Tuesday, 3 September 2019

वक्ष -दोलन 

गढ़ तो चुका हूँ रूप प्रतिमा तुम्हारी मैं
केवल तनिक सी तराश अभी बाकी है |
धरती से अम्बर तक सुषुमा बटोरी है
सतरंगी झालर से झूमर चुराये हैं
कंठ में झरती निर्झरिणी उतारी है
वक्ष- काठिन्य गिरी -श्रृंग ले आये है |
माथे पर चाँद सी बिन्दी सजा दी है
केशों का किन्तु नागपाश अभी बाकी है
गढ़ तो चुका हूँ रूप प्रतिमा तुम्हारी मैं
केवल तनिक  सी तराश अभी बाकी है
चितवन में पहली बरसात सी बरसती है
रूप के सरोवर दो गालों ने पाले हैं
सन्ध्या श्यामलता ले भौहें सजायी हैं |
उषा अरुणिमा ले होंठ रच डाले हैं |
आकुल रसज्ञों की तृष्णां जग आयी है
किन्तु मधु -निमन्त्रण का हास अभी बाकी है
गढ़ तो चुका हूँ रूप- प्रतिमा तुम्हारी मैं
केवल तनिक सी तराश अभी बाकी है ||
देकर उन्मुक्त चाल हरिणीं शरमायी है
गति में कैशोर्य का दुलार अभी पलता  है
आँखें पर यौवन की भाषा पढ़ लेती हैं
राग -दीप  प्राणों में लुक छिप  कर जलता है
जीवन हुलास है ,सुरभित निश्वास है
मिलन की नशैली किन्तु प्यास अभी बाकी है
गढ़ तो चुका हूँ रूप -प्रतिमा तुम्हारी मैं
केवल तनिक सी तराश अभी बाकी है ||
अधर  अरुणारे हैं , नयन कजरारे हैं
देह -यष्टि सुरभित हिरण्य की डाली है
ज्वार -संगीत वक्ष -दोलन में बजता है
शिरा शिरा झलक रही जीवन की लाली है |
कब से प्रतीक्षा -रत अपलक मैं रूप विद्ध
किन्तु तुम प्रतिमा हो सांस अभी बाकी है
गढ़ तो चुका हूँ रूप -प्रतिमा तुम्हारी मैं
केवल तनिक सी तराश अभी बाकी है ||


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