देखो कितनी छोटी शुरुवात और कितना विशाल आकार ?एक दिन कुंजरपुर की रामलीला भी आस -पास दस कोशी में मशहूर हो जायेगी | मेरी सहमति होने पर रमाकान्त और सज्जन सिंह ने कोशिश करके कुंजरपुर के 15 -20  खाते पीते मन्दिर में बुलाकर और उनसे राय  -मशविरा कर रामलीला की एक योजना बना डाली | गाँव के एक कोनें में पासियों के कुछ घर थे | मैनें कहा कि उन पासी घरों में से भी किसी एक को बुला लाओ | रमाकांत ने कहा उनमें से ज्यादातर नशीलची हैं और घसीटवा तो ताड़ी पीने शहर तक जाता है | मैनें देखा था कि छः फुटा घसीटा शहर जाते समय मन्दिर में माथा टेकता हुआ जाता था | मैनें कहा अरे बेटो घसीटो को ही बुला लो | घसीटे ने सभी शारीरिक काम करने की हामी भरी और कहा खुदाई ,भरायी तखत बिछानें या पर्दा लगाने आदि किसी भी काम को वह खुशी खुशी करेगा और कोई मजदूरी नहीं लेगा | अब क्या था राम लीला चल निकली|  तय हुआ कि प्रारम्भ में राम लीला की कुछ छवियाँ ही बिछे तख्तों पर परदे लगाकर अभिनीत की जांय | एकाध गैस का हंडा लगा दिया जायेगा और सामने दरियों पर बैठकर लोग रामलीला के द्रश्य देख सकेंगें | एक ढोलकिया से कहकर आस -पास के गाँव में भी मुनादी करवा दी गयी | (क्रमशः )

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