कन्या भ्रूण हत्या -मानवता के प्रति एक जघन्य अपराध (गतांक से आगे )
आज का जीवन स्तर इतनी ऊचाईयों पर पहुँच चुका है कि वह मध्ययुगीन राजा - महाराजाओं से ऊपर की की बात है। सच तो यह है कि सभ्य देश का मध्य वर्गीय समाज आज जो जीवन जी रहा है और जो सुविधायें पा रहा है उनकी कल्पना करना भी अभी ८० -१०० वर्ष पहले एक खोखली बात समझी जाती थी। संचार व्यवस्था नें तो दूरी के सारे माप दण्ड नेस्त नाबूद कर दिये हैं। पलक मारते ही विश्व साधन संपन्न व्यक्ति की मुट्ठी में आ चुका है । ये ठीक है कि भारत में अभी साधन वंचित ,उपेक्षित जन समुदाय का एक बहुत बड़ा हिस्सा आधुनिक दुनिया का एक बहुत बड़ा भाग नहीं बन सका है। उसके लिये प्रयास चलने चाहिये पर इतना तो मानना ही होगा कि मनुष्य का दिमाग आज सितारों की चमक की दुनया का रहस्य खोज कर और उन तक पहुँच कर एक विस्मय कारी मानव सभ्यता को जन्म दे चुकी है । क्या पिछले किसी युग में यह संभव था कि दो -दो बार ह्रदय की शल्य चिकित्सा कराकर पूर्ण स्वस्थ होकर भारत जैसे विशाल देश का नेतृत्व करने के लिये डा ० मनमोहन सिंह जैसा प्रधान मंत्री जन सेवा के लिये हमारा सौभाग्य बनकर हमारे बीच रहे? निश्चय ही प्रकृति के हर क्षेत्र में हमारी सफलतायें पौराणिक कल्पनाओं को पछाड़ चुकी हैं। अब युद्ध के लिए गदा ,तलवार और तीर ,भाला ,चक्र और फरसा आदि सभी बेमानी हो चुके हैं । अब चाहिये मानसिक सजगता ,कार्य तत्परता और अटूट राष्ट्र निष्ठा। राष्ट्र हित के लिये बलिदान हो जाने की अदम्य भावना। इस सब क्षेत्रों में नारी पुरुष से कहीं अधिक ऊँचे स्तर पर खड़ी होती है। हजारों मील दूर एक बटन दबाकर तकनीकी जादू के द्वारा युद्धों की विजय और पराजय सुनिर्णित की जा रही है। इस बदले विकास के शतमुखी दौर में नारी न केवल पुरुष के बराबर आ खड़ी हुई है बल्कि उससे कई कदम आगे चलकर अपनी पहचान बना चुकी है। कितना आश्चर्य है कि देश के विकास क्रम में अपने को अगली पंक्ति में खडा करने वाला हरियाणा जैसा राज्य आनर किलिंग के नाम पर न जाने कितनी नारियों की बलि चढ़ा चूका है । कितना आश्चर्य है कि पंजाब और हरियाणा जैसे प्रगतिशील राज्यों में लड़के और लड़कियों के अनुपात में इतनी अधिक असमानता पाई जाती है। कितना आश्चर्य है कि कुलीन गौरव के जाले में फसी राजस्थानी राजपूत मान्यता फिर से अपने पाँव पसारने लगी है। उस समय चारपायी के पावे के नीचे दबाकर कुछ घरों में नवजात कन्या को मार दिया जाता था और आज वैज्ञानिक तकनीक की नयी सुविधाओं के द्वारा भ्रूण संरक्षण का बहाना करके कन्या भ्रूण की जाँच कर उसकी ह्त्या कर दी जाती है। ऐसी मानसिकता एक सभ्य समाज के लिये घोर कलंक की बात है। अभी हाल ही में जवाहर लाल यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ सोशल साइन्सेज के एक सर्वे ने यह प्रमाणित किया है कि पिछले १० वर्षों में पढाई -लिखायी ,खेल प्रतिस्पर्धा ,आभियान्त्रिकी ,चिकित्सा विज्ञान ,शिक्षा और नाभिकीय में लड़कों के मुकाबले लड़कियों की सफलता का प्रतिशत १५ से २० प्रतिशत तक अधिक रहा है। माँ ,बहिन और पत्नी के रूप में सम्मानित और चर्चित नारी आज की यान्त्रिक और सहस्त्रमुखी सभ्यता के हर दौर और हर मोड़ पर पुरुष की सहकर्मी और सहयोगी बनेगी इस विश्वास के साथ 'माटी 'अपने पाठकों को कन्या भ्रूण ह्त्या विरोधी अभियान में जुट जाने के लिये पुकार लगाती है। हाँ चलते -चलते मैं अपनी उन बहन ,बेटियों से भी एक बात कहता चलूँगा शरीर का सौन्दर्य प्राण की ऊर्जा और सांस्कृतिक गरिमा से शून्य होकर एक झूठी चकाचौंध के अतरिक्त और कुछ नहीं होता -इस आर्श वाणी को वे कभी न भूलें ।
आज का जीवन स्तर इतनी ऊचाईयों पर पहुँच चुका है कि वह मध्ययुगीन राजा - महाराजाओं से ऊपर की की बात है। सच तो यह है कि सभ्य देश का मध्य वर्गीय समाज आज जो जीवन जी रहा है और जो सुविधायें पा रहा है उनकी कल्पना करना भी अभी ८० -१०० वर्ष पहले एक खोखली बात समझी जाती थी। संचार व्यवस्था नें तो दूरी के सारे माप दण्ड नेस्त नाबूद कर दिये हैं। पलक मारते ही विश्व साधन संपन्न व्यक्ति की मुट्ठी में आ चुका है । ये ठीक है कि भारत में अभी साधन वंचित ,उपेक्षित जन समुदाय का एक बहुत बड़ा हिस्सा आधुनिक दुनिया का एक बहुत बड़ा भाग नहीं बन सका है। उसके लिये प्रयास चलने चाहिये पर इतना तो मानना ही होगा कि मनुष्य का दिमाग आज सितारों की चमक की दुनया का रहस्य खोज कर और उन तक पहुँच कर एक विस्मय कारी मानव सभ्यता को जन्म दे चुकी है । क्या पिछले किसी युग में यह संभव था कि दो -दो बार ह्रदय की शल्य चिकित्सा कराकर पूर्ण स्वस्थ होकर भारत जैसे विशाल देश का नेतृत्व करने के लिये डा ० मनमोहन सिंह जैसा प्रधान मंत्री जन सेवा के लिये हमारा सौभाग्य बनकर हमारे बीच रहे? निश्चय ही प्रकृति के हर क्षेत्र में हमारी सफलतायें पौराणिक कल्पनाओं को पछाड़ चुकी हैं। अब युद्ध के लिए गदा ,तलवार और तीर ,भाला ,चक्र और फरसा आदि सभी बेमानी हो चुके हैं । अब चाहिये मानसिक सजगता ,कार्य तत्परता और अटूट राष्ट्र निष्ठा। राष्ट्र हित के लिये बलिदान हो जाने की अदम्य भावना। इस सब क्षेत्रों में नारी पुरुष से कहीं अधिक ऊँचे स्तर पर खड़ी होती है। हजारों मील दूर एक बटन दबाकर तकनीकी जादू के द्वारा युद्धों की विजय और पराजय सुनिर्णित की जा रही है। इस बदले विकास के शतमुखी दौर में नारी न केवल पुरुष के बराबर आ खड़ी हुई है बल्कि उससे कई कदम आगे चलकर अपनी पहचान बना चुकी है। कितना आश्चर्य है कि देश के विकास क्रम में अपने को अगली पंक्ति में खडा करने वाला हरियाणा जैसा राज्य आनर किलिंग के नाम पर न जाने कितनी नारियों की बलि चढ़ा चूका है । कितना आश्चर्य है कि पंजाब और हरियाणा जैसे प्रगतिशील राज्यों में लड़के और लड़कियों के अनुपात में इतनी अधिक असमानता पाई जाती है। कितना आश्चर्य है कि कुलीन गौरव के जाले में फसी राजस्थानी राजपूत मान्यता फिर से अपने पाँव पसारने लगी है। उस समय चारपायी के पावे के नीचे दबाकर कुछ घरों में नवजात कन्या को मार दिया जाता था और आज वैज्ञानिक तकनीक की नयी सुविधाओं के द्वारा भ्रूण संरक्षण का बहाना करके कन्या भ्रूण की जाँच कर उसकी ह्त्या कर दी जाती है। ऐसी मानसिकता एक सभ्य समाज के लिये घोर कलंक की बात है। अभी हाल ही में जवाहर लाल यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ सोशल साइन्सेज के एक सर्वे ने यह प्रमाणित किया है कि पिछले १० वर्षों में पढाई -लिखायी ,खेल प्रतिस्पर्धा ,आभियान्त्रिकी ,चिकित्सा विज्ञान ,शिक्षा और नाभिकीय में लड़कों के मुकाबले लड़कियों की सफलता का प्रतिशत १५ से २० प्रतिशत तक अधिक रहा है। माँ ,बहिन और पत्नी के रूप में सम्मानित और चर्चित नारी आज की यान्त्रिक और सहस्त्रमुखी सभ्यता के हर दौर और हर मोड़ पर पुरुष की सहकर्मी और सहयोगी बनेगी इस विश्वास के साथ 'माटी 'अपने पाठकों को कन्या भ्रूण ह्त्या विरोधी अभियान में जुट जाने के लिये पुकार लगाती है। हाँ चलते -चलते मैं अपनी उन बहन ,बेटियों से भी एक बात कहता चलूँगा शरीर का सौन्दर्य प्राण की ऊर्जा और सांस्कृतिक गरिमा से शून्य होकर एक झूठी चकाचौंध के अतरिक्त और कुछ नहीं होता -इस आर्श वाणी को वे कभी न भूलें ।
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