Sunday, 2 June 2019

                    'ऊँट किस करवट बैठेगा 'इसे सुनिश्चित रूप से जान लेना बहुत कठिन होता है | 23 मई 2019  के पहले कुछ ऐसी ही अनिश्चितता भारतीय राजनीति के सम्बन्ध में दिखाई पड़ रही थी | पर 24 मई को भारत की राजनीति ने एक निर्णायक करवट बदल ली | अब न तो कोई शक है और न कोई शुगह | पर आने वाले अच्छे दिन अभी शायद काफी लम्बा इन्तजार करवायेंगें | फिर अच्छाई की अपनी परिभाषा होती है | अपनी मान्यता होती है और समाज के विभिन्न तपकों में उसकी अपनी विशिष्ट पहचान होती है | सम्पूर्ण रूप से सब कुछ अच्छा है ऐसा कहा जाना कल्पना के स्वप्न लोक की श्रष्टि करता है | हाँ बुराई और अच्छाई सामूहिक विस्तार के सन्दर्भ में देखी -पारखी जा सकती है | भारत आशावान है | नयी पीढ़ी उत्साह से लबालब भरपूर है | ऐसा लग रहा है कि जीवन मूल्यों में कोई सुखद परिवर्तन आने वाला है | विगत में कई बार स्वप्न लोकों की श्रष्टि हुयी है पर यथार्थ के धरातल पर कोई भी स्वप्नलोक अवतरित नहीं हो सका है | पर विश्व के सभी धर्मग्रन्थ और महापुरुष यह सलाह देते हैं कि मानव को सदैव आशावान होना चाहिये | अबकी बार ऐसा लग रहा है  कि शब्दों के स्वप्न खोखले न रहकर कोई ठोस श्रष्टि कर  पायेंगें | प्रयासों की ईमानदारी पर नयी पीढ़ी में एक नया विश्वास जग उठा है और सम्भावना यही है कि इस विश्वास के परिणाम सुखद ही होंगें | यहां पर एक दूसरा प्रश्न उठ खड़ा होता है क्या भारत की तरुणायी स्थायी जीवन मूल्यों के लिये समर्पित होने को पूरी तरह प्रस्तुत है | शत -प्रतिशत न सही पर अधिसंख्य तरुण पीढ़ी यदि जीवन में सदाचार का व्रत ले तो पहाड़ को काटकर सुरंग बनायी जा सकती है | यदि हमें अपना व्यक्तिगत स्वार्थ साधनें के लिए परिवर्तन की आकांक्षा है तो ऐसी आकांक्षा मानव मूल्यों से रहित मानी जायेगी | सत्ता परिवर्तन को अपने निजी सुख से जोड़ना एक संकुचित मानसिकता का प्रतीक है | ऐसी व्यवस्था जो समग्र रूप से भारत के सवा अरब लोगों को भौतिक ,मानसिक और नैतिक परिवर्तन की ओर मोड़ सके उसके लिये हमें व्यक्तिगत स्वार्थ साधना से ऊपर उठना होगा | उदाहरण के लिये बेकारी की समस्या को लीजिये यदि हम अयोग्य होकर भी अपने से योग्य व्यक्तियों को राजनीतिक दुलत्ती के  द्वारा पीछे खदेड़ कर नौकरी पाना चाहते हैं तो हम भारत के राष्ट्रभक्त नागरिक नहीं कहे जा सकते हाँ हमें इस बात के लिये मर मिटने को तैय्यार रहना चाहिये कि चयन का आधार पात्र के व्यक्तिगत का समग्र आंकलन हो और इस समग्रता में न केवल उसका शैक्षिक ,मौखिक और शारीरिक समापन हो वरन उसके नैतिक , आध्यात्मिक और राष्ट्रीय संकल्प शक्ति का भी समायोजन किया जाय | इसी प्रकार हमारी आर्थिक नीति एकांगी न होकर बहुमुखी और बहु आयामी हो जो व्यक्ति या कार्पोरेट घरानें पूरी ईमानदारी के साथ भारत की कर व्यवस्था से  अनुबन्धित होकर अपनी गुणवत्ता से आगे बढ़ रहे हैं उनसे हमें कोई द्वेष नहीं होना चाहिये | पर राष्ट्र की उदार व्यवस्था से अर्जित आवश्यकता से अतिरिक्त धन कम सुविधा पाने वाले वंचित समाज के हित  में निवेशित किया जाय यह कोई असम्भव कल्पना नहीं है | भारत के इतिहास में कई बार सफल और निष्ठावान शासन तन्त्र के द्वारा ऐसी उपलब्धि हासिल की जा चुकी है | बीते कल में तकनीकी सुविधाओं का इतना बड़ा अम्बार नहीं था | संचार प्रौद्योगकीय भी न के बराबर थी | इन्टरनेट ने आज पूरी दुनिया को एक गाँव बना डाला है | इसलिये हमें उत्पादन की नवीनतम तकनीकों से परिचित होना होगा और आधुनिक जीवन शैली के सार्वजनिक साधन समाज के दुर्बलतम वर्ग तक पहुंचाने होंगें | वाक् पटुता तालियां बटोर सकती है पर दिल जीतने के लिये यथार्थ की धरती पर इमारत खड़ी करनी होती है | चाल ,चरित्र और चेहरा सभी को उज्वलता की ओर खींचकर हमें अतीत की बदनुमा कहानियों से मुक्त होना पडेगा | जिस दिन घुटालों  की कहानियां इतिहास बन जायेंगी , जिस दिन अभाव  का चित्रण संपन्न वर्ग के लिये मनोरंजन न बनकर प्रेरणां बन जायेगा ,जिस दिन राजनेता सच्चे अर्थों में जन नेता बन जायेंगे उसी दिन से गान्धी जी की कल्पना का स्वराज आकार लेने लगेगा | कुछ घटनायें इतनी अप्रत्याशित रूप से घटती हैं कि उन्हें परिवर्तन की अद्रश्य शक्तियों के साथ जोड़कर देखा जा सकता है हो सकता है भारत की ऊर्जावान सांस्कृतिक विरासत आ गये राजनीतिक परिवर्तन में परिलक्षित होकर उत्कर्षता  के नये कीर्तिमान कायम कर सके | भारत के प्रत्येक युवा को विवेकानन्द के बताये हुये मार्ग पर चलकर कर्म की प्रतिष्ठात्मा करनी होगा | कोई भी प्रधान मन्त्री या कोई भी राजनेता सर्वशक्तिशाली देवदूत नहीं होता वह उन कर्मठ पीढ़ियों का अगुआ जननायक होता है जो अपना भाग्य स्वयं निर्मित करते हैं | साठोत्तरी पीढ़ी के हम वरिष्ठ नागरिक कुछ दिन और जीना चाहकर एक ऐसे भारत का निर्माण देखना चाहते हैं जिसमें आजादी के पूर्व के महापुरुषों की योजनायें और प्राथमिकतायें साकार होती दिखायी पड़ें | 'माटी ' की उर्वरा भूमि कल्प वृक्षों के बीज अपने में समोनें  के लिये आकुल है | राष्ट्र भक्ति को समर्पित कोटि -कोटि तरुणों की पीढ़ी प्रतीक्षा रत है | देखिये समय का रथ कब गतिमान होता है |



दुलत्ती दुलत्ती दुलत्ती के द्वारा 

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