Wednesday 27 July 2016

Nashaa Ke Vaigyaaikon..........

                                    नाशा  के वैज्ञानिकों का दावा है कि मानव प्रजाति  को आणविक दावानल से बचाकर सुदूरवर्ती आकाश गंगा के अनेक सौर मण्डलों के ग्रहों पर सुरक्षित रखा जा सकेगा । आणविक विस्फोट की प्रलयंकारी  विनाश लीला कब और कैसे प्रारम्भ होगी यह अभी भविष्य के अनजानें गर्त में है । पर भूखण्डों के संघर्षीय विवादों की सम्मत समीक्षा ऐसा बताती जान पड़ती है कि प्रलय  लीला का यह ताण्डव नयी पीढी के जीवन काल में भी संभ्भव हो सकता है । मानव प्रजाति बच पायेगी या नहीं इस प्रश्न पर तर्कों की कोई सुसंगत परिणति दिखायी नहीं पड़ती । 'माटी ' तो सिर्फ इतना जानती है कि सारी अनिश्चितताओं के बीच मनुष्य के मृत्यु की निश्चितता एक अकाट्य और अपरिहार्य सत्य है । चिकित्सा विज्ञान जीवन सीमा में कुछ एक वर्ष की बढ़ोत्तरी भले ही कर दे पर हजारों वर्ष पहले बाइबिल में जो प्रार्थना की गयी थी वह आज भी सम्पूर्ण रूप से चरितार्थ होती है । बाइबिल में प्रभु से तीन स्कोर और टेन  वर्ष  स्वस्थ्य जीवन जीने की भावानात्मक याचना की गयी थी और कमोवेश इसी अवधि तक मनुष्य पूरी शक्तियों के साथ सक्रिय रहता दिखायी पड़ता है । जब नजमा हेपतुल्ला नें बिना माँगें कैबिनेट के मन्त्री पद से अपना स्तीफा प्रधान मन्त्री को भिजवा दिया तो सम्भवतः उनके मन में यही धारणा थी कि अब वे जीवन की सारी पूँजी मन्त्री पद के संचालन में लगाकर भी पूरे संतोष का अनुभव नहीं कर पायेंगीं वैसे प्रधान मंत्री जी नें चिकित्सा विज्ञान जगत को उत्साहित करनें के लिये सेवा निवृत्त की आयु 70 से बढ़ाकर 75 कर दी है यद्यपि ऐसा कुछ स्पष्ट रूप से लिखा या कहा नहीं गया पर सामान्यतः यह माना जाने लगा है कि 70 और  80 के बीच तक ही मानव शरीर की सारी ग्रन्थि संचालित प्रक्रियायें सटीक रहती हैं । इतनी लम्बी जीवन दौड़ में सभी सपनें सच हो जांय ऐसा संभ्भव नहीं दिखायी पड़ता । सभी सपनों को सच करनें के लिये एक हजार वर्ष की दीर्घ आयु भी पर्याप्त नहीं होगी क्योंकि जितना लम्बा जीवन जिया जायेगा सपनों का प्रस्तार और विस्तार भी होता जायेगा ।
                                   अयोध्या में राम जन्म भूमि पर  भब्य मन्दिर निर्माण का सपना देखने वाले अशोक सिंहल अपने स्वप्न को अधूरा छोड़ कर ही चले गये । अधूरा भी कहाँ उसे तो अभी प्रारम्भिक अवस्था के पार भी नहीं ले जाया जा सका है । 'माटी ' का संपादक भारतीय स्वतंत्रता के आगमन के समय धरती पर अवतरित नहीं हुआ था प्रभु नें उसे स्वतन्त्र भारत में जन्म दिया ताकि उसके सपनें काफी कुछ पूरे हो सकें या कम से कम अधूरे ,तिहाई तो पूरे हो जायँ । पर 'माटी ' का संपादक कश्मीर घाटी को भारत का एक गौरव संपन्न अविभाज्य अंग के रूप में देख पाने का सपना अब तक संजोये हुये है । हुर्रियत नेता गिलानी जब यह कहते हैं कि चाहे भारत श्री नगर की गलियों को सोने से  मढ़ दे पर कश्मीर घाटी तो आजाद होकर ही रहेगी तो ऐसा लगता है कि वार्धक्य की ओर बढ़ती हुयी पीढी संतुष्ट और सुखी राज्य का  सपना सच होते हुये नहीं देख पायेगी । यह तो हुयीं कुछ बड़ी -बड़ी बातें । साधारण जीवन में  भी हमारे कितनें सपनें अधूरे रह जाते हैं । बच्चों की नौकरी ,पोतियों का ब्याह ,स्वतन्त्र सुविधा पूर्ण निवास की आवश्यकता और दाम्पत्य जीवन का समर्पित प्यार हममें से कितनों को मिल पाता है । सपनें टूटते हैं तो मन बिलखने लगता है पर बिना सपना देखे जिया भी नहीं जा सकता । जन्नत में पदासीन हमारे पूर्व राष्ट्रपति ए ० पी ० जे ० कलाम हमें सपना देखने की प्रेरणा देते रहते थे  उनका कहना था कि बिना सपना देखने वाला राष्ट्र ,समूह या व्यक्ति कभी कुछ उल्लेखनीय सफलता प्राप्त नहीं कर सकता । तो आइये हम सपनों की खेती करें ,नये -नये सपने उगायें ,और सपनों का सुनहरा संसार रचें । अब हमारे प्रधान मंत्री मोदी जी नें भी भारत वासियों को एक सपना दिखाया था ,उनके समर्थक कहते थे कि मोदी के प्रयासों से जब काला धन वापस आ जायेगा तो हर भारतीय को 15 लाख की राशि मिल जाने की संभावना बन जायगी । हममें से बहुत लोग अभी भी इस मृग मरीचिका के पीछे दौड़ रहे हैं । विश्व व्यवस्था से टकराने की ताकत भारत के प्रधान मंत्री के पास भी नहीं है । अपनी ईमानदारी के बावजूद सपनों की विफलता ही शायद वे हमें दे पायें ।
                                  पर फिर भी आशा तो करनी ही है । कर्म तो करना ही पडेगा । अद्रश्य शक्तियों का खेल कब क्या रंग दिखायेगा कौन जानता है । राजस्थान के गवर्नर कल्याण सिंह जी राम मन्दिर निर्माण का सपना फिर से दिखाने में व्यस्त हैं और सुब्रमण्यम स्वामी तो वर्ष के  अंत तक निर्माण प्रारम्भ होनें की बात कह रहे हैं । अब इन दोनों को गल्पकार तो कहा नहीं जा सकता । उधर सुप्रीम कोर्ट है जिसके लिये मानव जीवन की अवधि का मुकदमों से कोई रिश्ता नहीं होता फिर भी हम सब जी रहे हैं और न्याय की गुहार लगा रहे हैं । पूरा तत्ववेत्ता न जाने कितनी नयी -नयी बातें खोज कर ला रहे हैं । शिवसेना के उत्साही नवयुवक तो ताज महल को तेजो महल बताकर सावन के प्रत्येक सोमवार को आरती करते हैं । अपनी अल्पबुद्धि लेकर 'माटी ' का संपादक विस्मय विमूढ़ है । उसे न तो मोहन जोदड़ो का सत्य मालूम है न शेष नाग की शैय्या पर सोये लक्ष्मी सेवित विष्णु का । 'माटी ' का तो एक ही लक्ष्य है कि भारत की माटी में कदम -कदम पर गुलाब खिलने के साथ गेंहूँ और धान के पौधे भी उगें और  साथ ही दाल और तिलहन के अंकुर भी दिखायी पड़ें ।  रत्न गर्भा भू इतना धन -धान्य हमें उपजा कर दे सके कि हर भूखे को भोजन और निर्वस्त्र को आवरण और हर सड़क सायी को एक छत मिल सके । देखिये मेरे जीवन काल में यह सपना सच हो पाता है या नहीं ?

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