Wednesday, 26 June 2019

------------------------ बन्धुओ, बहनों  , भाइयो और साहित्य प्रेमियों ,मैं अपने को साहित्य  और संस्कृति के क्षेत्र में बोलने का अधिकारी नहीं मानता | शिक्षा की द्रष्टि से मैं क़ानून से जुड़ा हूँ और कार्य की द्रष्टि से मैं हिसाब -किताब रखने वालों की श्रेणीं में हूँ | पर न जानें क्यों मुझे ऐसा लगता है कि हिन्दी भाषा -भाषी क्षेत्र के प्रत्येक चिन्तनशील और शिक्षित नर -नारी को इस दिशा में सोचने का प्रयास करना चाहिये कि अपनी मातृ भाषा हिन्दी में राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिभायें उभरकर क्यों नहीं आ रही हैं ? साहित्य के क्षेत्र में तो कुछ  समर्थ रचनाकार हैं भी पर तकनीक ,विज्ञान ,क़ानून , व्यापार प्रबन्धन , खगोल अन्वेषण ,भूगर्भीय ज्ञान , सामुद्रकीय , सूचना  प्रौद्योगकीय , पर्यटन , जैवकीय , आदि आदि के क्षेत्र में तो एकाध स्तरीय अनुवाद भले ही मिल जाय पर श्रेष्ट मौलिक तो देखने को ही नहीं मिलता | ललित साहित्य में भी हमारे जीवन मूल्य अधिकतर  रुढ़ हो गयी मान्यताओँ को व्यक्त करते हैं उनमें बदलती वैश्विक संस्कृति  की झलक पूरी तरह से नहीं दिखायी पड़ रही है |  हमें ऐसा कुछ करना होगा जिससे हम हिन्दी भाषा -भाषी  बदलते हुये युग की दौड़ में पिछड़ न जायें आप सब जानते ही हैं कि कुछ हिन्दी भाषा -भाषी राज्यों के पिछड़े पन  के लिये  अंग्रेजी के बीमारू शब्द का प्रयोग किया जाता रहा है | एक आध राज्य इस शब्द के दायरे से बाहर निकलने वाले हैं पर उ ० प्र ० अभी तक ऊपर उठने की ओर प्रयत्न शील नहीं दिखायी देता | अपनी इस बढ़ती उम्र में मेरा मन कहीं कुछ ऐसा करने के लिये बेचैन रहता है जिससे  हमें अपना जीवन कुछ सार्थक लगे  परिवार का भरण -पोषण और आजीविका का अर्जन तो गृहस्थ जीवन में करना ही होता है पर इसके अतिरिक्त संस्कृति के उच्चतर मूल्यों को सहेजकर उन्हें दूसरोँ तक पहुंचाने का काम भी हमें करना होगा | इस समय  हमारे बीच कई  समर्थ रचनाकार और  दिग्गज शब्दशिल्पी  उपस्थित हैं पर मैं तो साहित्य और संस्कृति के एक पाठक होने के नाते उसकी सुरक्षा में एक सिपाही बनकर काम करना चाहता  हूँ | आकाश कुसुम तोड़ लेने की कल्पना करना तो मेरे लिये अपने को भुलावे में डालना होगा | इस छलना से अपने को दूर रखकर मैं तो हिन्दी भाषा -भाषी प्रदेश की ' माटी ' में ही  रत्नों की तलाश में लगा हूँ | मासिक पत्रिका ' माटी ' का प्रकाशन  इसी दिशा में एक प्रारम्भिक पहल है | अपका  सहयोग और आशीर्वाद उसे उभरते नवीन भारत की चेतना का प्रबल वाहक बना सके यही मेरी कामना है | मेरा प्रयास है कि भारत के हिन्दी भाषा -भाषी सभी प्रदेशों के शब्द -धनी इस पत्रिका के साथ जुड़ जाँय | साहित्य शब्द से आज मानव ज्ञान की हर शाखा का अभिप्रेत होता है | ललित साहित्य का अपना स्थान है तो विज्ञान , तकनीक और नाभिकीय साहित्य का अपना  अलग स्थान है | 
                        ' माटी  ' ज्ञान प्रसार की चौमुखी दिशाओं में अपनी पहुँच बढ़ानें का प्रयास करेगी | हम आस -पास के निष्काम बेदाग़ कर्मयोगियों को ' माटी ' के माध्यम से जन  सामान्य के सम्पर्क में लायेंगें ताकि आदर्श स्थापना के लिये प्राणवान ऊर्जा मिल सके | आप तो जानते ही हैं कि लेखकों , शब्द शिल्पियों , रचनाकारों और भाषा विद्वानों के पास विशेषतः हिन्दी भाषा -भाषी साहित्यकारों के पास आर्थिक सम्पन्नता का अभाव है | इस अभाव को हमें अपने मनोबल और सामूहिक प्रयत्नों से पूरा कर लेने का विश्वास पैदा करना है | अपना अपना अभिमान छोड़कर बड़े और छोटे होने का दम्भ त्यागकर हर हिन्दी भाषा -भाषी प्रेमी को एक जुट होकर आगे आना होगा | अज्ञेय जी की काव्य पंक्ति '' यह दीप  अकेला  स्नेह भरा मदमाता , इसको भी पंक्ति को दे दो |"इस दिशा में एक बहुत सार्थक अभिव्यक्ति है | आइये हम सब निःस्वार्थ भाव से राष्ट्र भाषा की सेवा में अपने को समर्पित करने का संकल्प करें | 

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