Monday, 30 April 2018

अलंकरण 

क्या हुआ ग्रीवा तुम्हारी रह गयी यदि अन अलंकृत
हाँथ नंगे , कान  सूनें
तुम अकेली तो नहीं हो , कोटि गृह की यह कहानी
क्या इसी से हेय हो तुम
तुच्छ या मेरी जवानी ?
क्या हुआ यदि पास के थुल - थुल वणिक नें
हार हीरक हस्तिनी को भेंट डाला
क्या हुआ यदि आयकर -आयुक्त नें अपनी शमा को
ला चढ़ायी मोतियों की श्याम माला
क्या हुआ यदि मौत का व्यापार करके
सेठ दमड़ी नें रखेलिन सेर सोने से मढ़ी है
क्या हुआ यदि सचिव पत्नी की सुहावन नील साड़ी
उदधि अन्तर पार करके स्वर्ण तारों से  जड़ी  है |
तुम तनिक आँखें उठाओ चलो मेरे साथ आओ
इन लुटेरों से अलग भी देश का संसार है
स्वर्ण , हीरे  और मणि माणिक न जिसको तौल पाये
वह सहज जीवन वहां है मुक्त अब तक प्यार है |
यहाँ श्रम -सीकर पिरोकर मोतियों की माल बनती
यहाँ निर्मल हास में हीरक - कनी है झिलमिलाती
तुम यहाँ श्रृंगार की सच्ची कला की दीक्षा लो
पुष्प की शुचिता तिजोरी की खनक में मिल न पाती
बुद्धि जीवी हम , इन्हीं श्रम - जीवियों के साथ हैं
हम अगर  मष्तिष्क हैं तो यह हमारे हाँथ हैं
युक्ति श्रम के मेल से श्रृंगार का श्रृंगार होगा
हाँथ में होगी कुदाली कंठ में श्रमहार होगा |
अन्य के श्रम पर रही पल रक्त जीवी जो व्यवस्था
स्वर्ण -चादर से उसे ढक  कर दिखाना पाप है
कोटि जन नंगे बुभुक्षित भटक कर जब फिर रहे हों
स्वर्ण ग्रीवा है नहीं वरदान केवल शाप है |
लो उठाओ कदम मेरा साथ दो
लो उठाओ हाथ  में तुम हाथ दो
है शपथ हमको तुम्हारे प्यार की
है शपथ हमको दुःखी संसार की
श्रम रहेगा धर्म अपना कर्म ही श्रृंगार है
हर दुःखी  को गोद  में भर थपथपाना ही प्रिये गलहार है
क्या हुआ ग्रीवा तुम्हारी रह गयी यदि अन  अलंकृत ------

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