Sunday 17 December 2017

                             भारत की सांस्कृतिक परम्परा और धार्मिक प्राणपरता यह मान कर चलती है कि मनुष्य का जीवन प्रभु की एक दुर्लभ देन है | गोस्वामी जी की इस पंक्ति से तो आप हम सब परिचित ही हैं -बड़े भाग्य मानुष तन पावा | प्राकृतिक विज्ञान भी यह मान कर चलता है कि मानव अरबों वर्षों की विकास प्रक्रिया का चरम प्रतिफल है  अब यदि मनुष्य होकर भी हम मात्र अपनें लिये जीते हैं तो इस जीनें में और पशु जीवन में अन्तर ही क्या ? मुझे चार्ल्स डिकन्स की बहुचर्चित कहानी क्रिसमस कैरल की याद आती है जिसमें एब्ने क्रूज को जब उसके मित्र पावल गोन का भूत मिलता है और उससे अपनी आत्मा की दारुण व्यथा की बात करता है तो एब्ने क्रूज उससे कहता है कि तुम तो एक अत्यन्त सफल व्यापारी थे | इस पर ईथर में गूंजता उसके मृत मित्र का उत्तर आता है कैसा व्यापारी ? मैनें मानव जाति के लिये क्या किया ? मैनें अपनें अतिरिक्त दूसरों के लिये क्या कभी त्याग या बलिदान का भाव पाला | कैसा वैभव ? अपनें इन्द्रिय सुख के अतिरिक्त क्या उस वैभव से मैनें वृहत्तर मानव कल्याण की संयोजना की | कुछ इसी प्रकार के प्रश्न और उत्तर मैं 'माटी ' पत्रिका के माध्यम से आप सब लोगों के समक्ष रखना चाहता हूँ |  
                                     बन्धुओ मानव जीवन निश्चय और अनिश्चय का एक ऐसा समुच्चय है जो विज्ञान की सारी चमत्कारी विशेषताओं के बावजूद अनुत्तरित है | निश्चय इसलिये कि जो जन्मा है वह मरेगा अवश्य और अनिश्चय इसलिये कि उस महाप्रयाण की बेला गोधूलकी धुंधलके की भांति झिपी -अनझिपी रहती है | यही कारण है कि न जानें कितनी बार महामानव भी चाहते हुये कल की तलाश में बहुत कुछ नहीं कर पाते | हमें याद रखना है कि हमारे पास समय कम है और हमारे संकल्पों की यात्रा अत्यन्त कठिन और एक प्रकार अन्तहीन है | हमारे रास्ते में कितनें ही मनमोहक पड़ाव आते है जहां रुकनें का मन होता है | हम विचलित होते हैं अपनें लक्ष्य पद से और सुहावन मरीचकाओं में भटकते हैं | हमें राबर्ट फ्रॉस्ट की उन अमर पंक्तियों को कभी नहीं भूलना चाहिये जिन्हें पण्डित जवाहर लाल नेहरू नें अपनी राइटिंग टेबिल ग्लास के नीचे लगा रखा था |
" The woods are lavely dark and deep
   But I have promises to keep
   and miles to go before I sleep
   and miles to go before I sleep ."
   अभी कहाँ आराम बदा ,
   यह मूक निमन्त्रण छलना है |
   अरे अभी तो मीलों मुझको ,
   मीलों मुझको चलना है ||
                                                 मित्रो अपनें को दूसरों से बड़ा माननें का भाव अहंकार से जन्मता है और अहंकार सामाजिक समर्पण के रास्ते में रुकावट बन कर खड़ा हो जाता है इसलिये यह कहना कि हमारा जीवन अन्य लोगों के मुकाबले में कहीं  अधिक स्वच्छ और सुथरा होना चाहिये शायद उपदेश की सी बात लगे पर इसमें दो राय नहीं हैं कि भारतवर्ष का समूचा तन्त्र जाल प्रशासन की भ्रष्ट लाल फीताशाही में फंसा हुआ है | भ्रष्टाचार मिटानें के न जानें कितनें कितनें संकल्प शीर्षस्थ पर बैठे राजनीतिज्ञों नें किये थे और करते जा रहे हैं पर भारत का हर सामान्य नागरिक यह मान कर चल रहा है कि प्रशासन की स्वच्छता एक असम्भव उपलब्धि बनती जा रही है | असंम्भव को संम्भव कर दिखाना असाधारण साहस की मांग करता है | अर्नाल्ड ट्वायनवी नोबेल पुरुष्कार विजेता इतिहासकार कहते हैं कि असाधारण जननायक एक विशिष्ट चेतना से भरी सामाजिक गुणवत्ता की उपज होते हैं | हम इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठा सकते हैं | हमारा आचरण ,हमारी भाषा ,हमारा व्यवहार ,हमारी सेवा वृत्ति और हमारी निर्मलता क्रान्तिकारी चारित्रिक पवित्रता को जन्म दे सकती है | असत्य के खिलाफ भीरू बनकर बैठे रहना ,घोर अनाचार के प्रति उदासीन रहना और ऐन्द्रिक कर्तभ में गले तक डूबे रहना भारतीय समाज का अभिशाप हो चुका है | आइये हम अपनें भीतर वह शक्ति पैदा करें कि हम किसी भी अनुचित दबाव के आगे नो कहनें की हिम्मत रखें | निहारिकाओं से भरा आकाश हमारा लक्ष्य हो | नाबदान की गलीज में बुद बुद करते कीड़ों को मानव जीवन की अस्मिता का ज्ञान नहीं होता | प्रकाश का दिव्य पुंज ,पावनता का दिव्य आलोक हमारे चारो ओर व्याप्त है | यदि हममें आत्ममन्थन कर उसे पानें की शक्ति है | सभी कुछ परिवर्तन शील है | आज का यह कदाचार ,यह तुच्छता ,यह राजनीतिक लम्पटता चिरस्थायी नहीं है | परिवर्तन सनातन है | कविवर पन्त नें परिवर्तन को वर्तुल वासुकिनाद का रूपक देते हुये लिखा है :-
"शत शत फेन्नोच्छासित स्फीत फुत्कार भयंकर
घुमा रहे हैं घनाकार जगती का अम्बर
विश्व तुम्हारा गरल दन्त कंचुक कल्पान्तर
अखिल विश्व ही विवर
वक्र कुण्डल दिग मण्डल
अये वासुकि सहस्त्र फन |"
                                                         मित्रो आप मुझे भले ही अतिरिक्त आशावादी कहें पर मुझे क्षितिज पर नये प्रभात की अरुणिमा का आभाष हो रहा है | 'माटी ' कल के उस प्रभात की अग्र दूत है | घोर जाड़े के बाद भी तो बसन्त का शुभ आगमन होता है |
                                                       " If winter comes can Spring bee for behind."
                    आइये हम नये युग के सार्थवाह बनें | आइये हम मृत्यु को ललकारनें की हिम्मत पा लें ताकि जो अमृत है ,जो सत्य है ,जो सनातन है ऐसा शुद्ध परमार्थ भाव हममें जग सके | मेरा विश्वास है कि 'माटी ' परिवार का हर सदस्य अपनें चरण चिन्हों की ऐसी छाप अपनें भू -क्षेत्र में छोड़ सकेगा जिसका अनुसरण करके मानव जीवन को उद्देश्य प्राप्ति हो सके |
                             " O God !    Illumine What is dark in me ." 
                         

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