Tuesday, 19 April 2016

                               .................. इस अखण्ड एकात्म भाव के  प्रति समर्पित होकर हम विश्व चेतना का एक अंग बन सकेंगें । भारत का अतीत गण व्यवस्था का प्रहरी था जहाँ से निकले अँकुर डिमोक्रेसी के नाम पर इंग्लैण्ड तथा योरोप के अन्य देशों से छोटा -मोटा परिवर्तन लेकर अमेरिका पहुँचे हैं । तभी तो आज  संसार यह मानने को  विवश हो चुका है कि भारतीय चेतना में जनतन्त्र का रक्त स्पन्दन उसके अस्तित्व की अनिवार्यता रहा है । French Revolution के आदर्श Equality,Liberty और Fraternity समानता ,स्वतंत्रता और बन्धुत्व पाश्चात्य देशों में आज धूमिल पड़ गये हैं और केवल औपचारिकता के लिये दोहराये जा रहे हैं । पर फ्रांस ने जो कुछ कहा था वह तो भारत का ही उधार लिया गया दर्शन था इसलिये हमारे लिये, हमारी राष्ट्रीय धर्मिता के लिये ,हमारे वैश्विक जीवन दृष्टि के लिये तो इन शब्दों के प्रति स्वागत भाव रहा है और रहेगा । तोड़ो इन जाति पाति के बन्धनों को ,तोड़ो इन क्षेत्रीय प्रतिबन्धों को ,तोड़ो इन मानसिक मकड़ी जालों को हम सब भारत वासी हैं ,आर्य पुत्र हैं, हिन्दुस्तानी हैं ,इण्डियन हैं, हममें जन्म से बड़े -छोटे होने का भाव किसी काल में साम्राज्यवादी विभाजक तत्वों द्वारा आरोपित कर दिया गया । वह हमारा मूल स्वर नहीं है  वह तो वस्तुतः कुलीन तन्त्रीय इंग्लैण्ड जैसे पाश्चात्य देशों का स्वर रहा है । और वहाँ भी समानता के प्रेरक उद्घोषकों ने यही कहा था  " When Adam delved and Eve span
                Who was then a gentle man."
                                                 तो आइये 'माटी ' के साथ हम एक जुट होकर चल पड़ें । अकेले हम सब परिचय हीन हैं ,छोटे हैं ,अधूरे हैं ,विखण्डित हैं और अपेक्षाकृत असमर्थ हैं पर सब मिलकर हम सार्थक बनते हैं । विश्व में एक अर्थवान श्रष्टि रच सकते हैं । और ब्रम्हाण्ड रचयिता के इस अपार श्रष्टि सागर में कुछ परिचय के अधिकारी बन जाते  हैं । 'माटी ' का प्रत्येक पाठक समष्टि चेतना में अपने अहँकार को विसर्जित कर महादेवी जी के उस भाव गरिमा से आलोड़ित हो सकता है जो इन पंक्तियों में व्यक्त है ।
" क्षुद्र हैं मेरे बुदबुद प्राण
 तुम्हीं में श्रष्टि तुम्हीं में नाश
 सिन्धु को क्या परिचय दे देव
 बिगड़ते बनते बीच बिलास ।"
मात्र भूमि ,राष्ट्र भूमि को माटी परिवार के शत शत प्रणाम । 

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