भारत का क़ानून भी व्यक्ति को उसके कर्मो के लिए जिम्मेदार मानता है और वयस्क व्यक्ति जब कभी सीखता है तो अपने अनुभवों से या ठोकरों से | यह लगभग निश्चित हो गया था कि मेरी पत्नी भी मेरे साथ रोहतक जायेगी | इस बीच माता जी ने यह चाहा कि अभी मैं कुछ दिनों के लिए अपनी पत्नी को न ले जाऊँ ,पर जब मैनें कहा कि यह अनिवार्य हो उठा है तो उन्होंने राय दी कि कमला के बड़े लड़के गिरीश को साथ लेते जायें | वह चौथी में पढ़ रहा था और उसको वहीं स्कूल में भर्ती कराकर आगे पढ़ाया जाये | मुझे यह प्रस्ताव अच्छा लगा और कमला ने भी इसका स्वागत किया | तीन बच्चे उनके साथ थे ही | शादी के नवें वर्ष जुलाई 1959 में अपनी नौकरी के तीसरे वर्ष अपनी पत्नी को लेकर कानपुर से किसी गाड़ी में दिल्ली के लिए बैठा | उत्तर भारत के एक ब्राम्हण ग्राम्य में पली लड़की के लिए प्रदेश छोड़कर दूसरे प्रदेश में जाने का यह प्रथम मौक़ा था | उसे अभी तक सिर ढकने और मेरे बराबर साथ साथ न चलने की आदत थी | मैं जानता था कि दिल्ली व पंजाब की तड़क -भड़क उसे कुछ समय तक चौकायेगी ,पर नारी का सहज ज्ञान उसे शीघ्र ही उसे नयी परिस्थितयों से दो दो हाथ करने की ताकत प्रदान कर देगा | ऐसा ही हुआ | वहां रहने के दो तीन मांह बाद ही उसने पूरी जिम्मेदारी संभ्भाल ली | नारी का पूरा सन्तोष उसे अपने पति पर पूरा अधिकार पा कर ही होता है | प्यार भी बन्धनों से छूटकर ही उन्मुक्त पैगें भर सकता है | मुझे विश्वास हो गया कि डाक्टरों की सलाहें सिर्फ किताबी ज्ञान पर आधारित थीं और पैसा कमाना ही उनका मूल लक्ष्य था | मैं व मेरी पत्नी दोनों ही नयी श्रष्टि में सक्षम हैं और प्रभु अपना वरदान हमें शीघ्र ही देंगें | इसी बीच अगस्त में मुझे चण्डीगढ़ में इन्टरव्यू के लिए जाना पड़ा | प्रो ० गर्ग कद में मुझसे लम्बे थे ,पर शरीर से हल्के थे | मैं नहीं जानता कि मेरी किस बात ने ब्रिगेडियर साहब को प्रभावित किया ,पर परिणाम मेरे पक्ष में आया | हम लोगों को कुछ बताया नहीं गया था | कालेज लौटकर आने पर प्रो ० गर्ग ने सबको यह बात बता दी थी कि अवस्थी रह गया और वे चुन लिए गए हैं | दिसम्बर माह में जब Directorate का पत्र आया तो उसमें मेरे चयन की बात थी और मुझे अगली गर्मी में तीन माह की Pre commision Training के लिए नागपुर के पास किसी सैनिक छावनी में जाना था | इस छावनी को काम्पटी के नाम से पुकारा जाता था | (क्रमशः )
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