Friday, 6 May 2016

बजरंगबली की कृपा

                                     1995 की बात है ,अगस्त का आख़िरी पखवारा रहा होगा ,प्रोफ़ेसर सुनील मित्तल जुलाई में सेवा निवृत्त होकर चंडीगढ़ से रोहतक अपने घर में आ गये थे । चंडीगढ़ शहर की सुनियोजित योजना और साफ़ सुथरी छवि उनके मन पर छायी थी और रोहतक उन्हें कूड़े -कचरे का शहर लगता था । पुराने शहर की तंग गलियाँ एक हल्की बरसात पड़ते ही फिसलनसे भर  जाती थीं । सम्पन्न व्यापारी वर्ग मोहल्ले में बहुतायत से था और उनके दुपहिया और चौपहिया वाहनों से सड़कें खचाखच भरी रहती थीं । बरसात में तो पैदल चलना भी मुश्किल था । वर्ड्स वर्थ ,थीरो और इमर्सन के साहित्य का आस्वादन करने वाले प्रोफ़ेसर मित्तल मुख्य शहर से बाहर खुले में एक खाली मकान किराये में लेकर रहने लगे । वे महर्षि दयानन्द विश्वविद्द्यालय के आस पास जमीन खरीद कर कोठी बनवाने की बात सोच रहे थे । राजस्थान में तो बरसात बहुत काम होती है । हरियाणा में भी नब्बे के बाद बरसात की झडियाँ लगना बन्द हो गयी हैं । छोटे -मोटे बादल आये छुटपुट बरस गये और निकल गये । बरसात में कई दिनों तक घिरी रहने वाली मेघ मालायें और उनके ऊपर लहराते सफ़ेद बगुले तो अब दिखायी भी नहीं पड़ते हैं । 1955 में भी बरसात की ऐसी ही हालत थी पर प्रकृति का मूड क्या कभी कोई जान पाया है ?बरसात की एक शाम जब लोग निश्चिन्त सोने का इन्तजाम कर रहे थे अचानक काले हाथियों सी सूंड उठाये बादलों की कतारों पर कतारें दिखायी पड़ने लगीं । रात 12 बजे वर्षा की शुरुआत हुयी और लगभग दो घण्टे बाद बिजली की तड़प के साथ एक भयानक शब्द हुआ । बाद में बताया गया था कि बादल फट गये थे और मूसलाधार पानी कई घण्टों तक गिरता रहा । शहर के भीतरी ऊँचे हिस्सों को छोड़कर बाकी चारो ओर बाहरी क्षेत्र में पानी ही पानी । हिसार रोड पर बने रेलवे ओवर ब्रिज के पास लम्बे -चौड़े और बीस फुट गहरे तालाब में लबालब पानी भरा था । तालाब के उत्तरी किनारे पर पक्की ईंटों की एक पक्की दीवार तालाब के पानी को प्रोफ़ेसर मित्तल की कालोनी में जाने से रोक रही  थी । कालोनी की सड़को पर पहले से ही चार पाँच फ़ीट पानी था । शहर के अधिकाँश भागों में बाढ़ का पानी घुस चुका था । बाढ़ ग्रस्त नीची बाहरी कालोनियों से भग भग कर लोग शहर के ऊँचे टीलों पर बसे मुहल्लों पर जा बसे थे । प्रो ० मित्तल का मकान दो मंजिला होने के कारण वे अपनी पत्नी और एम ० ए ० की छात्रा अपनी बेटी के साथ ऊपर के तल पर रह रहे थे । नीचे के तल में तीन चार फ़ीट पानी था । सड़कों पर दूध और सब्जी की किश्तीनुमा ठेलियां चलने लगी थीं । और ऊपर छत से रस्सी में बाँधकर टोकरी लटका दी जाती थी जिससे दूध और सब्जी ऊपर खींच कर आ जाती थी । पीने का पानी भी बोतलों में बिक रहा था । केन्द्र सरकार की ओर से भी हवाई जहाज़ों से खाने के पैकेट छतों पर डाले जा रहे थे ।
                               प्रो ० मित्तल की कालोनी में यह आतंक फैला था कि अगर तालाब के उत्तर वाली दीवार टूट गयी तो क्या होगा ?कालोनी को 12 से 15 फ़ीट पानी में डूब जाने का ख़तरा था । पशु मरनें लगे थे और उनकी तैरती हुयी लाशें सड़क के पानी में उतराती दिखलायी पड़ती थीं । कालोनी के बन्दर कहीं भग गये थे । यहाँ मैं यह बता दूँ कि रोहतक में अधिकाँश कालोनियों में बन्दरों के झुण्ड छतों पर घूमा करते हैं । एक मझोला बन्दर झुण्ड से कटकर अकेला पड़ गया था और वह अक्सर प्रो ० मित्तल के दुमंजिले पर बने कमरे की छत पर बैठा रहता था । दो दिन तक तो दीवार पानी की टक्कर सहती रही । पर तीसरी शाम उसमें दरारें पड़ गयीं और उसका एक हिस्सा धड़ाम से पानी में ढह पड़ा । अब क्या था पानी का लाठियों ऊँचा प्रवाह कालोनी को डुबा देने के लिये चल पड़ा । रात भर लोग छतों पर बैठे जागते रहे और हहर -छहर भरा पानी के दायें बायेँ और वर्तुल चक्र को देखते रहे । पानी के भारी प्रवाह ने जमीन की सुराखों और छेदों में छिपे न जाने कितने कीड़े और मकोड़े रेंग रेंग कर दीवारों और छतों पर चिपटने लगे ।  अगले दिन सुबह प्रो ० मित्तल की बेटी शुभा ने सबसे पहले उठकर देखा कि पानी की लहरें दुमंजिले कमरे को छूने लगी हैं । वह लपक कर जीने से कमरे की छत की ओर चढ़ने लगी ताकि वहां से पूरा दृश्य साफ़ -साफ़ दिखायी दे । छत पर पहुँचते ही वह चीखने लगी क्योंकि एक विषैला सांप फन उठाये उसकी ओर दौड़ा । प्रो ० मित्तल और उसकी पत्नी दौड़कर सीढ़ियों से छत की ओर चढ़ने लगे पर इतना समय कहाँ था । विषैले सांप ने फन उठाकर शुभा के पैर पर दाँत गड़ाने की चेष्टा की । मित्तल दम्पत्ति ने डर के मारे आँख बन्द कर पवन सूत बजरंगबली से अपने एक मात्र बच्ची के प्राणों की भीख माँगी । एकदम एक  आश्चर्य हुआ न जाने किस शून्य से उछल कर उस अकेले मझोले बन्दर ने विषैले सांप के उठे फन को अपनी मुठ्ठी में दबोच लिया । वह छत की ऊँची उठी मेढ़ पर बैठ गया और फन को मेढ़ की नंगी ईंटों पर रगड़ने लगा । । रह रहकर वह उसे अपने कान के पास ले जाकर यह सुनने की कोशिश करता कि साँप में सांस की कोई हलचल है या नहीं । दो मिनट बाद उसने विषैले साँप के निर्जीव शरीर को बाहर पानी में फेंक दिया । भय से पीली पड़ गयी शुभा के जान में जान आयी मित्तल दम्पत्ति ने जय बजरंगबली कहकर रामदूत के प्रति अपना आभार प्रकट  किया । प्रो ०  मित्तल के सहयोगी और सहकर्मी सभी शिक्षक बन्धु इस घटना को एक संयोग मात्र मानते हैं पर मित्तल दम्पत्ति इसे बजरंबली की कृपा मान कर चल रहे हैं । दोनों ही विचारधारायें महत्वपूर्ण वैचारिक आधार शिलाओं पर खड़ी हैं । हम स्वयं कोई निश्चय नहीं कर पा रहे हैं । प्रबुद्ध पाठकों से तर्कसंगत प्रतिक्रयायें आमन्त्रित की जाती हैं जिन्हें ;माटी ' में प्रकाशित किया जायेगा । 

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