Wednesday 12 July 2017

कैसे शिवली पहुंचूँ ?खबर मिली थी कि मेरी अनुपस्थित में छठी का सक्षिप्त समारोह कर लिया गया था और सावित्री ने गले की जंजीर ननद कमला को भेंट कर दी थी | जाकर एक अच्छे आयोजन का निर्वाह करना था | लगभग चौथाई सदी के बाद प्रभु ने एक ऐसा सुअवसर दिया था जब सम्बन्धी ,परिजन और पुरजन एकत्र होकर उल्लास में हिस्सा ले सकें | पहुंचने पर माता जी ने पैर छूने पर पहली बार मुझे सम्भवतः समर्थ पुरुष के रूप में स्वीकार किया | उनका दादी बनने का स्वप्न साकार हो गया था और अब परिवार की निरन्तरता के प्रति वे आश्वस्त हो गयीं थीं | सन्तरे के टोकरे गाँव भर में बटवा दिए गए -साथ में कुछ और फल व  मिठाई भी |  अखण्ड रामायण का आयोजन हुआ -और फिर एक विशाल सामूहिक भोज और उसके बाद भक्ति संगीत और गीत गान का हृदयहारी आयोजन | उदयनारायण ने इसमें बढ़ चढ़ कर भाग लिया | आसपास के प्रसिद्ध गायक बुलाये गये जिनमें सूर नाम से विख्यात केदार मिश्र भी थे | उनकी आँखों की रोशनी जा चुकी थी ,पर उनका गला और उनकी तान तथा स्वर हजारों में से एक था | सारा गाँव उस समारोह में एकत्रित था | मुझे उनके गीत की एक पंक्ति अभी तक याद है | हारमोनियम के आलाप पर उन्होंने सुरीली व प्रभावशाली आवाज में गाया -"धनवानों की दुनिया है रे ,निर्धन के धन राम,एक मुडेरे छाया फ़ैली ,एक मुडेरे घाम |"पहाड़ी नाम के एक दूसरे गायक ने अच्छा समा बांधा | उसके ध्रुपद लोगों को झुमा देते थे | लगभग पूरी रात्रि का यह आयोजन रहा | उत्सव के बाद कुछ दिन खुमारी के रहे और फिर कर्तव्य बोध की भावना मन में उभरने लगी | Autum Break की छुट्टियों के बाद रोहतक जानें से पहले माता जी ने बताया कि राजा की शादी के सम्बन्ध में एक बार लक्ष्मण प्रसाद पाठक की पत्नी ने उनसे अपनी लड़की के सम्बन्ध में जिक्र किया था ,पर उन्होंने साफ़ इन्कार कर दिया था | कुछ और बातें भी इस बीच मेरे कानों में पडी थीं | परिवार में ही  दूर की एक अधेड़ उम्र रिश्तेदार के साथ राजा के दुर्व्यवहार की बात सुनने में आयी थी | वह बात इसलिए आगे नहीं बढ़ी थी क्योंकि वह अधेड़ असहाय नारी बहुत कुछ हम लोगों के परिवार पर ही आश्रित थी | इधर -उधर पड़ोस की कई घटनाएं मैं पहले भी सुन चुका था | अब वे अच्छे खासे कद्दावर जवान हो गए थे और उनके आगे कोई कैरियर नहीं दिखायी पड़ता था | जे ० बी ० टी ० कोर्स से उन्हें निकाल दिया गया था | और मन्नीलाल वकील के लड़कों द्वारा किसी स्कूल में काम दिलाने का वादा एक खोखला आश्वासन साबित हुआ था | मैं जानता था कि  वे स्व ० लक्ष्मण प्रसाद पाठक के बड़े लड़के अयोध्या प्रसाद लंगड़ के घर पर उठते बैठते हैं और वहाँ हारमोनियम पर गाना गानें की महफ़िल भी लगती है | मैनें यह भी सुना था कि पाठकाइन की छोटी लड़की पढ़ने में होशियार है और मिडिल स्कूल द्वितीय श्रेणी में पास कर चुकी है  वह गाना भी गाना जानती है|  स्वाभाविक है कि माँ व भाइयों से उत्साह पाकर राजा से मित्रता का प्रयास कर रही हो | पाठकों के पास खेतों से खानें को तो कुछ हो जाता था पर शादी में लेने -देने को कुछ नहीं था | और बड़ी हो रही लड़की को अच्छे परिवार में भेजने की चालाकी भरी योजना में राजा को एक कड़ी के रूप में हिलगा लिया गया था | मेरे सामने प्रश्न यह था कि उनके लिए कहीं और से प्रस्ताव ही नहीं आया था | कान्यकुब्ज ब्राम्हणों में पाठक ,उपाध्याय ,अग्निहोत्री व चतुर्वेदी छोटी मर्जाद के ब्राम्हण मानें जाते हैं | दूसरे पाठकों का गोत्र अवस्थियों के गोत्र से मिलता है | माता जी अपने इन्कार का आधार इन्हीं कारणों को दे रही थीं | ,पर वास्तविकता यह थी कि उन्हें पाठक भाइयों के चाल -चलन से सन्तोष नहीं था और वे जानती थीं कि उनका परिवार भुक्खड़ है | शादी की बात चीत मकान बन जाने के बाद प्रारम्भ की गयी थी ,क्योंकि पाठकों को पता था कि खेतों का अन्न ,बाग़ के आम ,व माँ का वेतन राजा के पल्ले में पडेगा ही ,इसलिए लड़की को कोई कष्ट नहीं रहेगा | मेरा द्रष्टिकोण था कि यदि लड़की पढ़ने में ठीक है तो दो -तीन वर्ष में हाई  स्कूल व ट्रैनिंग करके समर्थ बनायी जा सकती है | उन दिनों ट्रेन्ड लड़कियों को स्कूल की नौकरी तुरन्त सुलभ हो जाती थी | रह गया राजा व उसके बीच मैत्री सम्बन्ध तो वह सम्बन्ध शादी में सहायक होगा | मेरे रोहतक जाने से दो दिन पहले लड़की की मां मुझसे आकर मिली और शादी का प्रस्ताव रखा और बताया कि राजा पहले ही वादा कर चुके हैं | उन्होंने यह भी कहा कि वे बरात का अच्छा स्वागत करेंगी और सभी रीति रस्म निभायेंगी | उन्होंने बताया कि मेरी माता जी के इन्कार के कारण ही राजा इन्कार कर रहे हैं अन्यथा वे इस शादी के लिए उत्सुक हैं | मैनें राजा से चर्चा की तो उन्होंने कहा कि वे शादी नहीं करेंगें क्योंकि उन्हें लड़की पसन्द नहीं है | पर अगले ही दिन वे लड़की के बड़े भाई के साथ मेरे पास आये और कहा कि यदि मैं चाहूँ तो सम्बन्ध कर लूँ | माता जी से सोच विचार के बाद मैनें निश्चय किया कि अबकी गर्मी की छुट्टियों में आने पर शादी की सभी रश्में पूरी कर ली जायेंगीं और इस बीच पाठक लोग शादी की पूरी तैयारी कर लें बारातियों के स्वागत सत्कार व पाटे पर की जाने वाली टिकावन गाँव की मान्यतानुसार होनी चाहिए | वे लोग पूरी तरह सहमत हो गए | अभी सावित्री व नवजात शिशु को साथ ले जाने का मेरा मन होते हुए भी औचित्यपूर्ण नहीं जान पड़ता था क्योंकि शादी में हम सबको फिर आना होता | दूसरे नन्हें शिशु के साथ कुछ माह देख -रेख के लिए माता जी के निर्देशन की जरूरत थी ,इसलिए मैं परिवार को न लेकर अकेला रोहतक वापिस आ गया | मन में सोचा कि जब गर्मी में आकर  शादी सम्पन्न हो जाएगी तो राजा व उनकी पत्नी को भी अपने साथ ही रोहतक लेता जाऊंगा और प्रयास करूंगा कि उन्हें  भी वहीं कहीं पर किसी कार्य या  व्यापार में लगाया जाये | राजा के विवाह की खबर सारे गाँव में फ़ैल गयी थी और मैं थोड़ा निश्चिन्त इसलिए हो गया था कि आने वाली बहू के चारो भाई दंगा फसाद में उनका साथ देंगें तो कम से कम मैं और माता जी थोड़ा बहुत निश्चिन्त तो हो सकेंगें | कालेज में आकर मैं अध्ययन -अध्यापन ,N.C.C.और शिक्षेत्तर कार्य कलापों में व्यस्त हो गया | मेरे सामने शादी के लिए कुछ पैसा जोड़ लेने की भी समस्या थी | जब मैं रोहतक में था ,तभी मेरे पुत्र जिसे अब मैं अजय के नाम से पुकारूँगां ,का मुण्डन सम्पन्न हुआ | उसकी माँ ने हाथ के कड़े निकालकर अपनी ननद को दे दिए | मेरे सामने यह भी समस्या थी कि कि उसके लिए कड़े व जंजीर बनवाई जाये ,साथ ही राजा की शादी के लिए बाजा ,डोली ,आतशबाजी व फलदान भोज का भी प्रबन्ध किया जाये | मैं जानता था कि पाठकों के यहां से सिर्फ पत्रम -पुष्पम कम होंगें और तोयम घड़ों भर होगा | माता जी इस दिशा  में थोड़ी बहुत मदद ही कर सकने लायक थीं | इन्हीं दिनों कालेज की टीचर्स यूनियन का चुनाव हुआ और नवयुवकों ने मुझे सचिव पद के लिए चुन लिया | प्रधान पद के लिए कालेज के राजनीति शास्त्र के वरिष्ठतम अध्यापक के डी कपूर जी थे जिनके छोटे भाई रोहतक में DC थे | दरअसल उस समय तक Affiliated Colleges के ऊपर सरकारी नियन्त्रण न के बराबर था और मैनेजमेन्ट के द्वारा कई बार अनुचित कारण उठा लिए जाते थे | जैसे किसी को कोई अतिरिक्त वेतन वृद्धि दे देना या किसी को Out of way जाकर सीनियर ग्रेड दे देना | इस सबके लिए अध्यापकों को  एक मजबूत और नीति आधारित संगठन की जरूरत थी | इस दिशा में टीचर्स यूनियन का चुनाव अपने में एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती थी | शिवली से कुशलता के समाचार मिलते रहे | अपने ऊपर कुछ कम खर्च करके मैनें कुछ पैसे बचाये और कुछ पैसा अपने एक मित्र श्याम लाल वशिष्ठ से लिया और छुट्टी प्रारम्भ होते ही मैं शिवली आ गया |
अयोध्या प्रसाद पाठक की बहन जिस घर में आ रही थी ,वह घर गाँव की आर्थिक पृष्ठभूमि के मद्देनजर काफी ऊंची स्थिति का कहा जा सकता था | पक्का मकान ,लड़के की माँ मुख्य अध्यापिका ,भाई अच्छे कालेज में प्रोफ़ेसर ,बहन ,बहनोई काम में लगे हुए ,छोटे -मोटे खेत व बाग़ ,सभी कुछ तो था निम्न मध्य वर्ग की ग्रामीण आशाओं के अनुकूल | दरअसल यदि मेरी बाध्यता न होती और मुझे अपने छोटे भाई की ऊर्ध्वगामी प्रवृत्तियों का तनिक भी आभाष मिलता तो मैं इस शादी का निर्णय टाल देता | पर सोचा शायद निर्माण की प्रक्रिया में शादी सहायक हो सके और फिर अन्यत्र कहीं  से प्रस्ताव भी तो नहीं आ रहे थे | तालिका में कोई भी अन्य सुनिश्चित राह दिखाई देती तो मैं कभी इस सम्बन्ध के लिए प्रस्तुत न होता ,पर युवा छोटे भाई का अनव्याहा रहना उसे किसी गहरे संकट में डाल सकता था | इसलिए मैंनें जोखिम भरा यह कदम उठाया | यह मेरे लिए मेरी रहनुमाई में होने वाला पहला पारिवारिक उत्सव था और मैनें इसमें शक्ति से भी बढ़ चढ़ कर पैसे का व्यय किया | विशेष प्रकार की आतिशबाजी बनवाई गयी | अंग्रेजी बाजा और रोशनी के विशेष हंडे तथा सजी बजी बधू आरोहण के लिए पालकी सभी की समुचित व्यवस्था हुयी | नाते रिश्तेदारों और परिवारजनों के अतिरिक्त राजा की मित्र मण्डली काफी संख्या में बरात में उपस्थित थे | मैनें अयोध्या प्रसाद व उनकी माँ को बुलाकर समझा दिया था कि वे चाहे कुछ भी न दें पर द्वार पर बारातियों का स्वागत स्तरीय ढंग से करें  और उनकी खान -पान की व्यवस्था में कहीं कोई कमी न आवे | मैनें यह भी कहा था कि यदि पैसे की तंगी हो तो बिना किसी के जानें मुझसे पैसे ले लें क्योंकि अब यह सम्बन्ध दोनों परिवारों के लिए सम्मान का विषय बन गया था | स्वागत -सत्कार उचित प्रकार से हुआ ,फिर भाँवरें पडी और विदाई के समय कान्यकुब्ज ब्राम्हणों की प्रथा अनुसार टिकावन की रस्म का समय आया | अयोध्या प्रसाद मेरे पास कमरे में आये  और मुझे एक तरफ अलग ले जाकर अपनी परेशानी का इजहार किया | बोले ,जो कुछ था सब खान -पान और स्वागत की व्यवस्था में चुक गया है | नकद कुछ भी नहीं है ,जिसमें टिकावन व बिल्वा रश्म की जा सके | पहले तो मुझे हल्का सा क्रोध आया कि बहन व्याहनें चले थे और लम्बी -चौड़ी डींग हांकते थे ,पर स्थिति भिखारियों सी थी ,पर अब चारा ही क्या था | आँगन में सारे बाराती इकठ्ठा थे और बिदाई का समय हो रहा था | मैनें उनसे कहा कि वे मेरे साथ मेरे घर चलें जो उनके घर से सौ गज की दूरी पर था | हिसाब -किताब लगाकर जो कुछ भी अनुमानित व्यय था ,उसमें दो सौ रुपये अधिक जोड़कर उन्हें दिये और कहा कि वे पूरा काम विश्वास से करें और यदि और जरूरत हो तो कहें क्योंकि मैं उनकी इज्जत को छोटा नहीं होने दूंगा | यह सारी घटना इतनी गुपचुप थी कि इसका पता माता जी को लड़की के घर आ जानें के बाद हुआ |  बहुत दिनों तक उनके पूछने पर मैं नकार देता था कि वे कहीं व्यर्थ की चर्चा न करें | पर ऐसी बातें छिप नहीं पातीं और अन्ततः यह घटना सभी निकट सम्बन्धियों को एक -दूसरे के सूचना माध्यम से अवगत हो गयी | यह दूसरी बात है कि पाठक परिवार पर इसका कोई असर नहीं हुआ और उन्होंने  कभी यह  नहीं सोचा कि मेरे से लिया हुआ पैसा उन्हें वापिस करना चाहिए | पैसे के प्रति मेरी आसक्ति मर्यादा से बढ़कर नहीं रही है  और इसीलिये मुझे आजतक उनके परिवार के प्रति मन में आदर तो क्या समानता का भाव भी नहीं आ पाया है | हाँ राजा की पत्नी मुन्नी देवी सातवीं पास थी और गानें में काफी महारथ हासिल कर चुकी थीं | उन दोनों को कहीं पहाड़ी स्थान पर या  किसी टूरिस्ट स्पॉट पर जाकर सुख के कुछ दिन बिताने का इन्तजाम मैं कर सकूं ऐसी सामर्थ्य मेरी नहीं थी | दूसरे गाँव में कोई ऐसी परम्परा भी नहीं थी | यदि मैं उन्हें  वहीं छोड़ देता तो उनके सामने कहने को होता कि भाई ने उनकी उपेक्षा की है | मैनें निश्चय किया कि जैसा जो भी हो ,मैं उन्हें लेजाकर फिर एक बार प्रयत्न करूँगां कि राजा को ऊंची शिक्षा की ओर प्रेरित करूँ या किसी काम में लगाऊँ | माता जी इस योजना से सहमत नहीं थीं और वे चाहती थीं कि वे अपने सालों से मिलकर अपना कोई मार्ग बनावें | न कुछ हो तो घर की खेती देखें व कुछ खेत और खरीद लें | इस बीच उनकी पत्नी मुन्नी ,जो कभी माताजी की विद्यार्थी भी रही थीं ,ट्रेनिंग कर लेंगीं और  तीन चार वर्षों में अध्यापिका बन जायेंगीं | पर मैनें असंभ्भव को संभ्भव करना चाहा और मुंह की खाई | अजय अब लगभग सात मांह का हो गया था | चाचा उसे अब गोद में उठाने लगे थे और चाची भी कई बार उठाकर पुचकारती थीं | मैं ,और मेरी पत्नी ,अजय ,राजा व उनकी पत्नी रोहतक के लिए सबसे विदा लेकर चल पड़े | मोहल्ले वालों की भाव भीनी विदाई आँखों में आंसू भर रही थी | मेरे पास रहने के लिए ऊपर का स्वतन्त्र भाग किराए पर था ही दो बड़े -बड़े कमरे ,खुला बरामदा और उससे लगी सीढ़ियां और उसी से लगी टट्टी | उन दिनों रोहतक में सीवर नहीं पड़ा था | और टट्टी का इन्तजाम बाल्टी में या खुले में दीवार के घेरे में होता था जिसकी प्रतिदिन सफाई की जाती थी | मेहतरानी घर का अनिवार्य अंग थी और उसकी नाराजगी से बचने के लिए उसे खुश करने के कई हथकण्डे इस्तेमाल किये जाते थे | पहले एक दो माह अत्यन्त सुख व सहयोग के साथ कटे | जेठानी व देवरानी में गहरा मेल -मिलाप दिखाई पड़ता था | अजय की किलकारियां घर भर देती थीं पर एक दो माह बाद ही रसोईं सम्बन्धी काम -काज को लेकर ,मुझे लगा कि हल्के तनाव की स्थिति आ रही है |(क्रमशः )



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