......... आज जातियता और क्षेत्रीयता के संकीर्ण दायरों में विभक्त भारत विशुद्ध राष्ट्रीयता की कल्पना ही नहीं कर सकता । धर्म और धार्मिक समुदाय इस जहर को और अधिक फैलाते जा रहे हैं । पशुता का जीवन जी रहा हिन्दुस्तानी समाज विश्वबन्धुत्व की बात भले ही करता हो पर वह क्षुद्र घरौन्दों में बटकर शक्तिहीन हो चुका है । हमें चाहिये कि हम अपनी राष्ट्रीय अहमियत को फिर से पहचानें । संसार के आज के इस वैज्ञानिक सर्वमान्य सत्य को भी कि सभी मनुष्य जन्म से बराबर हैं हमें स्वीकार करनें में कोई गुरेज नहीं होना चाहिये । हाँ कुछ राजनीतिक ,आर्थिक और अवैज्ञानिक धारणाओं के कारण समाज के जो वर्ग विकास की राह पर पीछे रह गये थे उन्हें हमें विशेष प्रोत्साहन देकर बराबरी के आसपास लाना था । संविधान में यह व्यवस्था अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जातियों के लिये मात्र 10 वर्ष की थीं संशोधनों के द्वारा हम इसे आज 68 वर्षों तक बढ़ाते रहे हैं । और लगता यही है कि इस शताब्दी के अन्त तक आरक्षण का प्रावधान राजनीतिक पार्टियां समाप्त नहीं होने देंगीं । मूल संविधान में बैकवर्ड क्लासेज का जिक्र था । बैक वर्ड कास्ट्स का नहीं । साधारण पढ़ा लिखा व्यक्ति भी जानता है कि क्लास और कास्ट में फर्क होता है । पर मण्डल कमीशन को आधार बना कर वी ० पी ० सिंह नें बैक वर्ड क्लास के लिये 27 % का रिजर्वेशन प्रारम्भ करवा दिया था । और अब तो यह मांग की जा रही है कि इस प्रतिशत को और बढ़ा दिया जाय और इसे अनन्त काल तक चलनें दिया जाये । कितना आश्चर्य है कि संयोगवश अगड़ी कही जाने वाली जातियों में जन्मा मेधावी बालक 80 प्रतिशत नम्बर लेकर भी मेडिकल कालेज में प्रवेश नहीं ले पाता जबकि रिजर्व कैटागरी में 40 प्रतिशत वाला बालक भी प्रवेश का पात्र हो जाता है । हम यह नहीं कहते कि ऐसा होना सर्वथा अनुचित है पर यह अवश्य कहते हैं कि भारत की माटी में जन्में हर लडके लड़की को उचित शिक्षा और उचित रोजगार का सुअवसर मिले और धीरे -धीरे रिजर्वेशन की प्रक्रिया से क्रीमी लेयर को अलग किया जाय ताकि वह सशक्त वर्ग अगड़ों की पंक्ति में अपनी पहचान बना सके । ऐसा करने से रिजर्व कैटागरी के साधन हीन बालक बालिकाओं को अधिक सुअवसर मिलेगा । और धीरे -धीरे समय के साथ रिजर्वेशन की प्रक्रिया समाप्ति की ओर बढ़ती जायेगी । शायद आप न जानते हों कि भारतीय संविधान के मुख्य प्रणेता डा ० अम्बेदकर रिजर्वेशन के पक्षधर नहीं थे क्योंकि वे मानव में किये गये किसी भी भेद को अन्याय मूलक मानते थे । धर्म ,रंग ,जाति ,क्षेत्र ,भाषा ,खान -पान ,पहनावा और स्वप्नदर्शिता व्यक्ति की अपनी रुचि पर आधारित है । इन्हें हमें सामूहिक रूप देकर सामाजिक पिछड़ेपन का पर्याय नहीं बनाना चाहिये । आइये हम हिन्दुस्तानी होनें का गौरव पुनः प्राप्त करें और मानव धर्मिता के आधार पर ऊँचाई और निचाई की रेखायें खींचें ।
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