Thursday, 15 June 2017

प्रभु की भेजी हुयी सौगात को मैं जीवन का सबसे सार्थक वरदान मान कर चल रहा था | प्रसव पीड़ा से मुक्त सावित्री का चित्र नवजात शिशु के साथ मन पटल पर उभर पड़ा | अब वे प्रेयसी से बढ़कर सच्ची जीवन संगनी बन गयीं | भविष्य के लिए कितना बड़ा सहारा उसने प्रभु की कृपा से हम दोनों के लिए वरदान के रूप में पाया था  | जनरल पठानिया के कहे हुए वाक्य मेरे कानों में गूँज रहे थे | जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि वरीयसे | माता व मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर गरिमामयी है | सावित्री अब मातृत्व का अधिकार पा चुकी थीं ,पर पहले मुझे रोहतक में रिपोर्ट करना था | कन्धे पर 2 nd Lt.का एक सितारा लगाकर और चार बड़े टोकरे सन्तरे |के लेकर मैं रोहतक पहुंचा | सन्तरे के दो टोकरे चपरासियों के द्वारा सहयोगियों में वितरित  करा दिए | दो टोकरे दशहरे व दीवाली की छुट्टी के बीच में शिवली ले जानें के लिए साथ रख लिए | उसी वर्ष रोहतक में भयानक बाढ़ आयी थी | सारे शहर व कालेज में भी छः छः फुट पानी भर गया था | सौभाग्य से मेरे मकान का हिस्सा द्वितीय तल पर था और उसमें सब कुछ सुरक्षित था | जब मैं वापिस आया तो पानी निकल चुका था पर कालेज की दीवारों पर उसकी निशानियां कायम थीं | डा ० बतरा मेरे जाने से पूर्व ही सेवा निवृत्त हो गए थे और अब कॉमर्स के विभागाध्यक्ष एम  ० एल ० अग्रवाल प्राचार्य पद पर थे | वे मेरे अन्यतम मित्र थे और उन्होंने स्टाफ की एक मीटिंग करके मुझे कमीशन पाने पर बधाई दी और कहा कि वे चाहेंगें कि कालेज में अभूतपूर्व अनुशासन अवस्थी जी की देख रेख में स्थापित किया जा सके | अभी तो मुझे Autumn Break की प्रतीक्षा थी | (क्रमशः )

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