.......................... बाबा ने बताया कि कल सुबह जब वे अँधेरे में टट्टी की ओर बढे तो रास्ते में एक भयावह सर्प फन उठाकर खड़ा हो गया । बाबा ने हाँथ जोड़कर उसे नमस्कार किया और कहा कि नागराज आज शुक्ल पक्ष की अष्टमी है मुझे सात दिन का मौक़ा और दो और पूर्णमासी के प्रभात को तुम आकर मुझे डस लेना । मैं जानता हूँ तुम त्रिलोचन सदाशिव के दूत हो और मुझे लेने के लिये आये हो । इतना सुनने के बाद उस विषधर ने अपने फन को नीचा कर लिया और घूमकर वापस कहीं झाड़ियों में विलीन हो गया । अष्टमी को यह घटना घटी थी और दशमी को यह बात हम तीनों को बतायी । पटियाली कस्बे के हर घर में इस होनी की सूचना पहुँच चुकी थी और सभी मान रहे थे कि जोगी बाबा पहुंचे हुये सन्त हैं और उनका कहा हुआ एक एक शब्द अमिट सत्य है । अभी पूर्णमासी के पॉँच दिन शेष थे । जैवकीय के प्रोफ़ेसर शुक्ला सर्प से की गयी मुलाक़ात को केवल एक संयोग मानते थे और कहते थे कि जोगी बाबा भ्रम के आबद्ध में फंस गये हैं । पर पूरा कस्बा पूरणमासी के प्रभात की प्रतीक्षा कर रहा था । चार बजे खड़ाऊँ के खटकने की आवाज आयी और हाथ में लोटा लिये जोगी बाबा टट्टी की ओर बढ़ते दिखायी दिये । लगभग दस मिनट बाद टट्टी से जै सदा शिव ,जय शिव जय सदाशिव ,जय कैलाशपति की आवाज आयी उनके पुत्र और पौत्र और हम तीनों ने दौड़कर टट्टी तक पहुँचनें की कोशिश की तो देखा एक सात आठ फुट का काला साँप टट्टी से निकलकर झाड़ियों की ओर जा रहा था । बाबा लढखडाते हुये टट्टी से बाहर आये उनके हाथ का लोटा टट्टी में ही पड़ा था । उन्होंने अपने दायें पैर के पंजे की ओर इशारा किया और हम सब ने देखा कि सांप के काटने का त्रिमुखी घाव उस स्थान को नीला कर रहा था । उन्होंने अपने पुत्रों से कहा कि उनके उपचार का कोई प्रयास न किया जाय । उन्हें शिवधाम जाना है । वे लड़खड़ाते कदमों से चलकर घर के बाहर पड़े एक लम्बे चौड़े तख़्त पर लेट गये । उनके पुत्र ,पौत्रों ने उनके सिर के नीचे सिराहना लगा दिया । हम तीनों व्याख्याताओं ने डाक्टरी उपचार की बात कही । लेकिन मूक रहकर जोगी बाबा ने सिर हिलाकर ऐसा करने से मना किया । इतने में कुछ लोग मन्त्रोचार करके विष उतारने वाले गाँव के एक ओझा को बुला लाये । कस्बे के हर घर से बाहर निकलकर जोगी बाबा के घर पर इकट्ठी हुयी भीड़ सैकड़ों की संख्या पार कर रही थी । हम तीनों ने तो कुछ नहीं देखा ,पर घरों से चलकर आने वाले कुछ सज्जनों ने बताया कि रास्ते में एक सर्प फन उठाये खड़ा था । ज्यों -ज्यों मंत्रोच्चार होता था वह अपना फन उठाकर हिलाता -डुलाता था मानों कह रहा हो नहीं यह काल का सन्देशा है और जोगी बाबा को जाना ही पडेगा । दिब्य कैलाश पर उनके आगमन पर स्वागत की तैयारी हो चुकी है । सदाशिव चाहते है कि मन्त्र का कोई असर सर्प पर न हो । उन लोगों की बातें सुनकर उनका विरोध करने का साहस हममें नहीं रहा क्योंकि भीड़ का हर व्यक्ति जोगी बाबा के दिब्य प्रयाण की प्रशंसा कर रहा था । चारो तरफ आवाजें आ रही थीं कि जोगी बाबा एक दिब्य सन्त हैं और उन्हें अपनी मृत्यु का और मृत्यु के कारण का पूर्व ज्ञान हो चुका था । उपचार तो एक छलावा होगा । शोक का नहीं उल्लास का समय है । धीरे -धीरे जोगी बाबा का सारा शरीर नीला पड गया । ठीक प्रातः आठ बजे उन्होंने जय सदाशिव कहकर अन्तिम सांस ली और सदा के लिये यह संसार छोड़ कर चले गये । हम तीनों ने अर्थी में कन्धा देकर अपने को धन्य समझा पर जैवकीय के व्याख्याता शुक्ला जी जब विश्वविद्यालय में अपने सीनियर से मिले तो उन्होंने शुक्ला जी की Peddler of Superstition कहकर सम्बोधित किया । हम अपने विज्ञ पाठकों से इस घटना के सम्बन्ध में उनकी प्रतिक्रिया जानना चाहेंगें ।
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