Sunday 16 November 2014

Bharat kee Sanskratik Parampra..........

(गतान्क से आगे। ....)

                             मित्रो अपने को दूसरों से बड़ा माननें का भाव अहँकार से जन्मता है और अहँकार सामाजिक समर्पण के रास्ते  में रुकावट बन कर खड़ा हो जाता है इसलिये यह कहना कि हमारा जीवन अन्य लोगों के मुकाबले में कहीं अधिक स्वच्छ और सुथरा होना चाहिये शायद उपदेश की सी बात लगे पर इसमें दो राय नहीं है कि भारत वर्ष का समूचा तन्त्र जाल प्रशासन की भ्रष्ट लाल फीताशाही में फंसा हुआ है। भ्रष्टाचार मिटाने के न जाने कितनें संकल्प शीर्षस्थ पर बैठे राजनीतिज्ञों नें किये थे और करते जा रहें हैं पर भारत का हर सामान्य नागरिक यह मान कर चल रहा है कि प्रशासन की स्वच्छता एक असम्भव उपलब्धि बनती जा रही है। असंभव को सम्भव कर दिखाना असाधारण साहस की माँग करता है। उस साहस को उत्पन्न किया जाता है । अर्नाल्ड ट्वायनबी नोबल पुरुष्कार विजेता इतिहासकार कहते है कि असाधारण जान नायक एक विशिष्ट चेतना से भरी सामाजिक गुणवत्ता की उपज होते हैं। हम इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठा सकते हैं। हमारा आचरण ,हमारी भाषा , हमारा व्यवहार ,हमारी सेवावृत्ति और हमारी निर्मलता क्रान्तिकारी चारित्रिक पवित्रता को जन्म दे सकती है। असत्य के खिलाफ भीरू बन कर बैठे रहना ,घोर अनाचार के प्रति उदासीन रहना और ऐन्द्रिक कर्तभ में गले तक डूबे रहना भारतीय समाज का अभिशाप हो चुका है। आइये हम अपने भीतर वह शक्ति पैदा करें कि हम किसी भी अनुचित दबाव के आगे नो कहने की हिम्मत रखें। निहारिकाओ से भरा आकाश हमारा लक्ष्य हो । नाबदान के गलीज में बुद बुद करते कीड़ों को मानव जीवन की अस्मिता का ज्ञान नहीं होता। प्रकाश का दिब्य पुन्ज ,पावनता का दिब्य आलोक हमारे चारो ओर व्याप्त है यदि हममें आत्म मन्थन कर उसे पाने की शक्ति है । सभी कुछ परिवर्तन शील है । आज का यह कदाचार ,यह तुच्छता ,यह राजनीतिक लम्पटता चिरस्थायी नहीं है। परिवर्तन सनातन है। कविवर पन्त नें परिवर्तन को वर्तुल वासुकिनाद का रूपक देते हुये लिखा है " शत शत फेन्नोच्छासित स्फीत फुत्कार भयंकर
                                                            घुमा रहे हैं घनाकार जगती का अम्बर
                                                            विश्व तुम्हारा गरल दन्त कंचुक कल्पान्तर
                                                            अखिल विश्व ही विवर ,वक्र कुण्डल दिग मण्डल
                                                            अये वासुकि सहस्त्र फन ।"
                            मित्रो आप मुझे भले ही अतरिक्त आशावादी कहें पर मुझे क्षितिज पर नये प्रभात की अरुणिमा का आभाष हो रहा है ।' माटी' कल के उस प्रभात की अग्र दूत है । घोर जाड़े के बाद भी तो बसन्त का शुभ आगमन होता है।
                                " If winter comes can Spring bee for behind."
                                आइये हम नये युग के सार्थ वाह बने । आइये हम मृत्यु को ललकारने की हिम्मत पा लें ताकि जो अमृत है ,जो सत्य है ,जो सनातन है ऐसा शुद्ध परमार्थ भाव हममें जग सके। मेरा विश्वास कि ' माटी 'परिवार का हर सदस्य अपने चरण   चिंन्हों की ऐसी छाप अपने भू -क्षेत्र में छोड़ सकेगा जिसका अनुसरण करके मानव जीवन को उद्देश्य प्राप्ति हो सके ।
                              " O God ! Illumine what is dark in me ."

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