कल मिली न कोई पँक्ति रात भर खोज -खोज मैं हारा
क्या करता फिर प्रिय की अपार छवि ही पर छापा मारा
फिर कूप कपोलों में घुस कविता सुधा कलश भर लायी
माथे की बिन्दिया से सहमी फिर तड़ित गणित शरमाई
फिर बालों की लहरों को लखकर कृष्ण मेघ भरमाये
फिर चाल मांगने दूर देश से हँस मचल कर आये
स्मृति में लिपटी सहम सकुचाती अरुणोदय की लाली
आँखों के डोरों पर छलकी सुरभित द्राक्षासव प्याली
फिर निशा मिलन का इंगित ले चमका संध्या का तारा
क्या करता फिर प्रिय की अपार छवि ही पर छापा मारा
कल मिली न कोई पंक्ति ......................
कल आदि काव्य के पृष्ठों से सीता का रूप चुराया
कल तपः पूत गौरा का मन में चित्र उभर कर आया
कल उतर उर्वशी फिर धरती पर किरन मार्ग ले आयी
कल मथुरा से लौटे फिर मिलने राधा कृष्ण कन्हाईं
फिर मिय माहुर मद पी गोरी काली ललौंछ लहरायी
फिर अनस्तित्व से झगड़ अस्मिता झुकी पैंग भर लायी
फिर ह्रद -अनुकृति पर टली देह वीणा के तार सवाँरे
फिर मधुर गीत की लय लहरी अब जागो मोहन प्यारे
फिर अमिय हुआ पा अधर -परस जीवन समुद्र यह खारा
कल मिली न कोई पंक्ति ..................................
चुक जाय काल ,नक्षत्र न जब दे सके काव्य को भाषा
बूढ़ा निसर्ग संगीत छोड़ दे जब प्राणों को प्यासा
जब पटवीजन सा खुल खुलमन घन तमस्विनी में घूमे
अणु -फणधर जब गुंजलक मार मानव भविष्य पर झूमें
तब कौन मुक्त आकाश जहाँ लहरें ,कविता का पाँखी
पर नुचे पड़े दोहे ,अछन्द स्वछन्द रो रही साखी
मलवे के नीचे दबा झिलमिला रंग महल जब सारा
लीकों की फिर पहचान कहाँ से कवि कर सके विचारा
कल मिली न कोई पंक्ति ..............................
क्या करता फिर प्रिय की अपार छवि ही पर छापा मारा
फिर कूप कपोलों में घुस कविता सुधा कलश भर लायी
माथे की बिन्दिया से सहमी फिर तड़ित गणित शरमाई
फिर बालों की लहरों को लखकर कृष्ण मेघ भरमाये
फिर चाल मांगने दूर देश से हँस मचल कर आये
स्मृति में लिपटी सहम सकुचाती अरुणोदय की लाली
आँखों के डोरों पर छलकी सुरभित द्राक्षासव प्याली
फिर निशा मिलन का इंगित ले चमका संध्या का तारा
क्या करता फिर प्रिय की अपार छवि ही पर छापा मारा
कल मिली न कोई पंक्ति ......................
कल आदि काव्य के पृष्ठों से सीता का रूप चुराया
कल तपः पूत गौरा का मन में चित्र उभर कर आया
कल उतर उर्वशी फिर धरती पर किरन मार्ग ले आयी
कल मथुरा से लौटे फिर मिलने राधा कृष्ण कन्हाईं
फिर मिय माहुर मद पी गोरी काली ललौंछ लहरायी
फिर अनस्तित्व से झगड़ अस्मिता झुकी पैंग भर लायी
फिर ह्रद -अनुकृति पर टली देह वीणा के तार सवाँरे
फिर मधुर गीत की लय लहरी अब जागो मोहन प्यारे
फिर अमिय हुआ पा अधर -परस जीवन समुद्र यह खारा
कल मिली न कोई पंक्ति ..................................
चुक जाय काल ,नक्षत्र न जब दे सके काव्य को भाषा
बूढ़ा निसर्ग संगीत छोड़ दे जब प्राणों को प्यासा
जब पटवीजन सा खुल खुलमन घन तमस्विनी में घूमे
अणु -फणधर जब गुंजलक मार मानव भविष्य पर झूमें
तब कौन मुक्त आकाश जहाँ लहरें ,कविता का पाँखी
पर नुचे पड़े दोहे ,अछन्द स्वछन्द रो रही साखी
मलवे के नीचे दबा झिलमिला रंग महल जब सारा
लीकों की फिर पहचान कहाँ से कवि कर सके विचारा
कल मिली न कोई पंक्ति ..............................
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