Tuesday, 17 January 2017

वह प्यार कहाँ से लाऊँ

वह प्यार कहाँ से लाऊँ 

सब धर्म -कौम घुल मिल हों हिन्दुस्तानी 
वह प्यार कहाँ से लाऊँ 
हो जहाँ न पंडा -मुल्ला की नादानी 
संसार कहाँ से लाऊँ 
मेरी वाणी का बल सीमित है साथी 
प्रतिरोधों की दीवाल बहुत भारी है 
दो चार बूँद मधु गिरने से क्या होता 
सारा समुद्र जब नफ़रत से खारी  है 
बंट गया देश छोटे -छोटे टुकड़ों में 
हर ओर फूट की बेल फैलती जाती 
सिंचित हो हिंसा की छीटों के निशदिन 
हर घर आँगन में और छैलती जाती 
जो सुखा सके विष -बेल देश के घर घर से 
वह क्षार कहाँ से लाऊँ 
हो जहाँ न पंडा मुल्ला की नादानी 
सँसार कहाँ से लाऊँ 
हर ओर अंगारे दहक रहे हैं लाल लाल 
जल रही मनुजता की घर घर में होली 
है लाज बिक रही खुले आम चौराहों पर 
लग रही सड़क पर माँ बहनों की बोली 
भाई -भाई को काट रहा पागलपन में 
सीमा के भीतर खड़ा शत्रु मुस्काता 
मजहब के नारे लगा लगा जोरों से 
अपनों से अपनों को ही कटवाता 
बह जाय देश का यह गलीज क्षण भर में 
वह ज्वार कहाँ से लाऊँ 
हो जहाँ न पंडा मुल्ला की नादानी
 संसार कहाँ से लाऊँ 
इस धरती से पल रही सभी की काया 
है इस धरती की हवा ,इसी का पानी 
इस धरती की सीमायें छू अंगों से 
खिल उठी धूप सी आशा भरी जवानी 
इस धरती की ही गोद सभी हम खेले 
इस धरती की ही गोद हमें है सोना 
हर धर्म कौम हर जाति नस्ल है पीछे 
पहले माटी में प्यार बीज है बोना 
माँ की गोदी के सभी फूल जिसमें गुम्फित 
वह हार कहाँ से लाऊँ 
हो जहाँ न पंडा -मुल्ला की नादानी 
संसार कहाँ से लाऊँ 
कह दो मजहब से अभी रुके कुछ देर और 
पहले माता का प्यार चुकाने जाना है 
कह दो मन्दिर से और संवर के तनिक देर 
सीमाओं से सन्देश अभी  तो आना है 
जिस मिट्टी पानी से है तेरी बनी देह 
उस 'माटी 'को झुककर वन्दे कर ले सलाम 
है देश प्रेम सारे धर्मों से बड़ा धर्म 
माँ के चरणों में अर्पित कर अपनें प्रणाम 
हो रस्मि रूढ़ि से जो  बिल्कुल आजाद 
कहो अभिसार कहाँ से लाऊँ 
हर धर्म कौम -घुल मिल हों हिन्दुस्तानी 
रस -सार कहाँ से लाऊँ 
वह प्यार कहाँ से लाऊँ 
हो जहाँ न पंडा -मुल्ला की नादानी 
संसार कहाँ से लाऊँ

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