Sunday, 1 May 2016

                         ............................ नितान्त निर्मल आशीर्वाद भरा प्यार इन तन्दुल कणों से निःसृत हो रहा है ।  सुदामा देखते ही रहे । उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ कि उनका किशोर सखा श्रीकृष्ण इतना बड़ा महामानव है । गुरुपत्नी द्वारा दिये गये चनों की  उन्हें याद आयी । छिः छिः ब्राम्हण पुत्र होकर भी मैं झूठ बोला था । अपने को ही अभिशापित करने का उनका मन हो आया । द्वारिकाधीश मुस्कराये । प्रेमाश्रुओं को हाथ से पोछते हुये बोले हे सखा ,मैं तुम्हारे ह्रदय के भाव जानता हूँ अपने को अपनी ही आँखों में छोटा मत करो । तुम्हें मुझसे छिपाकर चना चबा लेने की कहानी ही तो मेरे जीवन की सभी कहानियों से अधिक प्रचारित -प्रसारित होगी । मेरी ओर देखो मित्र ,मुझे ब्राम्हण सेवक के रूप में स्वीकारो और फिर चावलों के कणों की दूसरी मुट्ठी मुँह में डाली । इसके पहले कि तीसरी मुट्ठी मुँह में डालते महारानी रुक्मणी ने कलाई को प्यार भरे स्पर्श से पकड़कर रोक लगा दी । बोली ,"प्राणेश्वर अपनी पटरानी के लिये भी कुछ छोड़ोगे कि नहीं ? दो लोक तो दे दिये, क्या तीनों लोक भाभी को ही देने होंगें । द्वारिकाधीश के होठों पर मधुर हास्य खेल गया । बोले प्राणेश्वरी ,"प्राणों पर तुम्हारा पूरा अधिकार है । पर पवित्रता ,सच्चायी और हो जाने वाली गलती पर किये गये सच्चे मन के प्रायश्चित्त समाज की समृद्धि और सुरक्षा के लिये ही तो राज्य का सम्पूर्ण वैभव होता है । तपस्वी सुदामा इन्हीं शास्वत मूल्यों के प्रतीक हैं । उनकी मित्रता का मूल्य पीड़ित दुःखित मानवता के बृहत्तर सम्बन्धों से जोड़कर देखो रुक्मणी । मैं जीवन भर अन्याय , अविचार और अभाव को संसार से मिटाने में लगा रहा हूँ , जो उपलब्धि हुयी है वह नगण्य है ,अभी जो करना शेष है उसके लिये मुझे न कितनी बार, कितने युगों में फिर -फिर आना पडेगा । कृष्ण सुदामा की मित्रता और सखा भाव युग -युग तक हर राज्य सत्ता को अभावग्रस्त लोगों की मदद के लिये प्रेरित करता रहेगा । "
                                   कहना न होगा कि रुक्मणी और योगेश्वर कृष्ण के बीच यह बाते उस समय  हुयीं जब सुदामा अन्तः पुर के सुरक्षित विश्राम गृह में रेशमी शैय्या पर लेटे थे । राजराजेश्वरी रुक्मणी और द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण के बीच वार्तालाप के लम्बे दौर की कहानी से परिचित होने के लिये हम आगे कभी चर्चा करेंगें । प्रतीक्षा करिये । 

No comments:

Post a Comment