Tuesday, 21 June 2016

प्रश्न उत्तर माँगते हैं

हजारों साल से फसलें उगाता जा रहा हूँ
भूख की डाईन निरन्तर बलि  अभी तक पा रही है ।
काहिरा से सोन तट सब भर दिये वस्त्रा भरण से
श्रम रता धनिया चिता पर अर्ध नग्ना जा रही है ।
 प्रश्न उत्तर माँगते हैं ।
जूझते अँगार प्रश्नों से रहे हैं ऋषि मनीषी
एक उत्तर था 'प्रवाहण' ने सुझाया ।
एक उत्तर बुद्ध की वाणी बना था
एक उत्तर अरब से उठकर हमारे द्वार आया ।
किन्तु सब उत्तर निरुत्तर बन खड़े हैं
गली खेतों में पडी लाशें उन्हें ललकारती हैं ।
यीशु ,प्रभु ,गांधी ,गुरुनानक सभी की स्वर लहरियाँ
गोलियों से विंध तड़प इतिहास पर सिर मारती हैं ।
प्रश्न उत्तर मांगते हैं ।
गगन गँगा द्वार जय -रथ मनुज का आकर खड़ा है
ज्योति वस्त्रों से सजे नभ के पड़ोसी जुड़ रहे हैं ।
सौर मण्डल पार धरती से नियन्त्रित मनुज यन्त्रित
इन्द्र धनुषी केतु ऊर्जा सेतु से नित उड़ रहे हैं ॥
एक बाली से सहस्त्रों  बालियाँ हैं फूट निकली
रेत के उर से निकल लहरा रही पाताल धारा ।
तरल सोने से भरा है वक्ष माँ का धन्य पावन
अब हमारे हाथ जल थल ही नहीं आकाश सारा ।
भोज से फेंकें गये पत्तल उठा कर चाटने
मनु -पुत्र भी क्यों आज भी टकरा रहे हैं ।
पूज्य मानव देह की ऐसी उपेक्षा ,आह बापू !
सद्य- जाता शिशु पड़ा है गिद्ध कौवे खा रहे हैं ।
प्रश्न उत्तर माँगते हैं ।
आज संभव है धरा का हर मनुज
पा सके घर ,वस्त्र ,वाहन ,स्वास्थ्य ,सुख ।
आज संभव है गरीबी ,भुखमरी
व्यर्थता ,बेरोजगारी को दबा दे मृत्य -मुख ।
किन्तु यह संभावना कविता बनी क्यों जी रही है
अंतरिक्षी आणविक विस्फोट का विष पी रही है ।
प्रश्न  उत्तर माँगते हैं ।
परत पर परतें चढ़ी हैं यह मुखौटों का छलावा
है हमीं में खोट हम दो- जीभ बनकर जी रहे हैं ।
सत्य कुछ है कथ्य कुछ है फिर कबीरा रो रहा है
जान कर भी जान डर से होठ अपने सी रहे हैं ॥
वर्ष में छह बार केंचुल छोड़ता फणिधर कटीला
हर दिवस चोला बदलने की लगी है होड़ नर में ।
ज्योति -सीढ़ी अनुछुई अब तक उपेक्षित ही खड़ी है
समझ कर थाती सहेजे है मनुज कंकाल कर में ।
तोड़ दो वे मौन जो दीवार बन कर आ खड़े हैं
तोड़ दो हर घेर जो इन्सानियत को बांधताहै ।
सींच दो अंकुर मरुस्थल चीर कर जो उग रहे हैं
नाच कर तलवार पर साधक कला को साधता है ।
प्रश्न छाती खोल कर सम्मुख खड़े हैं
हो अगर सामर्थ्य उनका भार झेलो ।
देह 'माटी ' की न जोड़ो  मोह उससे
गांधी का ,बुद्ध का कुछ प्यार ले लो ।
सो चुके लम्बी अवधि तक
अब तनिक फिर जागते है ।
प्रश्न उत्तर माँगतें हैं ॥ 


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