Thursday, 31 March 2016

                            ................ पण्डित जी की कथा समाप्त हो चुकी थी लोग उठने लगे थे । लोगों के  उठने की हलचल ने उमाशंकर जी के स्वप्न में कुछ नया मोड़ ला दिया । उन्होंने देखा कि शुद्धोधन ,पुत्र ,पुत्रबधू और पौत्र के पास आकर खड़े हुये हैं । उन्होंने वापस आने को तत्पर तथागत से विनत स्वर में कहा कि वे एक वरदान माँगना चाहते हैं । गौतम ने कहा कि वे तो स्वयं भिक्खु हैं । दूसरों को कल्याण कामना के अतिरिक्त और क्या  सकते हैं । शुदोधन ने कहा नहीं सिध्दार्थ यह वरदान तो तुम्हें अपने पिता को देना ही होगा ।
                               "  बोलो! शुद्धोधन ने कहा आगे कोई भी किशोर या नवयुवक माता -पिता की आज्ञा के बिना आपके धर्म समाज का भिक्खु न बने यह वर देकर आप मुझे कृतार्थ करें ।  राहुल को  भी मुझसे छीनकर सिद्धार्थ मेरे बेटे , तुमनें मुझे तृणवत जीवन समुद्र की लहरों पर छोड़ दिया है । ऐसा और किसी के  साथ न हो । तथागत बोले पिता श्री  सिद्धार्थ का प्रणाम स्वीकार करें । तथागत को सदैव  इस बात का  गर्व रहेगा कि शुद्धोधन जैसे प्रज्ञा पुरुष ने उन्हें धरती पर आने का सौभाग्य दिया था । भिक्खुओं की टोली में राहुल शामिल हो गया । एक समवेत स्वर गूँजा ।
                                                        " बुद्धम् शरणम् गच्छामि ,
                                                           संघंम शरणम् गच्छामि
                                                           धम्मम शरणम् गच्छामि । "
                                          उमाशंकर जी चौंक कर खड़े हो गये अरे यह क्या सभी लोग खड़े हैं । आरती हो रही है । अरे यह तो हनुमान जी की आरती है ।
                                          " आरति कीजै हनुमान लला की   
                                             दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ।"
          धत्त तेरी की । तो क्या मैं स्वप्न देख रहा था ?मैनें स्वयं सूर्य के समान प्रकाशित महाप्रभु अमिताभ के दर्शन किये । उमाशंकर जी ने अभी तक कभी आरती में चवन्नी भी नहीं डाली थी पर आज उन्हें न जाने क्या हो गया उन्होंने एक रुपये का बिल्कुल नया चमकता हुआ सिक्का आरती में डाल दिया । आरती के बाद पण्डित जी के पास गये और उनके प्रवचन की भूरि -भूरि  प्रशंसा की । अगर आप उमाशंकर जी से मिलना चाहें तो उनका पता नीचे दिया जा रहा है .................  

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