Thursday, 23 June 2016

आदि पूर्वजों की ओर

                एवरेस्ट की चोटी को फ़तेह करने वाले प्रथम दो पर्वतारोही एडमण्ड हिलेरी (आस्ट्रेलिया )और तेनजिंग नार्वे (इण्डिया ) के नामों से भला कौन परिचित न होगा । और अब तो भारत से ही एवरेस्ट की चोटी पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने वालों की संख्या 20 से अधिक हो गयी होगी । अंग्रेजी की मशहूर कहावत है -" What a man has done, a man can do ." सीधे -साधे शब्दों में इसका अर्थ यह निकलता है प्रयास करने से हर मनुष्य सफलता प्राप्त कर सकता है । पर प्रत्येक सफलता सापेक्षिक होती है । अर्थात हमारी पायी हुयी सफलता किसी से अधिक वजनदार हो सकती है पर किसी और से कम वजनदार । यह ठीक है कि बहुत से नर -नारी माउन्ट एवरेस्ट की चोटी फ़तेह कर चुके हैं पर उन लोगों की संख्या कई अंकों में जायेगी जो प्रयास करने पर भी चोटी पर पहुँचनें में असफल रहे हैं । एक दूसरा साधारण उदाहरण दें  आज के हजारों किशोर और तरुणायी के द्वार पर खड़े  युवा क्रिकेट के शौक़ीन हैं और क्रिकेट का खेल खेलते हैं पर इनमें से तेन्दुलकर ,धोनी ,सहवाग और गौतम गम्भीर बनने की क्षमता किसी एकाध विरले में ही हो सकती है ।पूरे प्रयास के बावजूद भी हम उच्चतम कोटि की सफलता पाने में असमर्थ रहते हैं यद्यपि सफलता की कुछ श्रेणियाँ लाँघ कर हम ऊपर अवश्य पहुँच जाते  हैं । कुछ विशेष प्रकार की प्रतिभायें प्रकति की अनूठी देन होती हैं उदाहरण के लिये लता मंगेशकर का स्वर भारत की बड़ी से बड़ी गायिकाओं के लिये अभी तक दुर्लभ सा लगता है । शहनशाह अकबर के काल में भी एक तानसेन थे । हाँ यह अवश्य कहा जा सकता है कि विज्ञान की प्रगति ने जन सामान्य को उस आनन्द को पा लेने की पहुँच दे दी है जो पहले राजा महाराजा और शहनशाह तथा उनके दरबारियों को ही मयस्सर होता था । आज लता मंगेशकर ,आशा भोसले ,किशोर कुमार ,मुहम्मद रफ़ी के गाये गीत ,छोटा सा मजदूर भी चाय का प्याला पीता हुआ चाय की दुकान पर सुन सकता है । मध्यकाल में इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती । पर हम जो कहना चाह रहे हैं और जिस की ओर इशारा कर रहे हैं वह यह है कि प्रत्येक व्यक्ति की अपनी -अपनी क्षमतायें होती हैं ।  उचित परवरिश ,उचित वातावरण और उचित प्रोत्साहन मिलने पर प्रत्येक व्यक्ति अपने भीतर निहित क्षमता का समुचित विकास तो कर सकता है पर यह सोचना कि सभी की सामर्थ्य उच्चतम स्तर की हो जायेगी एक भ्रम मात्र है । यदि ऐसा होता तो मानव सभ्यता के प्रारम्भ से आज तक विश्व में पाने वाला अपार वैविध्य समाप्त प्राय हो चुका होता और आकार ,प्रकार उपलब्धियों और प्रतिभाओं का एक  प्लेट्यू तैयार हो जाता ऐसा न होना इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण है कि श्रष्टि की विभिन्नता को हमें सहज रूप से स्वीकार करना होगा । (क्रमशः )

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