Monday, 16 May 2016

टिमटिमाती शाम

टिमटिमाती  शाम 

कट गया मैं, हट  गया मैं
खेत से ,खलिहान से
ओस  भीगी दूब  से
हसिया ,कुदाली ,धान से
इसलिये जो लिख रहा हूँ
सिर्फ उनके ही लिये है
जो बहुत पढ़ते पढ़ाते हैं -किताबी जीव हैं ।
गीत मेरे अब न मिट्टी के सहोदर मीत हैं ।
शोध में जन्में पले  हैं -ज्ञान गर्भ अधीत हैं ।
शीत  की लम्बी सिहरती  रात में
 प्यार (पयार ) भर कर टाट में जब ठाठ से
बैठती थी गाँव गवईं की सभा
तब सुनाये गीत जो मटियार थे
डाल  से टपके गुलाबी आम से
धूल लोटी टिमटिमाती शाम से
पक  रहे रस की गुडाही बास से
कथा के निरबंसियों की आस से
श्याम धौरी गाय से गभियार थे
तब सुनाये गीत जो मटियार थे
अस्मिता का अब मुझे विस्मय जनक अहसास है
मूल्य आयातित सभी हैं ,प्लवन कारी प्यास है
हाइकू जापान से , सानेट समन्दर पार से
स्वर्ण -केशी कल्पना पुलकित हशिश के भार से
हाय गँवई गाँव का गायक कहाँ है
हाय लक्षमन राम का शायक कहाँ है
प्रमुथ्य -पाट्रा अब हमारे पात्र हैं
ऋषि कथायें तो बहाना मात्र हैं
हैं न वे हरिताभ कोपल मरण धर्मापीत हैं ।
गीत मेरे अब न मिट्टी के सहोदर मीत  हैं ।
मोतियाँ झालर- सनी बरसात में
रस बहाती नम भदली रात में
टॉप पर आल्हा लहर कर गूँजता
बुर्ज पर घोड़ा बुन्देला कूंदता
कौन सा अल्हैत देखो दे रहा ललकार
रक्त पीकर ही पला है क्षत्रियों का प्यार
मान खोकर आयु का हर वर्ष बनता भार
(वर्ष अठारह क्षत्रिय जीवे -आगे जीवे को धिक्कार )
थी हँसी उन्मुक्त ,था निर्वर भाव -प्रसार
सामूहिक छल से न मन बैठा थका था हार
तब लिखे जो गीत वे अग़ियार थे
जोत की आशा लिये सफला सुहागन नार थे
कट गया मैं ,हट गया मैं
खेत से ,खलिहान से
ओस भीगी दूब  से
हँसियाँ ,कुदाली ,धान से
इसलिये जो लिख रहा हूँ -सिर्फ उनके ही लिये है
जो बहुत पढ़ते -पढ़ाते हैं   किताबी जीव हैं
गीत मेरे अब न मिट्टी के सहोदर मीत हैं
शोध में जन्में पलें  हैं ,ज्ञान गर्भ अधीत हैं । 




 

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