नेपथ्य ध्वनि :-अंजुलि में भरा हुआ जल सरोवर में छोड़ दो । जल की बूँदें ओष्ठों से लगते ही तुम भी अपने छोटे भाइयों की तरह मृत्यु की न टूटने वाली निद्रा चादर में लपेट लिये जाओगे , सावधान !
युधिष्ठिर :-वाणी के विधाता आप कौन हैं ?कुन्ती पुत्र युधिष्ठिर परिचय प्रार्थी है ।
नेपथ्य स्वर :-मैं यक्षराज अलकापति हूँ । यह सरोवर मेरे अधिकार में है । मेरे आदेश का उल्लंघन तुरन्त मृत्यु का बुलावा है ।
युधिष्ठिर :-यक्षराज मेरा प्रणाम स्वीकार करें । क्या मुझे यह सौभाग्य मिलेगा कि अल्कापति मुझे प्रत्यक्ष दर्शन दें । मैं आपका सदैव अनुग्रहित रहूँगा ।
नेपथ्य स्वर :-साधु ,साधु तुम एक सत्पुरुष हो । मैं तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार करता हूँ । लो मैं प्रकट होता हूँ । कुछ दूर खड़े रहकर ही मुझसे बात करना ।
युधिष्ठिर :-यक्षराज आपकी कृपा के लिये मैं कृतज्ञता यापन करता हूँ । कृपा करके यह बताने का कष्ट करें कि मेरे चारो अनुज इस सुसुप्त अवस्था कप कैसे प्राप्त हो गये ?
यक्षराज :-उनमें इतना धैर्य न था कि पानी पीने से पहले मेरे प्रश्नों को सुनकर उनका उत्तर देते । उन्हें अपने शरीर से मोह था । ज्ञान से नहीं । उनका धैर्य उनकी चिर निद्रा का कारण बना है ।
युधिष्ठिर :-यक्षराज क्या आप मुझे अपने प्रश्नों का उत्तर तलाशने का सुअवसर देंगें ।
यक्षराज :- हाँ हाँ अवश्य । तुम्हारे धैर्य ने मुझे प्रभावित किया है लगता है तुममें गहराई में पैठने के क्षमता है मैं तुमसे पाँच प्रश्न पूछूँगा । दिये गये उत्तरों की सार्थकता पर ही आगे का निर्णय लिया जायेगा । जल पीने की पात्रता भी तभी मिलेगी । मेरा पहला प्रश्न है कि मानव अलकापुरी में कबतक प्रवेश कर सकेगा ?
युधिष्ठिर :-आपनें अलकापुरी की स्थित के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं करायी है । यदि वह धरती पर है तो अक्षांश और देशान्तरों के माध्यम से उसकी स्थिति बताइये । यदि वह सौर मंडल का ग्रह है तो उसकी कक्षा का उल्लेख करिये और यदि वह किसी ग्रह का उपग्रह है तो वैसा बताइये यदि उसकी स्थिति आकाश गंगाओं में है तो किन तारा वीथिकाओं में यक्षणियाँ नृत्य करती हैं यह स्पष्ट कीजिये । ऐसा होने पर मैं अलकापुरी में मानव प्रवेश की अनुमानित तिथि मैं आपको बता सकूँगा ।
यक्षराज :-मैंने अपने प्रश्न का उत्तर तुम्हारे प्रश्नों में पा लिया है । मैं तुम्हारे उत्तर से संतुष्ट हूँ । मेरा दूसरा प्रश्न है कि धरती से भी अधिक भरण पोषण करने वाली और सब कुछ सहकर अपनी स्वाभाविक गति से न विचरने वाली शक्ति कौन सी है ?
युधिष्ठिर :-यक्षराज क्या आप उस धरती की बात कर रहे हैं जो अन्तरिक्ष के एक छोटे से प्रकाश बिन्दु जिसे सूर्य के नाम से जाना जाता है के चारो ओर चक्कर लगा रही है या आप किसी अन्य ग्रह की बात करते हैं जिसे धरती के नाम से अभिहित किया जाता है । ब्रम्हाण्ड में अनगिनत सूर्यों के आस -पास अनगिनत ग्रह घूम रहे हैं । अपनी धुरी पर चौबीस घंटे में घूम लेने वाली धरती की बात यदि आप करते हों तो उसका कोई विशेष भू भाग आपके प्रश्न में लक्षित तो नहीं है । धरती के भरण -पोषण में आप समुद्र से होने वाले भरण -पोषण को शामिल कर रहे हैं या नहीं यह ठीक है कि भारत की नारी कष्ट सहने में धरती से अधिक सहिष्णु है पर अमरीका ,स्वीडन और फ्रांस के पुरुष अधिक सहनशील कहे जायेंगें क्योंकि वहाँ की नारियाँ पुरुषों को इतना अधिक कष्ट देती हैं जितना कष्ट धरती कभी नहीं पाती । वैसे सहनशीलता के क्षेत्र में हम मानव जिस धरती पर रहते हैं उसमें गर्दभराज का सबसे बड़ा स्थान है, यक्षराज जी आप गर्दभराज को तो जानते ही होंगें ?
यक्षराज :-हे ज्येष्ठ पाण्डव तुम सचमुच ज्ञानी लगते हो। प्रश्न का उत्तर प्रश्न से देकर तुमनें मुझे प्रसन्न किया । साथ ही तुमनें एक उत्तर में नर -नारी के सम्बन्धों की व्याख्या की और साथ ही मेरे एक निकटतम सम्बन्धी को निकाला । मेरा तीसरा प्रश्न यह है कि धर्म का सार क्या है ?(क्रमशः )
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