Friday 29 November 2019

     गोरी न्याय व्यवस्था का मिथक

                     कई वयोवृद्ध लोगों को यह कहते हुये सुना जाता है कि अंग्रेजी राज्य में न्याय की व्यवस्था आज की व्यवस्था के मुकाबले में कहीं अधिक बेहतर थी | उनका कहना है कि उस समय न्यायपालिका के ऊँचे पदों पर अंग्रेज जज ही विराजमान होते थे और वे अपने निर्णय में सदैव निष्पक्ष रहते थे | इसका कारण यह था कि वे हिन्दुस्तान में फ़ैली जाति -पाँति ,क्षेत्र ,धर्म और भाई -बिरादरी की संकीर्ण व्यवस्थाओं से मुक्त थे | वयोवृद्ध लोगों की इन  बातों में काफी कुछ सच्चायी हो सकती है पर मुझे कुछ ऐसे प्रसंगों का भी स्मरण आता है जहां अंग्रेज न्यायाधीशों की निर्णय प्रक्रिया निरर्थक तथा हास्यास्पद कारणों से सुनिश्चित होती थी | 1912 में कानपुर में एडीशनल सेशन्स  जज के पद पर नियुक्त जैकब हार्डेन  द्वारा लिखे गये हिन्दुस्तानी अनुभवों की एक अजीब कहानी मुझे पढ़ने को मिली ,जैकब साहब ने लिखा है कि हिन्दुस्तानी वकील उनके सामनें टूटी -फूटी अंग्रेजी में जो तर्क रखते थे उसका अधिकाँश उनकी समझ के  बाहर होता था वादी और प्रतिवादी दोनों पक्षों की दलीलें उनके लिये बेमानी होती थीं | उन दिनों भारत वर्ष में या कम से कम कानपुर में बिजली की व्यवस्था नहीं थी और लकड़ी के कुन्दे में पंखा बांधकर पंखा हिलानें वाले मजदूर उन्हें राहत पहुंचाते थे | मई की उमस भरी दोपहरियाँ उन्हें बेचैन कर देती थीं | पंखा हिलाते -हिलाते यदि किसी मजदूर के हाँथ रुक जाते तो उनके अर्दली का चाबुक उसकी नंगी पीठ पर अपनी पीड़ा भरी छाप छोड़ देता था | दो -दो मजदूर दो -दो घंटे की बारी से जब तक जज साहब अपनी कुर्सी पर रहते पंखा चलाया करते थे | ठंडे देश के निवासी जैकब गर्मी की भयंकरता से अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठते थे | वकीलों की ओर टेढ़ी निगाह से देखकर उन्हें वे अपनी बात जल्दी समाप्त करने का एहसास कराते थे | चूंकि दोनों पक्ष की दलीलें और हिन्दुस्तानी सन्दर्भ की पृष्ठभूमि उनकी समझ से बाहर थी इसलिये उन्हें फैसला देने के लिये कोई और उपाय खोजना पड़ता था | उन्होंने अपनी पुस्तक  " Memories of Judicial  of English Officer."में लिखा है कि कई बार वे पंखे के लकड़ी के कुन्दे पर जो कि कमरे में Horizental रूप से टंगा था उस पर बैठी हुयी मक्खियों को गिन लेते थे उनकी दांयीं ओर वादी होता था और बायीं ओर प्रतिवादी वे दांयीं और बांयीं दोनों सिरों पर बैठी हुयी मक्खियों की गिनती करते | दांयीं ओर मक्खियों की गिनती करके दो से भाग देते फिर बांयीं ओर की मक्खियों की गिनती करके दो से भाग देते | जिस ओर की मक्खियों की संख्या 2 से विभाजित हो जाती उसी के पक्ष में वे फैसला लिख देते थे | कई बार दोनों ओर की मक्खियों की संख्या 2 से विभाजित हो जाती थी तब वे अगली तारीख पर फैसला सुनाने की बात कहते और उस दिन भी मक्खियों की गिनती की यह प्रक्रिया निर्णय के लिये कारगर साबित होती | जैकब साहब ने लिखा है कि हिन्दुस्तानियों ने उनके हर निर्णय को सराहा और उनकी तुलना किसी विक्रमादित्य से की जो न्याय के लिये बहुत प्रसिद्ध था | ऐसा लगता है कि सैकड़ों वर्ष से पीड़ित ,प्रताड़ित सामान्य भारतीय जनमानस दासता के बन्धनों में अपने स्वाभिमान को पूर्णतः विस्मृत कर चुका था यही कारण है कि गोरों का कोई भी निर्णय उन्हें प्रशंसा के योग्य लगता था | सामान्य हिन्दुस्तानी मनोवैज्ञानिक रूप से हीन ग्रन्थि का शिकार बन चुका था और वह मानता था कि गोरी योरोपियन जातियां हिन्दुस्तानियों से हर मामले में आगे हैं और चारित्रिक द्रष्टि से श्रेष्ठ हैं | आज भी हमारे कई वयोवृद्ध और समाज में प्रतिष्ठा पाये लोग अंग्रजों की निष्पक्षता और चारित्रिक गौरव की बात बड़ी सराहना के साथ करते हैं दरअसल भ्रम का यह जाल कटते -कटते कई पीढ़ियां लग जाती हैं | अब आजादी के सातवें दशक में प्रवेश करने पर   ऐसा लगता है कि हमारी तरुण पीढ़ी अपना खोया हुआ स्वाभिमान वापस पा चुकी है | विश्व के हर देश में जहां कहीं भी भारतीय हैं यह देखा जाता है कि भारतीय छात्र -छात्रायें वहां के स्थानीय बच्चों से अधिक प्रतिभाशाली हैं |  चाहे ऑक्सफोर्ड हो चाहे हारवर्ड चाहे मेलबोर्न और चाहे मांत्रेयल हर स्थान पर भारतीय छात्र -छात्रायें अपनी प्रतिभा और उपलब्धि के खरे सिक्के चला रहे हैं | इसी प्रकार भारतीय व्यापारी और उद्योगपति संसार के सबसे समृद्ध पुरुषों की श्रेणी में पहुंचने लगे हैं | निश्चय ही सैकड़ों वर्षों की दासता से उपजी हीन ग्रन्थि अब सदा के लिये समाप्त हो गयी है | और आने वाले वर्षों में प्रत्येक भारतीय संसार के अन्य देशों के समक्ष सिर ऊँचा करके चलने में सहज रूप से ढाल लेगा |
                            एक और रोचक प्रसंग जो मुझे जैकब साहब के Memories में पढनें को मिला उसकी चर्चा करके मैं अपने इस लेख को समाप्त करना चाहूंगा | अंग्रेज जज ने लिखा है कि उनके सामने क़त्ल का एक केस आया था इस मामले में दोनों ओर से बड़े -बड़े वकील पेश हुये थे | काफी लम्बे अरसे तक यह केस खिंचता रहा | अंग्रेज जज ने कई बार कहा कि मर्डर का यदि कोई साक्षी गवाह हो तो उसे कोर्ट में हाजिर किया जाये | वकील ने उन्हें बताया कि जब क़त्ल हुआ तो वहां और कोई नहीं था सिर्फ बाजरा खड़ा था | जैकब साहब ने वकील से कहा कि मि ० बाजरा को मेरे कोर्ट में हाजिर किया जाये | जब वह वहां खड़ा था तो वह घटना का चश्मदीद गवाह है उसे हाजिर किये बिना क़त्ल का केस पूरी तरह साबित नहीं होता | वकील ने अंग्रेज जज को बताया कि बाजरा को हाजिर नहीं किया जा सकता क्योंकि वह चल -फिर नहीं सकता | वह तो सिर्फ खड़ा ही रहता है | मि ० जैकब ने तुरन्त हुक्म दिया कि उसे पकड़कर चारपायी पर  बांधा जाये और मेरे कोर्ट में हाजिर किया जाये | वकील ने कहा कि बाजरा तो  एक प्लान्ट है तो जैकब साहब ने कहा कि यह सारा केस प्लान्टेड लगता है | उन्होंने जैसा कि हमारे विज्ञ पाठक जानते ही होंगें उन्होंने प्लांट का अर्थ पौधे के रूप में न लेकर एक सुनियोजित षड्यंत्र के रूप में लिया | अंग्रेजी भाषा में प्लांट क्रिया के रूप में कई अर्थ प्रतिध्वनित करता है | नतीजा यह हुआ कि अंग्रेज जज ने क़त्ल करने वाले को मि ० बाजरा जो एक चश्मदीद गवाह थे ,कोर्ट में अनुपस्थित होने के कारण कातिल को रिहा कर दिया गया | विदेशी भाषा में पले -बढे और विदेशी संस्कृति में संस्कारित अंग्रेज न्यायाधीश न तो भारत के जलवायु न ही भारतीय संस्कृति न ही भारतीय परम्पराओं और भारतीय खान -पान में प्रयोग होने वाले खाद्य पदार्थ मसालों से परिचित थे | छोटे स्तर के हिन्दुस्तानी वकील टूटी -फूटी अंग्रेजी सीख लेते थे पर पौधों और जन्तुओं के लिये उनके पास इतने सार्थक शब्द नहीं होते थे कि वे उन्हें पूरी चित्रमयता के साथ अंग्रेज जजों के सामने रख सकें | हम पौधे ,पशुओं और वनस्पति प्रेमियों को इस बात से कुछ राहत मिल सकती है कि हमारी आँखों से तिरस्कृत बाजरा मि ० जैकब के लिये मि ० बाजरा बन गया और मि ० बाजरा को इस बात का श्रेय जाना चाहिये कि उन्होंने अपने को न्याय की एक ऊंची अदालत में कई पुकारों के बाद भी हाजिर न होने की जुर्रत जुटायी | तो पाठक बन्धुओ हमारा प्रयास होना चाहिये कि गोरी जाति के आस -पास किस्सा -कहानियों द्वारा घेरा हुआ बड़प्पन का जाल हम सच्चायी के तकुओं से छिन्न -भिन्न कर दें | प्राचीन भारत की न्याय पद्धति तो विश्व में अद्वितीय थी ही | मुगुल काल में भी जहांगीरी न्याय का घंटा अपने सम्पूर्ण निष्पक्षता के लिये स्वीकारा और माना जाता था | गोरी जातियों का आगमन और उनके द्वारा भारत का पददलन भारतीय इतिहास की सबसे दुखद घटना है | अब समय आ गया है कि अहंकार में पली -पुसी मूल्यहीन संस्कृति में जीने वाले तथा धनांध गोर राष्ट्रों को हम उनका सही स्थान दिखा दें |

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