अपरिमेय घनत्व में सम्पुजित परमाणु प्रकाश बिम्ब अपने वर्तुल चक्र परिधि में कब और कैसे महानतम विस्फोट की ऊर्जा पल्लवित कर उठा इसे शायद कोई नहीं जानता- भले ही ब्रम्हाण्ड विद् इसकी परस्पर विरोधी व्याख्याओं से जूझते रहे हैं । महाविस्फोट के बाद भी अकल्पनीय विस्तरण की जिस प्रक्रिया का सूत्रपात हुआ उसके विषय में भी कोई निश्चित अवधारणा अभी तक ब्रम्हाण्ड विशेषज्ञों नें नहीं दे पायी है । जिस एक बात पर सभी का मतैक्य है वह है काल की गणितीय परिधि से बाहर कालातीत परिभ्रमण प्रक्रिया में काल का प्रवेश। ब्रम्हाण्ड विस्फोट के साथ ही उसका विस्तारीकरण और उस विस्तारीकरण के साथ ही समय की परिगणना का प्रारम्भ । आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के फ्रोफेसर हाकिन्स काल गणना की शुरुआत ब्रम्हाण्डीय विस्फोट से जोड़कर देखते हैं। पर यह गणना भी संख्याओं में बंध नहीं पाती उसे प्रतीकात्मक रूप से प्रकाश वर्षों में बांधा जाता है। विज्ञ पाठकों को यह बतानें की जरूरत नहीं है कि गृहों और सितारों की दूरी प्रकाश वर्षों में भी नापी नहीं जा सकती । काल के इस अनंन्त विस्तार में अरबों ,करोड़ों और लाखों वर्षों की दौड़ का भी कोई महत्त्व नहीं होता ।
पर मानव जीवन अपनी उत्पत्ति के साथ ही अपनें विनाश की अवधि का मापदण्ड भी लेकर आया था इसलिये मानव जीवन की कालगणना में एक वर्ष का महत्त्व भी चर्चा का विषय बन जाता है । भारतीय जनतन्त्र में केन्द्र में सत्ता परिवर्तन का समय संवैधानिक आधार पर पांच वर्ष के बाद आता है पर संवैधानिक आधार क्षतिग्रष्त हो जाने पर पाँच वर्ष के पहले भी अस्थिरता का आभाष होने लगता है । इन मापदण्डों को आधार मानकर हम इस बात से आश्वस्त हो जाते हैं कि हमनें सभी संकटो से जूझ कर 'माटी को 'सात वर्षों तक निरन्तर गतिमान रखा है और अब भी हमारे निश्चय की द्रढ़ता अखण्ड रूप से हमें उद्दीपन भरा शक्ति आसव पिलाती रहती है ।
इन सात वर्षों में जिन प्रबुद्ध ,लब्ध प्रतिष्ठ और बाजारू संस्कृति से मुक्त कृतिकारों ,आलोचकों ,विम्बधरों और नाभिकीय कल्पना पंखों पर आदर्श आरोहण में रत चिन्तकों और पाठकों नें हमें सहयोग दिया है उनका मैं धन्यबाद तो करता ही हूँ साथ ही अपना मान और मुखर नमन भी उन्हें समर्पित करता हूँ ।
मैं तो अपनें में छिंगुनी का बल भी नहीं पाता पर छिंगुनी में यदि पवन पुत्र की कृपा द्रष्टि हो जाय तो उनकी ऊर्जा के अवतरण से वह मेरू को भी उठा सकती है । 'माटी 'की निरन्तरता का श्रेय मुझको न जाकर उन सहस्त्रों सहयोगियों को जाता है जिनका समर्थन मुझ जैसे अकिंचन को मिला । मुझ पर चोट करने वाले उनकी सामूहिक ललकार को झेल नहीं सके और उनके बल पर मैं अपनें मिशन पर बढ़ता चल रहा हूँ । स्वस्थ्य आलोचना तो मेरे लिये गले का हार है ही पर कटूक्तियों की कंटक माला भी मेरे द्वारा उपेक्षित नहीं होगी । आखिर शिव का साधक गरल को भी कंठ धर कर नीलाभ शुषमा में बदल देता है । 'माटी 'आपसे आशीर्वाद पाकर अपने सामर्थ्य को शताधिक रूप से विस्तारित करना चाहती है । संभावित सुझाव भी प्रकाशन की अधिकार सीमा में आयेंगे ।
कृपया अपनी सम्मतियाँ ,शुभाशीष और उत्कर्ष की प्रेरणा दायी सूक्तियाँ हमें प्रेषित कर कृतार्थ करें ।
पर मानव जीवन अपनी उत्पत्ति के साथ ही अपनें विनाश की अवधि का मापदण्ड भी लेकर आया था इसलिये मानव जीवन की कालगणना में एक वर्ष का महत्त्व भी चर्चा का विषय बन जाता है । भारतीय जनतन्त्र में केन्द्र में सत्ता परिवर्तन का समय संवैधानिक आधार पर पांच वर्ष के बाद आता है पर संवैधानिक आधार क्षतिग्रष्त हो जाने पर पाँच वर्ष के पहले भी अस्थिरता का आभाष होने लगता है । इन मापदण्डों को आधार मानकर हम इस बात से आश्वस्त हो जाते हैं कि हमनें सभी संकटो से जूझ कर 'माटी को 'सात वर्षों तक निरन्तर गतिमान रखा है और अब भी हमारे निश्चय की द्रढ़ता अखण्ड रूप से हमें उद्दीपन भरा शक्ति आसव पिलाती रहती है ।
इन सात वर्षों में जिन प्रबुद्ध ,लब्ध प्रतिष्ठ और बाजारू संस्कृति से मुक्त कृतिकारों ,आलोचकों ,विम्बधरों और नाभिकीय कल्पना पंखों पर आदर्श आरोहण में रत चिन्तकों और पाठकों नें हमें सहयोग दिया है उनका मैं धन्यबाद तो करता ही हूँ साथ ही अपना मान और मुखर नमन भी उन्हें समर्पित करता हूँ ।
मैं तो अपनें में छिंगुनी का बल भी नहीं पाता पर छिंगुनी में यदि पवन पुत्र की कृपा द्रष्टि हो जाय तो उनकी ऊर्जा के अवतरण से वह मेरू को भी उठा सकती है । 'माटी 'की निरन्तरता का श्रेय मुझको न जाकर उन सहस्त्रों सहयोगियों को जाता है जिनका समर्थन मुझ जैसे अकिंचन को मिला । मुझ पर चोट करने वाले उनकी सामूहिक ललकार को झेल नहीं सके और उनके बल पर मैं अपनें मिशन पर बढ़ता चल रहा हूँ । स्वस्थ्य आलोचना तो मेरे लिये गले का हार है ही पर कटूक्तियों की कंटक माला भी मेरे द्वारा उपेक्षित नहीं होगी । आखिर शिव का साधक गरल को भी कंठ धर कर नीलाभ शुषमा में बदल देता है । 'माटी 'आपसे आशीर्वाद पाकर अपने सामर्थ्य को शताधिक रूप से विस्तारित करना चाहती है । संभावित सुझाव भी प्रकाशन की अधिकार सीमा में आयेंगे ।
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