( गतान्क से आगे ).......
यह कितना आश्चर्य है कि दूसरों को जीवन देने वाला डाक्टर ब्यभिचारी बनकर स्वयं अपनी पत्नी को काट -काट कर सीवर के मार्ग से बहा दे । यह कितनें आश्चर्य की बात है कि बिशप कॉटन पब्लिक स्कूल का पढ़ा हुआ धनिक शरीर भोगने के बाद नर मांस खाने की राक्षसी आदत का शिकार बन जाये । यह कितनें आश्चर्य की बात है कि स्वतन्त्र भारत का विद्यार्थी गुरुहन्ता बन कर राजनीति की दीक्षा में पारंगत होंने का स्वप्न पाले । जाहिर है कि हमें इन सब पर बड़ी गहरायी से सोचना होगा और प्रगति को सड़क , पानी और बिजली के साथ -साथ आत्म ज्ञान ,चरित्रबल और पर सेवा से भी जोड़ना होगा । आज का संसार अब वह संसार नहीं रहा है जो आजादी की प्राप्ति के समय था । अब हम चाँद और मंगल के पार अन्य आकाश गंगाओं की ओर बढ़ रहे हैं ।
अब हम हिन्दू ,मुसलमान ,सिख ,ईसाई पारसी ,यहूदी होकर भी सबसे पहले एक इंसान हैं एक ऐसा इंसान जिसे प्रदेश ,प्रान्त और राष्ट्र के ऊपर उठकर विश्व दृष्टि से अपने को देखना है । एक ऐसा इंसान जिसे अन्तरिक्ष यान से इस धरती को मात्र घूमते हुए पिण्ड के आकार के रूप में देखना है जिसका अन्तरिक्ष की असीमता में सुई की नोक के बराबर भी अस्तित्व नहीं है । हमें धर्म की संकीर्ण परिभाषा से उठकर गांधीजी की उस परिभाषा को चरितार्थ करना है जहां हम हिन्दू होकर भी मुसलमान हैं , पारसी हैं , सिक्ख हैं , यहूदी हैं अर्थात हम सच्चे इंसान हैं। धर्मों में जहां कहीं भी विरोधी तत्व है उन्हें हमें हटाकर समानता और विश्व मानवता के अनुकूल तत्वों को समाहित करना होगा यह काम नयी शिक्षा प्रणाली और समर्पित शिक्षा गुरुओं द्वारा किया जा सकता है । कहना न चाह कर भी यह कहना पड़ता है भारत की आजादी के बाद जैसे -जैसे पुराना नेतृत्व हमारे बीच से उठता गया वैसे -वैसे नया उठने वाला नेतृत्व घटिया साबित होता गया । अब राष्ट्र व्यापी पवित्रता , उज्ज्वलता , उदारता और ज्ञान विशालता वाला नेतृत्व कहीं देखने को नहीं मिल रहा है यह एक कड़ुआ सत्य है जिसे कहने , लिखने में मुझे कोई संकोच नहीं हो रहा है पर माटी का संपादक मण्डल यह मानता है कि मानव का भविष्य अंधकारपूर्ण नहीं है। अतीत में भारत नें अपने समय के विश्व ज्ञान के सन्दर्भ में संसार को मार्ग दिखाया था। कालान्तर में वह दौड़ में कुछ पिछड़ गया। ऐसा स्वाभाविक भी था क्योंकि बहुत दिनों तक बहुत तेज गति से धावित रहने के बाद कुछ थकान आनी आवश्यक ही होती है अब ऊर्जा की एक नयी लहर भारत की रग -रग में फिर से दौड़नें लगी है और हमें विश्वाश हो उठा है कि भारतीय प्रतिभा आदर्श के नये प्रतिमान स्थापित करनें में सफल हो सकेगी । आवश्यकता है न केवल सामूहिक प्रयासों की बल्कि व्यक्ति केंन्द्रित प्रयासों की भी। यह आशा करना कि हम आचरण की शुद्धता तभी ग्रहण करेंगें जब ऊपर का नेतृत्व साफ़ सुथरा हो केवल छलना है । अपने को धोखा देना आत्महत्या करना ही कहा जा सकता है। हमें अपने स्तर पर ईमानदार , सजग और सतर्क होना है । हमें पाप की कमाई पर थूक देने की हिम्मत जगानी है । भ्रष्टाचार को मिटाने के लिये हमें राम प्रसाद बिस्मिल के उस शहीदी गीत की स्मृति फिर जगानी है " सिर बाँधे कफनवा रे शहीदों टोली निकली " ।
माटी आपको आकाश कुस्मों का स्वप्न नहीं दिखाती। वह आपको मटमैले खेतों ,खलिहानों की धूमिल राहों में ले चलने की पुकार लेकर आयी है। हाँ , इतनी स्वतन्त्रता आपको अवश्य है कि आप अपने व्यक्तित्व के करिश्मा से मन के उज्वल , पर वस्त्र मलिन गाँव और गलियों के परिवेश को बदलकर बाहर और भीतर दोनों से उज्वल कर दे। माटी को प्राकृतिक पोषक तत्वों और जल पूर्ति से शशक्त बनायें रखने से नयी संपुष्ट फसलों को उगानें में उल्लेखनीय सफलता मिल सकेगी। आइये हम सब इस जोखिम भरे पथ पर हमसफ़र बनें ।
यह कितना आश्चर्य है कि दूसरों को जीवन देने वाला डाक्टर ब्यभिचारी बनकर स्वयं अपनी पत्नी को काट -काट कर सीवर के मार्ग से बहा दे । यह कितनें आश्चर्य की बात है कि बिशप कॉटन पब्लिक स्कूल का पढ़ा हुआ धनिक शरीर भोगने के बाद नर मांस खाने की राक्षसी आदत का शिकार बन जाये । यह कितनें आश्चर्य की बात है कि स्वतन्त्र भारत का विद्यार्थी गुरुहन्ता बन कर राजनीति की दीक्षा में पारंगत होंने का स्वप्न पाले । जाहिर है कि हमें इन सब पर बड़ी गहरायी से सोचना होगा और प्रगति को सड़क , पानी और बिजली के साथ -साथ आत्म ज्ञान ,चरित्रबल और पर सेवा से भी जोड़ना होगा । आज का संसार अब वह संसार नहीं रहा है जो आजादी की प्राप्ति के समय था । अब हम चाँद और मंगल के पार अन्य आकाश गंगाओं की ओर बढ़ रहे हैं ।
अब हम हिन्दू ,मुसलमान ,सिख ,ईसाई पारसी ,यहूदी होकर भी सबसे पहले एक इंसान हैं एक ऐसा इंसान जिसे प्रदेश ,प्रान्त और राष्ट्र के ऊपर उठकर विश्व दृष्टि से अपने को देखना है । एक ऐसा इंसान जिसे अन्तरिक्ष यान से इस धरती को मात्र घूमते हुए पिण्ड के आकार के रूप में देखना है जिसका अन्तरिक्ष की असीमता में सुई की नोक के बराबर भी अस्तित्व नहीं है । हमें धर्म की संकीर्ण परिभाषा से उठकर गांधीजी की उस परिभाषा को चरितार्थ करना है जहां हम हिन्दू होकर भी मुसलमान हैं , पारसी हैं , सिक्ख हैं , यहूदी हैं अर्थात हम सच्चे इंसान हैं। धर्मों में जहां कहीं भी विरोधी तत्व है उन्हें हमें हटाकर समानता और विश्व मानवता के अनुकूल तत्वों को समाहित करना होगा यह काम नयी शिक्षा प्रणाली और समर्पित शिक्षा गुरुओं द्वारा किया जा सकता है । कहना न चाह कर भी यह कहना पड़ता है भारत की आजादी के बाद जैसे -जैसे पुराना नेतृत्व हमारे बीच से उठता गया वैसे -वैसे नया उठने वाला नेतृत्व घटिया साबित होता गया । अब राष्ट्र व्यापी पवित्रता , उज्ज्वलता , उदारता और ज्ञान विशालता वाला नेतृत्व कहीं देखने को नहीं मिल रहा है यह एक कड़ुआ सत्य है जिसे कहने , लिखने में मुझे कोई संकोच नहीं हो रहा है पर माटी का संपादक मण्डल यह मानता है कि मानव का भविष्य अंधकारपूर्ण नहीं है। अतीत में भारत नें अपने समय के विश्व ज्ञान के सन्दर्भ में संसार को मार्ग दिखाया था। कालान्तर में वह दौड़ में कुछ पिछड़ गया। ऐसा स्वाभाविक भी था क्योंकि बहुत दिनों तक बहुत तेज गति से धावित रहने के बाद कुछ थकान आनी आवश्यक ही होती है अब ऊर्जा की एक नयी लहर भारत की रग -रग में फिर से दौड़नें लगी है और हमें विश्वाश हो उठा है कि भारतीय प्रतिभा आदर्श के नये प्रतिमान स्थापित करनें में सफल हो सकेगी । आवश्यकता है न केवल सामूहिक प्रयासों की बल्कि व्यक्ति केंन्द्रित प्रयासों की भी। यह आशा करना कि हम आचरण की शुद्धता तभी ग्रहण करेंगें जब ऊपर का नेतृत्व साफ़ सुथरा हो केवल छलना है । अपने को धोखा देना आत्महत्या करना ही कहा जा सकता है। हमें अपने स्तर पर ईमानदार , सजग और सतर्क होना है । हमें पाप की कमाई पर थूक देने की हिम्मत जगानी है । भ्रष्टाचार को मिटाने के लिये हमें राम प्रसाद बिस्मिल के उस शहीदी गीत की स्मृति फिर जगानी है " सिर बाँधे कफनवा रे शहीदों टोली निकली " ।
माटी आपको आकाश कुस्मों का स्वप्न नहीं दिखाती। वह आपको मटमैले खेतों ,खलिहानों की धूमिल राहों में ले चलने की पुकार लेकर आयी है। हाँ , इतनी स्वतन्त्रता आपको अवश्य है कि आप अपने व्यक्तित्व के करिश्मा से मन के उज्वल , पर वस्त्र मलिन गाँव और गलियों के परिवेश को बदलकर बाहर और भीतर दोनों से उज्वल कर दे। माटी को प्राकृतिक पोषक तत्वों और जल पूर्ति से शशक्त बनायें रखने से नयी संपुष्ट फसलों को उगानें में उल्लेखनीय सफलता मिल सकेगी। आइये हम सब इस जोखिम भरे पथ पर हमसफ़र बनें ।
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