Sunday, 7 July 2013

अन्तर मन्थन

                                                                   अन्तर मन्थन

                     इस बात से इन्कार करना सच्चायी से आँख मूदने के सामान होगा कि पिछले 10 -15 वर्षों में हिन्दुस्तान में काफी आर्थिक प्रगति हुयी है। साथ ही इस बात से इन्कार  करना भी बेमानी होगा कि हिन्दुस्तान में अभी भी ह्रदय विदारक गरीबी और भयानक बेकारी भीषण कहर मचा रही है । यह परस्पर विरोधी बातें समानान्तर रूप से चल रही हैं । और लगता है कि आर्थिक प्रगति चलती रहेगी और साथ -साथ गरीबी और बेकारी भी बढ़ती रहेगी। सामान्य आदमी को यह बात समझ में नहीं आती कि जब आठ -नौ प्रतिशत की आर्थिक प्रगति हमारे अर्थशास्त्री बखानते रहते हैं तब गरीबी की सीमित सीमा रेखा से नीचे आने वाले जनसमुदाय की संख्या में ,कोई कमी क्यों नहीं दिखायी पड़ती अगर खाने पीने की आवश्यक  वस्तुओं के दाम स्थिर रहते तो शायद गरीबी की मार झेल रहे लोग उन गहरी चोटों से बच  जाते जो उन्हें बढ़ती महगाई के चाबुक लगा रहे हैं । मीडिया जगत नें लिखा था कि केन्द्र सरकार की कैबिनेट कमेटी नें एक अर्जेन्ट मीटिंग करके महगाई के मुद्दे पर विचार किया था। बढ़ती हुयी प्याज ,सब्जी  और दूध की कीमतें केन्द्र सरकार को कोई ठोस कदम उठाने को सचेत कर रहीं थीं। पर कैबिनेट नें यह निष्कर्ष निकाला था  कि बढ़ती हुयी महगाई को थोड़ा बहुत ही रोका जा सकता है । चूँकि आर्थिक प्रगति बहुत तेजी से हो रही है इसलिये एक बहुत बड़ा वर्ग जो पहले रूखा -सूखा खाना खाता था अब दूध और सब्जी खाने लगा है। उत्तरी -पूर्वी प्रदेशों के लोग अंडा और मछली का ज्यादा इस्तेमाल करने लगे हैं नतीजा यह है कि जब माँग ज्यादा होगी तो कीमते तो बढ़ती ही रहेंगी। हाँ प्याज में कुछ अतरिक्त चढ़ाव इसलिये आया था कि महाराष्ट्र में ज्यादा बरसात से फसल खराब हो गयी थी। साथ ही राज्यों का फर्ज है कि वे Hording को रोकें और मह्गायी काबू करनें में मदद  करें । अब जब केन्द्र सरकार की कैबिनेट का यह मत था कि यदि आर्थिक प्रगति बढ़ेगी तो महगाई  भी बढ़ेगी तो फिर गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों के लिये क्या रास्ता शेष रह जाता है। मैं एक सज्जन को जानता हूँ जो अमूल दूध की दो थैलियाँ लेते थे यह दोनों फुल क्रीम की थीं अब दाम बढ़ जाने से वे एक थैली फुल क्रीम की लेते हैं और एक हाफ क्रीम की। एक दूसरे सज्जन है जिन्होंने दाल में प्याज की छौंक लगाना छोड़ रखा है। मैंने उनसे पूंछा अरे भाई दाल भी तो बहुत कीमती हो गयी है। कैसे मैनेज करते हो उन्होंने कहा अरे भाई 100 ग्राम की जगह 70 ग्राम से काम चला लेता हूँ । पानी ज्यादा  डलवा लेता हूँ। आयुर्वेद के पण्डित कहते हैं कि पानी पीने से स्वास्थ्य ठीक रहता है। अब ऐसे लोगों को यह बताने से कि भारत 9 प्रतिशत आर्थिक विकास की दर से आगे बढ़ रहा है अपने को उपहास का पात्र बनाना ही होता है। एक सज्जन से मैंने कहा कि चीन दुनियाँ में सबसे तेजी से आर्थिक विकास कर रहा है और उसके बाद दूसरा स्थान हिन्दुस्तान का है। फिर मैंने कहा कि अमरीका में तो 1 -1.5  प्रतिशत और योरोप के देशों में भी ऐसी ही गति से आर्थिक प्रगति हो रही है। हम 2050  तक योरोप को मात कर देंगें। वे हँसे और बोले ,"सम्पादक जी हम 2050 तक जिन्दा रहेंगें या नहीं रहेंगें कौन जाने पर हमारे बच्चों को दोनों पहर की सब्जी -रोटी पक्की हो जायेगी यह जानकार हमें बहुत खुशी हुयी है। पर कहीं ऐसा न हो कि तब तक अमीरी और गरीबी के बीच की रेखा इतनी तेजी से ऊपर चली जाय कि आज जो हमें खाने को मिल रहा है वह हमारे बच्चों को न मिले। अब हम शब्दों के व्यापारियों के पास कोई दाल ,चीनी और गुड तो होता नहीं जो हम उन्हें यह विश्वास दिला देते कि यह सब चीजें आपको आगे आने वाले वर्षों में सुनिश्चित हो जायेगा। शब्दों की भरमार और तरक्की के पूरे पन्ने वाले एडवरटीजमेन्ट देखकर और सुनकर लोग पहले ही ऊब चुके हैं अब उन्हें शब्दों की दवा दे दे कर मानसिक स्वास्थ्य प्रदान नहीं किया जा सकता जो करना है ठोस जमीनी हालात में परिवर्तन करके ही करना होगा।
             अब प्रश्न उठता है कि आर्थिक प्रगति के इस दौर में गरीबी और भुखमरी बढ़ने का क्या कारण है । अनाज गोदामों में सड़ जाता है और अति गरीब ,आदिवासी , वनवासी भूखों मर रहे हैं । सरकार महात्मा गाँधी रोजगार योजना के अन्तर्गत सभी को थोड़े बहुत दिनों का रोजगार या उसके बदलें जीने लायक पैसा देने का व्यय वहन करती है। कहा जाता है कि केन्द्र की इस स्कीम नें ही यू .पी .ए . सरकार को दुबारा चुनाव में बढ़त देकर केन्द्र की गद्दी पर बिठाया है । पर मुझे ऐसा नहीं लगता। दक्षिण के कुछ राजनीतिक जोड़ -तोड़ों के कारण यू .पी .ए . के घटक भले ही बढ़त पा गये हों पर उत्तर भारत में स्थिति ज्यों की त्यों ही बनी रही। यदि थोड़ा बहुत परिवर्तन दिखायी भी पडा हो तो वह एक नकारात्मक रूप ले चुका है । फिर पढ़ने में आया था कि यू .पी .ए . की चेयर पर्सन सोनिया गाँधी की सलाहकार समिति नें उन्हें राय दी है कि भुखमरी को बन्द करने के लिये एक विधेयक लाया जाय और अति गरीब वर्ग में अनाज मुफ्त या बहुत कम दामों पर बेचा जाय। बी .पी .एल . परिवारों के लिये और सर्व हारा वर्ग के लिये इस प्रकार की स्कीमें पहले से ही लागू हैं। पर यह निर्विवाद सत्य है कि उनके वांछित परिणाम नहीं मिले हैं। बार बार यह दोहराकर कि हमारे देश के अरबपतियों या खरबपतियों की संख्या पहले से दो -तीन गुनी हो गयी है हम अपनी शर्म को छुपाने की कोशिश करते हैं। एक अरब बीस करोड़ के देश में 10 -20 -30 हजार परिवारों का कुबेरी वैभव हमारी समाज की देशव्यापी काली चादर पर सफेदी नहीं ला सकता है। पर सब कुछ यह कहकर नहीं टाला जा सकता। जैसा चलता है ,चलता रहेगा , कोई कुछ नहीं कर सकता। पार्टियां सत्ता में आती हैं ,आती -जाती रहेंगी। कुछ लोग अरबपति और खरबपति बनते जायेंगे पर साधारण जनता हिदुस्तान में गरीबी की बोझा ढोकर पार करेगी। सब भगवान की माया है। यह जीवन सत्य नहीं है केवल छाया है। इस प्रकार के तर्क हमारी लाचारी , हमारी अकर्मण्यता और हमारी भीरुता के कारण दिये जाते हैं। भाग्य वाद की दार्शनिकता खाते -पीते घरों से उपजती है। श्रम जीवियों , बुद्धि जीवियों और खानिकों के लिये कर्म की कुदाली से ही प्रगति की नयी जमीन साज -संवार कर तैय्यार की जा सकती है। क्या कारण है कि भारत में भ्रष्टाचार नहीं रुकता ? क्या कारण है कि भारत  के नगरों में कोई तरुणी शील भंग के डर  से सर्वथा मुक्त होकर नहीं चल सकती?क्या कारण है कि किसी भी तीर्थस्थल के आस -पास भिखारियों की भिनभिनाहट आपके मन से भारतीय संस्कृति के लिये घ्रणा उत्पन्न कर देती है ? क्या कारण है कि चोर ,लुटेरे ,हत्यारे और तस्कर राजनीतिक पार्टियों से टिकट पाकर हमारे चुने हुये प्रतिनिधि बन जाते है? क्या कारण है कि अधिकाँश मठों और आश्रमों के मुखिया नारी यौन पीडन के मुकदमों में फंसे हुये हैं  ? क्या भारत में जन्म लेना एक अभिशाप है ? क्या भारत को देव भूमि कहना महज एक मजाक है ? क्या सबके लिये यदि केवल एक उत्तर दूंढा जाय तो वह है पिछले दो दशकों में राजनीति में उभर कर आने वाले लुच्चे ,लफंगों की कतार। जनतन्त्र के नाम पर जमा हुआ कीचड़ खोद -खोद कर स्वच्छ धाराओं में मिला दिया गया है। और पश्चिम की अपसंस्कृति हमारे चरित्र की जीवनदायी जड़ों को जहर भरे घोल से सींच कर निर्जीव कर चुकी है। और भी कई कारण हैं पर मूल कारण राजनीतिक दलों में उज्वल छवि वाले नि :स्वार्थ नेतृत्व का अभाव ही है। आइये हम इस पर ज़रा गहरायी से विचार करें। हम बार -बार इस बात का दावा करते हैं और झूठा गर्व पालते हैं कि हम एक जनतन्त्र हैं इसलिये हमारी प्रगति चाइना से धीमी है क्योंकि चीन एक साम्यवादी देश है और वहां कोई भी विरोध कुचल दिया जाता है। इसमें कोई शक नहीं कि भारत में किसी भी राज्य का व्यक्ति अन्य किसी दूसरे राज्य में बस सकता है। इस दिशा में जम्मू कश्मीर और उत्तरी पूर्वी सीमान्त इलाके जरूर बाधा बन कर खड़े हैं। इन बाधाओं को हटाना उपेक्षित होगा। यह बात भी ठीक है कि हमारी सेना किसी राजनीतिक प्रतिबद्धता से नहीं बंधी है जनता जिस किसी पार्टी को चुनकर या जिस किसी ज़ोड़ -तोड़ को चुन कर केन्द्र में सत्ता में ला दे सेना उसी के आदेश में चलती है। सेना की देशभक्ति की भावना सराहनीय है और राजनीति के पचड़ों से उसका दूर रहना भी प्रशंसनीय है पर हमें भूलना नहीं चाहिये कि सेना में भी सामान्य घरों के नौजवान ही जाते हैं। धीरे -धीरे वहाँ भी झगड़े की गन्दी राजनीति घुसती जा रही है। लेफ्टीनेंट जनरल और मेजर जनरल तक के लोग भ्रष्टाचार में लिप्त पाये गये हैं। सजायें दी गयी हैं। डिमोशन हुआ है। देश के राजनीतिक नेतृत्व को इस स्तर तक नहीं गिर जाना चाहिये कि देश के रक्षक भी उस गन्दगी से प्रभावित हो जाय । यह भी ठीक ही है कि हमारी न्याय पालिका सब मिलाकर अभी तक भ्रष्टाचार के दलदल में गले तक नहीं फंसी है पर सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायाधीशों पर भी संसद में अभियोग लगाने की तैय्यारी हुयी थी और तो और भारत के सेवा निवृत्त मुख्य न्यायाधीश श्री बालकृष्णन के सगे सम्बन्धी भी कटघरे में खड़े किये गये हैं । हमें डर  है कि भारत के राजनीतिक नेतृत्व का गंदलापन कहीं न्याय पालिका को भी अछूता न छोड़े। यह भी सच है कि भारत में विरोधी पार्टियों को अपनी बात कहने का हक़ है पर जब कोई पार्टी सत्ता में होती है तब जो नीति वह स्वीकार करती है सत्ता से बाहर होने पर उसी नीति की धज्जियाँ उड़ाती है। चिन्तन का इतना खोखलापन और दिमाग का इतना दिवालियापन और कहीं देखने को नहीं मिलता। क्षेत्रीय पार्टियों को तो जाति , खाप और क्षेत्र के मुद्दों पर स्वथ्य भारतीय समाज को बीमार चिन्तन के इंजेक्शन लगा -लगा कर विषैली करती ही जा रही है। इतना सब होने पर भी हम ढोल पीटते रहते हैं कि भारत सबसे चरित्रवान देश है। कि भारत नें ऋषि जन्माये हैं कि भारत नें बुद्ध को जन्म दिया है कि गान्धी आधुनिक युग के महामानव थे आदि आदि । 10 -20  महापुरुषों के हो जाने से करोड़ों पुरुषों और नारियों की चरित्रहीनता पर पर्दा नहीं पड़ जाता। कितने घोटाले है जिनकी बदबू हमारे घरों के शिक्षार्थियों के नासापुटों में भारती रहती है। हम इन घोटालों का जिक्र इसलिये नहीं करते हैं कि घ्रणा से भरे हमारे पाठकों के मन में कहीं भारतीय होने के स्वाभिमान को अपंगता की चोट न लग जाय। अभी कुछ दशक पहले ही भारत की नारी शक्ति पर मूल्यवान जीवन जीने का विश्वास किया जाता था। आज परिस्थतियाँ बिल्कुल बदली हुयी दिखायी पड़ती हैं। प्रशासन के शीर्ष स्थान पर बैठी हुयी कई लेडीज कटघरे में बन्द हैं। चल जगत बिल्कुल छल जगत बन गया है। अर्ध नंगा रहना न केवल एक फैशन है बल्कि अतिरिक्त कमायी का एक साधन भी है। "माटी " बेचारी क्या करे उसे तो हर कोई पैरों के नीचे रौंदता रहता है , रौंदने दो । वह तो कबीर के इस दोहे से शक्ति पाती रहती है , " माटी कहे कुम्हार से ,तू रौन्दति है मोहि , इक दिन ऐसा आयेगा मैं रौंदोंगी तोहि ।" अब भारत के कुछ जन सोने चाँदी से बने हैं। उनकी आँख और नाक हीरे माणिक से बनी है उनको अपना चकमक जीवन जीने दो। उनमें सोने के निवाले हजम करने की ताकत तस्करी माफिया नये -नये इंजेक्शन तैय्यार करके दे रहा है। "माटी " के पाठक तो सामान्य माटी से बने हैं\ वे हल्की -फुल्की खाद्य सामग्री ही हजम कर सकते है। साधरण जीवन जी कर भी यदि वे चाहें तो वह असाधारण काम कर सकते है। यह चाहना है इस बात का ब्रत लेना कि जीवन की अन्तिम सांस तक अपने परिश्रम की कमायी से ही जीवन निर्वाहण की योजना। घूस खोरी , दगाबाजी , हेराफेरी और झूठ की अवैध कमायी का प्रत्येक मौक़ा उनसे घ्रणा भरी थूक की पीक के अतिरिक्त और कुछ नहीं पा सकता। पाश्चात्य संस्कृति इन्द्रिय सुख के अतरिक्त भले ही मानव जीवन का कोई अर्थ न मानती हो पर भारत की "माटी " मानव जीवन को प्रत्येक हीन लोलुपता से मुक्त हो जाने के लिये सबसे सफल प्रयोग मानती है। मनुष्य की काया तो अविनश्वर मूल्यों से बनी आत्म चेतना का एक आवरण मात्र है। यह एक चादर है , एक चदरिया है। आइये कबीर की पंक्तियों  साथ आत्म विश्लेष्ण के सच्चे रास्ते पर चल निकलें।
                          "झीनी -झीनी बीनी चादिरिया
                           दास कबीर जतन से ओढ़ी
                           ज्यों की त्यों धर दीन्ही चदरिया ।" 













                       

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