क्या सार्थक ? क्या निरर्थक ?
ललित साहित्य के सभी सुधी पाठक इन दिनों साहित्य रचना की जिन विधाओं को अधिक संरक्षण प्रदान कर रहे हैं उनमें कथा साहित्य प्रमुख है | अंग्रेजी में जिसे Fiction कहते हैं | उसमें कथा कहनें के सभी प्रकार सम्मिलित हो जाते हैं - छोटी बड़ी कहानियां ,छोटे बड़े उपन्यास ,मनोरंजक गल्प आदि | अब इस कथन से कौन परिचित नहीं होगा , " Truth is strange than fiction . " अनेक बार कथायें सत्य लगती हैं पर कथा के रूप में वर्णिंत सत्य झूठा लगता है | अभी हाल ही में ताज महल देखने गयी एक टोली में मैं भी सम्मिलित था | आगरा गया तो सोचा सेवा निवृत्त प्रोफेसर सत्येन्द्र शुक्ला से मिल लिया जाय | उन्होंने मुझे हिन्दी उपन्यासों का अच्छा -खासा परिचय मेरी मानविकीय स्नातक परीक्षा के दौरान करवा दिया था | बैठके में मेरे पहुंचते ही उनके चेहरे पर खुशी का भाव झलक आया | मैं मन ही मन खुश हुआ कि मेरे ऊपर आशीर्वाद का भाव अभी तक उनके मन में सुरक्षित है | शिष्टाचार के बाद उन्होंने कहा समदर्शी बैंक आफ़ीसरी कैसी चल रही है
| मैनें कहा गुरुदेव आपकी कृपा है | बोले आगरा कैसे आना हुआ है | मैनें बताया बैंक के ताज दर्शन की योजना Week end योजना के अन्तर्गत आना हुआ है | सोचा आपका आशीर्वाद ले लूँ फिर वापस जाऊँ और सभी साथी नूर महल पार्क में चक्कर लगा रहे हैं | सत्येन्द्र जी ने पूछा कहानी -वहानी लिखते हो ?मैनें कहा हाँ कोई घटना मन पर प्रभाव छोड़ जाती है तो उसे शब्द वद्ध करने का प्रयास करता हूँ | कई बार किसी घटना में चिन्तन का इतना अधिक पुट हो जाता है कि कहानी कहानी न रहकर एक लेख सा बन जाती है | शुक्ला जी ने कहा अरे भाई चारो ओर जो कुछ घटित हो रहा है सभी में तो कहानी के कथानक और चरित्र खोजे जा सकते हैं | कई बार आँखों देखा सच भी इतना अहैतुक और असामाजिक लगता है कि उसे कथा वद्ध करना कठिन हो जाता है |
मैनें जानना चाहा कि क्या किसी ऐसी घटना से वह रूबरू हुये हैं | उन्होंने कहा हाँ समदर्शी , अभी पिछले महीनें पहले की ही तो बात है | हुआ यों कि हम कुछ सेवा निवृत्त लोग एक गाड़ी करके दिल्ली के अक्षरधाम मन्दिर को देखनें के लिये गये | मन्दिर देख सुन लेनें के बाद कुछ लोग खरीद -फरोक्त लग गये और हम दो तीन सज्जन गाड़ी लेकर इन्द्रप्रस्थ इक्सटेन्शन में आ गये | इस इक्सटेन्शन के सोसाइटियों द्वारा बनें हुये अलग -अलग इन्क्लेव हैं | मेरे दो साथियों के रिश्तेदार सीताराम एन्क्लेव में रहते थे | मेरी बेटी आशीर्वाद इन्क्लेव में रहती है |आमनें -सामने ही तो है | गाड़ी बाहर खड़ी कर दी गयी | वे दोनों सीताराम एपार्टमेन्ट की ओर चले गये और मैं आशीर्वाद एन्क्लेव की ओर मुड़ा | हुआ ऐसा कि मेरी बेटी उस समय अपनें फ़्लैट में नहीं थी | ताला बन्द था | पड़ोस के फ़्लैट वालों ने बताया कि वह 15 -20 मिनट बाद लगभग सवा चार बजे अपने बच्चों को साथ लेकर स्कूल से वापस आयेगी | जिस स्कूल में वह अध्यापिका है उस स्कूल में उसके बच्चे भी पढ़ते थे | मैनें सोचा कि मैं पटपड़ गंज के कोनें में बनें एक पार्क में थोड़ी देर चक्कर लगा लूँ और फिर वापस फ़्लैट में आकर बच्चों से मिल लूंगा | उस समय पार्क में माली के अतिरिक्त बहुत कम लोग होते हैं क्योंकि घूमनें वालों का जमघट शाम के समय ही शुरू होता है | मुझे बेन्च पर हल्के पीले कपड़े पहनें एक सफ़ेद बालों वाले चश्मा लगाये हुए बुजुर्ग दिखायी पड़े |जो अपनें हाँथ में एक पत्रिका लेकर कुछ पढ़ रहे थे उनके बगल में भी एक दो पत्रिकायें पडी थीं | अपनें उमर से बड़े उन बुजुर्ग से बातचीत करने का मेरा मन हो आया मैनें उनके पास जाकर बेन्च पर बैठने की इच्छा व्यक्त की | बगल में पडी पत्रिकाओं को थोड़ा खिसकाकर उन्होंने बैठने को कहा और पूछा कि क्या घूमने के लिये पार्क में आना हुआ है | मैनें बताया कि मैं अपनी लड़की से मिलनें आया था वह एक स्कूल में अध्यापिका है और लगभग आधा घण्टे में फ़्लैट पर वापस आयेगी आदि आदि | बातचीत चल पड़ी ,उन्होंने जान लिया कि मैं भी एक अध्यापक रहा हूँ | वे बोले कि वे स्वयं भी एक प्राइमरी के अध्यापक थे और उनके रिटायरमेन्ट के लगभग 17 -18 वर्ष हो गये हैं | बातों ही बातों में उन्होंने बताया कि वे उ ० प्र ० के बहराइच जिले से हैं ,गुप्ता हैं ,उनकी पत्नी का निधन हो चुका है | दो सन्तानें हैं | बड़ी पुत्री बलिया में व्याही है , उसके पति भी अध्यापक हैं | कुछ जमीन भी है | दो संतानें हैं ,सुखी हैं | पुत्री से छोटा बेटा पढनें में बहुत तेज था ,उन्होंने अपनी सारी पूंजी लगाकर उसे एम ० बी ० बी ० एस ० कराया | फिर उसे कुछ वजीफा मिल गया ,बाकी उनके पास जो कुछ बचा -खुचा था उन्होंने उसकी एम ० डी ० की पढ़ाई में लगा दिया | अब वह एम ० डी ० है | उसके कुछ साथी डाक्टरों ने मिलकर एक नर्सिंग होम खोल लिया है | कई सहायक डाक्टर लगा लिये हैं | कई नर्से हैं | पार्क से लगे हुये शिवालिक एपार्टमेन्ट में उसने एक सेट खरीद लिया है | आगे चलकर अलग से अपनी कोई कोठी बनवा लेगा | शुक्ला जी ने जानना चाहा कि उनके लड़के की शादी हो गयी है या नहीं तो उन्होंने बताया कि शादी एक बहुत बड़े घर में हो गयी है | लड़की के पिता सोना -चाँदी का काम करते हैं | दो भाई नौकरों के साथ दुकान सम्भालते हैं | बहू टेलीविजन आर्टिष्ट रही है | चार साल का एक पोता है | बहू अब भी कभी -कभी प्राइवेट टी ० वी ० चैनल्स पर एंकर का काम करने के लिये बुला ली जाती है |
शुक्ला जी ने आगे कहा कि यह सुनकर वह मन ही मन बहुत खुश हुये | सोचा कितना सुखी जीवन है इन बुजुर्गवार का | लड़की अपने घर में सुखी | लड़का ,बहू और पोता उच्च वर्गीय समाज का स्तर पाकर गुप्ता जी को एक अतिरिक्त गौरव प्रदान कर रहे हैं | शुक्ला जी उठनें को हुये शायद बेटी अब स्कूल से वापस आ गयी हो ,उठते -उठते उन्होंने पूछा गुप्ता जी आप फ़्लैट में कब जाते हो ?
हल्के गेरुये वस्त्र पहनें प्राइमरी स्कूल के उस सेवा निवृत्त अध्यापक ने शुक्ला जी की ओर एक ऐसी द्रष्टि से देखा जिसका अर्थ वह नहीं समझ पाये | उन्होंने कहा क्या बात है गुप्ता जी ? क्या कुछ नाराज हो गये | गुप्ताजी बोले अरे नहीं भाई !नाराज -आराज क्या होना है ? तुमनें प्रश्न ही ऐसा किया है कि मेरे पास उसका उत्तर नहीं है | शुक्ला जी ने कहा क्यों , गुप्ता जी बहू तो फ़्लैट पर ही रहती है | पोता भी वहीं होगा | आपका इन्तजार करता होगा | छोटे बच्चे बूढ़ों के साथ बातचीत कर मन में बहुत आनन्द पाते हैं | गुप्ता जी बोले अब क्या बताऊँ भाई जब तक मेरा बेटा वापस नहीं आ जाता मैं फ़्लैट पर वापस नहीं जाता | कई बार वह देर रात घर पहुंचता है और मुझे उस सूनसान अन्धेरे में भी पार्क में ही समय काटना होता है | यह तो कहो मालियों से मेरी जान -पहचान है | मेरे लड़के का फ़्लैट पार्क से लगा है और माली मुझे पार्क में रुके रहने की इजाजत दे देते हैं | नहीं तो कहाँ खपता -मरता ,नहीं जानता |
शुक्ला जी को बड़ा ताज्जुब हुआ बोले क्यों गुप्ता जी बहू को पसंद नहीं करते ?गुप्ता जी बोले अरे भाई बहू मेरे को पसन्द नहीं करती पहले कुछ दिन अपनें कमरे में रुका था फिर वह बात -बात में कहनें लगी कि मेरे शरीर से दुर्गन्ध आती है और कमरा गन्दा हो जाता है | जब कभी पोता मेरे पास आता उसे खींच कर दूर ले जाती ,यहां तक कि मेरी बहू को पोते द्वारा मेरे को Grand Pa कहे जानें में भी आपत्ति है | अब मैं ठहरा बहराइच के एक गाँव के प्राइमरी स्कूल का एक रिटायर्ड अध्यापक , न मुझे अंग्रेजी आती है और न अंग्रेजी रहन -सहन | पत्नी के मरने के बाद कपड़े बदल लिये | अपने कमरे में धूप -धाप जलाकर सियाराम के एक फोटो के साथ एकाध भजन गुनगुनाता रहता हूँ | कुछ दिन लड़के के दबाव में बहू ने यह बर्दाश्त किया और फिर उसनें खुली लड़ाई छेड़ दी ,अब लड़के की जान को आफत यदि वह सुधी (पोता ) को मेरे पास आने को कहता भी तो उसकी पत्नी उसे खींचकर वापस ले जाती | डा ० रंजन गुप्ता एम ० डी ० ने अपनी पत्नी को घर की मैनेजिंग डायरेक्टर शिप सौंप दी | तीन कमरों के उस फ़्लैट में मेरे लिये एक कमरे को पार्टीशन कर एक छोटा सा कक्ष बना दिया गया है पर अब वहां जानें पर भी मेरा दम घुटनें लगता है | मन ही नहीं होता ,जब रात को लड़का आ जाता है और शायद एकाध बार मेरे बारे में सुधी से पूछता है तब मैं दरवाजे के पास पहुंचकर चुपके से एक अलग रास्ते से अपने छोटे कमरे में पहुँच जाता हूँ |
शुक्ला जी मुझसे बोले समदर्शी तुम्हें यकीन नहीं होगा कि ऐसा भी हो सकता है , पर जो मैं कह रहा हूँ वह शत -प्रतिशत सच है | पहले तो मुझे भी यकीन नहीं हुआ था पर अभी तो कहना बाकी है | वह शायद तुम्हारे मानव सम्बन्धों के सारे विश्वास ढहाकर गिरा दे | मैनें जानना चाहा कि और क्या बाकी है ? प्रो ० सत्येन्द्र शुक्ला जी बोले कि उन्होनें गुप्ता जी से जानना चाहा कि खानें -पीनें की व्यवस्था कैसे होती है ? उन्होनें कहा कि बहराइच के गाँव से जब वे आये थे तो एक डेढ़ सप्ताह बेटे के किचन से वे खाना मांग लाते थे पर फिर बहू को कभी -कभी काम वाले के न आनें पर हाँथ से काम करना पड़ा और वे मेरे खानें -पीनें के ढंग को लेकर बड़बड़ाने लगी | एक दिन इस सम्बन्ध में जब मेरा बेटा देर रात घर लौटा तो मुझे पति और पत्नी में किसी झड़प होने का आभाष मिला | कान लगाकर सुना तो पाया कि बहू को मेरे खान -पान में हब्सीपन की झलक आती थी और वह नहीं चाहती थी कि उसका छोटा सा बेटा मेरी आदतों को सीख ले | उसनें स्पष्ट रूप से मेरे बेटे से कहा कि अपनें बाप को खानें -पीनें के बर्तन ,सामान और गैस चूल्हा उनके कमरे में ही मुहैय्या कर दे और वे वहीं पर अपना खाना बना लिया करें | गुप्ता जी ने आगे बताया कि उन्होंने अगले ही दिन उनके पास जो छोटे -मोटे पैसे बचे हैं उससे तवा ,कटोरा ,कड़ाही और थाली खरीद ली | बेटे को उन्होंने यह नहीं बताया कि उन्होनें बहू से चलनें वाली उसकी झड़प की कोई जानकारी हासिल की है | उन्होंने सिर्फ यही कहा कि वे एक सन्यासी का जीवन जीना चाहते हैं और इसलिये वे अपना खाना स्वयं तैय्यार करेंगें | लड़के ने किसी से कहकर गैस चूल्हा मंगवाकर उनके कमरे में भेज दिया | अगली रात को वह उनके कमरे में आया और कुछ पैसे देनें चाहे गुप्ताजी नें उससे कह दिया कि उनके पास खर्चे भर के पैसे हैं | जब जरूरत होगी मांग लेंगें | संकोच न करना कहकर लड़का चला गया तब से वे अपनें उस छोटे कमरे में ही अपना खाना ऊषा पूर्व अन्धेरे में ही बना लेते हैं | क्योंकि वे जानते हैं कि उनकी खट -खट की आवाज भी बहू के मन में घृणा उत्पन्न करेगी | | रात को जाते समय छोटी -मोटी सब्जी अपने साथ लेते जाते हैं | मैं यह सब सुनकर आवाक रह गया |
शुक्ला जी आगे बोले समदर्शी जो कुछ मैने कहा है उसमें कोई भी बात झूठ की नहीं जोड़ी गयी है | मानव सम्बन्धों की कहानी एक गहरी और घृणित स्वार्थ की पाश्चात्य जगत से आने वाली गंदी विचारधारा से दूषित हो गयी है | यौवन की भोग लिप्सा ने अनिवार्य रूप से आने वाले वार्धक्य के कष्टपूर्ण जीवन को समझनें की संवेदना शून्य कर दी है | काफी देर हो चुकी थी ,मैं जानता था कि मेरी बेटी घर पर आ गयी होगी | उठनें जा ही रहा था कि मैनें पार्क के गेट से माधुरी को अपनें दोनों बच्चों के साथ पार्क के अन्दर आते देखा | भाव -विभोर होकर मैं उठ खड़ा हुआ ,माधुरी मेरे पास आ गयी और बोली पिताजी बगल के फ़्लैट वालों ने आपके आने की बात बतायी थी ,मैनें अभी फ़्लैट का ताला भी नहीं खोला है | मैं जानती थी कि आप पार्क में बैठे होंगें , फिर उसनें गुप्ता जी की ओर दोनों हाँथ जोड़कर कहा , ' प्रणाम स्वीकार करें दादा जी ! आपसे तो प्रत्येक शाम को पार्क में तो मिलना होता ही है ,आप सच्चे अर्थों में सन्यासी हैं | आपके बेटे रंजन की तो इतनी मशहूरी है कि इस इलाके का हर मरीज उन्हीं के पास इलाज के लिये जाता है | आपकी बहू की झलक भी एकाध बार टेलीविजन पर देखी है | कभी अपनी इस बेटी के घर आकर भी धन्य करना , आशीर्वाद इन्क्लेव में मेरी फ़्लैट का नम्बर 14 है | बच्चों के पिता इन दिनों हिमांचल प्रदेश में व्यापार के सम्बन्ध में गये हुये हैं | अभी पिता जी के साथ चलिये न | '
गुप्ता जी मन भर आया | बोले , ' बेटी फिर कभी आऊँगा ,मेरा आशीर्वाद तेरे साथ है | ' माधुरी नें उन्हें पुनः प्रणाम किया और फिर मुझे लेकर वह इन्क्लेव की ओर चल पडी |
समदर्शी बेटे आप जानना चाहेंगें कि क्या मैनें यह सब बातें अपनी बेटी से बतायीं , नहीं ,मैनें उससे कुछ भी नहीं कहा नौकरी के कारण उसे दिल्ली की इस फ़्लैट में रहना पड़ रहा है वरना गाँव में उसके देवर के परिवार के साथ रह रहे अपनें ससुर को छोड़कर आने का उसका मन ही नहीं होता था , फिर भी समधी सत्यानन्द जी साल में चार छह महीनें तो यहां रह ही जाते हैं | जो मां -बाप अपनी बेटी को बहू बननें की शिक्षा नहीं देते और भारत की आदर्श नारियों की गाथायें उन्हें नहीं सुनाते वे निश्चय ही भारतीय समाज के विघटन के लिये जिम्मेदार हैं | मैं उन्हें प्रणाम कर उठनें ही वाला था उन्होंने कहा देखो समदर्शी इसे वास्तविक रूप से घट रही विखण्डित परिवार परम्परा को किस प्रकार सन्तुलित करके पुनर्जीवन प्रदान किया जाय इस दिशा में हम सबको मिलकर प्रयास करना होगा | कहानी लिखना चाहों तो इस घटना को हूबहू जैसा मैनें बताया है वैसा ही लिख देना | कांट -छांट और जोड़ -तोड़ मत करना | कलात्मकता के नाम पर सच्चायी का गला घोंट दिया जाता है | प्रेमचन्द्र का आदर्शोन्मुख यथार्थवाद यदि कोई रचनात्मक प्रतिभा फिर से सशक्त ढंग से उजागर कर दे तो उससे हिन्दी साहित्य का बहुत बड़ा कल्याण हो सकेगा | मैनें उठकर प्रो ० साहब को प्रणाम करते हुये कहा आपनें मुझे कथा साहित्य को पढ़ने -समझनें की एक नयी द्रष्टि दी है | जो घट रहा है उसे लिखना और जो घटना चाहिये उसकी ओर इंगित करना इन दोनों का निर्दोष मिलन ही श्रेष्ठ कथा साहित्य को जन्म दे सकता है | यदि कोई सफलता मिली तो पूरा श्रेय गुरुवर का होगा | असफलता का सारा बोझ तो मुझे ढोना ही है | प्रोफ़ेसर सत्येन्द्र शुक्ल मुझे द्वार तक छोडनें आये कहा बेटे समदर्शी यदा -कदा आ जाया करो ,जीवन में निरर्थकता का सूनापन छा रहा है | अस्त प्राय सूरज की ओर देखता हुआ मैं आगे बढ़ता चला गया |
ललित साहित्य के सभी सुधी पाठक इन दिनों साहित्य रचना की जिन विधाओं को अधिक संरक्षण प्रदान कर रहे हैं उनमें कथा साहित्य प्रमुख है | अंग्रेजी में जिसे Fiction कहते हैं | उसमें कथा कहनें के सभी प्रकार सम्मिलित हो जाते हैं - छोटी बड़ी कहानियां ,छोटे बड़े उपन्यास ,मनोरंजक गल्प आदि | अब इस कथन से कौन परिचित नहीं होगा , " Truth is strange than fiction . " अनेक बार कथायें सत्य लगती हैं पर कथा के रूप में वर्णिंत सत्य झूठा लगता है | अभी हाल ही में ताज महल देखने गयी एक टोली में मैं भी सम्मिलित था | आगरा गया तो सोचा सेवा निवृत्त प्रोफेसर सत्येन्द्र शुक्ला से मिल लिया जाय | उन्होंने मुझे हिन्दी उपन्यासों का अच्छा -खासा परिचय मेरी मानविकीय स्नातक परीक्षा के दौरान करवा दिया था | बैठके में मेरे पहुंचते ही उनके चेहरे पर खुशी का भाव झलक आया | मैं मन ही मन खुश हुआ कि मेरे ऊपर आशीर्वाद का भाव अभी तक उनके मन में सुरक्षित है | शिष्टाचार के बाद उन्होंने कहा समदर्शी बैंक आफ़ीसरी कैसी चल रही है
| मैनें कहा गुरुदेव आपकी कृपा है | बोले आगरा कैसे आना हुआ है | मैनें बताया बैंक के ताज दर्शन की योजना Week end योजना के अन्तर्गत आना हुआ है | सोचा आपका आशीर्वाद ले लूँ फिर वापस जाऊँ और सभी साथी नूर महल पार्क में चक्कर लगा रहे हैं | सत्येन्द्र जी ने पूछा कहानी -वहानी लिखते हो ?मैनें कहा हाँ कोई घटना मन पर प्रभाव छोड़ जाती है तो उसे शब्द वद्ध करने का प्रयास करता हूँ | कई बार किसी घटना में चिन्तन का इतना अधिक पुट हो जाता है कि कहानी कहानी न रहकर एक लेख सा बन जाती है | शुक्ला जी ने कहा अरे भाई चारो ओर जो कुछ घटित हो रहा है सभी में तो कहानी के कथानक और चरित्र खोजे जा सकते हैं | कई बार आँखों देखा सच भी इतना अहैतुक और असामाजिक लगता है कि उसे कथा वद्ध करना कठिन हो जाता है |
मैनें जानना चाहा कि क्या किसी ऐसी घटना से वह रूबरू हुये हैं | उन्होंने कहा हाँ समदर्शी , अभी पिछले महीनें पहले की ही तो बात है | हुआ यों कि हम कुछ सेवा निवृत्त लोग एक गाड़ी करके दिल्ली के अक्षरधाम मन्दिर को देखनें के लिये गये | मन्दिर देख सुन लेनें के बाद कुछ लोग खरीद -फरोक्त लग गये और हम दो तीन सज्जन गाड़ी लेकर इन्द्रप्रस्थ इक्सटेन्शन में आ गये | इस इक्सटेन्शन के सोसाइटियों द्वारा बनें हुये अलग -अलग इन्क्लेव हैं | मेरे दो साथियों के रिश्तेदार सीताराम एन्क्लेव में रहते थे | मेरी बेटी आशीर्वाद इन्क्लेव में रहती है |आमनें -सामने ही तो है | गाड़ी बाहर खड़ी कर दी गयी | वे दोनों सीताराम एपार्टमेन्ट की ओर चले गये और मैं आशीर्वाद एन्क्लेव की ओर मुड़ा | हुआ ऐसा कि मेरी बेटी उस समय अपनें फ़्लैट में नहीं थी | ताला बन्द था | पड़ोस के फ़्लैट वालों ने बताया कि वह 15 -20 मिनट बाद लगभग सवा चार बजे अपने बच्चों को साथ लेकर स्कूल से वापस आयेगी | जिस स्कूल में वह अध्यापिका है उस स्कूल में उसके बच्चे भी पढ़ते थे | मैनें सोचा कि मैं पटपड़ गंज के कोनें में बनें एक पार्क में थोड़ी देर चक्कर लगा लूँ और फिर वापस फ़्लैट में आकर बच्चों से मिल लूंगा | उस समय पार्क में माली के अतिरिक्त बहुत कम लोग होते हैं क्योंकि घूमनें वालों का जमघट शाम के समय ही शुरू होता है | मुझे बेन्च पर हल्के पीले कपड़े पहनें एक सफ़ेद बालों वाले चश्मा लगाये हुए बुजुर्ग दिखायी पड़े |जो अपनें हाँथ में एक पत्रिका लेकर कुछ पढ़ रहे थे उनके बगल में भी एक दो पत्रिकायें पडी थीं | अपनें उमर से बड़े उन बुजुर्ग से बातचीत करने का मेरा मन हो आया मैनें उनके पास जाकर बेन्च पर बैठने की इच्छा व्यक्त की | बगल में पडी पत्रिकाओं को थोड़ा खिसकाकर उन्होंने बैठने को कहा और पूछा कि क्या घूमने के लिये पार्क में आना हुआ है | मैनें बताया कि मैं अपनी लड़की से मिलनें आया था वह एक स्कूल में अध्यापिका है और लगभग आधा घण्टे में फ़्लैट पर वापस आयेगी आदि आदि | बातचीत चल पड़ी ,उन्होंने जान लिया कि मैं भी एक अध्यापक रहा हूँ | वे बोले कि वे स्वयं भी एक प्राइमरी के अध्यापक थे और उनके रिटायरमेन्ट के लगभग 17 -18 वर्ष हो गये हैं | बातों ही बातों में उन्होंने बताया कि वे उ ० प्र ० के बहराइच जिले से हैं ,गुप्ता हैं ,उनकी पत्नी का निधन हो चुका है | दो सन्तानें हैं | बड़ी पुत्री बलिया में व्याही है , उसके पति भी अध्यापक हैं | कुछ जमीन भी है | दो संतानें हैं ,सुखी हैं | पुत्री से छोटा बेटा पढनें में बहुत तेज था ,उन्होंने अपनी सारी पूंजी लगाकर उसे एम ० बी ० बी ० एस ० कराया | फिर उसे कुछ वजीफा मिल गया ,बाकी उनके पास जो कुछ बचा -खुचा था उन्होंने उसकी एम ० डी ० की पढ़ाई में लगा दिया | अब वह एम ० डी ० है | उसके कुछ साथी डाक्टरों ने मिलकर एक नर्सिंग होम खोल लिया है | कई सहायक डाक्टर लगा लिये हैं | कई नर्से हैं | पार्क से लगे हुये शिवालिक एपार्टमेन्ट में उसने एक सेट खरीद लिया है | आगे चलकर अलग से अपनी कोई कोठी बनवा लेगा | शुक्ला जी ने जानना चाहा कि उनके लड़के की शादी हो गयी है या नहीं तो उन्होंने बताया कि शादी एक बहुत बड़े घर में हो गयी है | लड़की के पिता सोना -चाँदी का काम करते हैं | दो भाई नौकरों के साथ दुकान सम्भालते हैं | बहू टेलीविजन आर्टिष्ट रही है | चार साल का एक पोता है | बहू अब भी कभी -कभी प्राइवेट टी ० वी ० चैनल्स पर एंकर का काम करने के लिये बुला ली जाती है |
शुक्ला जी ने आगे कहा कि यह सुनकर वह मन ही मन बहुत खुश हुये | सोचा कितना सुखी जीवन है इन बुजुर्गवार का | लड़की अपने घर में सुखी | लड़का ,बहू और पोता उच्च वर्गीय समाज का स्तर पाकर गुप्ता जी को एक अतिरिक्त गौरव प्रदान कर रहे हैं | शुक्ला जी उठनें को हुये शायद बेटी अब स्कूल से वापस आ गयी हो ,उठते -उठते उन्होंने पूछा गुप्ता जी आप फ़्लैट में कब जाते हो ?
हल्के गेरुये वस्त्र पहनें प्राइमरी स्कूल के उस सेवा निवृत्त अध्यापक ने शुक्ला जी की ओर एक ऐसी द्रष्टि से देखा जिसका अर्थ वह नहीं समझ पाये | उन्होंने कहा क्या बात है गुप्ता जी ? क्या कुछ नाराज हो गये | गुप्ताजी बोले अरे नहीं भाई !नाराज -आराज क्या होना है ? तुमनें प्रश्न ही ऐसा किया है कि मेरे पास उसका उत्तर नहीं है | शुक्ला जी ने कहा क्यों , गुप्ता जी बहू तो फ़्लैट पर ही रहती है | पोता भी वहीं होगा | आपका इन्तजार करता होगा | छोटे बच्चे बूढ़ों के साथ बातचीत कर मन में बहुत आनन्द पाते हैं | गुप्ता जी बोले अब क्या बताऊँ भाई जब तक मेरा बेटा वापस नहीं आ जाता मैं फ़्लैट पर वापस नहीं जाता | कई बार वह देर रात घर पहुंचता है और मुझे उस सूनसान अन्धेरे में भी पार्क में ही समय काटना होता है | यह तो कहो मालियों से मेरी जान -पहचान है | मेरे लड़के का फ़्लैट पार्क से लगा है और माली मुझे पार्क में रुके रहने की इजाजत दे देते हैं | नहीं तो कहाँ खपता -मरता ,नहीं जानता |
शुक्ला जी को बड़ा ताज्जुब हुआ बोले क्यों गुप्ता जी बहू को पसंद नहीं करते ?गुप्ता जी बोले अरे भाई बहू मेरे को पसन्द नहीं करती पहले कुछ दिन अपनें कमरे में रुका था फिर वह बात -बात में कहनें लगी कि मेरे शरीर से दुर्गन्ध आती है और कमरा गन्दा हो जाता है | जब कभी पोता मेरे पास आता उसे खींच कर दूर ले जाती ,यहां तक कि मेरी बहू को पोते द्वारा मेरे को Grand Pa कहे जानें में भी आपत्ति है | अब मैं ठहरा बहराइच के एक गाँव के प्राइमरी स्कूल का एक रिटायर्ड अध्यापक , न मुझे अंग्रेजी आती है और न अंग्रेजी रहन -सहन | पत्नी के मरने के बाद कपड़े बदल लिये | अपने कमरे में धूप -धाप जलाकर सियाराम के एक फोटो के साथ एकाध भजन गुनगुनाता रहता हूँ | कुछ दिन लड़के के दबाव में बहू ने यह बर्दाश्त किया और फिर उसनें खुली लड़ाई छेड़ दी ,अब लड़के की जान को आफत यदि वह सुधी (पोता ) को मेरे पास आने को कहता भी तो उसकी पत्नी उसे खींचकर वापस ले जाती | डा ० रंजन गुप्ता एम ० डी ० ने अपनी पत्नी को घर की मैनेजिंग डायरेक्टर शिप सौंप दी | तीन कमरों के उस फ़्लैट में मेरे लिये एक कमरे को पार्टीशन कर एक छोटा सा कक्ष बना दिया गया है पर अब वहां जानें पर भी मेरा दम घुटनें लगता है | मन ही नहीं होता ,जब रात को लड़का आ जाता है और शायद एकाध बार मेरे बारे में सुधी से पूछता है तब मैं दरवाजे के पास पहुंचकर चुपके से एक अलग रास्ते से अपने छोटे कमरे में पहुँच जाता हूँ |
शुक्ला जी मुझसे बोले समदर्शी तुम्हें यकीन नहीं होगा कि ऐसा भी हो सकता है , पर जो मैं कह रहा हूँ वह शत -प्रतिशत सच है | पहले तो मुझे भी यकीन नहीं हुआ था पर अभी तो कहना बाकी है | वह शायद तुम्हारे मानव सम्बन्धों के सारे विश्वास ढहाकर गिरा दे | मैनें जानना चाहा कि और क्या बाकी है ? प्रो ० सत्येन्द्र शुक्ला जी बोले कि उन्होनें गुप्ता जी से जानना चाहा कि खानें -पीनें की व्यवस्था कैसे होती है ? उन्होनें कहा कि बहराइच के गाँव से जब वे आये थे तो एक डेढ़ सप्ताह बेटे के किचन से वे खाना मांग लाते थे पर फिर बहू को कभी -कभी काम वाले के न आनें पर हाँथ से काम करना पड़ा और वे मेरे खानें -पीनें के ढंग को लेकर बड़बड़ाने लगी | एक दिन इस सम्बन्ध में जब मेरा बेटा देर रात घर लौटा तो मुझे पति और पत्नी में किसी झड़प होने का आभाष मिला | कान लगाकर सुना तो पाया कि बहू को मेरे खान -पान में हब्सीपन की झलक आती थी और वह नहीं चाहती थी कि उसका छोटा सा बेटा मेरी आदतों को सीख ले | उसनें स्पष्ट रूप से मेरे बेटे से कहा कि अपनें बाप को खानें -पीनें के बर्तन ,सामान और गैस चूल्हा उनके कमरे में ही मुहैय्या कर दे और वे वहीं पर अपना खाना बना लिया करें | गुप्ता जी ने आगे बताया कि उन्होंने अगले ही दिन उनके पास जो छोटे -मोटे पैसे बचे हैं उससे तवा ,कटोरा ,कड़ाही और थाली खरीद ली | बेटे को उन्होंने यह नहीं बताया कि उन्होनें बहू से चलनें वाली उसकी झड़प की कोई जानकारी हासिल की है | उन्होंने सिर्फ यही कहा कि वे एक सन्यासी का जीवन जीना चाहते हैं और इसलिये वे अपना खाना स्वयं तैय्यार करेंगें | लड़के ने किसी से कहकर गैस चूल्हा मंगवाकर उनके कमरे में भेज दिया | अगली रात को वह उनके कमरे में आया और कुछ पैसे देनें चाहे गुप्ताजी नें उससे कह दिया कि उनके पास खर्चे भर के पैसे हैं | जब जरूरत होगी मांग लेंगें | संकोच न करना कहकर लड़का चला गया तब से वे अपनें उस छोटे कमरे में ही अपना खाना ऊषा पूर्व अन्धेरे में ही बना लेते हैं | क्योंकि वे जानते हैं कि उनकी खट -खट की आवाज भी बहू के मन में घृणा उत्पन्न करेगी | | रात को जाते समय छोटी -मोटी सब्जी अपने साथ लेते जाते हैं | मैं यह सब सुनकर आवाक रह गया |
शुक्ला जी आगे बोले समदर्शी जो कुछ मैने कहा है उसमें कोई भी बात झूठ की नहीं जोड़ी गयी है | मानव सम्बन्धों की कहानी एक गहरी और घृणित स्वार्थ की पाश्चात्य जगत से आने वाली गंदी विचारधारा से दूषित हो गयी है | यौवन की भोग लिप्सा ने अनिवार्य रूप से आने वाले वार्धक्य के कष्टपूर्ण जीवन को समझनें की संवेदना शून्य कर दी है | काफी देर हो चुकी थी ,मैं जानता था कि मेरी बेटी घर पर आ गयी होगी | उठनें जा ही रहा था कि मैनें पार्क के गेट से माधुरी को अपनें दोनों बच्चों के साथ पार्क के अन्दर आते देखा | भाव -विभोर होकर मैं उठ खड़ा हुआ ,माधुरी मेरे पास आ गयी और बोली पिताजी बगल के फ़्लैट वालों ने आपके आने की बात बतायी थी ,मैनें अभी फ़्लैट का ताला भी नहीं खोला है | मैं जानती थी कि आप पार्क में बैठे होंगें , फिर उसनें गुप्ता जी की ओर दोनों हाँथ जोड़कर कहा , ' प्रणाम स्वीकार करें दादा जी ! आपसे तो प्रत्येक शाम को पार्क में तो मिलना होता ही है ,आप सच्चे अर्थों में सन्यासी हैं | आपके बेटे रंजन की तो इतनी मशहूरी है कि इस इलाके का हर मरीज उन्हीं के पास इलाज के लिये जाता है | आपकी बहू की झलक भी एकाध बार टेलीविजन पर देखी है | कभी अपनी इस बेटी के घर आकर भी धन्य करना , आशीर्वाद इन्क्लेव में मेरी फ़्लैट का नम्बर 14 है | बच्चों के पिता इन दिनों हिमांचल प्रदेश में व्यापार के सम्बन्ध में गये हुये हैं | अभी पिता जी के साथ चलिये न | '
गुप्ता जी मन भर आया | बोले , ' बेटी फिर कभी आऊँगा ,मेरा आशीर्वाद तेरे साथ है | ' माधुरी नें उन्हें पुनः प्रणाम किया और फिर मुझे लेकर वह इन्क्लेव की ओर चल पडी |
समदर्शी बेटे आप जानना चाहेंगें कि क्या मैनें यह सब बातें अपनी बेटी से बतायीं , नहीं ,मैनें उससे कुछ भी नहीं कहा नौकरी के कारण उसे दिल्ली की इस फ़्लैट में रहना पड़ रहा है वरना गाँव में उसके देवर के परिवार के साथ रह रहे अपनें ससुर को छोड़कर आने का उसका मन ही नहीं होता था , फिर भी समधी सत्यानन्द जी साल में चार छह महीनें तो यहां रह ही जाते हैं | जो मां -बाप अपनी बेटी को बहू बननें की शिक्षा नहीं देते और भारत की आदर्श नारियों की गाथायें उन्हें नहीं सुनाते वे निश्चय ही भारतीय समाज के विघटन के लिये जिम्मेदार हैं | मैं उन्हें प्रणाम कर उठनें ही वाला था उन्होंने कहा देखो समदर्शी इसे वास्तविक रूप से घट रही विखण्डित परिवार परम्परा को किस प्रकार सन्तुलित करके पुनर्जीवन प्रदान किया जाय इस दिशा में हम सबको मिलकर प्रयास करना होगा | कहानी लिखना चाहों तो इस घटना को हूबहू जैसा मैनें बताया है वैसा ही लिख देना | कांट -छांट और जोड़ -तोड़ मत करना | कलात्मकता के नाम पर सच्चायी का गला घोंट दिया जाता है | प्रेमचन्द्र का आदर्शोन्मुख यथार्थवाद यदि कोई रचनात्मक प्रतिभा फिर से सशक्त ढंग से उजागर कर दे तो उससे हिन्दी साहित्य का बहुत बड़ा कल्याण हो सकेगा | मैनें उठकर प्रो ० साहब को प्रणाम करते हुये कहा आपनें मुझे कथा साहित्य को पढ़ने -समझनें की एक नयी द्रष्टि दी है | जो घट रहा है उसे लिखना और जो घटना चाहिये उसकी ओर इंगित करना इन दोनों का निर्दोष मिलन ही श्रेष्ठ कथा साहित्य को जन्म दे सकता है | यदि कोई सफलता मिली तो पूरा श्रेय गुरुवर का होगा | असफलता का सारा बोझ तो मुझे ढोना ही है | प्रोफ़ेसर सत्येन्द्र शुक्ल मुझे द्वार तक छोडनें आये कहा बेटे समदर्शी यदा -कदा आ जाया करो ,जीवन में निरर्थकता का सूनापन छा रहा है | अस्त प्राय सूरज की ओर देखता हुआ मैं आगे बढ़ता चला गया |
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