Sunday 22 May 2016

सत्रहवीं शताब्दी का उत्तरार्ध -आलमगीर

                   औरंगजेब जिन्होनें आलमगीर की उपाधि धारण की थी और जिन्हें अन्तिम समर्थ मुग़ल सम्राट कहा जाता है और जिनके शासन के अन्तिम वर्षों में मुग़ल साम्राज्य विखण्डित होने लगा था । मुग़ल शहंशाहों के इतिहास में एक  विवादास्पद शासक रहे हैं । कट्टर मुस्लिम इतिहासकारों ने उनकी अतिशय प्रशंसा की है तो स्वतन्त्र चेता लेखकों ने उनमें अनेक खराबियाँ खोज निकाली हैं । देखिये महाकवि भूषण रचित 'शिव बावनी ' छन्द न० 16 और 17 में महाकवि ने उनके विषय में क्या लिखा है ?
सबन के ऊपर ही ठाढ़ो रहिबे के जोग,
ताहि खरो कियो जाय जारिन के नियरे ।
जानि गैर मिसिल गुसैल गुसाधारि उर ,
कीन्हों न सलाम न बचन बोले सियरे ।
भूषन भनत  महाबीर बलकन लागो ,
सारी पातसाही के उड़ाय गये जियरे ।
तमकते लाल मुख सिवा को निरखि भये ,
स्याह मुख नौरंग सिपाह मुख पियरे ॥
       भावार्थ ;-जो शीर्षस्थ स्थान पाने योग्य (अग्रिम पंक्ति में रहने योग्य )है उसको हफ्त हजारियों, पंजहरियों जैसे छोटे लोगों के निकट ले जाकर खड़ा किया । अपने को सरदारों की पंक्ति के (वरीयता- क्रम ) विरुद्ध खड़ा किये जाने पर क्रोधाविष्ट शिवाजी ने न तो बादशाह को अभिवादन (सलाम ) किया और न मृदु वचन बोले । वीर -पुंगव के   क्रोध  से दहाड़ते ही पूरी बादशाहत के प्राण काँप उठे । शिवाजी के क्रोध से तमतमाये चेहरे को देखकर औरंगजेब का चेहरा (मारे डर के ) काला पड़ गया और उसके सिपहसालारों के चेहरे पीले पड़ गये । 
राना भी चमेली और बेला सब राजाभये ,
ठौर -ठौर रस लेत नित यह काज है ।
 सिगरे अमीर आनि कुन्द होत घर -घर ,
भ्रमत -भ्रमर जैसे फूल की समाज है ।
भूषन भनत सिवराज वीर तैही देस ,
देसन में राखी सब दच्छिन की लाज है ।
त्यागे सदा षट्पट पद अनुमान यह ,
अलि नवरंगजेब चम्पा सिवराज है ।
              भावार्थ ;-औरंगजेब रूपी भौरे के लिये राणा (मेवाड़ का ) चमेली का फूल और अन्य सभी राजा बेला के फूल हैं ।सभी अमीर कुन्द (श्वेत रंग का एक विशेष पुष्प )  के  सामान हैं । । औरों के लिये ही जैसे यह पुष्प -समाज बना हो ,जिनका जगह -जगह रस चूसता घूमता है । हे वीर शिवाजी !तुमनें सभी देशों (राज्यों ) के बीच सारे दक्षिण भारत की लाज बचायी है । जैसे भ्रमर चंपा के पुष्प पर नहीं बैठता , वैसे ही औरंगजेब रूपी यह यह (लम्पट ) भौरा तुम्हारे निकट नहीं जाता अर्थात तुमसे भय खाता है ।
                   विशेष ;-कुन्द एक श्वेत रंग का निर्गन्ध पुष्प होता है । (देखें  --बर दन्त कि पंगति कुंद कली ( गोस्वामी तुलसी दास )सुन्दर दाँतों की उपमा कुन्द पुष्प की पंखुड़ियों से दी जाती है । ,क्योंकि दोनों ही श्वेत रंग के होते है ।
                                          उपरोक्त छन्दों से स्पष्ट है कि महाकवि भूषण मानवता के उच्च आदर्शों से प्रेरित शासकों को ही आदर्श शासक के रूप में स्वीकार करते थे और यही कारण है कि छत्रपति शिवाजी महाकवि भूषण की आँखों में एक आदर्श अप्रतिम वीर नायक के रूप में उभरते हैं । शिवाजी और औरंगजेब की तुलनात्मक छवि का प्रभावशाली चित्रण करने वाला छन्द न ० 40 पर एक दृष्टि डालिये ।
सिवा की बड़ाई ,और हमारी लघुताई क्यों ,
कहत बार -बार कहि पात साह गरजा ।
सुनिये , खुमान हरि तारुक गुमान ,
महिदेवन जेबायो कवि भूषन यो अरजा ।
तुम वाको पाय कै जरूर रन छोरो वह ,
रावरे वजीर छोरि देत करि परजा ।
मालुम तिहारो होत याहि में निबेरो रन ,
कायर सो कायर औ सरजा सो सरजा । । 40 ॥
                   भावार्थ ;- (भूषण के मुख से ) शिवाजी की प्रशंसा सुनकर बादशाह औरंगजेब गरज कर बोला कि तुम शिवाजी की बड़ाई और मेरी बुराई बार -बार क्यों करते हो ? इसपर भूषण ने उत्तर दिया कि मेरी अर्ज सुनिये -तुर्कों का घमण्ड चूर कर शिवाजी ने ब्राम्हणों को भोज खिलाया (प्रसन्न किया ) है । तुमनें मारे डर के रणक्षेत्र में शिवाजी के सामने जाना छोड़ दिया है । (स्वयं न जाकर अपने सरदारों को औरंगजेब शिवाजी से लड़ने भेजता था ) और वह तुम्हारे मंत्रियों (सरदारों ) बन्दी प्रजा बनाकर छोड़ देता है । लगता है तुम्हारा इसी में निर्वाह हो रहा है । ठीक ही कायर तो कायर ही है और वीर वीर ॥ (40 ॥ 
                             

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