सारे जीवन की असफलता स्वीकार मुझे
अभिशापित जीवन ही मैं जीता जाऊंगा
है शपथ त्रसित मानवता की मुझको साथी
हर घूँट गरल का हँस हँस पीता जाऊँगां
जब तक शरीर में साँस ,साँस में दम बाकी
नीलाम नहीं होने दूगां अपनी बाणी
बाजारी मोल -तोल से हो आजाद सदा
गाती जायेगी मेरी कविता कल्याणी
माना कि अकेला स्वर मेरा
सब पर अधिकार न पायेगा
बिक चुकी आज की दुनिया में
थोडा सा प्यार न पायेगा
पर सत्य पनपता नहीं अँधेरे खेतों में
सोने की खाद न कोई फसल उगाती है
चाँदी की हँसिया बोझ भले ही बन जाये
पर उससे कोई फसल न काटी जाती है
बिकने वाले बिकते ही हैं
पर कहीं कहीं धन झुकता है
हहराते नद का मद प्रवाह
पर्वत से टकरा रुकता है
बाणी बिकने को नहीं
मिली जन मन की व्यथा सुनाने को
वाणी झुकने नहीं
मिली गिरतों का भाग्य जगाने को
वाणी का बल पा न्याय भाव
मद सत्ता से टकराता है
वाणी के हाथों सँवर रोष
विद्रोही स्वर बन जाता है
वाणी ने राज्य उलट डाले
वाणी ने श्रष्टि सजायी है
फणधर के नाथ लगाने को
वाणी ने वेणु बजायी है
इसलिये लिये वाणी का बल
मैं विघटन से टकराऊगा
स्वर की स्वरता पर नचा नचा
विप्लव का नाग बुलाऊँगा
हो प्रखर मुक्ति मेरी वाणी
साहस बटोर कर लायेगी
घुन खायी अर्थ -व्यवस्था से
गज -बल लेकर टकरायेगी
दो चार स्वरों के साथ
नकारेगी बहुमत का रूढ़ि -जाल
गौरव -द्द्विति से मण्डित होगा
मानवता का माथा विशाल
ललकार लगा मेरी वाणी
भारत की सड़ी जवानी को
ललकार लगा मेरी वाणी
मर्दानी झाँसी रानी को
ललकार लगा ,हुँकार उठा
फिर तरुण रक्त की लाली में
ललकार लगा सुसुप्ति भागे
सो रहे देश के माली में
लुट चुका देश , अब सावधान
दो फेंक मुखौटे जाली
लें देख सभी जो झलक रही
होठों पर हिंसक लाली
पी लिया रक्त वर्षों तुमनें
खुंखार ,रूप मायावी
मुँह -हटा स्रावित मानवता से
सन्तान जाग गयी भावी
वाणी के पुत्रों, उठो
छोड़ दो मुसाहिथों की बातें
पायल की रुनझुन /लाल परी
मतवाली पागल रातें
सोने चांदी की होड़ छोड़
रण भेरी नाद बजाओ
अभिनन्दन- गीत समाप्त करो
विप्लव के गीत सजाओ
हर एक दिशा से घहराता
आ रहा प्रलय का पानी
फिर नयी श्रष्टि रचने को
कोई तो नाव बचानी
आने वाले सैलाब शपथ है
मुझे तुम्हारे पानी की
कल के भविष्य है शपथ मुझे
फिर उठती हुयी जवानी की
वाणी का लेकर खड्ग
काट दूँगा धोखे का स्वर्ण जाल
वाणी का लेकर वज्र
चूर्ण हो वृत्तासुर का लाल भाल
अस्सी घावों को लिये अडिग
हाथों में लोच न आयेगी
ध्रुव से ध्रुव तक लूँ माप
मगर पैरों में मोच न आयेगी
जनता की थाती वाणी है
विश्वासघात, मर जाना है
घावों को लेकर कर्मभूमि में
गिरना भी तर जाना है
जब तक शरीर में सांस ,सांस में दम बाकी
नीलाम नहीं होने दूँगा अपनी वाणी
बाजारी मोल -तोल से हो आजाद सदा
गाती जायेगी मेरी कविता कल्याणी
सारे जीवन की असफलता स्वीकार मुझे .........
अभिशापित जीवन ही मैं जीता जाऊंगा
है शपथ त्रसित मानवता की मुझको साथी
हर घूँट गरल का हँस हँस पीता जाऊँगां
जब तक शरीर में साँस ,साँस में दम बाकी
नीलाम नहीं होने दूगां अपनी बाणी
बाजारी मोल -तोल से हो आजाद सदा
गाती जायेगी मेरी कविता कल्याणी
माना कि अकेला स्वर मेरा
सब पर अधिकार न पायेगा
बिक चुकी आज की दुनिया में
थोडा सा प्यार न पायेगा
पर सत्य पनपता नहीं अँधेरे खेतों में
सोने की खाद न कोई फसल उगाती है
चाँदी की हँसिया बोझ भले ही बन जाये
पर उससे कोई फसल न काटी जाती है
बिकने वाले बिकते ही हैं
पर कहीं कहीं धन झुकता है
हहराते नद का मद प्रवाह
पर्वत से टकरा रुकता है
बाणी बिकने को नहीं
मिली जन मन की व्यथा सुनाने को
वाणी झुकने नहीं
मिली गिरतों का भाग्य जगाने को
वाणी का बल पा न्याय भाव
मद सत्ता से टकराता है
वाणी के हाथों सँवर रोष
विद्रोही स्वर बन जाता है
वाणी ने राज्य उलट डाले
वाणी ने श्रष्टि सजायी है
फणधर के नाथ लगाने को
वाणी ने वेणु बजायी है
इसलिये लिये वाणी का बल
मैं विघटन से टकराऊगा
स्वर की स्वरता पर नचा नचा
विप्लव का नाग बुलाऊँगा
हो प्रखर मुक्ति मेरी वाणी
साहस बटोर कर लायेगी
घुन खायी अर्थ -व्यवस्था से
गज -बल लेकर टकरायेगी
दो चार स्वरों के साथ
नकारेगी बहुमत का रूढ़ि -जाल
गौरव -द्द्विति से मण्डित होगा
मानवता का माथा विशाल
ललकार लगा मेरी वाणी
भारत की सड़ी जवानी को
ललकार लगा मेरी वाणी
मर्दानी झाँसी रानी को
ललकार लगा ,हुँकार उठा
फिर तरुण रक्त की लाली में
ललकार लगा सुसुप्ति भागे
सो रहे देश के माली में
लुट चुका देश , अब सावधान
दो फेंक मुखौटे जाली
लें देख सभी जो झलक रही
होठों पर हिंसक लाली
पी लिया रक्त वर्षों तुमनें
खुंखार ,रूप मायावी
मुँह -हटा स्रावित मानवता से
सन्तान जाग गयी भावी
वाणी के पुत्रों, उठो
छोड़ दो मुसाहिथों की बातें
पायल की रुनझुन /लाल परी
मतवाली पागल रातें
सोने चांदी की होड़ छोड़
रण भेरी नाद बजाओ
अभिनन्दन- गीत समाप्त करो
विप्लव के गीत सजाओ
हर एक दिशा से घहराता
आ रहा प्रलय का पानी
फिर नयी श्रष्टि रचने को
कोई तो नाव बचानी
आने वाले सैलाब शपथ है
मुझे तुम्हारे पानी की
कल के भविष्य है शपथ मुझे
फिर उठती हुयी जवानी की
वाणी का लेकर खड्ग
काट दूँगा धोखे का स्वर्ण जाल
वाणी का लेकर वज्र
चूर्ण हो वृत्तासुर का लाल भाल
अस्सी घावों को लिये अडिग
हाथों में लोच न आयेगी
ध्रुव से ध्रुव तक लूँ माप
मगर पैरों में मोच न आयेगी
जनता की थाती वाणी है
विश्वासघात, मर जाना है
घावों को लेकर कर्मभूमि में
गिरना भी तर जाना है
जब तक शरीर में सांस ,सांस में दम बाकी
नीलाम नहीं होने दूँगा अपनी वाणी
बाजारी मोल -तोल से हो आजाद सदा
गाती जायेगी मेरी कविता कल्याणी
सारे जीवन की असफलता स्वीकार मुझे .........
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